2020 के ट्वीट को एक साल पुराना बताकर अटर्नी जनरल ने कंटेम्प्ट केस की मंज़ूरी नहीं दी!
RTI एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने शेफाली वैद्य के खिलाफ़ शिकायत की थी.
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केके वेणुगोपाल और उनका पत्र
शैफाली वैद्य. फ़्रीलांस लेखक और कॉलमनिस्ट हैं. इनके कुछ ट्वीट्स को न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ बताकर अदालत की अवमानना का मुक़दमा चलाने की मांग की गई थी. इसके लिए RTI एक्टिविस्ट साकेत गोखले ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को चिट्ठी लिखकर केस चलाने की सहमति मांगी थी. वेणुगोपाल ने इजाजत देने से इनकार कर दिया. इसकी वजह भी बताई. इसके बाद गोखले ने अटॉर्नी जनरल पर ही सवाल उठा दिए.
नियम है कि किसी के खिलाफ कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट की कार्यवाही शुरू करने से पहले अटॉर्नी जनरल की मंजूरी जरूरी होती है. इसीलिए शैफाली के मामले में गोखले की ओर से ये इजाजत मांगी गई थी. वेणुगोपाल ने मंजूरी देने से इनकार करते हुए कहा,
“शैफाली वैद्य के जिन ट्वीट्स का आपने (गोखले ने) ज़िक्र किया है, उन्हें मैंने देखा है. देखने से लगता है कि ये ट्वीट एक साल से भी पहले के हैं. कंटेम्प्ट ऑफ़ कोर्ट एक्ट 1971 के सेक्शन 20 में कहा गया है कि अगर अदालत की अवमानना योग्य किसी बात को एक साल से ज़्यादा का समय हो गया है, तो उस पर कंटेम्प्ट का केस नहीं चलाया जा सकता… मैं इस मामले में सहमति देने से इनकार करता हूं.”

संभवत: गोखले का इशारा स्टैंडअप कमीडियन कुणाल कामरा के खिलाफ कंटेम्प्ट का केस चलाने की मंजूरी की ओर था. गोखले के मुताबिक, शैफाली ने अपने ट्वीट्स में निचली अदालतों के अलावा सुप्रीम कोर्ट के एक जज के बारे में भी टिप्पणियां की थीं. उन्होंने आरोप लगाया कि शैफाली के दो महीने पुराने ट्वीट को वेणुगोपाल साल भर पुराना बता रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट को इस पर गौर करना चाहिए.How much more openly will the AG shield sympathizers of the Modi govt from contempt proceedings while granting consent against critics of the govt? When the AG claims 2 month old tweets are a “year old”, how much more blatant does this have to be? SC must be informed of this.
— Saket Gokhale (@SaketGokhale) December 2, 2020
किन ट्वीट्स की बात हो रही है?
शेफाली वैद्य का पहला ट्वीट तारीख़ : 9 नवंबर 2020“भारत में जो है, वो न्याय व्यवस्था नहीं है. वो मज़ाक़ है.”

“भारत की निचली अदालतें कोम्प्रॉमाइज़ हो चुकी हैं. रांची के ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट मनीष सिंह को याद करिए, जिन्होंने ऋचा भारती को ज़मानत देने के लिए क़ुरान बांटने की शर्त रखी थी. अब सेशंस जज अश्वनी सरपाल कह रहे हैं कि अगर कोई मुस्लिम पुरुष नाबालिग़ लड़की के साथ शादी करने के पहले उसका इस्लाम में धर्म परिवर्तन करा दे तो ये क़ानूनी है.”

“भरोसा नहीं होता. ये आदमी एक समय तक सुप्रीम कोर्ट में बैठकर न्याय कर रहा था. कोई अचरज नहीं हैं कि देश का आम नागरिक अदालतों को संदेह की नज़र से देखता है. क्या इसकी बेटी के साथ ऐसा हुआ होता तो भी ये आदमी तब भी यही बात कहता?”
