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आज़ादी वाले कन्हैया का मोदी जी को खुला ख़त

जेएनएसयू अध्यक्ष कन्हैया कुमार देश के प्रधानमंत्री से बात करना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने खुला ख़त लिखा है. मोदी जी को.

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केतन बुकरैत
13 जून 2016 (Updated: 13 जून 2016, 01:49 PM IST) कॉमेंट्स
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आज़ादी मांगने वाले कन्हैया कुमार ने डफली छोड़ कलम पकड़ ली है. अब तक देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ़ सिर्फ कहते थे, अब लिखना शुरू कर दिया है. ख़त लिखा है वो भी खुला. इस ख़त की टाइमिंग गजब है. 8 जून को सीबीआई लैब से दिल्ली पुलिस के पास एक रिपोर्ट पहुंची जिसमें कहा गया कि 9 फरवरी को जो विवादित नारे लगे थे, उनकी फुटेज से कोई छेड़छाड़ नहीं की गयी है और वो असली है. माने कन्हैया कुमार आरोपी सिद्ध होते हैं. क्यूंकि अब ये प्रूव हो गया है कि वो उमर खालिद के साथ वहां खड़े थे जहां खालिद ने देश-विरोधी नारे लगाये. इस खबर के बाहर आते ही कन्हैया ने प्रधानमंत्री के नाम ख़त लिख दिया है. ख़त में क्या है, पढ़िए:  
आदरणीय मोदी जी,मांस और वीडियो बदलने से देश नहीं बदलता. देश लोगों के हालात बदलने से बदलता है. बहुत दुखद है कि आपके राज में लोगों के हालात तो बदल रहे हैं, लेकिन हालात अच्छे नहीं हो रहे हैं, बल्कि बद से बदतर हो रहे हैं. बड़ी उम्मीद के साथ इस देश के विद्यार्थियों और नौजवानों ने आपको अपना नेता बनाया. इस देश की ग़रीब और पिछड़ी जनता ने आपको अपना प्रधानमंत्री बनाने का निर्णय लिया क्योंकि उन्हें लगा कि आप उनकी दुविधाओं और समस्यायों को दूर कर सकते हैं. लेकिन पिछले दो साल में आपने क्या किया? आपने अगर सचमुच कुछ किया होता तो करोड़ों रुपये खर्च करके लोगों को नहीं बताना पड़ता कि हमने आपके लिए विकास का यह काम किया है. दरअसल आपने कुछ नहीं किया है, इसलिए आपको पैसा खर्च करके लोगों को बताना पड़ता है कि हमने विकास के लिए अमुक-अमुक कार्य किए हैं. आपसे एक विद्यार्थी होने के नाते सवाल कर रहा हूँ. आपके पास दो सौ करोड़ रुपये सरकारी विज्ञापनों पर खर्च करने के लिए हैं, लेकिन क्या 99 करोड़ रुपये इस देश के विद्यार्थियों को साल भर की नॉन-नेट फ़ेलोशिप देने के लिए नहीं हैं? आपके पास हज़ारों करोड़ रुपये टैंक खरीदने के लिए हैं, लेकिन क्या मज़दूरों को न्यूनतम वेतन देने के लिए पैसा नहीं है? आपके पास हज़ारों करोड़ रुपये हवाई यात्राओं के लिए हैं, लेकिन क्या किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के लिए पैसा नहीं है?मोदी जी, आप हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं, लेकिन आप जिन नीतियों पर चल रहे हैं, वे दुर्भाग्यपूर्ण हैं. आप और हम आमने-सामने खड़े हो गये हैं. यहाँ ‘हम’ शब्द केवल विद्यार्थी के लिए नहीं है. मैं इस देश के सवा सौ करोड़ लोगों में से उन लोगों के बारे में कह रहा हूँ, जिनके पास अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने का कोई साधन नहीं है. लोगों के पास रोज़गार नहीं है. किसान आत्महत्या कर रहे हैं. ग़रीब और ग़रीब होते जा रहे हैं. विद्यार्थियों को पढ़ने की सुविधाएँ नहीं मिल रही हैं और जो किसी तरह से विश्वविद्यालय पहुँच रहे हैं, उनका जातिगत उत्पीड़न किया जा रहा है. उन्हें पंखे से लटकने के लिए विवश किया जा रहा है या उनका बलात्कार कर उन्हें मार दिया जा रहा है. और अगर किसी तरह इससे भी बच गए, तो उनकी छात्रवृत्ति बंद करके शिक्षा प्राप्त करने में बाधाएँ खड़ी की जा रही हैं. पिछड़े वर्गों की उन्नति सुनिश्चित करने के लिए दिए गए आरक्षण के संवैधानिक अधिकार पर प्रश्न उठाये जा रहे हैं. छात्रों के साथ साथ आपने तो शिक्षकों और कर्मचारियों के बुनियादी अधिकारों पर चोट कर उन्हें भी सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन करने पर मजबूर कर दिया है. हर रोज़ देश के किसी-न-किसी कोने से शिक्षकों और छात्रों को जेल में डाल देने की ख़बरें आ रही हैं. हर विश्वविद्यालय में आपातकाल की स्थिति पैदा की जा रही है. क्या यही शिक्षा व्यवस्था के 'अच्छे दिन' हैं?आप उन लोगों को विश्वविद्यालयों का कार्यभार दे रहे हैं, जिनका इतिहास न केवल शिक्षा विरोधी बल्कि इतिहास, कला और संस्कृति विरोधी भी रहा है. इन सारी परिस्थितियों को देखकर आपको लगता होगा कि आपने जिनसे पैसा लिया है, जिनके चंदे से चुनाव जीता है, आप उनका पाई-पाई चुका रहे हैं. लेकिन मोदी जी, याद रखिएगा कि हम भी किसी के पैसे पर पलते हैं, और वह है इस देश की मेहनतकश ग़रीब जनता जो अपने खून-पसीने की कमाई का एक हिस्सा राज्य को चलाने के लिए टैक्स के रूप में देती है. हमने उस मेहनतकश जनता का नमक खाया है. हम उसके नमक पर पले हैं और मेहनत की कमाई में नमकहरामी नहीं बल्कि नमकहलाली होती है. याद रखिएगा, आपने अपने चंदा देने वालों का पाई-पाई चुकाया और हम अपने कर्ज़ देने वालों का पाई-पाई चुकाएँगे. आने वाली पीढ़ी आपसे यह सवाल करेगी कि जब आपके देश में आपके मंत्री एक खास समुदाय के खिलाफ़ नफ़रत उगल रहे थे, तो आप चुप क्‍यों थे. आपसे सवाल किया जाएगा कि जब आपके मंत्री एक फ़र्ज़ी ट्वीट के आधार पर देश के विद्यार्थियों को फँसा रहे थे, तो आप चुप क्यों थे. यह भी कि जब इस देश में मांस बदला जा रहा था और सांप्रदायिक नफ़रत फैलाई जा रही थी, तब आप चुप क्यों थे. इन तमाम सवालों से एक बड़ा सवाल बनता है - आप विकास के लिए चुनकर आए हैं या समाज में नफ़रत और हिंसा को जो बढ़ाने वाली शक्तियाँ हैं, उनको मज़बूत करने के लिए?मुझे याद है कि आपके चुनाव अभियान में कहा जाता था - 'बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार'. लेकिन, महँगाई पर आपके मुँह से एक शब्द नहीं निकलता है. आप ही कहते थे कि मनमोहन सिंह बोलते नहीं हैं. हमारे लिए तो आप भी नहीं बोलते हैं, पर जब बोलते हैं तो हमारे लिए नहीं बोलते हैं, इस देश की ग़रीब जनता के लिए नहीं बोलते हैं, बल्कि अमेरिका के लिए बोलते हैं जहाँ आपके लिए लोगों ने उठकर तालियाँ बजाईं. आप जब बोलते हैं तो इस देश में जो कॉरपोरेट लूट है, उसके पक्ष में बोलते हैं. जनता की जो भूख है, दलितों और अल्पसंख्यकों का जो शोषण है, किसानों की जो आत्महत्या है, विद्यार्थियों की जो समस्याएँ हैं, उस पर आप कुछ नहीं बोलते. हमारे लिए तो आप भी चुप हैं, लेकिन याद रखिएगा यह चुप्पी लंबी नहीं रहने वाली है. आपकी यह चुप्पी टूटेगी. जनता की चुप्पी तो टूट रही है. विश्वविद्यालयों में चाहे आप कुछ भी कर लीजिए. आपने चुनाव के दौरान जो वादे किए थे, अगर उन्हें आपने पूरा नहीं किया तो देश बदले या न बदले सरकार ज़रूर बदल जाएगी. आपने कहा था कि इस देश में देवालय से ज़्यादा शौचालय महत्वपूर्ण हैं. आपने इस देश में विकास, रोज़गार और शिक्षा की बात की थी. लेकिन, ये सिर्फ़ बातें थीं, और बातें है बातों का क्या ! जुमलेबाज़ी छोड़िए, देश की जनता के लिए सचमुच काम कीजिए. यही हमारी आपसे विनम्र अपील है.आपका,कन्हैया कुमार

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