'आधे दाम में कोयला खरीद, भारतीयों को महंगी बिजली बेची'- अडानी ग्रुप पर अब क्या आरोप लगे?
फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जब ये शिपमेंट इंडोनेशिया के तट से निकले, तो इनका निर्यात मूल्य कुल 1,157 करोड़ रुपये था. और, भारत पहुंचते ही इनका आयात मूल्य 1,789 करोड़ रुपये दर्ज किया गया. 52% की बढ़ोतरी.

अंतरराष्ट्रीय मीडिया में अडानी समूह (Adani group) पर फिर से एक घपले के आरोप लगे हैं. आरोप हैं कि उन्होंने आयातित कोयले (coal prices) के लिए कम पैसे ख़र्चे, ज़्यादा बताए और कोयले से बनने वाली बिजली भारतीयों को ज़्यादा दाम पर बेची.
यूके के मीडिया संगठन फ़ाइनेंशियल टाइम्स (FT) ने 12 अक्टूबर को एक खोजी रिपोर्ट छापी - 'अडानी कोयला आयात का रहस्य, जब चुपचाप दाम दोगुने हो गए.' कंपनी के कस्टम रिकॉर्ड्स का हवाला देते हुए FT ने दावा किया है कि दो सालों तक कंपनी ने ताइवान, दुबई और सिंगापुर में बिचौलियों के ज़रिए क़रीब 42 हज़ार करोड़ रुपये का कोयला आयात किया. बाज़ार मूल्य से लगभग दोगुने दाम पर. अख़बार ने लिखा,
"भारत की अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से पर दबदबा रखने वाले अडानी समूह - राजनीतिक गलियारों में जिसके अच्छे संबंध हैं - उसने बाज़ार मूल्य से कहीं अधिक दाम पर अरबों डॉलर का कोयला आयात किया है."
रिपोर्ट के मुताबिक़, जनवरी 2019 से अगस्त 2021 के बीच ग्रुप के 30 ऐसे शिपमेंट्स हैं, जिनकी क़ीमत और बाज़ार मूल्य में 73 मिलियन डॉलर (607 करोड़ रुपये) का फ़र्क़ है. जब ये 30 शिपमेंट इंडोनेशिया के तटों से निकले, तो इनका निर्यात मूल्य कुल 139 मिलियन डॉलर (1,157 करोड़ रुपये) था. और, कथित तौर पर भारत पहुंचते ही इनका आयात मूल्य 215 मिलियन डॉलर (1,789 करोड़ रुपये) दर्ज किया गया -- 52% की बढ़ोतरी.
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इस रिपोर्ट के छपने से पहले ही अडानी समूह ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया था. बयान में कहा कि रिपोर्ट का मक़सद समूह के नाम और प्रतिष्ठा को ख़राब करना है. इसके के लिए पुराने निराधार आरोपों को दोहराया गया है. रिपोर्ट के छपने के समय पर भी सवाल उठाए हैं कि जान-बूझकर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के वक़्त रिपोर्ट छापी गई है.
केस है क्या?मामला वाक़ई पुराना है. 2016 में राजस्व आसूचना निदेशालय (DRI) ने एक सर्कुलर जारी किया था कि 40 संगठनों ने इंडोनेशिया से कोयला आयात करते हुए कम पैसा दे कर ज़्यादा का बिल बनाया है. 40 संगठनों में अडानी समूह की भी पांच कंपनियां थीं.
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DRI ने बाद में अन्य देशों की न्यायिक एजेंसियों को पत्र (Letters Rogatory) भेजे. बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2019 में इन पत्रों को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि भेजते वक़्त 'उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया' था. जनवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी. इस वजह से जांच फिर से शुरू हुई. हालांकि, 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने फ़ैसले में 'नॉलेज इंफ्रास्ट्रक्चर' नाम की कंपनी के ख़िलाफ़ केस को रद्द कर दिया था. नॉलेज इंफ्रास्ट्रक्चर, DRI की तरफ से नामित 40 संस्थाओं में से एक है. हालांकि, बाक़ी 39 केसों की स्थिति पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.
इससे पहले, हिंडनबर्ग रिपोर्ट को अडानी ग्रुप ने भारत पर एक सोचा-समझा हमला कहा था. फ़ाइनैंशियल टाइम्स की इस रिपोर्ट पर भी समूह का रुख ऐसा ही है. हालिया बयान में कहा गया है कि ये आरोप भारत की नियामक और न्यायिक प्रक्रिया का माखौल हैं.
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