बिना जांच के खून चढ़ाने से 4 बच्चे हुए HIV पॉजिटिव, क्या डोनेटेड ब्लड चढ़वाना सेफ़ नहीं?
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मुताबिक, थैलेसीमिया मेजर के मामले में हिंदुस्तान पहले नंबर पर है. इससे ग्रसित बच्चों को लगातार खून चढ़वाने की ज़रूरत पड़ती है. देश में हर साल 10-15 हज़ार बच्चे इस ब्लड डिसऑर्डर के साथ पैदा होते हैं. साल 2019 में कई सलेब्स ने थैलेसीमिया का मुद्दा उठाया था. आखिर क्या है ये थैलेसीमिया?
महाराष्ट्र के नागपुर में चार बच्चे HIV पॉजिटिव पाए गए हैं. इन चारों बच्चों को थैलेसीमिया नाम की बीमारी थी. इलाज के दौरान इन बच्चों को खून चढ़ाया गया था. जिसके बाद ये बच्चे HIV पॉजिटिव हो गए. इन चार में से एक बच्चे की मौत हो गई है. ANI के मुताबिक, राज्य स्वास्थ्य विभाग में असिस्टेंट डिप्टी डायरेक्टर डॉक्टर आरके धकाटे ने कहा है कि इस मामले में सख्त कारवाई की जाएगी. दोषियों को सज़ा मिलेगी.
Maharashtra| 4 thalassemic children tested positive for HIV in Nagpur allegedly after blood transfusion
4 children tested positive for HIV, out of them one died. Will take action against it. Inquiry will set up: Dr RK Dhakate, Asst Dy Director, Health Dept,State Govt (25.05) pic.twitter.com/M1nRG6PeOv
— ANI (@ANI) May 26, 2022
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मुताबिक, थैलेसीमिया मेजर के मामले में हिंदुस्तान पहले नंबर पर है. इससे ग्रसित बच्चों को लगातार खून चढ़वाने की ज़रूरत पड़ती है. देश में हर साल 10-15 हज़ार बच्चे इस ब्लड डिसऑर्डर के साथ पैदा होते हैं. साल 2019 में कई सलेब्स ने थैलेसीमिया का मुद्दा उठाया था. ऋतिक रौशन, सोनाक्षी सिंहा, राजकुमार राव. हाल-फ़िलहाल में और भी कई सेलेब्स ने ट्विटर पर अपनी तस्वीरें डालीं. इन सारी तस्वीरों में सिर्फ़ उनका आधा चेहरा दिख रहा है. साथ ही एक मैसेज भी लिखा है. ‘आधी वाली ज़िन्दगी मिटाओ. थैलेसीमिया का टेस्ट करवाओ. अपने बच्चों को आधी ज़िंदगी मत दो.’
Today, on #WorldThalassemiaDay, by posting this picture of half my face, I’m supporting #AadhiwaliZindagiMitao by @_TWFofficial to remind people to get tested for Thalassemia & prevent giving their child half a life. pic.twitter.com/WfJnJmvTJg — Hrithik Roshan (@iHrithik) May 8, 2019
rajkummar_rao Did you know that when both husband and wife have Thalassemia Minor, there is a 25% chance that their child will have Thalassemia Major and reduced life expectancy?
Today, on #WorldThalassemiaDay, by posting this picture of half my face #AadhiwaliZindagiMitao pic.twitter.com/SDngNXGVRr— RAJKUMMARRAO_FC (@teamrajkumarrao) May 8, 2019
आखिर क्या है ये थैलेसीमिया?
ये एक बीमारी है जो मां-बाप से बच्चों में आती है. एक तरह का ब्लड डिसॉर्डर. यानी खून की बीमारी. इसमें आपका शरीर काफ़ी ज़्यादा मात्रा में हीमोग्लोबिन बनाता है. अब ये हीमोग्लोबिन क्या होता है? हीमोग्लोबिन की वजह से आपके रेड ब्लड सेल्स (लाल रक्त कोशिका) आपके शरीर में ऑक्सीजन एक जगह से दूसरी जगह ले जाने का काम करते हैं. थैलेसीमिया की वजह से रेड ब्लड सेल्स ख़त्म होने लगते हैं. इसका नतीजा होता है एनीमिया. यानी आपके शरीर में ज़रूरत के हिसाब से रेड ब्लड सेल्स नहीं बन रहे. थैलेसीमिया बीमारी तीन तरह की होती है. अगर आपको थैलेसीमिया माइनर है, तो ये बहुत सीरियस नहीं है. लेकिन इस बीमारी के अल्फ़ा और बीटा वर्ज़न काफी ख़तरनाक होते हैं.
-हड्डियां नॉर्मल तरीके से नहीं बढ़तीं. ख़ासतौर पर चेहरे की.
-गाढ़े रंग का पेशाब आना.
-बच्चों का धीमा विकास होना.
-हमेशा थकान का महसूस होना.
-चमड़े का पीला पड़ जाना.
क्यों होता है थैलेसीमिया?ये बीमारी तब होती है, जब हीमोग्लोबिन बनाने वाले जीन (Gene) में कुछ दिक्कत होती है. ये जींस आपको अपने माता-पिता से मिलते हैं. अगर आपके माता-पिता में से किसी एक को थैलेसीमिया है, तो आपको थैलेसीमिया माइनर होता है. और ऐसे में आपको थैलेसीमिया के लक्षण का भी पता नहीं चलता. आपसे से ये बीमारी आपके बच्चे में भी जाती है. अगर आपके दोनों पेरेंट्स को थैलेसीमिया है, तो आपको इस बीमारी का ज़्यादा ख़तरनाक वर्ज़न हो सकता है.
-नया खून चढ़वाना
-दवाइयां
-सर्जरी
थैलेसीमिया में खून चढ़ाने की ज़रूरत पड़ती है, ये बात तो पता चल गई. पर ये खून आता कहां से है? क्या इस खून की जांच होती है? इन सवालों के जवाब दिए डॉक्टर ब्रिजेश्वर सिंह ने. आर्थोपेडिक-ट्रॉमा सर्जन है. दया दृष्टि चैरिटेबल ट्रस्ट चलाते हैं. ये ट्रस्ट थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों की मदद करता है.
इस सवाल के जवाब में डॉक्टर ने कहा,
खून को कैसे स्टोर किया जाता है?'कई लोग ब्लड डोनेट करना चाहते हैं. वो चाहते हैं ये खून उनके परिवार के किसी सदस्य को चढ़ा दिया जाए. पर ऐसा नहीं होता. क्योंकि खून सबसे पहले प्रोसेसिंग के लिए जाता है. कई सारे चेकअप किए जाते हैं. खून के कॉम्पोनेन्ट को अलग किया जाता है. वायरल मार्कर्स की जांच की जाती है. ये प्रोटोकॉल है. खून के अंदर मौजूद जिस कॉम्पोनेन्ट की ज़रूरत होती है, उसे प्रोसेस किया जाता है. जैसे केवल आरबीसी (रेड ब्लड सेल्स चाहिए) चाहिए तो केवल आरबीसी खून से अलग निकाली जाती हैं. अगर केवल प्लेटलेट चाहिए तो वो निकाली जाती है. खून की जांच करने में 48 घंटों का समय लगता है. ऐसा सारे ब्लड बैंक करते हैं.'
'खून जमे न, इसलिए एसिड साईट्रेट डेक्सट्रोज का इस्तेमाल किया जाता है. फिर खून को स्टोर किया जाता है. रेड सेल्स को रेफ्रिजरेट किया जाता है. इन्हें 42 दिनों तक स्टोर किया जा सकता है और छह डिग्री तापमान में रखना पड़ता है. प्लेटलेट्स को रूम टेम्परेचर पर स्टोर कर सकते हैं. इसे पांच दिन स्टोर किया जा सकता है. प्लाज्मा को फ्रीज़ किया जाता है फ्रीज़र में. इसे एक साला तक के लिए स्टोर कर सकते हैं. ऐसा आप घर पर नहीं कर सकते. खून को ब्लड बैंक में अनुकूल परिस्थितियों में रखा जाता है.'
-HBsAg टेस्ट जिसे ऑस्ट्रेलिया एंटीजेन भी कहते हैं (ये हेपेटाइटिस बी का टेस्ट होता है.)
-HIV
-हेपेटाइटिस सी
-अगर पैथोलॉजिस्ट को खून में कुछ गड़बड़ लगती है तो आगे और जांच भी की जाती है.
-ब्लड टाइप चेक किया जाता है.
-एंटीबॉडी की स्क्रीनिंग की जाती है.
-कई बार ऐसा होता है कि खून में मौजूद एंटीबॉडी दूसरे पेशेंट को नुकसान पहुंचा सकती है.
-सिफ़लिस का टेस्ट किया जाता है (ये एक बैक्टीरिया से होने वाला इन्फेक्शन है जो यौन संबध से फैलता है).
ये सारे टेस्ट बेहद ज़रूरी होते हैं. हर ब्लड बैंक को ये टेस्ट करने पड़ते हैं. अगर बिना जांच का खून किसी को चढ़ा दिया जाए तो नागपुर जैसा केस हो सकता है.
इसलिए खून डोनेट और चढ़वाते समय इन बातों का ध्यान रखें. एक लाइसेंस्ड ब्लड बैंक से ही खून लें.