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3 वजहें जिनसे विनोद खन्ना की ये फिल्म किसी भी दौर की फिल्म पर भारी पड़ेगी

अपने आप में ये ऐतिहासिक फिल्म है.

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ऋषभ
6 अक्तूबर 2019 (Updated: 6 अक्तूबर 2019, 07:29 AM IST) कॉमेंट्स
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विनोद खन्ना अपने वक्त के सबसे खूबसूरत शरीर वाले हीरो थे. पर करियर के टॉप पर बॉलीवुड छोड़कर ओशो के साथ संन्यासी बन गए. पर बॉलीवुड किसी को छोड़ता नहीं. उनको वापस आना पड़ा. आए तो स्टाइल में. 1988 में उनकी फिल्म आई दयावान. फिल्म तो फ्लॉप हो गई. पर एक गाने ने इसको वो हैसियत दी कि 29 साल बाद भी इस फिल्म की चर्चा रहती है. इस फिल्म को इन 3 वजहों से देखना चाहिए:
1. उस वक्त सेंसर बोर्ड को दरकिनार करते हुए विनोद खन्ना और माधुरी दीक्षित पर गाना फिल्माया गया. इस गाने में दोनों लोगों के बीच दो मिनट का किसिंग सीन था. उस वक्त ये अकल्पनीय बात थी. सेंसर बोर्ड तो आज के दौर में ऐसे सीन देखकर आपे से बाहर हो जाता है.
https://youtu.be/juk1s7P9Ndc
2. सबसे ताकतवर बात थी कि विनोद कुछ दिन पहले तक संन्यासी थे. ओशो के आश्रम में माली का काम करते थे. भारत जैसे देश में संन्यास को बहुत ही हाई लेवल की चीज समझा जाता है. एक संन्यासी का इस तरीके से कदम रखना बहुत सारे मिथकों को तोड़ता है और एक नए मिथक का निर्माण करता है. बाद में माधुरी दीक्षित ने विनोद खन्ना के बेटे अक्षय खन्ना के साथ हिमालय-पुत्र फिल्म की. बाप-बेटे दोनों के साथ अलग-अलग फिल्मों में रोमांस किया. भारतीय समाज की बनावट के हिसाब से ये ऐतिहासिक रोल हैं, भले ही दोनों फिल्में ना चली हों. भविष्य में इन चरित्रों पर बात होगी.3. रामगोपाल वर्मा माफिया पर फिल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने वरदराजन मुदलियार पर एक  फिल्म बनाई थी. दयावान फिल्म में मुदलियार का ही जिक्र है.
15 सितंबर 1993 के इंडिया टुडे के अंक में अनुपमा चोपड़ा ने माधुरी दीक्षित का इंटरव्यू किया था. इसमें माधुरी ने दयावान फिल्म के अपने रोल पर खेद जताया था. कहा कि दयावान के किसिंग सीन को कर के मुझे अफसोस है. जब आप नए होते हो तो आप नहीं जानते कि क्या करना चाहिए. जो डायरेक्टर कहे, वही कर देते हैं. पर बाद में मैंने महसूस किया कि मुझे नहीं कह देना चाहिए था. परिंदा में भी लव-मेकिंग सीन है, पर हमने पूरे कपड़े पहने हुए थे. सिर्फ हाथ और कंधे खुले थे. पर 2012 में अपने एक इंटरव्यू में माधुरी दीक्षित ने कहा कि मुझे इंटीमेट सीन से कोई ऐतराज नहीं है. ये बात उन्होंने इश्किया फिल्म के संदर्भ में कही थी. तो ये तो वक्त-वक्त की बात है. उम्र और वक्त के साथ विचार बदलते रहते हैं. पर दयावान फिल्म अपने आप में आइकॉनिक रहेगी. ये भी पढ़ें:

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