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2 साल का फतेहवीर, 109 घंटे बोरवेल में फंसा रहा, नहीं बचाया जा सका

एनडीआएफ, आर्मी और वॉलंटियर्स समेत कुल 1000 से ज्यादा लोग ऑपरेशन में जुटे थे.

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इस पूरे ऑपरेशन में 1000 हज़ार से ज्यादा लोग लगे थे.
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रजत
11 जून 2019 (Updated: 11 जून 2019, 02:23 PM IST) कॉमेंट्स
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पंजाब के संगरूर में बोरवेल में गिरे दो साल के फतेहवीर सिंह की मौत हो गई. तड़के करीब 5 बजे उसे बोरवेल से निकाला गया. 109 घंटे तक बोरवेल में फंसे रहने के बाद फतेह को निकाला जा सका. निकलते ही उसे स्थानीय अस्पताल ले जाया गया. बाद में प्राथमिक उपचार के बाद उसे पीजीआई चंडीगढ़ ले जाया गया. जहां उसके नहीं रहने की ख़बर आई. पीजीआई में इलाज के दौरान भी भारी प्रदर्शन किया गया. फतेह की मौत के बाद लोग अब धरने पर बैठे हैं. वो प्रशासन की लापरवाही, सरकार की अनदेखी और पुरानी तकनीकों के इस्तेमाल पर सवाल उठा रहे हैं.

यूं हुआ था पूरा हादसा

संगरुर के गांव भगवानपुरा के रहने वाले सुखविंदर सिंह का बेटा फतेहवीर 6 जून, 2019 को शाम क़रीब 4 बजे 150 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया था. बोरवेल की चौड़ाई 9 इंच थी. 10 साल पुराने इस बोरवेल को बोरी से ढंका गया था. बारिश हुई तो ये इंतज़ाम कमजोर हो गया था. खेलते-खेलते फतेह का पैर बोरवेल में लगा और वो बोरवेल में धंस गया. फतेह की आवाज सुनकर मां-बाप और परिवार दौड़ा. लेकिन बच्चे को बचा नहीं सके. अमर उजाला की ख़बर के मुताबिक, फतेह की मां गगनदीप कौर ने भागकर बच्चे को पकड़ने की कोशिश भी की थी, लेकिन वो सिर्फ फतेह को छू ही सकी थीं. उनके हाथ में रद्दी हो चुके बोरे का टुकड़ा ही आया. इस बात को याद कर कर गगनदीप खुद को कोस रही हैं. मैं अपने बच्चे को बचा नहीं सकी, ये कहते हुए वह बार-बार बेहोश हो जाती हैं. वहीं पिता का भी रो-रोकर बुरा हाल है. सुखविंदर भी कह रहे हैं कि मैं हाथ धोने न जाता तो फतेहवीर को गिरने से बचा सकता था. जानकारी के मुताबिक, फतेहवीर मां-बाप की इकलौती संतान था. सुखविंदर सिंह और गगनदीप कौर की शादी करीब सात साल पहले हुई थी. शादी के पांच साल बाद कई मन्नतों के बाद फतेहवीर सिंह का जन्म हुआ था. 10 जून को जब फतेहवीर दो साल का हुआ था, उस वक्त वो 150 फुट गहरे बोरवेल में फंसा था. लेकिन 109 घंटे तक बोरवेल में रहने के बाद फतेहवीर ये जंग हार गया.

कैसे हुआ पूरा ऑपरेशन

फतेह को बचाने के लिए नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (एनडीआरएफ), सेना की असॉल्ट इंजीनियरिंग रेजीमेंट और डेरा समर्थक टीम (शाह सतनाम फोर्स) ने मोर्चा संभाला हुआ था. इस बोरवेल के ठीक बगल में 41 इंच की एक टनल तैयार की गई. मशीनों से काम करने पर फतेह को नुकसान पहुंचने आशंका थी. इसलिए बिना उपकरणों से ही खुदाई की गई. बाल्टियों और तसलों की मदद से खोदी गई मिट्‌टी को बाहर निकाला गया. रेस्क्यू कर रही टीम ने गलत दिशा में खुदाई कर दी थी. काफी मेहनत कर रेस्क्यू टीम बोरवेल तक पहुंची. पाइप को काटा भी गया, लेकिन इसमें नीचे रेत भरी मिली. 10 जून को रात करीब 8 बजे फतेह की आखिर लोकेशन मिली. उम्मीद थी कि रात ढाई बजे तक फतेहवीर को रेस्क्यू कर लिया जाता. लेकिन 3 घंटे की देरी और हो गई.

दादा ने शांति बनाए रखने की अपील की

फतेह के शव को पोस्टमॉर्टम के बाद वापस गांव भेज दिया गया. लोग प्रशासन का ख़ासा विरोध कर रहे थे. लगातार नारेबाज़ी हो रही थी. जब फतेह का अंतिम संस्कार किया जा रहा था तब भी रोष दिख रहा था. फतेह के दादा ने लोगों से शांति की अपील की. उन्होंने कहा, 'फतेह नूं शांति का विदा हो लैण देयो' यानी, फतेह को शांति से विदा होने दो...
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