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कोकराझार में क्यों बार-बार लोगों को मार दिया जाता है

आजादी के बाद से ही हालात ठीक नहीं हैं. बोडोलैंड स्टेट बनाना चाहते हैं.

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कोकराझार में शुक्रवार को फायरिंग हुई . 14 लोग मारे गए.
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पंडित असगर
5 अगस्त 2016 (Updated: 5 अगस्त 2016, 02:28 PM IST) कॉमेंट्स
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असम में कोकराझार के मार्केट एरिया में ब्लास्ट होता है. अंधाधुंध फायरिंग होती है और 14 लोग मारे जाते हैं. कई जख्मी हो जाते हैं. कोकराझार बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल का बेस है. पुलिस को शक है कि आतंकवादी बैन किए गए नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के विद्रोही थे, जो कि क्षेत्रीय जातीय बोडो लोगों के अलग देश की मांग के लिए लड़ रहे हैं. ये कोई पहला हमला नहीं है. आजादी के बाद से ही कोकराझार के हालात ख़राब रहे हैं. दंगे होते हैं और लोग मारे जाते हैं. जानिए कब क्या हुआ कोकराझार में. 1. 1993-94 में बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बी.टी.सी ) उस वक्त बनी, जब बोडोलैंड नाम से अलग स्टेट की मांग की जा रही थी. क्योंकि असम के कुछ जिले बोडो जनजाति बहुल हैं, उनमें कोकराझार भी शामिल है. शुरू में बी.टी.सी ने सरकार के खिलाफ हिंसक रुख अपनाया हुआ था. सरकार के साथ हुए समझौते के बाद बोडो बहुल इलाके में बी.टी.सी को स्वायत्त संस्था के तौर पर मान्यता दे दी गई. 2. आजादी के बाद पहली बार 1952 में यहां दो सम्प्रदायों के बीच दंगे हुए. ये दंगे उस वक्त देश के जो हालात थे, उनके जैसे ही समझे गए. जबकि दंगाई पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से ताल्लुक रखते थे. 3. 1993 में फिर यहां दंगे हुए और 50 लोगों की जान गई. इसके बाद यहां लगातार दंगे होने लगे. 1994 में 100, 1996 में 200 और 2008 में 80 लोगों की जान गई. इसी कड़ी में 2012 में फिर दंगा हुआ. ये दंगा बोडो आदिवासियों और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच हुआ. जिसमें 19 लोग मारे गए. 4. दिसंबर 2014 में एनडीएफबी (एस) ने कई आदिवासियों का मर्डर कर दिया. हिंसा भड़क गई. इस हिंसा में 78 लोगों की मौत हुई. गृह मंत्री राजनाथ ने कोकराझार का दौरा किया, उस वक्त उन्होंने कहा था, 'हम इसे सिर्फ एक साधारण चरमपंथी घटना के तौर पर नहीं देख सकते. यह आतंक की घटना है. स्टेट और सेंटर दोनों सरकारें आतंकवाद से उसी तरह निपटेंगी जैसे उससे निपटा जाना चाहिए राज्य में कई विद्रोही समूह सेंटर गवर्नमेंट के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे हैं. ये समूह अपनी कम्युनिटी के लिए स्वायत्ता और स्वतंत्र होमलैंड की मांग करते हैं. आजादी के बाद से ही ये दंगे होते रहे हैं. सरकार को इसको हलके में नहीं लेना चाहिए. नहीं तो हालात और बिगड़ सकते हैं, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है.

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