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महात्मा गांधी की हत्या के तीन आरोपी, जिनके अभी भी जिंदा होने की आशंका है

गांधीजी के पड़पोते तुषार का कहना है कि ये अकेली लापरवाही नहीं थी!

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30 जनवरी 2019 (Updated: 30 जनवरी 2019, 05:46 IST)
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कहा जाता है कि इंडिया में असली अपराधी छूट जाते हैं. पकड़ में नहीं आते. आप को ये जान के हैरानी होगी कि महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े तीन आरोपी कभी पकड़े नहीं गये. और इस मामले में केंद्रीय सूचना आयोग ने प्रधानमंत्री कार्यालय, गृह मंत्रालय, दिल्ली पुलिस और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से कहा है कि गांधी जी की हत्या से जुड़े तीन फरार आरोपियों का पता लगाएं.
कौन थे वो तीन लोग जो कभी पकड़ में नहीं आए?
30 जनवरी 1948 की शाम को जब महात्मा गांधी की हत्या हुई, तो उनका दर्जा भारत में भगवान से ऊपर का था. इसलिए ये सोच से बिलकुल बाहर की बात लगती है कि इस मामले से जुड़े किसी भी व्यक्ति को बख्शा गया होगा. एक केस चला भी था जिसके बाद कुछ लोगों को सज़ा हुई. एक नाम हम सबको याद भी है- नाथूराम गोडसे. सुभाषचंद्र बोस और लाल बहादुर शास्त्री की मौतें भी इंडियन रहस्य का हिस्सा बन गई हैं. पर गांधी की हत्या के आरोपियों का ना पकड़ा जाना ये संदेह पैदा करता है कि लचर व्यवस्था की शुरूआत आजादी के तुरंत बाद ही हो गई थी.
गांधी जी की हत्या से जुड़े दस्तावेज़ गोपनीय हैं और इन्हें सार्वजनिक करने को लेकर केंद्रीय सूचना आयोग में एक मामले की सुनवाई चल रही है. इस दौरान ऐसे कई पहलुओं का ज़िक्र हुआ है जो बताते हैं कि गांधी जी की हत्या के केस में किस दर्जे की लापरवाही हुई थी. उनकी हत्या के मामले में नाथूराम गोडसे के अलावा 11 और लोगों को आरोपी बनाया गया था. इन 12 लोगों में से 9 लोगों को या तो सज़ा हुई या तो वे बरी हो गए.
लेकिन सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक तीन आरोपी - गंगाधर दंडवते, गंगाधर जाधव और सूर्यदेव शर्मा केस चलने के समय से ही फरार हैं. इन 71 सालों में इनका कोई पता नहीं चला.
गांधीजी के पड़पोते तुषार के आरोप और भी गंभीर हैं
बिड़ला हाउस में प्रार्थना के लिए जा रहे गांधी जी को पॉइंट ब्लैंक रेंज से तीन गोलियां मारी गईं थीं. आरोप ये लगा कि ये गोलियां नाथूराम गोडसे ने एक बरैटा पिस्टल से चलाई थी. लेकिन ये पिस्टल गोडसे तक कैसे पहुंची थी, इसकी जांच ही नहीं की गई. ये खुद महात्मा गांधी के पड़पोते तुषार गांधी का कहना है. तुषार के मुताबिक इन तीन फरार आरोपियों ने ही गोडसे को पिस्टल मुहैया कराई थी.
पर तुषार का कहना है कि ये अकेली लापरवाही नहीं थी, ये भी हुआ था-
'जिस दिन पंजाब हाई कोर्ट ने सज़ा पर मुहर लगाई, ये खबर आई कि तीनों फरार आरोपियों को ग्वालियर से गिरफ्तार कर लिया गया है. लेकिन उन्हें छोड़ा जा रहा है. क्योंकि उनकी कोई ज़रूरत नहीं है.'
तो अब क्या हो रहा है इस मामले में?
अब केंद्रीय सूचना आयोग ने प्रधानमंत्री कार्यालय से एक आर्काइव बनाने को कहा है जिसमें महात्मा गांधी हत्याकांड से जुड़े हर पहलू के दस्तावेज़ हों. प्रधानमंत्री से ये भी कहा गया है कि जिस तरह सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक की जा रही हैं, उसी तरह महात्मा गांधी हत्याकांड से जुड़े दस्तावेज़ भी जारी किए जाएं. इसके अलावा उन्होंने तुगलक रोड पुलिस स्टेशन के एसएचओ को मामले की केस डायरी जमा करने को कहा है. साथ ही जानकारी मांगी है कि तीन फरार आरोपियों को पकड़ने के लिए क्या-क्या किया गया है. तुगलक रोड पुलिस स्टेशन में ही गांधी जी की हत्या की एफआईआर दर्ज करवाई गई थी.
गांधी जी का कत्ल एक 'लोन-वुल्फ' ने किया था, इस बात को शुरू से नकारा गया. इस हत्याकांड के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और हिंदू महासभा के सावरकर का हाथ होने की बात कही गई. सबूतों के अभाव में सावरकर बरी हुए और सरकार की अपनी किसी जांच में कभी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नाम नहीं लिया गया, लेकिन  इस पर आज भी जबरदस्त बहस है. मामले की पड़ताल के लिए 1966 में जस्टिस जेएल कपूर कमीशन भी बना जिसने लापरवाही की ओर इशारा तो किया, लेकिन किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचा. इसलिए 'देश का राष्ट्रपिता' कहलाने वाले आदमी के कत्ल के बारे में ढेर सारे सवाल हमेशा बने रहे. 
गाधी हत्याकांड के आरोपी. बाएं से दूसरे हैं सावरकर (बैठे हुए) बीच में हैं नाथुराम गोडसे. गांधी हत्याकांड के आरोपी- बाएं से दूसरे हैं सावरकर (बैठे हुए), बीच में है नाथूराम गोडसे


कुछ-कुछ यही वजह है कि तुषार गांधी मानते हैं कि ताज़ा जांच से कुछ हासिल होगा. संभव है कि इन तीन लोगों की मौत हो चुकी हो. बावजूद इसके, यदि एक भी नई बात इस आदेश के बाद सामने आती है, तो उसमें पूरे देश के लोगों की दिलचस्पी होगी. आयोग ने इस सब के साथ नाथूराम का अदालत को दिया आखरी बयान भी सार्वजनिक किया है. इसके कुछ अंश इंटरनेट पर उपलब्ध हैं लेकिन अब असल प्रति सामने आने से ये शुबहा दूर होने की उम्मीद है कि गोडसे के बयान के बाद कोर्ट में मौजूद लोगों को उसकी बात सही लगने लगी थी. 
नाथूराम गोडसे और आरएसएस की कहानी यहां पर पूरी पढ़िए. इस मामले का एक-एक पहलू यहां पर दिया हुआ है.



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