1950 की बात है, द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हुए पांच साल हुए थे. अमेरिका और सहयोगीदेशों की इसमें जीत हुई थी. वर्ल्ड आर्डर पूरी तरह चेंज हो चुका था, जो बदला था,उसका सिरमौर अमेरिका बना था. ऐसे में खुशी का खुमार अमेरिकी नेताओं के चेहरों सेउतर नहीं रहा था. परमाणु बम से दुनिया में खौफ बनाने वाला लिंकन का ये देश अपनीमूंछे तरेरते नहीं थकता था. तभी एक और युद्ध ने उसे घेर लिया. ये युद्ध बाहर नहीं,घर के अंदर था. ऐसा युद्ध कि समझ ही नहीं आ रहा था कि कैसे लड़ा जाए? निपटने का कोईहथियार नहीं, क्योंकि ये जंग थी पोलियोमेलाइटिस या और साफ़ कहें तो पोलियो के वायरससे. 1952 में अधिकारियों और नेताओं के हाथ पैर फूल गए थे. जब पता लगा कि एक साथ21000 लोगों को पोलियो ने अपना शिकार बना लिया है. और 3100 से ज्यादा लोगों की इससेमौत हो गई है. खौफ ऐसा कि स्विमिंग पूल, पार्क, खेल के मैदान सब सूने हो गए थे. लोगअपने बच्चों को स्कूल तक नहीं भेज रहे थे. दिन, फिर महीने और फिर साल गुजरने लगे,लेकिन कोई नतीजा नहीं, कोई सल्यूशन नहीं. तभी एक वैज्ञानिक जो कुछ महीनों पहलेबिलकुल एक अनजान चेहरा था, उसने पोलियो से लड़ने का हथियार ढूंढ निकाला. नाम था जोनससाक. देखें वीडियो.