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मदर टेरेसा के मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के FCRA को आखिर क्यों रिन्यू नहीं किया गया?

FCRA गैर सरकारी संस्थाओं के विदेशी फ़ंडिंग लेने का एक ज़रिया है.

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मदर टरेसा ने 1950 में मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी बनाई थी. (फ़ोटो-आज तक)
30 दिसंबर 2021 (Updated: 30 दिसंबर 2021, 11:50 IST)
Updated: 30 दिसंबर 2021 11:50 IST
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मानव सेवा के लिए नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न से नवाज़ी गईं मदर टेरेसा ने 1950 में एक संस्था बनाई थी. नाम है मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी. ये एक ग़ैर सरकारी (NGO) ईसाई संस्था है. देशभर में इसके सैकड़ों वृद्धाश्रम, अस्पताल और अनाथालय हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार 27 दिसंबर को मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के FCRA पंजीकरण को रिन्यू करने से इंकार कर दिया. FCRA यानी फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेग्युलेशन) एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन संस्थाओं के लिए विदेशी फ़ंडिंग लेने का एक ज़रिया है. इसके बंद होने से मिशनरीज ऑफ चैरिटी और इसकी सेवाओं पर सीधा असर पड़ेगा, ऐसा संस्था ने कहा है. समझने की कोशिश करेंगे कि FCRA क्या है और इसका रिन्यूअल कराने में मदर टेरेसा के NGO और अन्य गैर सरकारी संस्थाओं को किस तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

क्या है FCRA?

1976 में पहली बार देश में FCRA क़ानून लाया गया था. तब देश की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी की सरकार विदेशी फंडिंग को रोकने के लिए ये कानून लाई थी. साल 2010 में मनमोहन सिंह सरकार ने भी कुछ संस्थाओं की फंडिंग पर रोक लगाई थी. 2010 से 2019 के बीच विदेशों से आने वाले पैसे की मात्रा काफी बढ़ गई थी. इनकी जांच में पाया गया कि जिस काम के लिए पैसा लिया जा रहा था, वो उसमें नहीं लगाया जा रहा. इसी जांच के बाद, ‘राष्ट्रीय और आर्थिक हितों’ के लिए FCRA 2020 लाया गया. सरकार ने कथित तौर पर धर्म परिवर्तन कराने वाले 6 NGO का लाइसेंस भी निलंबित कर दिया. इन NGO पर आरोप था कि इन्होंने विदेशों से अंशदान के रूप में मिले पैसे का इस्तेमाल धर्म परिवर्तन कराने के लिए किया था. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक हाल में संसद में पूछा गया था कि सरकार ने कितने NGO का FCRA रद्द किया है. इसके जवाब में सरकार ने बताया कि साल 2016 में उसने 20 हजार NGO की विदेशी फंडिंग पर रोक लगाई थी.

FCRA की खास बातें

– NGO के सभी प्रमुख लोगों के पास आधार कार्ड होना जरूरी है. – सरकार द्वारा बताए बैंक की शाखा में ही विदेशी अंशदान लिया जा सकेगा. – NGO 20 प्रतिशत से अधिक पैसा खुद पर खर्च नहीं कर सकते. – विदेशी अंशदान लेने के बाद इसे किसी और को ट्रांसफर नहीं किया जा सकेगा. अब लौट कर आते है मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के मामले पर. इस संस्था ने अपने बयान में कहा कि चूंकि उनके FCRA आवेदन को मंजूरी नहीं दी गई है, इसलिए उन्होंने बैंक खातों को संचालित करने से मना कर दिया है. जब ये मामला संज्ञान में आया था तब ऐसी खबरें भी आईं थी कि इस संस्था के सभी 250 बैंक खातों को केंद्र सरकार ने फ़्रीज़ कर दिया था. लेकिन ऐसा नहीं किया गया था, इस पर केंद्र सरकार द्वारा सफ़ाई भी दी गई थी. संस्था के FCRA खाते में 103 करोड़ रुपए मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ने 13 दिसंबर को 2020-21 वित्तीय साल का IT रिटर्न दाखिल किया था. अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू की खबर के मुताबिक़ संस्था को 347 विदेशी व्यक्तियों और 59 संस्थाओं से 75 करोड़ रुपए से अधिक का दान मिला था. संस्था के FCRA खाते में पिछले साल 27.3 करोड़ रुपए थे, और इस साल मिले 75 करोड़ रुपये को मिला दें तो कुल 103.76 करोड़ रुपए बनते हैं. कोलकाता में है पंजीकृत कोलकाता में पंजीकृत मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के देश भर में 250 से अधिक बैंक खाते हैं. FCRA के ज़रिए सबसे ज़्यादा बड़ी धनराशि संस्था को अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम स्थित मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी से मिली हैं. इनके द्वारा दी गई राशि 15 करोड़ रुपए से भी ज़्यादा है. भारत के मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी के मुताबिक़ अमेरिका और यूनाइटेड के मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी ने उसे "प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा सहायता, कुष्ठ रोगियों के उपचार" जैसे कामों के लिए ये अंशदान दिया है. अब केंद्र सरकार ने एक बयान में कहा कि पात्रता शर्तों को पूरा नहीं करने के चलते मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के FCRA का नवीनीकरण नहीं किया गया है. बयान में ये भी बताया गया कि रिन्यूअल से इनकार करने के फ़ैसले की समीक्षा के लिए मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी की तरफ से कोई आवेदन भी नहीं किया गया. वहीं, मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी की सुपीरियर जनरल सिस्टर एम प्रेमा के एक बयान में कहा गया,
"हमें सूचित किया गया है कि हमारे FCRA नवीनीकरण आवेदन को मंजूरी नहीं दी गई. इसलिए, ये सुनिश्चित करने के उपाय के रूप में कि कोई चूक न हो, हमने अपने केंद्रों को FC (विदेशी योगदान) खातों का कोई भी इस्तेमाल नहीं करने को कहा है, जब तक कि मामला हल नहीं हो जाता है."
राजनीतिक पार्टियों ने किया खंडन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मामले को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने सोशल मीडिया पर एक बयान जारी करते हुए कहा,
"इस फैसले से करीब 22,000 मरीजों और कर्मचारियों को खाना और दवाइयां नहीं मिल पाएंगी. कानून सर्वोपरि है, लेकिन मानवीय प्रयासों से समझौता नहीं किया जाना चाहिए."
ममता बनर्जी के अलावा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के बंगाल राज्य सचिव सूर्यकांत मिश्रा और कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप भट्टाचार्य सहित पश्चिम बंगाल के अन्य नेताओं ने इस मुद्दे को उठाया और केंद्र सरकार की आलोचना की. 22,000 NGO हैं पंजीकृत FCRA क़ानून के तहत भारत में 22 हजार से अधिक एनजीओ पंजीकृत हैं. नियमों में 2020 में हुए बदलावों की वजह कई NGO को नवीनीकरण में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. हमने ऐसे कुछ एनजीओ से बात करने की कोशिश की. लेकिन उन्हें उम्मीद है कि उनका रिन्यूअल जल्दी ही हो जाएगा, इसलिए उनके प्रतिनिधियों ने इस मसले पर बात करने से इंकार कर दिया. हालांकि FCRA 2020 के क़ानून पर किताब लिखने वाले संजय अग्रवाल ने इस बारे में अपनी बात जरूर रखी है. अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू से बातचीत में वो कहते हैं, “पांच साल पहले की आसान नवीनीकरण प्रक्रिया से अलग, इस बार सरकार ने इस प्रक्रिया को (एक्ट की धारा 12 (4) के तहत) और अधिक जटिल बना दिया है. इसकी वजह से NGO को कई रिक्वायरमेंट्स को पूरा करना पड़ेगा, जैसे कि NGO को सरकार से प्रमाण पत्र हासिल करना होगा कि वो "सार्वजनिक हित के लिए खतरा" या "राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा" नहीं है."

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