The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • Why Lipulekh Pass Matters: Nepal Angered as India and China Resume Border Trade

लिपुलेख दर्रा क्यों अहम है, जिस पर भारत-चीन के व्यापार से भड़क गया नेपाल

जब भारत और चीन ने Lipulekh Pass से व्यापार फिर से खोलने का फैसला किया, तो उसने पुरानी यादें ताज़ा कर दीं-वो यादें जो 1954 से चली आ रही रही हैं. वही वो दौर जब यह मार्ग दो देशों को जोड़ता था, और फिर से खोला गया. लेकिन इस दौरान किसी ने नेपाल को भूल जाने की “भूल” की. यही भूल वार्ता का तिरछा हिस्सेदार बन गई.

Advertisement
Lipulekh Pass
लिपुलेख दर्रा: व्यापार का रास्ता या विवाद का दर्रा?
pic
दिग्विजय सिंह
21 अगस्त 2025 (Updated: 21 अगस्त 2025, 09:09 AM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

19 अगस्त 2025 को भारत और चीन की बातचीत का नया अध्याय खुला, जब दोनों पक्षों ने Lipulekh Pass के ज़रिए सीमा व्यापार फिर से शुरू करने का फैसला किया . बात सिर्फ व्यापार की नहीं थी, यह रास्ता कैलाश–मानसरोवर यात्रा का भी महत्वपूर्ण मार्ग है.

कुछ देर नहीं हुई, नेपाल की विदेश मंत्रालय ने कड़ा ऐतराज जताया. काठमांडू पोस्ट के मुताबिक नेपाल के विदेश मंत्रालय का कहना था,

यह क्षेत्र तो हमारी आधिकारिक मानचित्र में शामिल है, और हमें इसमें पता तक नहीं.

बात निकली तो दूर तक जानी ही थी. नेपाल के एक्शन पर भारत का रिएक्शन आया. MEA spokesperson रंधीर जैसवाल ने कहा,

यह व्यापार तो 1954 से ही चल रहा है, यह ऐतिहासिक और प्रामाणिक है, और नेपाल की दावों में कोई सबूत नहीं है… अत: यह ठहराव (claim) निराधार और असंतुलित है.

आखिर लिपूलेख का मसला है क्या?

अब इस बातचीत को आगे बढ़ाते हुए, थोड़ा सरल और रोचक अंदाज़ में पूरे मामले को समझते हैं.

जब भारत और चीन ने Lipulekh Pass से व्यापार फिर से खोलने का फैसला किया, तो उसने पुरानी यादें ताज़ा कर दीं-वो यादें जो 1954 से चली आ रही रही हैं. वही वो दौर जब यह मार्ग दो देशों को जोड़ता था, और फिर से खोला गया. लेकिन लेकिन इस दौरान किसी ने नेपाल को भूल जाने की “भूल” की. यही भूल वार्ता का तिरछा हिस्सेदार बन गई.

राइजिंग नेपाल के मुताबिक नेपाल ने स्पष्ट कहा कि-यह सिंद्धांत तो हमारी संविधान की कसौटी पर खरा उतरता है-Limpiyadhura, Lipulekh, Kalapani हमारे मैप में हैं. आपको जानकारी है, 2020 में उन्होंने अपने संविधान में नया मानचित्र शामिल किया था, जिसमें ये इलाके दिखाए गए थे.

तो आपसी बातचीत एक और रंग लेने लगी-भारत का कहना था कि यह भूमि सदियों से भारतीय प्रशासन में रही है, और नेपाल के दावों का कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है. वहीं, नेपाल की भाषा की तीखी गुंज इस क्षेत्र को लेकर हमेशा बनी रही. वो कहते रहे “कोई पूछे बिना निर्णय लेना हमारे संप्रभुता पर काला निशान है.”

ये भी पढ़ें- भारत-चीन पर भड़का नेपाल, दोनों को 'डिप्लोमैटिक नोट' भेजेगा, गुस्से की वजह ये रास्ता है

पूरी कहानी एक साथ

लिपूलेख दर्रा-एक हिमालयी दर्रा, जो भारत, नेपाल और चीन (तिब्बत) के तिकूट (tri-junction) के पास स्थित है. समुद्र से लगभग 17,000 फीट की ऊंचाई पर फैला यह स्थान पुरातन काल से व्यापारियों, साधुओं और तीर्थयात्रियों का प्रमुख मार्ग रहा है .

व्यापार और धार्मिक यात्रा-यह मार्ग दोनों देशों के बीच व्यापार का पुल रहा है, और कैलाश–मानसरोवर की पवित्र यात्रा का सीधा रास्ता भी.  रणनीतिक भूमिका-भारत ने इस मार्ग पर सड़क बिछाई (धारचूला–लिपुलेख रोड, 2020) जिससे सीमा पर सैनिक और नागरिक गतिविधियां आसान हो सकें

नेपाल का दावा-1816 की सुगौली संधि के अनुसार, काली नदी सीमा मानी गई थी, और नेपाल का तर्क है कि नदी का रास इसका स्रोत है-जिससे यह क्षेत्र नेपाल का मान्यता प्राप्त क्षेत्र है. लेकिन भारत का दावा है कि नदी का वास्तविक उद्गम काला पानी गांव से है, और इसलिए यह क्षेत्र भारतीय है

राजनयिक उलझन

2015 में जब भारत और चीन ने लिपुलेख को व्यापार गंतव्य के रूप में शामिल किया, नेपाल ने विरोध जताया. द ट्रिब्यून के मुताबिक फिर 2019 में भारत ने नया मानचित्र जारी किया जिसमें यह इलाका दिखाया गया, और 2020 में सड़क उद्घाटन पर नेपाल ने फिर आपत्ति जताई

और अब 2025 में पुनः वही नजारा-चीन–भारत फिर से व्यापार खोलने पहुंचे, नेपाल ने कहा “हमने आपको पहले ही सुचा दिया था!”, और भारत ने कहा-“देखो, ये इतिहास से पक्का है, फिर भी बातें करें.”

रिश्तों के लिए जरूरी बात

यह मामला सिर्फ सीमा विवाद नहीं, यह तीन देशों के बीच सम्मान, थोक बातें और संवेदनशील राजनयिक संतुलन की कहानी है. जहां एक तरफ भारत और चीन समय-समय पर आपसी सहयोग दिखाते हैं, वहीं दूसरी तरफ नेपाल इस संवेदनशील त्रि-सीमा को लेकर अपनी अहमियत कहीं पीछे नहीं छोड़ता.

ज़रूरत है कि आख़िरकार ये तीनों राष्ट्र-भारत, नेपाल और चीन-मौजूदा स्थिति को समझ कर, बातचीत के ज़रिए समाधान तलाशें. क्योंकि हिमालय के इस हिस्से में बसती हैं सिर्फ घाटियां, पर्वत और लोग नहीं-बसती हैं भावनाएं, इतिहास और संप्रभुता का गहरा भाव.
 

वीडियो: नेपाल में राजशाही समर्थकों और सुरक्षाबलों के बीच झड़प, प्रदर्शन के बाद बिगड़े हालात

Advertisement