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विदेश मंत्री एस जयशंकर क्यों हर बार पश्चिमी देशों को हड़का दे रहे हैं?

यूक्रेन संकट और रूस से भारत के रक्षा संबंधों पर यूरोप-अमेरिका सवाल उठाते हैं, जयशंकर आईना दिखा देते हैं.

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foreign minister s jaishankar on west
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर. (तस्वीर- एपी)
12 अक्तूबर 2022 (Updated: 12 अक्तूबर 2022, 12:43 IST)
Updated: 12 अक्तूबर 2022 12:43 IST
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तस्वीर का लिखा देख बुरा ना मानें. मामला कुछ ऐसा ही है. अंतरराष्ट्रीय मसलों और कूटनीति (Diplomacy) की पिच पर बिना विकेट खोए रन बनाना विदेश मंत्री एस जयशंकर (S. Jaishankar) की जिम्मेदारी है. इन दिनों वो किसी बाउंसर को झेलने के मूड में नहीं दिखते, खास तौर पर अगर वो यूरोप-अमेरिका की तरफ से आया हो तो. एस जयशंकर सीधा हिट करते हैं. और ऐसा हिट करते हैं कि उनका शॉट अखबार, टीवी चैनलों, मीडिया वेबसाइट्स की सुर्खी बन जाता है.

पिछले कुछ समय से एस जयशंकर पश्चिमी देशों की नीतियों के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं. रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के स्टैंड लेने की बात हो, कच्चे तेल और गैस की आपूर्ति का मसला हो या फिर रूस से रक्षा संबंध की चर्चा, पश्चिमी मीडिया के सवालों और आपत्तियों पर विदेश मंत्री उन्हें ही आईना दिखा रहे हैं.

ऑस्ट्रेलिया के उपप्रधानमंत्री रिचर्ड मार्ल्स को क्रिकेट बैट भेंट करते विदेश मंत्री एस जयशंकर. (तस्वीर- Twitter@DrSJaishankar)

"पश्चिम ने पाकिस्तान का साथ दिया, हमारा नहीं"
सोमवार, 10 अक्टूबर को जयशंकर ऑस्ट्रेलिया में थे. वहां 13वें फॉरेन मिनिस्टर्स फ्रेमवर्क डायलॉग के बाद स्थानीय मीडिया ने भारत की रक्षा नीति को लेकर उनसे सवाल किए. सीधा कहें तो विदेश मंत्री से पूछा गया कि भारत रूस से हथियार क्यों खरीदता है जिसने इस समय यूक्रेन के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है. ये भी पूछा कि भारत रूस से हथियारों की सप्लाई कम करने के बारे में क्या सोचता है.

जवाब में एस जयशंकर ने दो टूक कहा कि रूस से हथियार खरीदना हमेशा ही भारत के हित में रहा है. भारतीय विदेश मंत्री ने ऑस्ट्रेलियाई मीडिया को याद दिलाते हुए कहा कि अतीत में पश्चिमी देशों ने भारत को हथियार नहीं दिए, जबकि उसी दौरान उन्होंने पाकिस्तान को हथियार मुहैया कराए जहां सेना के नेतृत्व में तानाशाही सरकारों का राज रहा है. जयशंकर ने आरोप लगाने वाले लहजे में कहा कि पश्चिमी देशों ने कई दशकों तक पाकिस्तान-समर्थक नीतियां अपनाईं जिसके चलते भारत के पास अपनी खुद की रणनीति बनाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं रह गया था. उन्होंने कहा,

"हमारे पास पर्याप्त मात्रा में सोवियत संघ के समय के और रूसी मूल के हथियार हैं. और इतनी मात्रा में रूसी हथियार होने की कई वजहें हैं. हथियार प्रणाली की योग्यता तो आप जानते हैं, लेकिन पश्चिमी देशों (अमेरिका) ने भी दशकों तक भारत को हथियार सप्लाई नहीं किए. उन्होंने हमारे पड़ोस की (पाकिस्तान) की सैन्य तानाशाही को तरजीह दी और उसे अपना साझेदार समझा. आज वो हमसे कह रहे हैं कि रूस से हथियार लेना बंद करो जो हमेशा से भारत के साथ खड़ा रहा है."

"यूरोप अपने तेल उपभोग पर ध्यान दे"
यूक्रेन संकट के बीच अप्रैल 2022 में विदेश मंत्री अमेरिका गए थे. वहां 2+2 वार्ता के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनसे सवाल किया गया कि क्या भारत रूस से ऊर्जा आयात ना बढ़ाने पर विचार कर रहा है. इस पर जयशंकर ने ऐसा जवाब दिया जो चर्चा का विषय बन गया. उन्होंने कहा,

"अगर आप रूस से ऊर्जा खरीद की बात कर रहे हैं तो मैं कहना चाहूंगा कि आपको यूरोप पर फोकस करना चाहिए. हम (रूस से) थोड़ी सी ही एनर्जी खरीदते हैं जो हमारी ऊर्जा सुरक्षा के लिए जरूरी है. लेकिन आंकड़ें देखें तो मुमकिन है ये पता चले कि हम एक महीने में जितना ईंधन खरीदते हैं वो यूरोपी की एक शाम की ऊर्जा खपत से कम है. आपको उस बारे में सोचना चाहिए."

भारतीय विदेश मंत्री ने अमेरिकी मीडिया से साफ कहा कि हर देश सबसे बेहतर विकल्पों को देखता है. उन्होंने भारत और अमेरिका के ऊर्जा संबंध की ओर इशारा कर बताया कि कैसे इस क्षेत्र में दोनों देश साथ काम कर रहे हैं, जबकि कुछ साल पहले तक इसका कोई वजूद भी नहीं था. उन्होंने ये भी याद दिलाया कि भारत को सबसे ज्यादा एलएनजी सप्लाई अमेरिका से ही होती है. वो भारत के लिए कच्चे तेल का चौथा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश भी है. साथ ही नवीकरणीय ऊर्जा के सेक्टर में भी भारत का बड़ा साझेदार है.

“अपनी मानसिकता बदले यूरोप”

विदेश मंत्री एस जयशंकर जून महीने में GLOBESEC फोरम में शामिल होने के लिए यूरोपीय देश स्लोवाकिया गए थे. उस समय यूरोपीय देश चाहते थे कि यूक्रेन संकट पर भारत रूस के खिलाफ कोई कड़ा कदम उठाए. एक इंटरेक्टिव सेशन के दौरान जयशंकर से पूछा गया कि जब भारत ने यूक्रेन की मदद नहीं की तो फिर चीन के साथ उसका तनाव यूक्रेन संकट जितना बढ़ने पर दूसरे देश मदद के लिए क्यों आएंगे. इस पर जयशंकर ने कहा,

"चीन के साथ भारत के संबंध जटिल हैं. लेकिन वो उन्हें मैनेज करने में सक्षम है. यूरोप को ये मानसिकता बदलनी होगी कि उसकी समस्या पूरी दुनिया की समस्या है, लेकिन दुनिया की समस्याएं यूरोप की समस्याएं नहीं हैं. मतलब आपकी समस्या को आप देखो, मेरी समस्या को सब देखें. ये सोचना कि मैं किसी झगड़े में इसलिए पड़ूं क्योंकि इससे मुझे दूसरे झगड़े में मदद मिलेगी, ऐसे दुनिया नहीं चलती है. चीन के साथ हमारी कई समस्याओं का यूक्रेन या रूस से कोई लेना-देना नहीं है. वे सब इससे पहले से मौजूद हैं. सामूहिक रूप से देखें तो यूरोप कई मुद्दों पर चुप रहा है. आप पूछ सकते हैं कि एशिया क्यों यूरोप पर भरोसा करे."

स्लोवाकिया दौरे पर एक इंटरेक्शन सेशन के दौरान एस जयशंकर. (तस्वीर- यूट्यूब)
पश्चिमी देशों को सही भाषा में समझा रहे जयशंकर?

पश्चिमी देशों को लेकर एस जयशंकर के इस रुख पर हमने पूर्व भारतीय विदेश सेवा अधिकारी विष्णु प्रकाश से बात की. उन्होंने 35 साल बतौर IFS अधिकारी काम किया है. कनाडा और साउथ कोरिया में भारत के राजदूत रहे हैं. अमेरिका, रूस, चीन आदि देशों में भी सेवाएं दे चुके हैं और भारत सरकार के प्रवक्ता की जिम्मेदारी भी संभाली है. हमने विष्णु प्रकाश से पूछा कि क्या विदेश मंत्री एस जयशंकर पश्चिमी देशों के प्रति हमलावर हैं या क्या ये भारत की विदेश नीति में किसी तरह के बदलाव का संकेत है?

उन्होंने कहा,

"विदेश मंत्री यूरोप-अमेरिका के विरोध में नहीं बोल रहे हैं. वो केवल उस भाषा में बोल रहे हैं जो पश्चिमी देशों को समझ आती है. इस बात को अंडरलाइन करना जरूरी है कि पिछले 20 सालों में अमेरिका के साथ हमारे संबंधों में परिवर्तन क्या महापरिवर्तन आया है. यूरोप से संबंध मजबूत होते जा रहे हैं. तो ये कहना कि हम वेस्ट के प्रति आक्रामक रुख अपना रहे हैं ऐसा बिल्कुल नहीं है. बाकी मतभेद की गुंजाइश तो हर जगह होती ही है."

यूक्रेन संकट के बीच रूस से तेल, गैस खरीदने और रक्षा संबंध जारी रखने की भारत की नीति पर पश्चिमी मीडिया सवाल उठाता है. इस पर टिप्पणी करते हुए विष्णु प्रकाश ने कहा,

“यूरोपीय देश रूस से तेल लेते हैं तो कोई दिक्कत नहीं है. हम लेते हैं तो कहते हैं क्यों ले रहे हो. तेल पर कोई प्रतिबंध नहीं है. हम एक विकासशील देश हैं. हमको जरूरत है. तो हमको जहां से सस्ता तेल मिलता है हम लेते हैं. लेकिन हमें ये भी पता है कि हमारा भविष्य पश्चिमी देशों के साथ है क्योंकि वे लोकतांत्रिक देश हैं. इसमें कोई शक की गुंजाइश नहीं है कि हमारे उनसे भी संबंध बेहतर होते जा रहे हैं.”

विष्णु प्रकाश भी मानते हैं कि भारत के लिए जो जरूरी है वो उसे करना चाहिए. उन्होंने आगे कहा,

"ये हकीकत है कि रूस के साथ हमारा रिश्ता सीमित है. हम उससे हथियार लेते हैं. कुछ तेल, गैस और परमाणु तकनीक लेते हैं. 20 बिलियन डॉलर का व्यापार है हमारा रूस के साथ. लेकिन अमेरिका के साथ 156 अरब डॉलर का व्यापार हम करते हैं. अमेरिका से भारत का रिश्ता भविष्य का रिश्ता है. रूस के साथ हम अपने पुराने संबंध को जरूर बरकरार रख रहे हैं, लेकिन संबंध हमारे यूरोप-अमेरिका के साथ बढ़ रहे हैं."

भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर. (तस्वीर- Twitter@DrSJaishankar)

पूर्व IFS अधिकारी को नहीं लगता कि एस जयशंकर के बयान भारत की विदेश नीति के आक्रामक होने का संकेत हैं. वे कहते हैं,

"हमारी विदेश नीति भारत के हित की नीति है. अगर मैं आप पर कोई गलत इल्जाम लगाता हूं. ये कहता हूं कि आप चुप होकर बैठ जाइए. तो आप मुझे आईना दिखाकर कोई गलती कर रहे हैं? कोई कहे कि हमारे तेल खरीदने से रूस का युद्ध चलता है, तो हम पूछते हैं कि रूस जो रोज 100 डॉलर का तेल बेचता है उसमें से 5 डॉलर का तेल भारत के खरीदने से युद्ध होता है और बाकी 95 डॉलर युद्ध की तरफ नहीं जाते? ये जो बड़ी ताकते हैं वे चाहती हैं कि हम जो कहें वो करिए. वो समय अब निकल गया है. हम किसी के खिलाफ नहीं हैं. ये हमारी क्षमता है कि हम किसी के बेवजह के आरोप ना झेलें."

विष्णु प्रकाश बताते हैं कि भारत के आसपास दोस्त मुल्क नहीं हैं. इसलिए उसका किसी एक देश पर निर्भर हो जाना नामुमकिन है. हथियारों के मामले में भी ये बात लागू होती है. उन्होंने कहा,

"हम अपने हथियार हर उस जगह से खरीदते हैं जहां की कीमत और क्वालिटी ठीक होती है. एक देश पर निर्भर रहेंगे तो आपको कीमत भी ज्यादा देनी पड़ेगी. इसलिए हम इजरायल से भी हथियार खरीदते हैं और फ्रांस से भी. अमेरिका से हमने पिछले दस सालों में 20 अरब डॉलर के हथियार खरीदे हैं. उसकी कोई बात नहीं करता. रूस से जो हथियार खरीदे हैं वो अगले 30-40 साल चलेंगे. उनको खरीदने में सालों का समय लगता है. फिर ट्रेनिंग होती है. उनका क्या करें? क्या खिड़की से बाहर फेंक दें? तब आपकी रक्षा क्या बाहर वाला करेगा? केवल पब्लिक को दिखाने के लिए आप (पश्चिमी देश) एक पोजिशन ले लेते हैं."

वहीं विदेश मंत्री जयशंकर को लेकर पूर्व राजनयिक ने कहा,

“विदेश मंत्री बहुत मंझे हुए डिप्लोमैट हैं. अमेरिका में पोस्टेड रहे हैं. 40-50 साल अमेरिका से डील करने का उनका अनुभव है. वो रूस में भी रहे और रशियन बोलते भी हैं. बेझिझक और स्पष्ट तरीके से भारत का रुख सामने रख रहे हैं जो जरूरी भी है. रूस से संबंधों को लेकर ऑस्ट्रेलिया में जो सवाल उनसे किया गया उस पर उनके जवाब में क्या गलत है. हमारे पास बहुत सारे हथियार रूस के बने हुए हैं और हमारा उससे बहुत पुराना रिश्ता है. अब आप सवाल पूछेंगे तो जवाब मिलेगा ही.” 

विष्णु प्रकाश का कहना है कि आज अगर भारत के पास अपनी बात रखने की क्षमता है तो इसकी सराहना की जानी चाहिए.

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