आखिर क्यों लोग एक काल्पनिक किरदार पद्मावती को सच मान बैठे हैं?
खिलजी ने 1303 में राणा को हराया, 1316 में खिलजी की मौत हो गई, फिर वो पद्मिनी से कब मिला था?
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फिल्म पद्मावती 1 दिसंबर को रिलीज होने वाली है.
रानी पद्मिनी या पद्मावती वास्तविक किरदार है या काल्पनिक, इस पर लगातार बहस जारी है. इसी इकलौते मुद्दे पर लोगों का विरोध लगातार बढ़ता जा रहा है. पद्मिनी को ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर लोकस्मृति में बसा किरदार बताते हुए जेएनयू में मध्यकालीन इतिहास के प्रोफेसर हरबंश मुखिया ने अखबार इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा है. हम आपके लिए उसी के अंश प्रकाशित कर रहे हैं.फिल्म पद्मावती पर पिछले कुछ दिनों से जो हंगामा मचा हुआ है, वो मीडिया की सुर्खियों में है. मेवाड़ राजघराने के वंशज विश्वजीत सिंह ने हाल ही में एक अखबार में फिल्म पद्मावती को लेकर इतिहास और काल्पनिकता के बीच एक लेख लिखा था, जो बेहद आश्चर्यजनक था. सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने अपने समकालीन और आधुनिक इतिहासकारों के बीच एक सम्मानित जगह हासिल की है. इसकी वजह उसके किए गए काम हैं. खिलजी ने मंगोलों के आक्रमण को नाकाम किया, बड़े-बड़े साम्राज्य को जीता, आम आदमी के लिए रोजमर्रा के जरूरी सामानों की कीमतों को कम किया, सरकार के काम करने के लिए शरीयत को फिर से परिभाषित किया. इन कामों को करने के दौरान जब वो औरतों के पीछे नहीं पड़ा रहा, तो उसे पद्मावती कब मिली?

मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 में पद्मावत लिखी थी.
खिलजी ने चित्तौड़ के राणा को 1303 में लड़ाई में हराया और 1316 में उसकी मौत हो गई. उस वक्त तक या फिर उस पूरी लड़ाई के दौरान भी पद्मिनी या पद्मावती का नाम अस्तित्व में ही नहीं था. पद्मावती का जन्म अलाउद्दीन खिलजी की मौत के 224 साल बाद 1540 में हुआ था. पद्मावती को जन्म दिया था एक सूफी संत मलिक मोहम्मद जायसी ने अपनी किताब पद्मावती के एक किरदार के रूप में. जायसी अवध के जायस के रहने वाले थे, जो चित्तौड़ से काफी दूर था. जायसी एक सूफी संत थे और वो कविता की उस विधा को मानते थे, जिसमें भगवान को प्रेमी और इन्सान को प्रेमिका के तौर पर माना जाता है और प्रेमिका हर बंधन को पार करके अपने प्रेमी से मिलती है. खिलजी ने भी कई बाधाएं पार की थीं.
ऐतिहासिक तौर पर दो ही तथ्य हैं, जो इस मुद्दे से जुड़े हुए हैं. पहला ये है कि खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया था और दूसरा ये है कि युद्ध में राणा की हार हुई थी.

कई राजपूत संगठनों ने फिल्म को रिलीज न होने की चेतावनी दी है.
लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों के अलावा कुछ और भी तथ्य हैं जिसे सांस्कृतिक तौर पर बनाया गया है. ये तथ्य ही लोगों की स्मृतियों में हैं. इन तथ्यों को पहले कहा गया, फिर और कहा गया और फिर बार-बार कहा गया. जैसे एक झूठ को 100 बार सच बनाकर बोला जाए, तो वो झूठ भी लोगों के लिए सच हो जाता है, ठीक वैसे ही इसके साथ भी हुआ. सांस्कृतिक तौर पर पीढ़ी दर पीढ़ी बताई गई बातों और विभिन्न ऐतिहासिक तथ्यों ने आम आदमी को भी प्रभावित किया है. पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इस मुद्दे पर थोड़े-बहुत संवेदनशील थे. चूंकि लोक स्मृति ऐतिहासिक तथ्यों को नहीं मानती हैं, इसलिए जो पीढ़ी दर पीढ़ी सुना गया, वही सच हो गया. लेकिन ये एक तात्कालिक रूपांतरण है, ऐतिहासिक तथ्य तो अपनी जगह पर मौजूद ही हैं.

रम्या श्रीनिवासन ने अपनी किताब में राजपूत रानियोंं की कहानियों का जिक्र किया है.
पद्मावती की कहानी और दूसरी कहानियों की ही तरह कई विवादों में घिरी हुई है. रम्या श्रीनिवासन ने रानियों की कहानियों पर उत्तर भारत से लेकर राजस्थान और बंगाल तक के 16 से 20वीं शताब्दी तक के तथ्यों की पड़ताल अपनी किताब "द मेनी लाइव्स ऑफ ए राजपूत क्वीन" में की है. जायसी की मूल किताब और इसके कई ऊर्दू और पर्शियन अनुवादों में यही तथ्य है खिलजी ने पद्मिनी से शादी का प्रस्ताव रखा था. उसी वक्त में उसे राजस्थान में राजपूतों के सम्मान को बचाने के लिए पद्मिनी के शरीर जोड़ दिया गया. 19वीं सदी में बंगाल में पद्मिनी को एक बहादुर रानी के तौर दिखाया गया. चित्रण ऐसा किया गया कि उस रानी ने कामुक मुस्लिम आक्रमणकारियों से खुद की आन बचाने के लिए जौहर कर लिया था. पद्मिनी की इस कहानी ने सीधे तौर पर तो नहीं, लेकिन परोक्ष रूप से सामंती व्यवस्था के खिलाफ एक ऐतिहासिक प्रतिरोध तैयार किया. यह प्रतिरोध और ऐसे प्रतिरोध के नायक दूसरी साहित्यिक कृतियों, जैसे बंकिम चंद्र चटर्जी के आनंद मठ में दिखने लगे.
ये वही लोकस्मृति और ऐतिहासिक प्रतिरोध का नायकत्व है, जिसने राजस्थान में साफ तौर पर पद्मिनी को एक ऐतिहासिक तथ्य में तब्दील कर दिया है. अब इस तथ्य पर किसी को भी किसी तरह की बहस स्वीकार्य नहीं है. एक मुस्लिम कवि की ओर से एक महिला नायकत्व को हिंदू अस्मिता की रक्षा करने वाले के तौर पर चित्रित किए जाने को अब भुलाया जाने लगा है.
(लल्लनटॉप के लिए इस आर्टिकल को अविनाश ने ट्रांसलेट किया है.)
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