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इस राजा ने वो शहर बसाया जिसको आप दिल्ली के नाम से जानते हैं

दिल्ली का वो राजा, जिसकी कहानी अर्जुन और पृथ्वीराज चौहान के बीच भुला दी गई.

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राजा अनंगपाल. (फोटो- @Tarunvijay ट्विटर)
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अभिषेक त्रिपाठी
18 मार्च 2021 (Updated: 18 मार्च 2021, 04:09 PM IST) कॉमेंट्स
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दिल्ली. दिल वालों का शहर. 7 बार वीरान हुई, तो 8 बार बसी. हर वीराने में, हर बसाहट में कई-कई कहानियां. आज बात बसने की करेंगे. वीराने की कभी और. दिल्ली के हर बार बसने के साथ किसी रेशमी थान में ज़री के काम की तरह इसकी बुनावट में एक और परत बनती गई. इन्हीं परतों में से एक तोमर राजवंश और राजा अनंगपाल के नाम की भी है. जिनके ज़िक्र के साथ जुड़ा है 'दिल्ली' का अस्तित्व. और जिनके ज़िक्र के साथ ही होगी हमारी-आपकी आज की बात.
दरअसल दिल्ली में हाल ही में एक सेमिनार हुआ- 'Founder of Delhi: King Anangpal Tomar-II'. केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्री प्रह्लाद पटेल, राष्ट्रीय स्मारक अथॉरिटी के चेयरमैन तरुण विजय और तमाम इतिहासकार इसमें शामिल हुए. सेमिनार में राजा अनंगपाल की बात हुई. दिल्ली को दिल्ली बनाने का श्रेय इन्हीं को जाता है. लेकिन ये बात शायद कम लोगों तक पहुंची है. इसी नाते ये सेमिनार किया गया. और इसी नाते प्रह्लाद पटेल ने कहा कि सरकार राजा अनंगपाल की विरासत और इतिहास से लोगों को वाकिफ़ कराने के लिए इनसे जुड़ा संग्रहालय बनवाने, इनकी प्रतिमा दिल्ली में लगवाने की दिशा में काम कर रही है. तरुण विजय ने भी कहा कि
“इतिहास लिखने वालों ने इतिहास बनाने वालों के साथ जो नाइंसाफी की है, उसे अब सुधारा जाएगा.”
प्रतिमाएं और संग्रहालय जब बनेंगे, तब बनेंगे. लेकिन हम आज जानते हैं कि कौन हैं राजा अनंगपाल, जिनके इतिहास में योगदान को लेकर इतनी बातें हो रही हैं? दिल्ली के बसने में इनका क्या योगदान था? और आज दिल्ली की वो कौन सी जगह हैं, जो हमें राजा अनंगपाल की याद दिलाती हैं? पांडवों की नगरी को दोबारा बसाने वाले तोमर इस बात को लेकर कोई जिरह नहीं है कि दिल्ली का पहला ज़िक्र महाभारत काल में मिलता है. इंद्रप्रस्थ नगरी. पांडवों की बसाई हुई नगरी. indianrajputs.com
वेबसाइट पर राजपूतों और तोमर राजाओं की वंशावली का लंबा ज़िक्र है. इसके मुताबिक पांडवों में से एक अर्जुन के वंशज हुए- तोमर. इस बात को और आसान करते हैं. अर्जुन के बेटे अभिमन्यु. अभिमन्यु के बेटे परीक्षित और परीक्षित के बेटे जन्मेजय. और फिर जन्मेजय से चला तोमर वंश.
लेकिन पांडवों के बाद धीरे-धीरे उनका वंश भौगोलिक रूप से सीमित हुआ. तोमर भी कथित तौर पर पांचवीं-छठी सदी तक हिमालय के क्षेत्रों में ही रहे. फिर नीचे उतरे. हरियाणा तक पहुंचे. कुछ राजाओं के जागीरदार रहे. फिर हरियाणा से और दक्षिण की तरफ बढ़े. इस उद्देश्य से कि पूर्वजों की बसाई इंद्रप्रस्थ नगरी को नए सिरे से बसाना है. इसमें सफल भी रहे. ढिल्लिकापुरी से दिल्ली इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट कहती है कि आठवीं सदी में तोमर राजाओं ने दिल्ली पर शासन कायम किया. बाकी जगहों पर भी आठवीं सदी का ही ज़िक्र मिलता है. तोमर राजवंश के राजाओं में सबसे प्रभावी रहे अनंगपाल द्वितीय या राजा अनंगपाल तोमर. कहा जाता है कि इन्होंने ही इंद्रप्रस्थ को 'ढिल्लिकापुरी' का नाम दिया था. इसी का अपभ्रंश रूप बाद में बड़ा चर्चित हुआ- दिल्ली.
Delhi दिल्ली का लौह स्तंभ. वक्त के साथ दिल्ली के शासक बदलते रहे, लेकिन न तो लौह स्तंभ बदला, न ही इसका इतिहास. इतिहास, जो राजा अनंगपाल के नाम के साथ दर्ज है. (फाइल फोटो)
अनंगपाल और आधुनिक दिल्ली उस समय के तमाम सिक्कों, शिलालेखों से राजा अनंगपाल के शासन का पता चलता है. राजा अनंगपाल पर हुए सेमिनार में भारतीय पुरातत्व विभाग के पूर्व जॉइंट डायरेक्टर जनरल बीआर मणि ने कहा था –
“अनंगपाल ने ही इंद्रप्रस्थ को एक लोकप्रिय नगरी बनाने का काम किया और इसको वो नाम दिया, जिससे आज इसकी पहचान होती है- दिल्ली. 11वीं सदी में अनंगपाल के कुर्सी से उतरने के बाद से ही तोमर राजवंश का पतन होने लगा और धीरे-धीरे दिल्ली से इनका शासन ख़त्म हो गया.”
राज्यसभा टीवी के कार्यक्रम Delhi: From Pre-History to Chauhan Era
में बताया गया है अनंगपाल के एक बड़े ख़ास और काबिल मंत्री थे- नट्टल साहू. जैन साहूकार थे. उन्होंने दिल्ली में एक भव्य जैन मंदिर बनवाया था. अनंगपाल ख़ुद भी जैन धर्म से बड़े प्रभावित रहे. दिल्ली का लौह स्तंभ भी अनंगपाल ही लाए थे, उन्होंने ही स्थापित कराया था. कई सदियों बाद भी इसमें आज तक जंग नहीं लगी है. ये अचरज की बात है. राजा अनंगपाल ने ही दिल्ली के चारों तरफ लाल कोट की दीवार बनवाई थी. तोमर वंश का अंत अनंगपाल द्वितीय के शासन का ज़िक्र चंदबरदाई के लिखे पृथ्वीराज रासो में भी मिलता है. इसमें अनंगपाल को दिल्ली का संस्थापक बताया गया है. अनंगपाल के बाद तीन तोमर राजा दिल्ली की गद्दी पर बैठे, लेकिन तोमर राजवंश के शासन को मजबूत नहीं कर सके. delhitourism.gov.in
पर दर्ज़ दिल्ली का इतिहास कहता है कि 1192 में मोहम्मद गोरी दिल्ली में दाखिल हुआ और 1206 तक वो अपनी सल्तनत कायम कर चुका था. अनंगपाल के वंश से ही निकले थे प्रतापी राजा पृथ्वीराज चौहान. वे अनंगपाल के पोते लगते थे. पृथ्वीराज चौहान अंतिम हिंदू शासक रहे और उन्हीं के साथ कई छोटे-बड़े हिस्सों में फैले तोमर वंश के शासन का अंत हो गया.

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