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धर्म संसद के नाम पर नफरती कार्यक्रम कौन करवा रहा है?

धर्म ससंद में गांधी को गाली देने वाला कौन है?

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धर्म ससंद में गांधी को गाली देने वाला कौन है?
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निखिल
27 दिसंबर 2021 (Updated: 27 दिसंबर 2021, 06:39 PM IST) कॉमेंट्स
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धर्म और संसद. धर्म, जो धारण करने योग्य बातों का समुच्चय है. जो सही और गलत में फर्क करने का तरीका है. जो अलग अलग लोगों को एक धागे में पिरोकर एक समाज बनाने की कल्पना करता है. और संसद, जो लोकतंत्र की आत्मा होती है. एक राष्ट्र के तौर पर हमारे सामूहिक विचार को आपस में बांटने, और उसके आधार पर नियम बनाने के लिए बनी सबसे बड़ी पंचायत. लेकिन धर्म संसद के नाम पर हो रहे कार्यक्रमों में धर्म और संसद दोनों की भावना के उलट काम चल रहा है. खुलेआम राष्ट्रपिता को गालियां दी जा रही हैं, देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के नरसंहार के नारे दिए जा रहे हैं. ऐसे ही दो और शब्दों का सत्यानाश किया है राजनीति ने - घर और वापसी. हम सब के लिए घर वो जगह है, जहां हम होना चाहते हैं. हम कहीं भी, कितने ही आराम से रहें, लेकिन चैन हमें घर पर ही आता है. आप में से ही कितने लोग होंगे, जिन्हें घर से बाहर कहीं नींद नहीं आती होगी. कमाने खाने और गंवाने के नाम पर हम जितने भी सफर करते हैं, उन सब के बाद हम घर लौट आना चाहते हैं. जहां अपने हिस्से की ज़मीन है. अपने हिस्से के लोग हैं. इसीलिए घर लौट आने से सुंदर कुछ भी नहीं. अब घर वापसी के नाम में घर भी है और वापसी भी. लेकिन हम सब जानते हैं कि जिन भी चीज़ों से घर बनता है, घर वापसी का उनसे कोई ताल्लुक नहीं होता. वापसी का ज़िक्र होते हुए भी घर वापसी दूर करने की प्रक्रिया का नाम है. आदमी को आदमी से दूर करके, अजनबी बना देने और फिर दुश्मन बना देने की प्रक्रिया. इस तमाशे के पीछे कौन है जो इस देश को बांटकर फायदा लेना चाहता है. हरिद्वार में धर्म संसद के नाम पर एक कार्यक्रम हुआ था. जिसमें खुलेआम मुसलमानों के खिलाफ भड़काउ बातें कही गईं और उनके नरसंहार तक के नारे दिए गए. उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार को इस कार्यक्रम में शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में कितना पसीना आया. जो वीडियो हमने सोशल मीडिया पर देखे, उनके ट्रॉमा से हम उबर भी नहीं पाए थे कि रायपुर में फिर एक धर्म संसद हो गई. ये धर्म संसद बिना किसी समस्या के पूरी हो चुकी होती और अपने मकसद में कामयाब भी हो जाती, अगर एक वीडियो वायरल नहीं होता. कालीचरण नाम का यह व्यक्ति ने सभा में कहा
इस्लाम का टारगेट राजनीति के द्वारा राष्ट्र पर क़ब्ज़ा करना है. उन्होंने 1947 में हमें यह करके दिखाया. दो क़ब्ज़े उन्होंने हमारी आँखों के सामने किए हैं. इराक़ ईरान अफ़ग़ानिस्तान तो हमारे हाथों कब के जा चुके थे. नाथूराम जी को नमस्कार है कि उन्होंने गांधी को मार डाला.
इन महाशय का नाम है कालीचरण दास. कई जगह आपको इनके नाम के आगे संत और पीछे महाराज लगा मिलेगा. इस वीडियो के सामने आने के पहले कालीचरण दास शिव स्रोत के पाठ के लिए जाने जाएं. लेकिन आगे से ऐसा नहीं होगा. क्यों? हम बताते हैं - आपने कालीचरण दास के इस वीडियो में बार बार एक बीप सुनी होगी. ये इसमें पहले से नहीं थी. हमारे एडिटर राधेश्याम जी ने लगाई है. लगाई क्या है, उन्हें लगानी पड़ी है. क्योंकि गालियां ही इतनी थीं. जी हां. आज़ादी का अमृत महोत्सव चल रहा है. और उसी दौरान स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे बड़े चहरों में से एक को खुलेआम गाली दी जा रही है. गांधी के हत्यारे को प्रणाम किया जा रहा है. मुस्लिम समुदाय को लेकर आपत्तिजनक बातें कही जा रही हैं. लेकिन सुनने वाले ऐसे सुन रहे हैं मानों कोई बहुत पते की बात बताई जा रही है. और तो और जब गांधी को गालियां दी जा रही हैं, तब जनता तालियां और सीटियां बजा रही है. इन सारी भद्दी बातों पर सभा में मौजूद सिर्फ एक शख्स ने आपत्ति ली. राम सुंदर नाम के इस महंत ने सभा में कहा
महात्मा ने इस देश के लिए क्या कुछ नहीं किया. लेकिन उनके विषय में इस धर्म संसद से ऐसी बात की जा रही है? यह हमारा सनातन धर्म नहीं हो सकता. मैं अपने आपको इस धर्म संसद से अलग करता हूँ.
ये महंत राम सुंदर दास थे. ये रायपुर के दूधाधारी मठ से ताल्लुक रखते हैं और इस धर्म संसद के मुख्य संरक्षक थे. राम सुंदर दास कांग्रेस से भी जुड़े हुए हैं विधायक रह चुके हैं. फिलवक्त सूबे में गौसेवा आयोग के अध्यक्ष हैं. कालीचरण दास का वीडियो सामने आने के बाद रायपुर के पूर्व महापौर प्रमोद दूबे की शिकायत पर थाना टिकरापारा में कालीचरण दास के खिलाफ कई धाराओं में मामला दर्ज किया गया है. उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 505(2) और 294 लगाई गई है. पहली धारा का संबंध है दो समूहों के बीच दुश्मनी या नफरत फैलाने से. और दूसरी धारा, माने 294 लगती है सार्वजनिक स्थान पर कोई अश्लील काम करने पर. आजतक पर छपी हेमेंद्र शर्मा कि रिपोर्ट बताती है कि धर्म संसद में शामिल होने आए सीएम भूपेश बघेल भी अचानक कार्यक्रम से चले गए थे. इसके अलावा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने भी रायपुर में कालीचरण दास के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई है. इन धाराओं में मुकदमा दर्ज होने के बाद कालीचरण दास के भविष्य का फैसला अदालत करेगी. लेकिन एक बात हम आपको अभी से बता दे रहे हैं. कालीचरण दास भी कभी मन से माफ नहीं किए जा सकेंगे. अदालत माफ करे न करे, मन से माफी तो कालीचरण दास को अब कभी नहीं मिलेगी. खैर, रायपुर से आए इन दो वीडियोज़ की ही चर्चा ज़्यादा है. उसमें भी कालीचरण दास के वीडियो की चर्चा ज़्यादा है, महंत राम सुंदर दास के वीडियो की चर्चा कम है. लेकिन हम पूरी ज़िम्मेदारी के साथ ये कहना चाहते हैं कि रायपुर की धर्म संसद में राष्ट्रपिता को पड़ी गालियां कार्यक्रम का सबसे कम आपत्तिजनक हिस्सा थीं. 25 और 26 जनवरी को रायपुर के रावणभाटा ग्राउंड में इस कार्यक्रम का आयोजन नीलकंठ सेवा संस्थान ने किया था. और जैसा कि हमने आपको कुछ देर पहले बताया, दूधाधारी मठ के महंत राम सुंदर दास इस धर्म संसद के संरक्षक थे. बीबीसी पर छपी आलोक प्रकाश पुतुल की रिपोर्ट में नीलकंठ सेवा संस्थान के नीलकंठ त्रिपाठी का बयान छपा है. इसमें नीलकंठ बता रहे हैं कि धर्म संसद की आयोजन समिति में कांग्रेस के बड़े नेताओं के अलावा भाजपा के नेता भी शामिल थे. दो दिवसीय इस आयोजन का विषय था 'भारत को एक हिंदू राष्ट्र कैसे बनाया जाए'. और इसीलिए इसमें अधिकांश वक्ताओं ने इसी बात पर जोर दिया. वक्ता कौन और कैसे थे, उसकी बानगी एक नाम से मिल जाती है. रायपुर की इस धर्म संसद में वही स्वामी प्रबोधानंद गिरी भी आए थे जिनका नाम हरिद्वारा वाली धर्म संसद के मामले में सामने आया था. इतना ही नहीं, प्रबोधानंद गिरी ने रायपुर में ये तक कहा कि उन्होंने जो हरिद्वार में कहा, उसे दोहराने में उन्हें कोई समस्या नहीं है. सेक्युलर लोग हिंदुओं के खिलाफ काम करते हैं. हेमेंद्र शर्मा की रिपोर्ट बताती है कि रायपुर में प्रबोधानंद गिरी ने हिंदुओं से अपने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने की बात कही. और हैरंतअंगेज़ बातें जानना चाहते हैं तो बीबीसी पर आलोक पुतुल की रिपोर्ट पढ़िए. ये आपको बताएगी कि कई साधुओं ने हिंदू धर्म के ख़तरे में होने की बात कही तो कुछ साधुओं ने यह भी दावा किया कि पेंटागन समेत पूरे यूरोप पर हिंदुओं का क़ब्ज़ा हो चुका है और यूरोप की बड़ी आबादी हिंदू बन चुकी है. साध्वी विभानंद गिरि ने तो आरक्षण को ही ख़त्म करने की वकालत की और 'ऑनर किलिंग' को जायज़ ठहराया. इससे एक कदम और आगे जाकर हैरान होना चाहें तो दैनिक जागरण पर अरुण कुमार सिंह की इस खबर पर गौर कीजिए. ये आपको बताएगी कि स्वामी परमात्मानंद ने कहा कि एक लड़ाई आजादी की जीती, अब हिंदू राष्ट्र की लड़ाई जीतनी है. इसी रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि खरसिया के संत त्रिवेणी दास ने कहा कि पूरी दुनिया में आतंक, खून सिर्फ मुसलमान बहा रहा है. ईसाई हथियार बनाकर बेच रहे हैं। सनातन संस्कृति का गौरवशाली इतिहास दो अरब साल पहले से है। इसे खत्म करने की साजिश चल रही है। देश के सभी मुसलमान, हिंदू हैं, वे कहीं से नहीं आए, इनको जबरन मुसलमान बनाया गया है, इनकी घर वापसी होनी चाहिए। आप हैरान मत होइए. कुछ भी अचानक नहीं हुआ है. न हरिद्वार की धर्म संसद अचानक हुई थी, न रायपुर की हुई है. आप रायपुर के अखबार खंगालेंगे, तो जानेंगे कि इस धर्म संसद को लेकर बहुत पहले से खबरें छप रही थीं. ठीक वैसे, जैसे हरिद्वार की धर्म संसद के पहले बाकायदा कैलेंडर शेयर किया जा रहा था. अमर उजाला की इस खबर पर गौर कीजिए. साफ साफ लिखा है कि 17 दिसंबर से लेकर 19 दिसंबर तक यति नरसिंहानंद गिरि हरिद्वार में धर्म संसद का आयोजन करेंगे। जिसकी तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। यति नरसिंहानंद गिरी वही हैं, जिनका नाम महिला नेताओं को लेकर अश्लील टिप्पणियों और पानी पीने आए मुस्लिम बच्चे को पीटने में सामने आया था. मुस्लिम समुदाय को लेकर उनके खयालात कैसे हैं, ये सबको पता है. लेकिन हरिद्वार में ये कार्यक्रम होने दिया गया. और न सिर्फ होने दिया गया, जब वीडियो सामने आ गए, तब भी मामले दर्ज होने में वक्त लग गया. वो तो भला हो ट्विटर का और भला इस बात का कि हमारे देश में निज़ाम ट्विटर से चलता है. वायरल वीडियो हमारे हाथ में नहीं होते, तो इस बात को भी झुठला दिया जाता, वैसे ही जैसै ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों को झुठला दिया गया. अमर उजाला की रिपोर्ट ये भी बताती है कि एक धर्म संसद अब गाज़ियाबाद में होने जा रही है. 1 और दो जनवरी को. आयोजक वही हैं, जिनकी हमने तारीफ पहले की. क्या ये संसद भी होगी और हम वायरल वीडियो के भरोसे सवाल पूछेंगे. इसका सटीक जवाब तो नहीं है. लेकिन द हिंदू पर विजेता सिंह की ये रिपोर्ट एक अंदाज़ा देती है. हम सब जानते हैं कि हमारे यहां UAPA कभी भी लग सकता है. संविधान की दुहाई देने पर भी. रिपोर्टिंग के लिए घर से निकलते हुए भी. लेकिन जब पूछा गया कि हरिद्वार की धर्म संसद में शामिल लोगों पर यूएपीए लगेगा क्या, तो उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार ने कहा कि इस आयोजन से कोई हत्या नहीं हुई. कोई हथियार खरीदा नहीं गया. न ही कोई हथियार फैक्ट्री बरामद हुई. इसीलिए यूएपीए नहीं लगाया. अब डीजीपी साहब के इस बयान के बरअक्स उन मामलों को रखकर देखिए, जिनमें यूएपीए लगा दिया गया. कुछ अटपटा सा लगता है न. बस वहीं कृपा रुकी हुई है. हम उस देश में हैं, जहां कॉमेडियन अपना शो इसलिए नहीं कर सकता क्योंकि सामने वाले को लगता है कि ये आपत्तिजनक बात कहेगा. कॉमेडियन शो कर पाए, उससे पहले भगा दिया जाता है. कहीं और जाना चाहता है, तो वहां शो कैंसिल हो जाता है. हम उस देश में हैं जहां सूबों के गृहमंत्रियों को फिल्मों के गाने हज़म नहीं होते. वो कार्रवाई का डर दिखाते हैं. लेकिन फिर भी हम धर्म संसद के नाम पर हो रहे तमाशों को होने दे रहे हैं, बढ़ावा भी दे रहे हैं. इससे पहले आप हमें वाम दक्षिण में फिट करें, इसी शो के उस हिस्से पर गौर कीजिएगा, जिसमें रायपुर वाले आयोजन में कांग्रेस नेताओं का भी नाम है. उसी कांग्रेस के बाकी नेता अब लकीर पीट रहे हैं. इनमें कुछ भाजपा नेता भी हैं. जिन्हें लगता है कि बापू का अपमान हुआ. लेकिन कितने लोग इस बात को कहने को तैयार हैं कि कार्यक्रम की बाकी बातें भी आपत्तिजनक थीं? तेजस्वी सूर्या ने एक बयान दिया
हिंदुओं के पास सिर्फ़ यही विकल्प बचा है अब वो उन लोगों को हिंदू धर्म में वापिस लेकर आएँ जो यह धर्म छोड़कर चले गए हैं.
अगर अब भी आप नहीं समझें, तो कि हमने क्यों घर वापसी को घर से दूर ले जाने वाली चीज़ कहा था, तो हम कहेंगे कि हमारी ही तपस्या में कुछ कमी रह गई. अगली बार कुछ और प्रबंध करेंगे. वैसे इतना तो हम पूछ ही सकते हैं कि अगर तेजस्वी की बात में कोई खामी नहीं थी, तो फिर उन्होंने बयान वापस क्यों लिया ? देश में पनप रहे इस पागलपन को रोकिए. सरकार किसकी गुलाम है, वो तो आपने कालीचरण दास से सुन ही लिया. लेकिन आप किसी के गुलाम नहीं हैं. सोचिए. सोचने से होगा. इसके अलावा दिन की कुछ सुर्खियां इस प्रकार हैं सबसे पहले बात कोरोना संक्रमण के ओमिक्रोन वेरिएंट की. भारत में ओमिक्रोन के कुल मामलों की संख्या 578 हो गई है. पिछले 24 घंटों में देश के अलग-अलग राज्यों से ओमिक्रोन के 156 नए मामले सामने आये हैं. कुल 19 राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों में ओमिक्रोन वेरिएंट ने दस्तक दे दी है. बात अगर राज्यवार आंकड़ों की करें तो राजधानी दिल्ली ओमिक्रोन के मामलों में महाराष्ट्र को पछाड़ कर पहले नंबर पर पहुंच गई है. दिल्ली में अब तक ओमिक्रोन के 142 केस सामने आ चुके हैं जबकि महाराष्ट्र में यह संख्या 141 तक पहुंच चुकी है. एक चिंता की बात यह भी है कि अकेले दिल्ली में पिछले 24 घंटों के भीतर ओमिक्रोन के 63 नए मामले सामने आये हैं, जो कई राज्यों के कुल ओमिक्रोन मामलों की संख्या से भी ज्यादा है.  साथ ही बीते 24 घंटों में देशभर में कोरोना संक्रमण के 6 हजार 531 नए मामलों के साथ 315 मौत दर्ज की गईं हैं. अब बात सबसे जरूरी सवाल की. सवाल ये कि कोरोना के ओमिक्रोन वेरिएंट से निपटने की सरकार की तैयारी क्या है? इस सवाल का जवाब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 25 दिसंबर के राष्ट्र के नाम संबोधन में दिया. पीएम के इस संबोधन से तीन बड़ी बातें निकलकर सामने आईं. पहली 3 जनवरी 2022 से 15 से 18 साल के बच्चों को वैक्सीन लगाई जाएगी. दूसरी, 10 जनवरी 2022 से हेल्थकेयर और फ्रंटलाइन को प्रिकॉशन डोज यानी बूस्टर डोज़ दी जाएगी. इसके अलावा 10 जनवरी से ही 60 साल से ऊपर के को-मॉरबिडिटी वाले नागरिकों के लिए, डॉक्टर की सलाह पर वैक्सीन की बूस्टर डोज़ का विकल्प उपलब्ध रहेगा. को-मॉरबिडिटी का मतलब ऐसे लोग जिन्हें पहले से ही डाटबिटीज, लंबे समय से गुर्दों की बीमारी या दिल से जुड़ी कोई गंभीर बीमारी है. कोविन के मुखिया डॉ आर एस शर्मा के मुताबिक, बच्चों के लिए 1 जनवरी से कोविन-ऐप पर वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है. अगर किसी बच्चे के पास आधार कार्ड नहीं है तो वह अपने स्कूल आईडी-कार्ड को रजिस्ट्रेशन के लिए प्रयोग कर सकता है. ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया ने बच्चों को फिलहाल भारत बायोटेक की कोवैक्सीन लगाने की मंजूरी दी है. बच्चों के लिए दोनों डोज़ के बीच में 28 दिन का अंतर रहेगा. यानी अगर किसी बच्चे को पहली डोज 3 जनवरी को लग गई तो दूसरी डोज़ 31 जनवरी के बाद ही लग पाएगी. फिलहाल फ्रंटलाइन वर्कर्स और 60 साल से ऊपर वाले लोगों के लिए बूस्टर डोज़ के रजिस्ट्रेशन को लेकर कोई तारीख सामने नहीं आई है. लेकिन अगर आप 60 साल से ऊपर के हैं और बूस्टर डोज़ लगवाने की सोच रहें तो दूसरे टीके और बूस्टर डोज के रजिस्ट्रेशन में अंतर 9 महीने से अधिक होना चाहिए. एक सवाल ये कि बूस्टर डोज के लिए कौन सी वैक्सीन लगनी चाहिए. इसपर राय बंटी हुई है. कुछ एक्सपर्ट का मानना है कि बूस्टर या तीसरी डोज़ अलग वैक्सीन की होनी चाहिए. जैके अगर पहली दो डोज कोवैक्सीन की लगी है तो तीसरी डोज कोविशील्ड की लगनी चाहिए. वहीं कुछ एक्सपर्ट मानते हैं कि तीनों खुराकें एक ही टीके की लगें. सरकार की ओर से अभी मिक्स वैक्सीन को लेकर स्थिति साफ नहीं की गई है. इसलिए अभी यही माना जा रहा है कि जिस व्यक्ति को पहली दो डोज़ जिस वैक्सीन की लगी हैं, तीसरी डोज़ भी उसी वैक्सीन की लगेगी. इन सबके बीच चुनाव आयोग ने केन्द्र सरकार से अगले साल की शुरुआत में मतदान वाले राज्यों में वैक्सीनेशन प्रोग्राम में तेजी लाने को कहा है. अगले साल की शुरुआत में पांच राज्यों गोआ, मणिपुर, उत्तराखंड, पंजाब और उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं. ऐसे में चुनाव आयोग की कोशिश है जल्द से जल्द इन राज्यों के नागरिकों को वैक्सीन की दोनों डोज़ लग जाएं जिससे चुनाव और रैलियों में जुटने वाली भीड़ से कोरोना संक्रमण का खतरा कम हो जाए. वैसे चुनावी रैलियों को लेकर बीजेपी के एक बड़े नेता ने भी चिंता जाहिर की है. बीजेपी नेता और पीलीभीत सांसद वरुण गांधी ने उत्तर प्रदेश में नाइट कर्फ्यू व्यवस्था पर सवाले उठाते हुए ट्वीट कर लिखा. रात में कर्फ्यू लगाना और दिन में रैलियों में लाखों लोगों को बुलाना. यह सामान्य जनमानस की समझ से परे है. उत्तर प्रदेश की सीमित स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के मद्देनजर हमें इमानदारी से यह तय करना पड़ेगा कि हमारी प्राथमिकता भयावह ओमीक्रोन के प्रसार को रोकना है अथवा चुनावी शक्ति प्रदर्शन. वरुण गांधी ये ट्वीट्स क्यों कर रहे हैं, उसपर पॉलिटिक एनिलिस्ट लंबे लंबे एसे लिखेंगे. उनके मंतव्य को समझाते हुए. लेकिन ये सवाल है तो जायज़ कि अगर चुनाव पर रोक नहीं लग सकती, न रैलियों पर लग सकती है, तो किस मुंह से सरकार ने जनता पर नाइट कर्फ्यू थोपा है. सवाल तो जायज़ है लेकिन किसी एक पार्टी से नहीं बल्कि हर पार्टी जो इस समय अपनी रैलियों में लाखों की भीड़ बुलाकर ओमिक्रोन के खतरे को दावत दे रही है. बीजेपी की जिम्मेदारी इसलिए ज्यादा है क्योंकि उत्तर प्रदेश में उनकी सरकार है. कोरोना से यूपी के नागरिकों की सुरक्षा उनका प्रथम कर्तव्य है. वैसे भी कोरोना की दूसरी लहर में यूपी की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का हाल किसी से कहां छिपा था. 2. बात स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की हो रही है तो एक बार हेल्थ इंडेक्स का जिक्र भी कर लिया जाए जिसे 27 दिसंबर को नीति आयोग ने जारी किया है. यही है हमारी दूसरी सुर्खी. इस हेल्थ इंडेक्स में दक्षिण के राज्यों का प्रदर्शन सराहनीय है तो उत्तर भारत के राज्यों की स्थिति दयनीय है. हेल्थ इंडेक्स के मुताबिक, बड़े राज्यों में स्वास्थ्य सेवाएं देने के मामले में केरल देश में पहले नंबर पर है. दूसरे नंबर तमिलनाडु है. वहीं इंडेक्स में उत्तर प्रदेश की स्थिति हालात खराब रही. स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में यूपी लिस्ट में सबसे नीचे 19 वें नंबर पर तो बिहार यूपी से ठीक ऊपर 18 वें नंबर पर मौजूद है. नीति आयोग ने इस बार हेल्थ इंडेक्स के लिए 2019-20 को रिफरेंस ईयर के तौर पर लिया था. ये चौथा ऐसा मौका था जब केरल लगातार हेल्थ इंडेक्स के बड़े राज्यों की लिस्ट में टॉप पर रहा है. बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने के मामले में छोटे राज्यो में मिजोरम पहले पायदान पर रहा, जबकि दूसरे नंबर पर त्रिपुरा और नागालैंड सबसे आखिरी पायदान पर रहा. केंद्र शासित प्रदेशों में दादरा नगर हवेली पहले और दूसरे नंबर पर चंडीगढ़ है. वहीं राजधानी दिल्ली 5वें नंबर पर है. हेल्थ इंडेक्स मुख्य तौर पर तीन इंडिकेटर पर तैयार किया गया है. पहला हेल्थ आउटकम, दूसरा गवर्नेंस एंड इन्फोर्मेशन और तीसरा की इनपुट्स एंड प्रोसेस. इसके बाद इन तीनों इंडिकेटर पर राज्यों को उनके प्रदर्शन के मुताबिक नंबर दिए जाते हैं. 3.वैसे नंबरों के हिसाब से सोमवार का दिन अरविंद केजरीवाल की पार्टी के लिए अच्छा रहा. सोमवार शाम को चंडीगढ़ में नगर निगम चुनाव के नतीजे घोषित हुए. नगर निगम चुनाव में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी सबसे बड़े पार्टी बनकर सामने आई है. कुल 35  वार्ड वाले नगर निगम में आप ने पहली बार चुनाव लड़ते हुए 14 सीटें जीतीं. वहीं बीजेपी को 12, कांग्रेस को 8 तो शिरोमणि अकाली दल को सिर्फ एक सीट पर सफलता हासिल हुई. चुनाव में मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच रहा. बीजेपी को बड़ा झटका तब लगा जब वार्ड 17 से बीजेपी के सिंटिंग मेयर को आप के दमनप्रीत सिंह ने 828 से हराया. साथ ही बीजेपी के सीनियर लीडियर और डिप्टी मेयर महेशिंदर सिद्धू भी महज 11 वोटों से ही चुनाव जीत पाए. बात अगर वोट शेयर की करें तो कांग्रेस को लगभग 30 प्रतिशत, बीजेपी को 29 तो वहीं आम आदमी पार्टी को लगभग 27 फीसद वोट मिले. आम आदमी पार्टी की इस जीत पर पार्टी मुखिया अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर बधाई दी. साथ ही नगर निगम में मिली जीत को पंजाब में बदलाव का संकेत भी बताया. आप भले ही चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी लेकिन बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई, जिससे मेयर को लेकर संशय अभी बरकरार है. बात अगर 2016 नगर निगम चुनाव की करें तो उस समय बीजेपी और अकाली दल के गठबंधन ने 20 सीटें जीती थीं. तब कुल 26 वार्ड थे जिन्हें 2021 में बढ़ाकर 35 किया गया था. बीते कुछ सालों में हर पार्टी बड़े-बड़े शहरों के नगर-निगम चुनाव को खास अहमियत देते हुए दिखाई दे रही है. याद कीजिए हैदराबाद का नगर निगम चुनाव जब देश के गृहमंत्री अमित शाह ने रोड शो के जरिए गली-गली पहुंचकर बीजेपी को जिताने की अपील की थी. चंडीगढ़ नगर निगम चुनाव में भी बीजेपी के 12 स्टार प्रचारकों ने शहर में 56 जनसभाएं की थीं. इन स्टार प्रचारकों में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर और सांसद मनोज तिवारी जैसे चेहरे भी शामिल हैं. आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों के लिए अरविंद केजरीवाल ने भी चंडीगढ़ में जनसभाएं की थीं. चंडीगढ़ के नगर निगम चुनाव को राजनीतिक विश्लेषक पंजाब विधानसभा चुनाव का वॉर्म अप मैच भी मान रहे थे.

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