The Lallantop
Advertisement

बाबूलाल मरांडीः वो नेता जो गुस्से में आया तो संघ से रिश्ता ही तोड़ लिया

बाबूलाल मरांडी के बिना अधूरी है झारखंड की राजनीति की चर्चा.

Advertisement
Img The Lallantop
बाबूलाल मरांडी, झारखंड के पहले मुख्यमंत्री थे. भाजपा नेता, जिन्होंने खुद ही भाजपा से किनारा कर लिया.
pic
सिद्धांत मोहन
23 दिसंबर 2019 (Updated: 28 दिसंबर 2019, 12:29 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
झारखंड के चुनाव परिणाम आ चुके हैं बहुत सारी बहसें हो रही हैं. टीवी चैनलों पर झारखंड की राजनीति पर चर्चा चल रही है. अब झारखंड की राजनीति की बात हो और बाबूलाल मरांडी की बात न हो, ऐसा संभव नहीं है. मरांडी, यानी झारखंड का पहला मुख्यमंत्री, मरांडी यानी संघी राजनीति का वो नेता जिसने संघ से गुस्से में पीछा छुड़ा लिया.
झारखंड का जिला गिरिडीह. गांव कोडिया बांध. ब्लॉक तिसरी. जनवरी 1958 में यहां बाबूलाल मरांडी का जन्म हुआ. गांव से पढ़ाई-लिखाई पूरी हुई तो गिरिडीह शहर आ गए. दाखिला मिला गिरिडीह कॉलेज में. यहीं पर इंटरमीडिएट और स्नातक की पढ़ाई की. जिस समय मरांडी यहां पढ़ रहे थे, उस समय धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्वयंसेवक का माहौल तैयार हो रहा था. जेपी आंदोलन और उसके बाद की इमरजेंसी से कांग्रेस के प्रति मतभेद पैदा हो रहे थे. और जनता पार्टी और जनसंघ से आगे भाजपा की नींव धीरे-धीरे पड़ रही थी.
कॉलेज की पढ़ाई पूरी हुई. इसके बाद मरांडी गए रांची. रांची विश्वविद्यालय से भूगोल में पोस्ट ग्रेजुएशन किया. इसके बाद प्राइमरी स्कूल में पढ़ाना शुरू किया. इस समय तक वह संघ से भी जुड़ चुके थे. समय वही था जब मरांडी स्कूल की नौकरी पूरी तरह छोड़ने वाले थे. नौकरी छोड़ने के पीछे दो कहानियां हैं.
कहानी नंबर एक. बाबूलाल मरांडी को शिक्षा विभाग में काम पड़ गया. जब शिक्षा विभाग के कार्यालय में गए तो वहां के बाबू ने काम के एवज में उनसे रिश्वत की मांग की. काफी कहासुनी हुई. बाबूलाल को रिश्वत देना मंज़ूर नहीं था. बाबूलाल और बाबू दोनों भड़क गए. बाबूलाल मरांडी ने तुरंत अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया.
कहानी नंबर दो. छोटी कहानी है. संघ से तो जुड़े ही हुए थे. संघ के प्रचार और कामकाज में दिक्कत आ रही थी. विश्व हिन्दू परिषद् से पद का भी ऑफर था. मरांडी ने ये सब चीज़ें देखते हुए शिक्षक के पद से इस्तीफा दे दिया. और विहिप ने उन्हें वनांचल क्षेत्र का सचिव नियुक्त किया.
झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रह चुके हैं बाबुलाल मरांडी. झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रह चुके हैं बाबूलाल मरांडी.

साल आया 1983. बाबूलाल मरांडी चले गए दुमका. संथाल परगना प्रखंड में काम शुरू किया. इस दौरान मरांडी दुमका के ही आरएसएस ऑफिस में रहते थे. इस दौरान भाजपा के विष्णु प्रसाद भईया के संपर्क में आए. फिर बाबूलाल मरांडी ने धीरे-धीरे आनाजाना शुरू किया रांची. और धीरे-धीरे दिल्ली और रांची के बीच पुल बन गए.
इस समय मरांडी का संघ में कद बढ़ने लगा था. कुछ सालों पहले ही गठित हुई भाजपा की नज़रों में चढ़ते जा रहे थे. साल आया 1991. भाजपा ने दुमका लोकसभा सीट से टिकट दिया मरांडी को. इस चुनाव में मरांडी को हार का सामना करना पड़ा. अगला लोकसभा चुनाव. साल 1996. दुमका लोकसभा सीट से भाजपा ने फिर से टिकट दिया मरांडी को. सामने थे शिबू सोरेन. हेमन्त सोरेन के पिता. सोरेन ने बाबूलाल मरांडी को हरा दिया. 5000 वोट से.
लेकिन राजनीति में बड़े नेता से हारने वाला नेता भी बड़ा नेता बन जाता है. मरांडी के साथ भी यही हुआ. सोरेन से हारने के बाद मरांडी का माहौल बन गया. भाजपा ने भी भांप लिया. कहा कि अपने क्षेत्र में संगठन का निर्माण करें. पार्टी ने उन्हें झारखंड ईकाई का प्रमुख बना दिया. मरांडी संगठन के लिए काम करने में जुट गए.
1998 में लोकसभा चुनाव हुए. मरांडी ने बीजेपी के लिए कितना काम किया था, पता चल गया. झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से 12 सीटें भाजपा के हाथ में आ गयीं. मरांडी ने सोरेन को हरा दिया था. नए राज्य झारखंड का गठन तो नहीं हुआ था, लेकिन नींव पड़ चुकी थी. भाजपा के एजेंडे में शामिल था सबकुछ. जीत से मरांडी का मेयार और बुलंद हुआ. उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया.
और इसके साथ ही दो बार के केन्द्रीय मंत्री करिया मुंडा को किनारे किया गया, ऐसी खबरें चलीं. लोकसभा भंग हुई. फिर से चुनाव हुए 1999 में. दुमका सीट पर मरांडी ने फिर से चुनाव लड़ा. सामने थीं शिबू सोरेन की पत्नी रूपी सोरेन. 5000 वोटों से मरांडी जीत गए. कहा गया कि रूपी सोरेन और मरांडी के बीच कांग्रेस प्रत्याशी रमेश हेमब्रोम थे, जिन्होंने भाजपा विरोधी वोटों का सबसे बड़ा हिस्सा काट लिया था, जिसका लाभ मरांडी को मिला.
अगला साल 2000. बिहार का बहुप्रतीक्षित विभाजन पूरा हुआ. नया राज्य झारखंड सामने आया. एनडीए की सरकार बनी. और मरांडी बने पहले मुख्यमंत्री. मरांडी अपनी कुर्सी को लेकर बहुत आश्वस्त थे, लेकिन एनडीए की सहयोगी जनता दल यूनाईटेड का प्लान कुछ और था. जदयू ने दबाव बनाया. तीन साल के भीतर मरांडी को इस्तीफा देना पड़ा. अर्जुन मुंडा बने मुख्यमंत्री. मरांडी साइड में. मरांडी ने धीरे-धीरे दूरी बढ़ाना शुरू किया.
साल 2004. लोकसभा चुनाव. बाबूलाल मरांडी ने अपनी सीट बदल दी. दुमका से लड़ते थे. इस बार लड़े कोडरमा सीट से. बीजेपी की इस चुनाव में हालत खराब थी. मरांडी को छोड़कर और कोई भाजपा नेता झारखंड में लोकसभा चुनाव नहीं जीत सका था. मरांडी और भाजपा में दूरियां बढ़ती गयीं. साल आया 2006. मरांडी ने भाजपा और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.
भाजपा से दूर जाने के बाद मरांडी ने गठन किया झारखंड विकास मोर्चा. भाजपा के पांच और विधायकों को तोड़कर अपने साथ लेते आए. अब मौक़ा था खुद को साबित करने का. कोडरमा लोकसभा सीट पर उपचुनाव होने थे. स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर मरांडी चुनाव लड़कर जीत गए. 2009 का लोकसभा चुनाव. मरांडी इस बार कोडरमा सीट पर झाविमो के टिकट पर लड़ रहे थे. जीत गए.
लेकिन मरांडी की जीत का सिलसिला बहुत दिनों तक जारी नहीं रह सका. 2014 में वो दुमका से लड़े, लेकिन इस साल मोदी लहर आई हुई थी. मरांडी चुनाव हार गए. जीते भाजपा के उम्मीदवार रवीन्द्र कुमार राय.
आज जब झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे हैं, तो सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद का गठबंधन शनैः शनैः बहुमत का आंकड़ा छू चुका है, और भाजपा मुश्किल में है. मुमकिन है कि हेमंत सोरेन झारखंड के अगले मुख्यमंत्री बन जाएं, लेकिन आप बात करिए चुनावी जोड़तोड़ की तो मरांडी ने कह दिया, "जिसके साथ जाना होगा जाएंगे. कोई भी पार्टी अछूत थोड़े ही है." किस दम पर? इसलिए, क्योंकि 4 सीटों पर उनकी पार्टी जीत दर्ज करते हुए दिख रही है.


लल्लनटॉप वीडियो : दुमका में पोस्टमॉर्टम करने वाले ने जो बताया वो डरा देने वाला है

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement