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हिंदू ग्रंथ की कमियां निकालने वाला हर इंसान मुसलमान नहीं होता

कमल हासन को मुसलमान घोषित कर दिया गया है.

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29 मार्च 2017 (Updated: 29 मार्च 2017, 07:41 AM IST) कॉमेंट्स
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ये आर्टिकल डेली ओ वेबसाइट के लिए अंग्शुकंता चक्रर्बती  ने लिखा है. वेबसाइट की इजाज़त से हम इसका हिंदी तर्जुमा आपको पढ़वा रहे हैं.


आजकल सोशल मीडिया पर एक्टर कमल हासन को दी जा रही नसीहत वाला पोस्ट काफी शेयर किया जा रहा है. जिसमें कमल हासन के एक आर्टिकल के खिलाफ लिखा गया है. हासन ने अपने आर्टिकल में महाभारत में सेक्सिस्म पर सवाल उठाया था. इस पर उन्हें (मुस्लिम समझ कर) सलाह दी जा रही है कि सैक्सिस्म को लेकर ‘हिंदू महाकाव्य’ पर बात करने से पहले वे अपने धर्म में तीन तलाक के मुद्दे पर विचार करें.

फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने मनिका गुप्ता के लिखे आर्टिकल से भले ही वो शब्द हटा दिए, जिसमें कमल हासन को मुस्लिम बताया गया था, लेकिन उसके स्क्रीनशॉट और उसपर आए कमेंट्स की ट्विटर पर बाड़ सी आ रखी है.

gaurav pandit

गुप्ता का कहना है कि हासन ने अपनी बोलने की आज़ादी को सही ढंग से यूज़ नहीं किया. उनका कहना है कि हासन की लिखी बात नाजायज़ है, क्योंकि द्रौपदी एक पौराणिक किरदार हैं और लोग उनको बड़ी इज्ज़त से देखते हैं. उन्होंने अपने आर्टिकल की शुरुआत में ही लिखा है “ कमल हासन को विवादों में रहना पसंद है, लेकिन इसके लिए द्रौपदी को मोहरा बनाना भारतीय महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है”.

गुप्ता इसके आगे लिखती हैं कि “कमल हासन ये भूल गए कि द्रौपदी काल अलग था. महाभारत दुनिया में सबसे प्राचीन महाकाव्यों में से एक है, यह अपने संदर्भ में आधुनिक है. कमल हासन के इसके खिलाफ बोलने से महाभारत की महानता ख़त्म नहीं हो जाएगी, पर क्या अभिनेता को ऐसी बातें करना शोभा देता है?”

एक ओर तो गुप्ता द्रौपदी को पौराणिक किरदार बता रही हैं, और दूसरी ओर वे द्रौपदी के समय का हवाला दे रही हैं. जो हासन को ऐसी बातें करने का अधिकार नहीं देता. ये उनके कमल हासन का विरोध करने वाले दावों पर ही सवाल उठाता है. गुप्ता को पहले खुद से तय कर लेना चाहिए  कि द्रौपदी पौराणिक किरदार है या एतिहासिक. खैर इसकी भी क्या ज़रुरत जब आपको तथ्यों पर बात करने के अलावा महज़ खुद के प्रचार से मतलब हो.

जो पैरा हटा दिया गया है उसको भविष्य के लिए स्क्रीनशॉट लेकर संभाल कर रखा गया है, ताकि झूठी ख़बरों के इतिहास में इसे जगह मिले.

गुप्ता का कहना है कि "हासन न केवल दोनों समूहों के बीच दुश्मनी को उकसा रहे हैं, बल्कि यह भी भूल रहे हैं कि उनके धर्म में महिलाओं की सबसे खराब स्थिति है. महाभारत की एक घटना के बारे में बात करने से बेहतर ये होगा कि उन्हें अपने काम से मतलब रखना चाहिए और तीन तलाक पर फॉकस करना चाहिए.”

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ऐसा लगता है लेखक को कर्नाटक के बसवेशेश्वर मठ के धर्म गुरु ‘प्राणवानंद स्वामी’ से प्रेरणा मिली है. जिन्होंने हासन की महाभारत पर टिप्पनी के खिलाफ कंप्लेंट फाइल की है, कि उनको माफ़ी मांगनी चाहिए.

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मनिका गुप्ता ने खुद भी बताया कि हिंदू मक्कल काची पार्टी ने भी कमल हासन के खिलाफ 15 मार्च को चेन्नई पुलिस कमिश्नर से शिकायत की है.

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चलिए अब तर्कों और दावों पर ज्यादा बहस नहीं करेंगे. एक प्रमुख अंग्रेजी अखबार में छपे इस लेख को निष्पक्ष रूप में प्रस्तुत किया गया था. इसे महज़ एक अच्छी नीयत से किया गया काम समझना चाहिए.

पहले तो महाभारत में द्रौपदी को जिस तरह से मोहरा बनाया गया और जुए में दांव पर लगा दिया गया, इस बात की शिकायत करने वालों का विरोध करना अपने आप में ही द्रौपदी का अपमान है. महाभारत पर लिखी गई उन सब किताबों का जो द्रौपदी पर आधारित थीं संघ परिवार ने कभी स्वागत नहीं किया. चाहे वो महाश्वेता देवी की ‘दौपदी’ हो या इरावती कर्वे की ‘युगांता’. संघ परिवार ने हमेशा पुरुष प्रधान इतिहास को ही तरजीह दी है.

यूपीए सरकार द्वारा ए.के. रामानुजन के लिखे ‘तीन सौ रामायण’ लेख को दिल्ली युनिवर्सिटी के बी.ए. ऑनर्स के हिस्ट्री के सिलेबस से हटा दिया गया था. क्योंकि संघ के आन्दोलनकारी राम की योद्धा वाली छवि को चुनौती देने वाली कथाओं का जमकर विरोध कर रहे थे.

इस आर्टिकल को न पचा पाने का कारण हास्यास्पद है. लेकिन अपमानजनक भी है. ये कहता है कि हिन्दू धर्म और हिन्दू महाकाव्यों का विरोध कोई भी बाहरी व्यक्ति नहीं कर सकता.

हिंदू महाकाव्य की आलोचना के कारण लेखक ने ना सिर्फ कमल हासन को मुस्लिम ठहराया, बल्कि उसने ये भी जता दिया कि कोई हिंदू भी अपने धर्म का अपमान नहीं कर सकता, और अगर कोई अन्य धर्म का व्यक्ति कुछ कहता है तो वह हिन्दू धर्म को बदनाम करने की और अपने धर्म को ऊंचा बताने की कोशिश कर रहा है. जो इस मामले में इस्लाम है.

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सबसे पहले कहानी में झूठ के अंश को देखते हैं. कमल हासन मुस्लिम नहीं हैं. वे जन्म से तमिल ब्राह्मण हैं और खुद को नास्तिक मानते हैं. अगर लेखिका ने मुस्लिम धर्म और अन्य धर्मों के खिलाफ अपनी धारणाओं के आधार पर लिखने से पहले इस विषय पर पूरा पढ़ लिया होता, तो उसको समझ आ जाता कि हिन्दू धर्म में भी बहुत नास्तिक हैं और कुछ ऐसे भी जो अपने धर्म की खिलाफत करते हैं.

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दुसरे शब्दों में हिन्दू धर्म की खिलाफत करना एंटी हिन्दू नहीं होता. ये कुछ ऐसा हि है जैसे सरकार के खिलाफ बोलना एंटी नेशनल नहीं होता, लेकिन हम हिन्दू राष्ट्र जैसी बीमार मानसिकता को पोश कर, अपने ही देश के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ढांचे का अपमान कर रहे हैं.

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कमल हासन के नास्तिकतावाद और जीवन, राजनीति और सिनेमा के प्रति उनके शानदार ढंग से विरोधाभासी दृष्टिकोण ने हमेशा सार्वजनिक क्षेत्र का सही मूल्यांकन किया है. जिस समय नास्तिकतावाद पर हिंदू, मुस्लिम और इसाई धर्म द्वारा हमला किया जाता था. उस समय कमल हासन ने अपनी फिल्मों ‘अंबे शिवम्’ और ‘दशावतारम’ से भगवान के वजूद पर सवाल खड़े किए.

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हासन इस्लामोफोबिया के सबसे पहले अंतर्राष्ट्रीय विक्टिम रहे हैं. जब उन्हें 2002 में टोरंटो पीयर्सन एअरपोर्ट पर अमेरिका के अधिकारिओं ने जांच के लिए रोका था. इसके पीछे कारण था हासन का नाम थोड़ा मुस्लिम नाम से मिलता था, जबकि संस्कृत में कमल हासन का मतलब हंसता हुआ कमल का फूल होता है.

आजकल फेक न्यूज़ को भी बड़ा मुद्दा बना दिया जाता है. गुप्ता का आर्टिकल भी गलत सूचनाओं और असुरक्षा की भावनाओं से भरा हुआ है. इसमें कोई शक नहीं कि हासन को मुस्लिम बताकर लेखिका ने स्पष्ट किया कि हिंदू धर्म पर किसी भी मुस्लिम को टिप्पणी करने का कोई हक नहीं. जबकि सच्चाई ये है कि किसी बुद्धिजीवी के लिए कोई सीमा या दीवार नहीं होती.

यूरोप का दोबारा से उदय संभव ही नहीं होता अगर उनके भिक्षुओं ने 11वीं, 12वीं और 13वीं शताब्दी के अरबी में लिखे धर्मग्रंथों का अनुवाद चुपके से और सबसे छुपकर किया होता. जिस मुग़ल बादशाह अकबर से संघ परिवार नफरत करता है, उनका काल भारत के इतिहास में सबसे धर्मनिरपेक्ष माना जाता है. जिसने हिंदू और इस्लामी ग्रंथों के अनुवाद को प्रोत्साहित किया.

कमल हासन द्वारा महाभारत की आलोचना को, हिंदुत्व की कट्टरवादी विचारधारा के कारण बढ़ते हुए दुर्व्यवहार के परिवेश में देखना चाहिए. इस नाज़ुक समय में पत्रकारों से सिर्फ इतनी अपेक्षा है कि वे लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ होने के नाते तथ्यों के आधार पर ही लिखें, लेकिन दुर्भाग्य से व्हाट्सएप पर गौशाला क़िस्म की पत्रकारिता की तरह, फेक न्यूज़ अब मुख्य धारा का मुद्दा बन चुकी है.

ये आर्टिकल दी लल्लनटॉप के साथ इंटर्नशिप कर रहे भूपेंद्र ने ट्रांसलेट किया है.


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