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अरबों लूटने वाले इस चर्च की कहानी हैरान कर देगी!

यूनिफ़िकेशन चर्च की पूरी कहानी क्या है?

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What is the full story of the Unification Church? (AFP)
यूनिफ़िकेशन चर्च की पूरी कहानी क्या है? (AFP)
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19 अगस्त 2022 (Updated: 19 अगस्त 2022, 23:25 IST)
Updated: 19 अगस्त 2022 23:25 IST
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1935 के साल की किसी एक रात की बात है. कोरिया के एक घर के बिस्तर पर एक 15 साल का लड़का करवटें बदल रहा था. उसी समय उसकी आंखों में दिव्य रौशनी चमकी. फिर उसके सामने एक तस्वीर प्रकट हुई. कुछ देर तक आकाशवाणी के बाद वहां शांति छा गई. दरअसल, वो एक सपना था.

बरसों बाद उस लड़के ने उस सपने की कहानी अपनी आत्मकथा में बयां की. उसने कहा, उस दिन मेरे सपने में ईसा मसीह आए थे. उन्होंने मुझसे कहा कि तुम्हें एक ख़ास मिशन के लिए धरती पर भेजा गया है. तुम्हें कोरियाई लोगों की महानता से अमेरिका और जापान की जनता को रुबरु कराना है.

आगे चलकर उस लड़के ने एक कल्ट की स्थापना की. इसे यूनिफ़िकेशन चर्च के नाम से जाना गया. कालांतर में इस चर्च के कई परिचय बने. मसलन, इस चर्च के समर्थकों में जापान के प्रधानमंत्री से लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति तक का नाम आता है. ये चर्च हज़ारों कपल्स की शादी एक साथ करवाने के लिए मशहूर था. और, इसी चर्च ने अमेरिका और जापान में आम लोगों को फंसाकर अरबों रुपये लूट लिए.

कट टू 2022…

08 जुलाई 2022 को जापान के नारा शहर की शांति को दो गोलियों ने अचानक से भंग कर दिया था. इन गोलियों का निशाना जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे थे. आबे अपनी पार्टी के लिए चुनावी रैली करने आए थे. गोलियां खाकर आबे नीचे गिर गए. उन्हें अस्पताल ले जाया गया. लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका.

हमलावर तेत्सुया यामागामी को फौरन गिरफ़्तार कर लिया गया था. वो जापान की नौसेना में काम कर चुका था. शुरुआती पूछताछ में यामागामी ने गोली चलाने की एक अजीबोगरीब वजह बताई. उसने कहा कि आबे यूनिफ़िकेशन चर्च से जुड़े एक ग्रुप के समर्थक थे. यामागामी को इससे क्या समस्या थी? उसका कहना था कि उस ग्रुप को ज़रूरत से अधिक चंदा देने की वजह से उसकी मां दिवालिया हो गई. इसके बावजूद उसकी मां चर्च को पैसा दे रही थी.

हमलावर तेत्सुया यामागामी (AP)

इस बयान के बाद यूनिफ़िकेशन चर्च का नाम फिर से चर्चा में आया. चर्च के जाल में फंसने वाली सिर्फ़ यामागामी की मां ही नहीं थी. चर्च पर लगभग 75 अरब रुपये की धोखाधड़ी का आरोप है. कैसे? आरोप हैं कि चर्च ने ये पैसे लोगों को अपने जाल में फंसाकर ऐंठे. इतना होने के बावजूद जापान की सत्ताधारी पार्टी के 80 से अधिक सांसदों का लिंक सामने आया है. वे गुपचुप तरीके से चर्च के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं. और, वे इस चर्च को पैसा भी देते हैं.

तो, आज हम जानेंगे,

यूनिफ़िकेशन चर्च की पूरी कहानी क्या है?
इसका कोरिया कनेक्शन क्या है?
और, आज हम इस चर्च की कहानी क्यों सुना रहे हैं?

पहले बैकग्राउंड समझ लेते हैं.

साल 1920. प्योंगान प्रांत के एक क़स्बे में एक लड़के का जन्म हुआ. घरवालों ने उसका नाम रखा, सन यांग मून. उस समय कोरिया का बंटवारा नहीं हुआ था. बंटवारे के बाद प्योंगान नॉर्थ कोरिया का हिस्सा बन गया. मून का बचपन नॉर्थ कोरिया में बीता. जब मून 15 बरस का हुआ, तब उसे वो सपना दिखा, जिसकी चर्चा हमने ऐपिसोड की शुरुआत में की थी. मून ने ईसा मसीह के साथ सपने में हुई कथित मुलाक़ात और आकाशवाणी का जमकर प्रचार-प्रसार किया. उसने कहना शुरू किया कि वो ईसा मसीह के अधूरे कामों को पूरा करने के लिए अवतरित हुआ है. मून को लगता था कि उसे मानवता को शैतानों से बचाने के लिए चुना गया है. मून कम्युनिस्टों को शैतान का प्रतिनिधि मानता था. वो उनसे बेइंतहा नफ़रत करता था.

फिर 1945 का साल आया. उस समय दूसरा विश्वयुद्ध खात्मे की तरफ़ बढ़ रहा था. अगस्त 1945 में अमेरिका ने जापान पर दो परमाणु बम गिराए. जापान को मित्र राष्ट्रों के सामने सरेंडर करना पड़ा. सरेंडर से पहले कोरियन पेनिनसुला पर जापान ने क़ब्ज़ा कर रखा था. दूसरे विश्वयुद्ध के अंतिम दिनों में मित्र राष्ट्र कोरिया की नियति पर चर्चा करने लगे थे. उन्होंने तय किया कि जब तक कोरिया सेल्फ़-रूल के लायक नहीं बन जाता, तब तक उसे इंटरनैशनल ट्रस्टीशिप के अधीन रखा जाएगा. लेकिन इसको लेकर सहमति नहीं बन पा रही थी. वैश्विक पटल पर अमेरिका और सोवियत संघ महाशक्ति के तौर पर उभरने लगे थे. दोनों की विचारधार कतई अलग थी. ऐसे में अमेरिका ने सुझाया कि कोरिया को दो ज़ोन में बांट दिया जाए. सोवियत संघ ने इस प्रस्ताव पर रज़ामंदी दे दी.

विश्वयुद्ध खत्म होने के तुरंत बाद कोल्ड वॉर शुरू हो गया. अमेरिका और सोवियत संघ न्यूट्रल ज़मीन पर वैचारिक और सैन्य लड़ाईयां लड़ रहे थे. ये कोरिया में भी हुआ. नॉर्थ कोरिया में सोवियत संघ का प्रभाव था, जबकि साउथ में अमेरिका का. समय के साथ दोनों के रास्ते अलग होते गए. उन्हें एक करने की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं. आख़िरकार, 1948 में कोरियन पेनिनसुला आधिकारिक तौर पर दो हिस्सों में बंट गया. 15 अगस्त को साउथ कोरिया, जबकि 09 सितंबर को उत्तर कोरिया की स्थापना हुई.

जिस समय कोरिया में राजनैतिक उठापटक चल रही थी, उस समय मून अपनी सीखें बांचने की तैयारी कर रहा था. उसने ईसाईयों के ग्रुप्स में अपने पंथ के बारे में बताया. उन्होंने उसे नकार दिया. इसके बावजूद उसने प्रचार जारी रखा. नॉर्थ कोरियाई अधिकारी इससे नाराज़ हो गए. उन्होंने अराजकता फैलाने के आरोप में मून को गिरफ़्तार कर लिया. उसे पांच साल के लिए जेल भेज दिया गया.

मून की सज़ा के बीच में ही कोरिया वॉर शुरू हो गया. इससे मून का फायदा हो गया. उसे जेल से आज़ाद करा लिया गया. जेल से छूटने के बाद मून साउथ कोरिया भाग गया. कोरिया वॉर 1953 तक चला. उसके बाद संघर्षविराम हो गया. 1954 में मून ने साउथ कोरिया में होली स्पिरिट एसोसिएशन फ़ॉर द यूनिफ़िकेशन ऑफ़ वर्ल्ड क्रिश्चेनिटी यानी यूनिफ़िकेशन चर्च की बुनियाद रखी. मून ने एक नए पंथ की शुरुआत की थी. उस समय साउथ कोरिया के अख़बारों में ये ख़बर छपती थी कि यूनिफ़िकेशन चर्च में सामूहिक सेक्स पार्टी आयोजित की जाती है. ये भी कहा गया कि मून के तार नॉर्थ कोरिया की खुफिया एजेंसी से भी जुड़े हैं. मून को कुछ समय के लिए जेल में बंद कर दिया गया.

1958 में उसने अपने प्रचारकों को जापान रवाना किया. वहां उन्हें अच्छा-खासा समर्थन मिला. यूनिफ़िकेशन चर्च सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए पिरामिड स्कीम के तहत काम करता था. वो अपने मेंबर्स को और लोग लाने के लिए कहता था. ये स्कीम काम कर गई और चर्च के समर्थकों की संख्या लाखों में पहुंच गई.

जापान में कम्युनिज्म के ख़िलाफ़ गुस्से का माहौल था. मून ने इसका फायदा उठाया. उसने जापान के नेताओं से करीबी बढ़ाई. शिंज़ो आबे के नाना नोबुस्के किशि 1957 से 1960 के बीच जापान के प्रधानमंत्री रहे. इसी समय यूनिफ़िकेशन चर्च जापान में अपनी जड़ें जमा रहा था. कहा जाता है कि मून और किशि बेहद करीबी दोस्त थे और सरकार ने चर्च को स्थापित होने में दिल खोलकर मदद की थी.

1960 के दशक में मून ने अपने चर्च का विस्तार अमेरिका तक किया. 1980 के दशक तक दुनियाभर में यूनिफ़िकेशन चर्च के 30 लाख से अधिक मेंबर्स हो चुके थे. यूनिफ़िकेशन चर्च सामूहिक शादियां करवाकर काफ़ी फ़ेमस हुआ. स्टेडियम्स में एक-एक बार में हज़ारों जोड़ों की शादियां करवाई जातीं थी. इनमें शामिल होने वाले अधिकतर जोड़े ऐसे होते थे, जो पहले से एक-दूसरे को नहीं जानते थे. उनसे कहा जाता था कि ऐसा करने से उनके सारे पाप कट जाएंगे. उसके बाद उन जोड़ों से जो बच्चे पैदा होंगे, वे शुद्ध होंगे, नैतिक होंगे, उनकी नस्ल सबसे बेहतर होगी.

जैसे-जैसे ये ग्रुप चर्चित हुआ, उसी अनुपात में ये कुख़्यात भी होने लगा. इस ग्रुप से जुड़ी धांधलियों के क़िस्से सामने आने लगे. चर्च के बिजनेस और नए सदस्यों की भर्ती पर सवाल उठने लगे. 1982 में मून पर अमेरिका में टैक्स फ़्रॉड का केस चला और फिर 18 महीनों की सज़ा भी हुई.

सन यांग मून (फोटो-TWITTER)

मून के साथ काम करने वाले लोगों ने भी चर्च से अलग होकर किताबें लिखीं. इसमें उन्होंने मून के तिकड़मों का पर्दाफाश किया. उन्होंने बताया कि लोगों को धोखे में रखकर उन्हें चंदा देने के लिए मजबूर किया गया. लोगों को सपना दिखाया जाता कि फलानी चीज का इस्तेमाल करने से उनकी किस्मत बदल जाएगी. उन्हें कभी सपने तो कभी डर दिखाकर चर्च को पैसे देने के लिए मजबूर किया गया.

2012 में सन यांग मून की मौत हो गई. उसके बाद चर्च के उत्तराधिकार को लेकर लड़ाई होने लगी. मून के एक बेटे ने अपना एक अलग पंथ शुरू कर दिया.

यूनिफ़िकेशन चर्च आज भी ऐक्टिव है. लेकिन उसके समर्थकों की असली संख्या पता नहीं है. हालांकि, इतना ज़रूर है कि डोनाल्ड ट्रंप और माइक पेंस जैसे नेता चर्च के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहते हैं. 2021 में शिंज़ो आबे ने भी चर्च के एक प्रोग्राम में पेड स्पीकर के तौर पर हिस्सा लिया था.

एक तरफ़ यूनिफ़िकेशन चर्च ख़ुद को प्रासंगिक बनाने की लड़ाई लड़ रहा है, दूसरी तरफ़ पीड़ित लोग मुआवजे के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. कई मामलों में पीड़ितों को मुआवजा मिला भी है.

ऐसा ही केस तेत्सुया यामागामी का भी है.

शिंज़ो आबे की हत्या से एक दिन पहले यामागामी ने एक ब्लॉगर को चिट्ठी भेजी थी. इसमें उसने यूनिफ़िकेशन चर्च की करतूतों के बारे में बताया था. यामागामी का जन्म एक अमीर और समृद्ध परिवार में हुआ था. यामागामी जब चार साल का था, तभी उसके पिता ने आत्महत्या कर ली थी. 1991 में उसकी मां ने यूनिफ़िकेशन चर्च जॉइन किया. उसने अगले कुछ सालों में लगभग छह करोड़ रुपये चर्च को दान में दिए. इसमें यामागामी के पिता के लाइफ़ इंश्योरेंस और ज़मीन बेचकर मिले पैसे भी थे. चर्च के प्यार में डूबी मां 2002 तक दिवालिया हो चुकी थी. उनके पास रहने के लिए घर तक नहीं बचा था. इसके चलते यामागामी को बीच में ही कॉलेज छोड़ना पड़ा. उसी समय से चर्च के प्रति उसकी नफ़रत बढ़ती गई.

2019 में उसने यूनिफ़िकेशन चर्च के मुखिया को मारने की कोशिश की थी. लेकिन वो इसमें कामयाब नहीं हो सका. शिंज़ो आबे पर हमले से एक दिन पहले उसने चर्च से जुड़ी एक बिल्डिंग पर भी गोली चलाई थी. वो आबे से इसलिए नाराज़ था, क्योंकि वो लगातार चर्च के कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे थे और उसमें चर्च की बड़ाई भी करते थे. उसका मानना था कि उसकी मां के भटकाव में आबे जैसे नेताओं का भी हाथ था. इसी वजह से वो उनसे खुन्नस खाता था.

शिंज़ो आबे की मौत के बाद जापान में चर्च की जांच शुरू हुई. इसमें सामने आया कि सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) के 80 से अधिक सांसद यूनिफ़िकेशन चर्च से जुड़े हैं. पार्टी के पॉलिसी चीफ़ ने जुलाई महीने में सीक्रेटली चर्च की एक फ़ैसिलिटी का दौरा किया था.

आज हम ये कहानी क्यों सुना रहे हैं?

दरअसल, लगातार हो रहे खुलासों के बीच जापान सरकार ने चर्च के पीड़ितों का साथ देने का फ़ैसला किया है. 18 अगस्त को जस्टिस मिनिस्ट्री, कैबिनेट सचिवालय, नेशनल पुलिस एजेंसी और कंज़्यूमर्स अफ़ेयर्स एजेंसी के बीच मीटिंग हुई. इसमें पीड़ितों को मुआवजा दिलाने और उनकी मदद दिलाने के लिए कैंपेन शुरू करने पर सहमति बनी. ये कैंपेन सितंबर 2022 में शुरू कर दिया जाएगा. 1987 के बाद से 35 हज़ार से अधिक पीड़ित अपने साथ हुए अन्याय को लेकर सलाह-मशविरा कर चुके हैं. सरकारी कैंपेन के बाद इस संख्या में बढ़ोत्तरी होने की संभावना है. हालांकि, उन्हें न्याय कब तक मिलता है, ये देखना दिलचस्प होगा.

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