बाइडन से पहले सीक्रेट एजेंट्स भारत में क्या कर गए?
बाइडन के आने से पहले सीक्रेट सर्विस क्या कर रही है?
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G20 लीडर्स समिट का सबसे बड़ा सस्पेंस खत्म हो चुका है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भारत आने को लेकर संशय बना हुआ था. 04 सितंबर को चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा, राष्ट्रपति नहीं जा रहे. उनकी जगह प्रीमियर ली चियांग हिस्सा लेंगे.
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहले ही G20 में आने से मना कर चुके हैं. अब बात उनकी, जो दो दिन पहले आ रहे हैं और, जिनके आने की तैयारी 03 महीने पहले से शुरू हो चुकी है. हम अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन की बात कर रहे हैं. लीडर्स समिट 09 सितंबर से शुरू हो रही है. मगर बाइडन 07 सितंबर को ही नई दिल्ली पहुंच जाएंगे. वो समिट से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मीटिंग भी करेंगे.
तो आइए हम जानते हैं,
- बाइडन के भारत दौरे में क्या होने वाला है?
- अमेरिका के राष्ट्रपति की सिक्योरिटी कौन देखता है?
- और, बाइडन के आने से पहले क्या तामझाम हो रहा है?
07 सितंबर 2023 को जैसे ही एयरफ़ोर्स वन नई दिल्ली में लैंड करेगा, जो बाइडन भारत के दौरे पर आने वाले आठवें अमेरिकी राष्ट्रपति बन जाएंगे. जिस भी प्लेन में अमेरिका के राष्ट्रपति सफर करते हैं, उसे एयरफ़ोर्स वन का दर्जा दे दिया जाता है.
एयरफ़ोर्स वन की कहानी आगे बताएंगे. पहले ये जान लेते हैं कि बाइडन से पहले कौन से यूएस प्रेसिडेंट भारत आ चुके हैं?
- पहले थे, ड्वाइट डी. आइजेनहॉवर.
दिसंबर 1959 में आए थे. तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से मुलाक़ात की थी. संसद के संयुक्त सत्र को सभी संबोधित किया.
- अगला दौरा 10 बरस बाद हुआ. अगस्त 1969 में.
रिचर्ड निक्सन 23 घंटों के लिए भारत आए थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और कार्यवाहक राष्ट्रपति मोहम्मद हिदायतुल्लाह से मुलाक़ात की.
निक्सन के दौरे के बाद भारत-अमेरिका के संबंध खराब ही हुए. 1971 के युद्ध में अमेरिका ने पाकिस्तान को सपोर्ट किया. 1974 में भारत ने पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया. इसने अमेरिका को नाराज़ कर दिया.
- लिस्ट में अगला नाम जिमी कार्टर का है. वो जनवरी 1978 में आए थे. प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई से मिले. संसद को भी संबोधित किया. परमाणु अप्रसार संधि पर दस्तखत के लिए भारत पर दबाव बनाया. मगर भारत नहीं झुका. उसी दौरान कार्टर गुड़गांव के एक छोटे से क़स्बे दौलतपुर नसीराबाद घूमने गए. कहानी चलती है कि दूसरे विश्वयुद्ध के टाइम जिमी कार्टर की मां उस गांव में रहीं थीं. दौरे के बाद गांव का नाम बदलकर कार्टरपुरी कर दिया गया.

- जिमी कार्टर के बाद किसी अमेरिकी राष्ट्रपति का अगला भारत दौरा 2000 में हुआ. 1998 में दूसरे परमाणु परीक्षण के भारत-अमेरिका संबंधों में खटास आ गई थी. क्लिंटन ने तनाव कम करने की कोशिश की. वो एक हफ़्ते तक भारत में रहे थे. नई दिल्ली के अलावा आगरा, जयपुर, हैदराबाद और मुंबई भी गए. संसद को भी संबोधित किया.
- अगला नाम जॉर्ज डब्ल्यु बुश का है. मार्च 2006 में आए थे. यूएस-इंडिया सिविल न्युक्लियर डील पर साइन हुआ.
- बराक ओबामा दो दफा भारत के दौरे पर आने वाले इकलौते अमेरिकी राष्ट्रपति हैं.

पहली दफा नवंबर 2010 में आए थे. डॉक्टर मनमोहन सिंह के कार्यकाल में. दूसरी दफा जनवरी 2015 में आए. नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में. 26 जनवरी के मौके पर चीफ़ गेस्ट बनाकर बुलाया गया था.
- डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्यकाल के अंतिम बरस में भारत आए थे. फ़रवरी 2020 में.
अहमदाबाद में नमस्ते ट्रंप रैली में हिस्सा लिया था.
और, अब इस लिस्ट में जो बाइडन का नाम जुड़ने जा रहा है.
उनका शेड्यूल क्या है?
- 07 सितंबर को नई दिल्ली में लैंड करेंगे.
- 08 सितंबर को पीएम मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक करेंगे. क्लीन एनर्जी, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में अलग-अलग देशों की भूमिका, ग़रीबी समेत कई समस्याओं पर चर्चा होगी.
- 09 और 10 सितंबर को G20 लीडर्स समिट में हिस्सा लेंगे. वाइट हाउस के मुताबिक, रूस-यूक्रेन युद्ध का मुद्दा बाइडन की प्राथमिकता है.
- 10 सितंबर को ही बाइडन वियतनाम के लिए निकल जाएंगे.
ये तो हुआ शेड्यूल. अब ताक़त और उसको बचाकर रखने की बात.
इसमें कोई शक़ नहीं है कि अमेरिका के राष्ट्रपति दुनिया के सबसे ताक़तवर शख़्स हैं. सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, सबसे ज़्यादा मिलिटरी बेस, सबसे अधिक परमाणु बम, सबसे ताक़तवर सेना जैसे कई मानक अमेरिका को टॉपर बनाते हैं. सरकार और राष्ट्र का मुखिया होने के नाते राष्ट्रपति इनके प्रतिनिधि होते हैं. इसलिए, उनकी सुरक्षा की व्यवस्था भी टॉप क्लास की होती है. हालांकि, हमेशा से ऐसा नहीं था. अमेरिका की आज़ादी के कई दशकों बाद तक राष्ट्रपति को कोई विशेष सुरक्षा नहीं दी जाती थी. वे बिना किसी पुलिस के पार्क में टहला करते थे.
1963 में जॉन एफ़ केनेडी की हत्या के बाद बने वॉरेन कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा,
‘रिपब्लिक के शुरुआती दिनों में राष्ट्रपति की सुरक्षा या उन्हें बचाने को लेकर कोई तय नियम-कायदा नहीं था. कई मौकों पर उन्हें गाली-गलौज और धमकियों का सामना भी करना पड़ता था. लेकिन उन्होंने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया और बिना पुलिस के घूमते रहे. थॉमस जैफ़रसन शपथग्रहण के दिन बिना किसी प्रोटेक्शन के गए थे. 1805 में वॉशिंगटन के मेयर ने राष्ट्रपति की सिक्योरिटी में एक हेड कॉन्सटेबल और 40 डिप्टी कॉन्सटेबल लगाया था.'
फिर 1861 में अमेरिका में सिविल वॉर शुरू हुआ. उस टाइम राष्ट्रपति और वाइट हाउस की सुरक्षा मिलिटरी के पास थी. इसके बावजूद 1865 में अब्राहम लिंकन की हत्या हो गई. अभी तक के इतिहास में अमेरिका के 04 राष्ट्रपतियों की हत्या हो चुकी है. लिंकन के बाद 1881 में जेम्स गारफ़ील्ड, 1901 में विलियम मैक्किन्ले और 1963 में जॉन एफ़ केनेडी. इसके अलावा, कई प्रेसिडेंट्स पर जानलेवा हमले भी हो चुके हैं. लेकिन उन्हें समय रहते बचा लिया गया. हरेक हमले के बाद सिक्योरिटी सख़्त और मज़बूत होती गई.
फिलहाल, अमेरिका के राष्ट्रपति की सिक्योरिटी सीक्रेट सर्विस संभालती है. इनकी कहानी क्या है?
- स्थापना जुलाई 1865 में हुई थी. वित्त मंत्रालय के अधीन.
इनका काम था, फ़ेक करेंसी, फ़ेक स्टाम्प और सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने वाले फ़्रॉड्स को रोकना.
- फिर आया 1894 का साल. सीक्रेट सर्विस कुछ जुआरियों के पीछे लगी थी. तभी पता चला कि राष्ट्रपति ग्रोवर क्लीवलैंड की हत्या की साज़िश रची जा रही है. एजेंसी ने पार्ट-टाइम राष्ट्रपति को सुरक्षा दी.
- सितंबर 1901 में एक बड़ी घटना घटी. एक रिसेप्शन में राष्ट्रपति विलियम मैक्किन्ले को गोली मार दी गई. आठ दिन बाद उनकी मौत हो गई. तब संसद ने सीक्रेट सर्विस से दरख़्वास्त की.
- 1902 से अमेरिका के राष्ट्रपति और वाइट हाउस की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी उनके पास आ गई. आर्थिक अपराधों की जांच की ज़िम्मेदारी उनके पास बनी रही.
अभी क्या स्थिति है?सीक्रेट सर्विस में लगभग 3200 स्पेशल एजेंट्स हैं. 13 सौ से अधिक वर्दीधारी गार्ड्स वाइट हाउस, ट्रेजरी बिल्डिंग और विदेशी दूतावासों की सुरक्षा करते हैं. 02 हज़ार से अधिक लोग टेक्निकल काम संभालते हैं.
सीक्रेट सर्विस किन-किनको सिक्योरिटी देती है?
- अमेरिका के राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और उनके एब्सेंस में संबंधित पद पर बैठने वाले व्यक्तियों और उनके परिवार वालों को.
- पूर्व राष्ट्रपति और उनके पार्टनर को. अगर पार्टनर दूसरी शादी कर ले तो सुरक्षा हटा ली जाती है.
- पूर्व राष्ट्रपति के बच्चों को. 16 बरस की उम्र तक.
- अमेरिका के दौरे पर आने वाले विदेशी नेताओं को.
- होमलैंड सिक्योरिटी की तरफ़ से तय कार्यक्रमों को.
- और, वैसे लोगों को जिन्हें सुरक्षा देने का आदेश राष्ट्रपति की तरफ़ से आए.
इन सबके अलावा, सीक्रेट सर्विस राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के सबसे प्रबल दावेदारों और उनके पार्टनर्स की सिक्योरिटी भी संभालती है.
सीक्रेट सर्विस के एजेंट्स के पास क्या अधिकार होते हैं?- हथियार लेकर चल सकते हैं.
- वॉरंट के आधार पर गिरफ़्तारी कर सकते हैं.
- ज़रूरत पड़ने पर बिना वॉरंट के भी किसी को अरेस्ट कर सकते हैं.
- अपराधियों को पकड़ने के लिए इनाम की घोषणा कर सकते हैं.
- और, कानून के हिसाब से जो ड्यूटीज़ मिली हों, उनका पालन करना होता है.
राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की सिक्योरिटी के लिए एजेंट्स तय होते हैं. वे दोनों सुरक्षा लेने से मना भी नहीं कर सकते. बाकी लोग चाहें तो ना कह सकते हैं.
सीक्रेट सर्विस का काम तब कई गुना बढ़ जाता है, जब इन दोनों में से कोई विदेश दौरे पर निकलता है. उन्हें उस देश और लोकेशन के हिसाब से सेटअप तैयार करना होता है.
जैसे कि अभी बाइडन के भारत आने की चर्चा है. उनके लिए सीक्रेट सर्विस ने तीन महीने पहले से ही तैयारी शुरू कर दी थी.
सबसे पहले आता है एडवांस सर्वे ग्रुप (ASG). जिस भी देश का दौरा हो, वहां 03 महीने पहले पहुंच जाता है. इसमें सीक्रेट सर्विस, मिलिटरी, वाइट हाउस के लोग और प्रेसिडेंट के स्पेशल एजेंट होते हैं.
ये एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल, एयरपोर्ट मेनेजर और दूसरे संबंधित लोगों से मीटिंग करते हैं. उनके साथ रूट, लैंडिंग, एयरपोर्ट सिक्योरिटी जैसे मसलों पर सहमति बनाई जाती है.
ASG वाले लोकल पुलिस और जांच एजेंसियों के संपर्क में भी रहते हैं. हर संभावित ख़तरे को देखा-परखा जाता है.
फिर आता है रवानगी का टाइम.
अमेरिका के राष्ट्रपति का ठिकाना है, वाइट हाउस.
राष्ट्रपति की सवारी एंड्रू एयरफ़ोर्स बेस पर रहती है.
ये दूरी हेलिकॉप्टर से तय की जाती है. जिस हेलिकॉप्टर में राष्ट्रपति सफर करते हैं, उसका कोड मरीन वन है. चकमा देने के लिए मरीन वन के साथ हुबहू किस्म के दो-तीन हेलिकॉप्टर और उड़ान भरते हैं. मरीन वन के साथ-साथ एक एस्कॉर्ट एयरक्राफ़्ट भी चलता है.
राष्ट्रपति के बैठते ही प्लेन का नाम एयरफ़ोर्स वन बन जाता है.
ये प्लेन बोइंग ने बनाया है. स्पेशल ऑर्डर पर.
इसकी खासियत क्या है?
- प्लेन की बॉडी न्युक्लियर हमले को झेल सकती है.
- एक बार टैंक फ़ुल होने पर 12 हज़ार किलोमीटर से अधिक दूरी तय कर सकता है.
- एयरफ़ोर्स वन में हवा में ही ईंधन भरा जा सकता है. यानी, आपात स्थिति में इसे नीचे उतरने की ज़रूरत नहीं है.
- प्लेन में कमांड सेंटर भी बना है. अमेरिका पर हमले की स्थिति में राष्ट्रपति हवा से ही सेना को कमांड दे सकते हैं.
इसी वजह से एयरफ़ोर्स वन को हवा में उड़ता हुआ वाइट हाउस भी कहते हैं.
जिस देश में एयरफ़ोर्स वन उतरता है, वहां वो रनवे पर ही खड़ा रहता है. ये कुछ सेकेंड्स के भीतर ही दोबारा उड़ने के लिए तैयार होता है.
राष्ट्रपति का प्लेन लैंड होने के कुछ समय पहले उसी कद-काठी का दूसरा प्लेन भी लैंड कराया जाता है. इसे सीक्रेट लोकेशन पर रखा जाता है. अगर पहले में कोई ख़राबी आ जाए तो दूसरे का इस्तेमाल किया जाता है.
एयरफ़ोर्स वन से उतरने के बाद प्रेसिडेंट काले रंग की लिमोजिन कार में सफर करते हैं. इसे ‘द बीस्ट’ के नाम से जाना जाता है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, कार की बॉडी बुलेटप्रूफ़ होती है. कार के अंदर प्रेसिडेंट के लिए ब्लड बैंक भी बना होता है. सेटेलाइट फ़ोन लगा होता है. टायर्स ऐसे डिजाइन किए जाते हैं कि फ़्लैट होने पर भी कार चलती रहे. सीक्रेट सर्विस ये भी तय करती है कि कोई भी ट्रॉमा हॉस्पिटल 10 मिनट से ज़्यादा दूरी पर ना हों. हर अस्पताल में एजेंट्स तैनात होते हैं. 1963 में केनेडी की हत्या के बाद राष्ट्रपति के खुली गाड़ी में चलने पर रोक लगा दी गई.
इन सबके अलावा, राष्ट्रपति के होटल और कार्यक्रम वाली जगह पर भी विशेष इंतज़ाम किए जाते हैं. सीक्रेट सर्विस का पूरा फ़ोकस आपात स्थिति में राष्ट्रपति को सुरक्षित बाहर निकालने पर रहता है.
ये जो जानकारी हमने आपको दी, ये सब पब्लिक डोमेन में उपलब्ध हैं. बाकी सीक्रेट्स तो सीक्रेट सर्विस ही जाने.