भगीरथ के परदादा के 60 हजार भाइयों (रिश्तों में मत जाइए, इट्स कॉम्प्लिकेटेड) को कपिल मुनि ने अपनी शक्ति से भस्म कर दिया था. फिर भगीरथ के दादा यानी अंशुमान ने कपिल को पूजा वूजा करके मनाया तो कपिल मुनि बोले कि इन जले हुए लोगों की राख को अगर गंगाजल में डुबोएं, तभी उन्हें मुक्ति मिलेगी. पर गंगा तो स्वर्ग में रहती थीं. जब अंशुमान और उनके बेटे दिलीप से वो धरती पर आने के लिए न मानीं, तब भगीरथ ने कहा कि हम भी अपना लक ट्राई करते हैं.
भगीरथ ने बहुत बड़ी तपस्या की और गंगा जी प्रकट हुईं. भगीरथ ने उनसे धरती पर आने की रिक्वेस्ट की. गंगा जी ने कहा- मैं आ तो जाऊं, पर अगर मेरे धरती पर गिरते ही मुझे किसी ने कैच नहीं किया तो मैं धरती फोड़कर पाताल में घुस जाउंगी. तब भगीरथ ने शंकर भगवान से कहा कि महादेव आप आप गंगा जी को कैच कर लें तो वो धरती पर आने के लिए मान जाएंगी. शंकर भगवान ने भगीरथ की तपस्या से खुश हो कर कहा: श्योर, व्हाई नॉट!
गंगा के धरती पर आने के बाद भगीरथ ने अपना रथ दौड़ाया. भगीरथ के पीछे-पीछे गंगा जी चल पड़ीं. जहां जहां गंगा जी गईं, वो जगह पवित्र होती गई. अंत में वो उस जगह पहुंचीं जहां भगीरथ के पुरखों की राख थी और उन्हें मुक्त कराया.
(श्रीमद्भागवत महापुराण, नौवां स्कंध, आठवां अध्याय)