जिग्नेश मेवानी, जिनके बुलावे पर गुजरात में इकट्ठा हुए 20 हजार दलित
ऊना में हुए कांड के बाद गुजरात में दलित आक्रोशित हैं. उनको एक सूत्र में पिरोकर आंदोलन खड़ा करने का सपना है.
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फोटो - thelallantop
दलितों के साथ भेदभाव, जिम्मेदार कौन?
जिग्नेश बताते हैं कि सबसे पहले तो समाज. समाज में अभी तक बराबरी की भावना नहीं आई है. फिर राजनीति. जो दलितों का इस्तेमाल सिर्फ सत्ता पाने के लिए करती है. बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों ने दलितों को ठगा. कुछ हफ्ते पहले कांग्रेस शासित कर्नाटक में दलितों को पीटा गया. बीजेपी शासित गुजरात और महाराष्ट्र में यही हुआ. नीतीश के बिहार में दलित पर पेशाब किया गया.जिग्नेश ने फिगर बताया. कि 2014 में जबसे बीजेपी सत्ता में आई, दलितों के साथ हिंसा में 44 परसेंट की बढ़त हुई. 2014 में बीजेपी शासित चार स्टेट्स राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ में टोटल क्राइम का 30 परसेंट दलितों के साथ हुआ. वो कहते हैं कि बीजेपी की हिंदुत्व वाली आइडियोलॉजी में दलित कहीं फिट नहीं होते. हिंदुत्व पूरी तरह से दलितों के खिलाफ है.कहा कि प्राइम मिनिस्टर नरेंद्र मोदी जब दलित आइकन भीमराव अंबेडकर की बात अमेरिका के हाउस ऑफ कांग्रेस में करते हैं, तो यहां दलितों के खिलाफ हो रही हिंसा रोकने के लिए कुछ क्यों नहीं करते. दलित परेशान हैं, गुस्से में हैं. हां, बेशक कुछ काम हुए. मंत्रियों की कैबिनेट में दलित बढ़ाए. स्मृति इरानी का डिमोशन किया, रोहित वेमुला केस की वजह से. मायावती पर भद्दा कमेंट करने वाले दयाशंकर सिंह को पार्टी से बाहर निकाला. लेकिन ये सारा एक्शन घटना होने के बाद लिया जाता है. पहले से क्यों नहीं इसकी व्यवस्था की जाती कि ऐसे जुर्म घटें. ऊना की घटना को इतने दिन हुए, लेकिन उस पर पीएम ने कुछ नहीं बोला. इतिहास में पहली बार है जब दलितों पर 'गौरक्षक', बजरंग दल या ABVP वाले साजिश के तहत एक के बाद एक ऐसे हमले कर रहे हैं. यहां अभी तक ये हाल है कि दलित गधा हांके वो ठीक है. लेकिन उसको घोड़े पर बैठे देखना गंवारा नहीं. ऊना में हुई घटना के बाद लोगों ने अपनी आवाज पहुंचाने के लिए सुसाइड करने के रास्ता निकाला. क्या इससे बुरा कुछ हो सकता है कि कोई जवान आदमी इतने भर के लिए जहर खाए.
कैसे निपटेंगे समस्या से?
जिग्नेश बताते हैं कि लड़ाई लंबी है. ये मूवमेंट सिर्फ सोशल या पॉलिटिकल नहीं है. बल्कि लोगों के अंदर से हीनभावना निकालनी है. उनको समझना होगा कि गंदगी साफ करने का ठेका उनका नहीं है. इसीलिए उनको चमड़ा उतारने या गटर साफ करने से तौबा करने को कहा जा रहा है. उनको समझना है कि उनकी रोजी रोटी का आखिरी साधन यही नहीं है. अहमदाबाद में बाहर से आकर कोई आदमी गोलगप्पा बेच सकता है. लेकिन यहां का दलित गटर में जाने को मजबूर क्यों है?