The Lallantop
Advertisement

वो सीरियल किलर जो औरतों के अंगवस्त्र चुराकर पहनता था

कहानी सीरियल किलर और रेपिस्ट उमेश रेड्डी की जिसने 1990 के दशक में कर्नाटक और आसपास के इलाकों में दहशत फैला रखी थी

Advertisement
umesh Reddy
वर्तमान में उमेश रेड्डी की अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है (तस्वीर: bangaloremirror)
pic
कमल
7 जुलाई 2022 (Updated: 6 जुलाई 2022, 06:35 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

साल 1998, फरवरी की 28 तारीख. आठ साल का सुरेश स्कूल की छुट्टी के बाद दौड़ता हुआ घर पहुंचता है. मां रोज़ दरवाजे पर इंतज़ार में खड़ी रहती थी, वो आज नहीं है. बल्कि सुरेश देखता है कि दरवाज़ा अंदर से बंद है. कई बार खटखटाने के बाद जब कोई जवाब नहीं आता तो सुरेश जोर से मां.. मां चिल्लाता है,. अबकी बार अंदर से हुं की आवाज आती है. लेकिन ये मां की आवाज नहीं थी. दरवाजा खुलता है, सामने अर्धनग्न हालत में मां खिड़की से बंधी है. अंदर एक और आदमी है. सुरेश कुछ पूछ पाए इससे पहले ही वो आदमी कहता है, तुम्हारी मां पर भूत का साया है, इसलिए उसे खिड़की से बांधकर रखा है. आठ साल का सुरेश कुछ समझ पाता इससे पहले ही वो आदमी घर से निकल जाता है, ये कहते हुए कि डॉक्टर को बुलाने जा रहा है. 

घटना के पूरे 7 साल बाद एक और बार सुरेश का इस आदमी से आमना सामना होता है. अदालत में. उमेश रेड्डी नाम का ये आदमी सिर्फ सुरेश की मां का गुनेहगार नहीं था. बल्कि इसकी गिनती उन लोगों में होती थी, जिन्हे सीरियल रेपिस्ट और सीरियल किलर कहा जाता है. अपनी जिंदगी में 18 या शायद उससे भी ज्यादा औरतों का रेप और हत्या करने वाला ये व्यक्ति कौन था, या कहें कि कौन है? जानेंगे आज के एपिसोड में. साथ ही जांनेगे इस केस से जुड़े कुछ सवालों के जवाब.

कैसे उमेश रेड्डी ने 90’s के दशक में कर्नाटक के इलाके में अपनी दहशत फैलाई?
दसियों बार पुलिस के हाथ से बच निकलने के बाद कैसे हुई उसकी गिरफ्तारी?
और क्यों आज यानी साल 2022 तक उमेश को फांसी नहीं मिल पाई?

पुलिसवाला कैसे बन गया सीरियल रेपिस्ट?

90’s के दशक में कर्नाटक में उमेश रेड्डी का ऐसा हाहाकार था कि उसे एक स्पेशल नाम मिला, ‘जैक द रिपर’. मूल रूप से ये नाम 19 वीं सदी में लन्दन में सक्रीय एक सीरियल किलर का था. जिसकी कभी पहचान नहीं हो पाई. रिपर की तरह ही उमेश खूंखार हत्याएं करने के लिए कुख्यात था. ACP अब्दुल अजीम ने उमेश को पहली बार पकड़ा था. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में अज़ीम बताते हैं, उमेश का खौफ कुछ ऐसा था कि उसके जैसा दिखने वाला कोई भी व्यक्ति दिख जाए तो उनके पुलिस स्टेशन की घंटियां घनघना उठती थीं.

2013 में राष्ट्रपति ने उमेश रेड्डी की मां की दया याचिका खारिज कर दी थी. (तस्वीर: bangaloremirror)

उमेश रेड्डी उर्फ़ राजुलू उर्फ़ रमेश उर्फ़ वेंकटेश की पैदाइश साल1969 में कर्नाटक के चित्रदुर्गा जिले में हुई थी. इसके आगे उमेश की जिंदगी को लेकर कुछ साफ़-साफ़ नहीं मिलता सिवाय इसके कि उसने CRPF की नौकरी ज्वाइन की थी और उसकी पहली पोस्टिंग जम्मू कश्मीर में हुई थी. यहां कमांडेट हाउस में गार्ड की ड्यूटी करने के दौरान उसने अपना पहला गुनाह किया. कमांडेंट की बेटी के रेप के प्रयास के चलते उसे गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन वो किसी तरह भागकर वापस कर्नाटक आ गया. इसके बाद 1996 में उसकी नौकरी डिस्ट्रिक्ट आर्म्ड रिजर्व (DAR) में लगी. जाहिर था कि भर्ती के दौरान बैकग्राउंड चेक में गलती हुई थी. 

द हिन्दू अखबार की एक रिपोर्ट के अनुसार उमेश अपने शिकार को चुनने के लिए काफी प्लानिंग करता था. वो सुबह 11 बजे से लेकर शाम 3 बजे के बीच, जब घर में और कोई न हो, तब घर की अकेली गृहणियों को शिकार बनाता था. अक्सर घर में घुसने के लिए वो पानी मांगने या पता पूछने का बहाना बनाता. इसके बाद चाकू की नोक पर वो औरतों का रेप करता और फिर उनकी हत्या कर डालता. कई वारदातों में उसने मृत शरीर के साथ भी रेप किया था. पुलिस में काम करते हुए उमेश को पुलिस के तौर तरीकों का अंदाजा हो गया था. इसलिए हत्या करने के बाद वो औरतों के जेवर लेकर चम्पत हो जाता, ताकि ऐसा लगे कि हत्या लूट के इरादे से की गयी है. जैसा कि अधिकतर सीरियल किलर करते हैं, हत्या के बाद वो एक निशानी भी अपने साथ लेकर जाता यानी मृत महिला के अंडरगारमेंट्स. 

लड़कियों के अंगवस्त्र चोरी करते पकड़ा गया 

रिपोर्ट्स के अनुसार उमेश को पुलिस ने जितनी बार गिरफ्तार किया उसने अपने कपड़ों के अंदर महिलाओं के अंडर गारमेंट्स पहने हुए थे. साल 1996 में नौकरी लगने के चार महीने के अंदर ही उसने एक बार फिर एक लड़की के रेप का प्रयास किया. लड़की इस दौरान स्कूल से घर की ओर जा रही थी. उसने उमेश के सर पर एक पत्थर मारा और वहां से भाग गयी. इसके बाद 6 दिसंबर 1996 को उमेश ने अगली वारदात को अंजाम दिया. उसी मोहल्ले में. उमेश ने 16 साल की एक और लड़की को अपना शिकार बनाया और इस बार वो सफल भी हो गया. इत्तेफाक ऐसा बना कि अगले साल रिपब्लिक डे की परेड के दौरान उस लड़की ने उमेश को पहचान लिया. लड़की की शिकायत पर उमेश को गिरफ्तार कर नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. 

माननीय सर्वोच्च न्यायलय (तस्वीर: Wikimedia Commons)

मार्च 1997 में कोर्ट के आदेश के तहत उमेश को बेल्लारी जेल में ट्रांसफर किया जा रहा था, इस दौरान वो पुलिस को चकमा देकर भाग निकला. इसके बाद उसने बंगलुरु में एक इनकम टैक्स ऑफिसर की पत्नी की हत्या को अंजाम दिया, इसके अलावा उसने अहमदाबाद और बड़ोदा में 3 और लड़कियों को अपना निशाना बनाया. उमेश की अगली गिरफ्तारी आज ही के दिन यानी 7 जुलाई 1997 को हुई थी. पुलिस को उस दौरान शिकायत मिली कि महिलाओं के अंडर गारमेंट्स, जो सुखाने डाले गए थे, चोरी हो जा रहे थे. 

इस मामले में पुलिस ने उमेश को रंगेहाथ पकड़ा तो उसके घर से औरतों के अंडर गारमेंट्स का एक गट्ठर मिला. पुलिस को तब उसने अपना नाम रमेश बताया. पुलिस जब उसे पूछताछ के लिए ले जा रही थी, वो एक बार दोबारा भाग निकला. पुलिस ने अपनी इस लापरवाही को दबाने की कोशिश की. लेकिन तब उमेश के पिता ने खुद इस मामले में हाई कोर्ट में एक पिटीशन डाली, तब जाकर दो पुलिस वालों को बर्खास्त कर रमेश के नाम एक लुक आउट नोटिस जारी किया. पुलिस की कैद से भागकर उमेश लगातार हत्याओं को अंजाम देता रहा. 28 फरवरी 1998 को उसने जयश्री सुब्बैया नाम की एक औरत को उसके घर में रेप कर मार डाला. ये वही केस है जिसके बारे में हमने आपको शुरुआत में बताया था.

कई बार हुआ फरार 

इस वारदात के कुछ ही दिनों के बाद उमेश ने एक और औरत के रेप की कोशिश की. लेकिन इस बार औरत ने हल्ला मचा दिया, और भागने के चक्कर में उमेश ने पहली मंजिल से नीचे छलांग लगा दी. इस चक्कर में उमेश का पैर मुड़ गया और पड़ोसियों ने उसे पकड़ कर पुलिस के हवाले कर दिया. 1999 में उमेश एक बार फिर पुलिस की कैद से भागने में सफल हुआ. उसे दुबारा पकड़ा गया. इसके बाद साल 2002 में उसने एक और बार भागने में सफलता हासिल की. एक दूसरे मामले में पुलिस उसे बस से बेल्लारी से बंगलुरु ले जा रही थी. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार उसे बस से ले जाय जा रहा था, जब उसने साथ चल रहे पुलिसवालों को शराब और चिकन खिलाकर दोस्ती कर ली. इसके बाद बस एक ढाबे पर रुकी, यहां उसने पेशाब बहाना बना कर पुलिस से हथकड़ी खोलने को कहा और फरार हो गया. अगले दो महीनों ने उमेश ने पुणे सहित आसपास के इलाकों में तीन लड़कियों का रेप कर उनकी हत्या की.

साल 1997 में पहली बार गिरफ्तार होने के बाद उमेश कई बार फरार होने में सफल रहा (तस्वीर: daijiworld)

17 मई 2002 को उमेश एक बार फिर पुलिस के हाथ लगा. उस दिन उमेश एक ट्रेन पकड़कर बंगलुरु पहुंचा था. यहां उसने यशवंतपुर रेलवे स्टेटशन के क्लोकरूम में अपना सामान रखा और करीब 8 बजे पास के एक सलून में बाल कटाने पहुंचा. इस दौरान एक ऑटोरिक्शा ड्राइवर ने अखबार में उसकी तस्वीर देख उसे पहचान लिया और तुरंत पुलिस को इत्तिला कर दी. इस बीच उमेश सलून ने निकलकर वापस रेलवे स्टेशन की ओर बढ़ा, जहां पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. ये उमेश की आख़िरी गिरफ्तारी थी.

स्टेशन में जब उमेश का सामान खंगाला गया तो वहां से पुलिस को औरतों के अंडर गारमेंट्स मिले. इसके अलावा उसके बैग से साड़ी, ब्लाउज़ सहित औरतों के और भी कपड़े मिले. बाद में पुलिस ने खुलासा किया कि उमेश एक क्रॉसड्रेस्सर है. यानी ऐसा व्यक्ति जो विपरीत लिंग के कपड़े पहनना पसंद करता है. उमेश पर कुल 18 महिलाओं की हत्या का इल्जाम था. लेकिन इनमें से सिर्फ 9 मामलों में उसे सजा हो पाई. बाकी मामलों में पुलिस के पास पर्याप्त सबूत नहीं थे. 26 अक्टूबर 2006 को बंगलुरु फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई. अदालत में उमेश ने बयान दिया कि वो पैसों की खातिर ये सब कर रहा था ताकी अपनी मां का इलाज करा सके, लेकिन अदालत ने माना कि पुलिस की गिरफ्त से बार-बार फरार होकर उसने हत्याओं को अंजाम दिया, इसका मतलब ये था कि उसे अपने किए का कोई पछतावा नहीं है. चूंकि फांसी का मामला था, इसलिए केस हाई कोर्ट पहुंचा.

तारीख पर तारीख 

अक्टूबर 2007 में कर्नाटक उच्च न्यायालय की डिविज़न बेंच ने इस मामले को सुना, लेकिन इस केस में दोनों जजों की राय भिन्न थी. इसके बाद मामले को तीन जजों की बेंच के पास ले ज़ाया गया, जहां बहुमत से फांसी की सजा बरकरार रखी गई. 1 फ़रवरी, 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में हाई कोर्ट के फ़ैसले को बरकरार रखा. इसके बाद उमेश ने राष्ट्रपति के आगे क्षमा याचना की अपील की. 2013 में वो भी ख़ारिज हो गई. 2016 में उसने एक और पिटिशन डाली. जिसे सुप्रीम कोर्ट ने फिर रिजेक्ट कर दिया.

माननीय कर्नाटक उच्च न्यायलय (तस्वीर: Wikimedia Commons) 

इसके बाद उमेश की फांसी का रास्ता लगभग साफ़ हो गया था, लेकिन उसने मानसिक रूप से विक्षिप्त होने का दावा कर हाई कोर्ट में एक और अपील दायर की. सितम्बर 2021 में इसे भी रद्द कर दिया गया. आपके मन में एक सवाल उठ सकता है उमेश को इतनी बार कोर्ट जाने का मौका क्यों मिल रहा है. तो इसके पीछे क़ानून और न्याय की मूल अवधारणा है. आम तौर पर न्याय का अर्थ बदला लेने से ले लिया जाता है. लेकिन क़ानून और सजा का सिस्टम इसलिए नहीं बनाया गया है कि मुजरिम से बदला लिया जा सके. सजा का प्रावधान इसलिए बनाया गया है ताकि अपराधी सजा के दौरान खुद में बदलाव और सुधार लाकर दुबारा समाज में शामिल हो सकें. अनूप सुरेन्द्रनाथ नेशनल लॉ स्कूल दिल्ली में सेंटर ऑन डेथ पेनल्टी के डायरेक्टर हैं. द न्यूज़ मिनट से हुई बातचीत में अनूप बताते है,

“मृत्यु दंड के बारे में एक बात जो ग़लत समझी जाती है वो ये है कि इसमें सजा का फ़ैसला कृत्य की वीभत्सता के आधार पर तय होता है, जबकि ऐसा नहीं है. फांसी के केस में राज्य को अदालत के सामने ये साबित करना होता है कि मुजरिम में बदलाव या सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है”

बहरहाल वर्तमान यानी साल 2022 में उमेश की अपील सर्वोच्च न्यायलय में लंबित है, और अदालत के फैसले के बाद ही उसे फांसी होगी. 

वीडियो देखें- क्वांटम थियरी की नींव रखने वाले सत्येंद्र नाथ बोस की कहानी

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement