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जब गृहमंत्री की बेटी को छुड़ाने के लिए सरकार को छोड़ने पड़े थे खूंखार आतंकी

क्या मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण कोई राजनीतिक साजिश थी?

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रुबिया की रिहाई के बाद एयरपोर्ट पर मुफ़्ती मोहम्मद सईद और महबूबा मुफ़्ती (फोटो सोर्स- ट्विटर)
8 दिसंबर 2021 (Updated: 7 दिसंबर 2021, 02:29 IST)
Updated: 7 दिसंबर 2021 02:29 IST
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साल 1989 की बात है. देश में नई सरकार बने एक हफ्ता भी पूरा नहीं होता है और केन्द्रीय गृहमंत्री की बेटी का अपहरण हो जाता है. अस्पताल में अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद घर वापस जाते वक़्त. किसी को कोई खबर नहीं होती. गनपॉइंट पर जिस ट्रांजिट वैन से लड़की को उतारा गया, उसका ड्राइवर भी किसी को कुछ नहीं बताता. तभी एक लोकल न्यूज़पेपर के ऑफिस में एक कॉल आती है. कॉल करने वाला कहता है- हमने देश के गृहमंत्री की बेटी का अपहरण कर लिया है. इसके बाद कॉल पर अपहरणकर्ता अपनी डिमांड बताते हैं और कश्मीर से लेकर दिल्ली तक अफरा-तफरी मच जाती है. सबको पता है कि अगर ये डिमांड पूरी की गयी तो ये देश पर कितनी भारी पड़ सकती है.
किसने किया था ये अपहरण? अपहरणकर्ताओं ने क्या डिमांड की थी? और सरकार ने इसे कैसे हैंडल किया? आइए जानते हैं. #JKLF और कश्मीर की आज़ादी कोई पूछे कि ‘कश्मीर मांगे आज़ादी.’ का नारा किसने लगाया? तो हाल-फ़िलहाल के नामों से बात शुरू होगी और राष्ट्रवाद बनाम अलगाववाद की लंबी चर्चा छिड़ जाएगी. लेकिन जब पहली बार कश्मीर की आज़ादी के नारे लगे थे, तब ऐसे नारे लगाने वालों में सबसे पहला नाम मकबूल भट्ट का था. जो न तो कश्मीर के भारत में विलय पर राजी था और न पकिस्तान में. मकबूल कश्मीर को आज़ाद रखना चाहता था. पेशावर यूनिवर्सिटी से इतिहास और पॉलिटिकल साइंस में मास्टर्स करने के बाद कुछ वक़्त के लिए मकबूल बर्मिघम रहने गया, इसी दौरान उसने एक मिलिटेंट आर्गेनाईजेशन बनाया- नाम रखा JKLF, यानी जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट.
1966 में मकबूल जब वापस कश्मीर आया तो यहां उसकी पुलिस से मुठभेड़ हुई. मुठभेड़ में मकबूल का साथी औरंगजेब मारा गया और मकबूल को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. एक क्राइम ब्रांच ऑफिसर अमर चंद भी शहीद हुए. मकबूल पर कोर्ट में मामला चला और फांसी की सज़ा सुनाई गई. लेकिन दो साल बाद मकबूल सुरंग बनाकर जेल से फरार हो गया. साल 1971 में एक भारतीय हवाई जहाज़ F-27 को हाईजैक करके पाकिस्तान ले जाया गया था. इसका भी मास्टरमाइंड मकबूल निकला.
मकबूल भट्ट का मकसद कश्मीर को भारत से अलग करना था (फोटो साभार- आज तक)
मकबूल भट्ट का मकसद कश्मीर को भारत से अलग करना था (फोटो साभार- आज तक)


भारत के दबाव पर मकबूल को पाकिस्तान ने गिरफ्तार तो कर लिया, लेकिन मेहमान नवाजी में कोई कमी नहीं थी. दुश्मन का दुश्मन दोस्त. पाकिस्तान ने 1974 में मकबूल को रिहा कर दिया. रिहा होने के बाद मकबूल JKLF का मिशन दिमाग में लिए वापस कश्मीर चला आया. लेकिन यहां एजेंसीज़ पहले से अलर्ट पर थीं, जिसके चलते मकबूल को दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया. फांसी की सज़ा मुक़र्रर थी ही, जिस पर मकबूल ने दया याचिका भी डाली, जिसे राष्ट्रपति ने ठुकरा दिया. मकबूल तिहाड़ जेल में बंद था, लेकिन JKLF मकबूल की रिहाई चाहता था. दबाव बनाने के लिए JKLF ने बर्मिघम में भारतीय डिप्लोमेट रवींद्र म्हात्रे का अपहरण कर लिया. लेकिन जब सरकार नहीं झुकी तो 6 फरवरी 1984 को JKLF ने रवीन्द्र म्हात्रे की हत्या कर दी. पानी अब सर से ऊपर जा चुका था. इसके बाद 11 फरवरी को मकबूल को भी फांसी दे दी गई.
मकबूल का किस्सा तो ख़त्म हो गया था, लेकिन JKLF के खेल अभी बाकी थे. नील कंठ गंजू, कश्मीरी पंडित और जज. वही जज जिन्होंने मकबूल को फांसी की सज़ा सुनाई थी. JKLF ने अपने फाउंडर की फांसी का बदला लिया और 4 नवंबर 1989 को नील कंठ गंजू की हत्या कर दी. नील कंठ की लाश घंटों सड़क पर पड़ी रही. इधर कश्मीरी पंडितों के खिलाफ़ कश्मीर की अवाम में अलगाववादियों ने ज़हर घोलना शुरू कर दिया, आम लोग भी अब JKLF के पक्ष में खड़े होने लगे थे. #रुबिया सईद का अपहरण JKLF की हिम्मत बढ़ गई थी, मकबूल भट्ट की जगह अब अशफ़ाक वानी और यासीन मलिक जैसे लोग JKLF को कमांड कर रहे थे. बिट्टा कराटे जैसे अच्छे निशानेबाज़ लड़ाके थे, जो दसियों कश्मीरी पंडितों और कई मुस्लिमों को मौत के घाट उतार चुके थे. मक़बूल भट्ट प्रकरण के बाद JKLF को लगा, कुछ बड़ा करने की ज़रूरत है. मकबूल की रिहाई की कोशिशों से JKLF सरकार से सौदेबाजी करना सीख गया था. भले ही उस वक़्त सफल नहीं हुआ था. लेकिन इस बार 20 आतंकियों (Terrorists) की रिहाई के बदले बतौर होस्टेज थी, रुबिया सईद. विश्वनाथ प्रताप सिंह की सिर्फ 6 दिन पुरानी सरकार में गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी.
विश्वनाथ प्रताप सिंह और मुफ़्ती मोहम्मद सईद (फोटो सोर्स -wikimedia और आज तक)
विश्वनाथ प्रताप सिंह और मुफ़्ती मोहम्मद सईद (फोटो सोर्स -wikimedia और आज तक)


तारीख थी 8 दिसंबर 1989. यानी आज का ही दिन. वी.पी.सिंह की सरकार को सत्ता संभाले अभी हफ्ता भी नहीं बीता था. दोपहर करीब 3 बजे देश के पहले मुसलमान गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद गृह मंत्रालय में पहली बार अधिकारियों से रूबरू हो रहे थे. ठीक उसी वक्त उनकी बेटी रूबिया सईद अपनी ड्यूटी खत्म होने के बाद ललदद हॉस्पिटल से निकलीं. MBBS का कोर्स पूरा करने के बाद इसी हॉस्पिटल में रुबिया इंटर्नशिप कर रही थीं.
उस रोज़ हॉस्पिटल से निकलकर रुबिया एक ट्रांजिट वैन में सवार होती हैं. वैन का नंबर था- JFK 677. वैन लाल चौक से श्रीनगर के बाहरी इलाके नौगाम की तरफ जा रही थी. रुबिया जैसे ही चानपूरा चौक के पास पहुंची, वैन में सवार तीन लोगों ने गनपॉइंट पर वैन को रोक लिया. और रूबिया सईद को वैन से नीचे उतारकर सड़क के दूसरी तरफ़ खड़ी नीले रंग की मारुति कार में बैठा लिया. उसके बाद मारुति कार कहां गई किसी को नहीं पता.
इस अपहरण का आरोप लगा अशफाक वानी और यासीन मालिक पर. अशफाक JKLF से जुड़ने से पहले एथलीट हुआ करता था, लेकिन बाद में चरमपंथी बन गया था. कहा गया, अशफ़ाक ही गृहमंत्री की बेटी रुबिया की किडनैपिंग का मास्टरमाइंड था. किडनैपिंग से पहले उसने मुफ्ती के घर और अस्पताल की रेकी भी की थी. अपहरण के बाद लोकल लेवल पर किसी ने कोई सूचना नहीं दी. न ही वैन के ड्राइवर ने किसी से कुछ कहा. दो घंटे बाद, करीब 6 बजे JKLF के जावेद मीर ने एक लोकल अखबार को फोन करके जानकारी दी कि हमने भारत के गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबिया सईद का अपहरण कर लिया है.
यासीन मलिक, अशफ़ाक वानी और जावेद मीर (फोटो सोर्स -आज तक और wikimedia )
यासीन मलिक, अशफ़ाक वानी और जावेद मीर (फोटो सोर्स -आज तक और wikimedia )

JKLF की 20 आतंकियों की रिहाई की मांग कश्मीर से लेकर दिल्ली तक अफरातफरी मच गई. पब्लिक डोमेन से कहीं ज्यादा सत्ता के गलियारों में. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लॉ एंड ऑर्डर के लिए ज़िम्मेदार आदमी अपनी बेटी की सुरक्षा में नाकाम रहा था. पुलिस से लेकर इंटेलिजेंस यूनिट्स तक बैठकों का दौर शुरू हो गया. अब बारी थी JKLF की तरफ से डिमांड आने की. वही पुराना शगल. JKLF की तरफ से 20 आतंकवादियों के नाम सरकार को भेज दिए गए. गृहमंत्री की बेटी रुबिया को छोड़ने के बदले सभी की रिहाई की मांग की गई. नेगोशियेशन का दौर चला और मांग 20 की जगह 7 आतंकियों पर आकर रुकी. सरकार में अंदरखाने दोनों रास्तों पर बात चल रही थी, चरमपंथियों को रिहा किया जाए या मिलिट्री एक्शन लिया जाए. लेकिन रुबिया सईद की सुरक्षित रिहाई कैसे हो, सारी कवायद का सेंटर पॉइंट यही था. मध्यस्थता के लिए कई चैनल बनाए गए. ऐसे मानिए कि तीन टीमें. एक चैनल थे श्रीनगर के जाने-माने डाक्टर एए गुरु. दूसरा चैनल तीन लोगों का बनाया गया, इसमें थे पत्रकार जफर मिराज, अब्दुल गनी लोन की बेटी शबनम लोन और अब्बास अंसारी. और तीसरे चैनल में थे इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस मोतीलाल भट और एडवोकेट मियां कयूम.
पांच दिन बीत चुके थे. सभी चैनल अपनी-अपनी कोशिशें कर रहे थे. 8 दिसंबर से शुरू हुआ बैठकों का दौर 13 दिसंबर तक पहुंच चुका था. ये सियालकोट में भारत और पाकिस्तान के बीच चौथे और आख़िरी क्रिकेट टैस्ट मैच का चौथा दिन था. तीन टेस्ट यूं भी ड्रा हो चुके थे. और इस मैच में भारत की हालत पतली थी. लेकिन क्रीज़ पर एक तरफ़ नवजोत सिंह सिद्धू और दूसरी तरफ 16 साल का नौजवान बल्लेबाज़ सचिन तेंदुलकर था. दोनों पूरा दिन निकाल ले गए, और मैच को पांचवें दिन तक खींच लिया. दुनिया पहली बार सचिन की जीवटता से रूबरू हो रही थी, लेकिन दूसरी तरफ वीपी सिंह की सरकार का इम्तेहान भी चल रहा था. क्योंकि अब तक रूबिया सईद किडनैप करने वाले आतंकियों के चंगुल में थीं.
कपिल देव, सचिन तेंदुलकर और मोहम्मद अजहरुद्दीन (फोटो सोर्स -इंडिया टुडे)
कपिल देव, सचिन तेंदुलकर और मोहम्मद अजहरुद्दीन (फोटो सोर्स -इंडिया टुडे)


13 दिसंबर 1989 की सुबह दिल्ली से फॉरेन मिनिस्टर इंद्र कुमार गुजराल और सिविल एविएशन मिनिस्टर आरिफ मोहम्मद खान को श्रीनगर भेजा गया. एक दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूक़ अब्दुल्ला लंदन से श्रीनगर लौटे थे. मुख्यमंत्री अब्दुल्ला की मुलाक़ात दोनों केंद्रीय मंत्रियों से हुई. रूबिया की रिहाई पर बात हुई, फारुक अब्दुल्ला आतंकवादियों को छोड़ने पर राजी नहीं थे. लेकिन आख़िरकार झुकना पड़ा.
13 दिसंबर की दोपहर तक सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच समझौता हो गया. समझौते के तहत 5 आतंकवादियों को रिहा किया गया. बदले में कुछ ही घंटे बाद लगभग साढ़े सात बजे रूबिया को सोनवर में जस्टिस मोतीलाल भट्ट के घर सुरक्षित पहुंचा दिया गया. रुबिया करीब 122 घंटे बाद रिहा हुई थीं. 13 दिसंबर की रात करीब 12 बजे विशेष विमान से रूबिया को दिल्ली लाया गया. हवाई अड्डे पर पिता मिले तो भावुक लग रहे थे. आवाज़ भरभराई हुई थी. चेहरे पर तनाव साफ़ था. मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कहा कि एक पिता के बतौर मैं खुश हूं, लेकिन एक नेता के तौर पर मैं समझता हूं कि ऐसा नहीं होना चाहिए था. किडनैपिंग नहीं होनी चाहिए थी.
आरिफ़ मोहम्मद खान, इंद्र कुमार गुजराल और फारुख अब्दुल्ला (फोटो सोर्स -इंडिया टुडे)
आरिफ़ मोहम्मद खान, इंद्र कुमार गुजराल और फारुख अब्दुल्ला (फोटो सोर्स -इंडिया टुडे)


उधर कश्मीर में आम जनता खुशी के उन्माद में थी. ये खुशी देश के गृहमंत्री की बेटी या कश्मीर की बेटी की रिहाई की नहीं, बल्कि रिहा किए गए पांच चरमपंथियों के लिए थी. श्रीनगर की सड़कों पर नारे लग रहे थे-
हम क्या चाहते- आज़ादी!, कश्मीर मांगे- आज़ादी!, और ‘जो करे ख़ुदा का खौफ़, वो उठा ले क्लाश्निकोव!
#छोड़े गए आतंकी इस किडनैपिंग का मास्टरमाइंड अशफाक वानी था. जिसे कुछ ही महीने बाद 31 मार्च 1990 को एनकाउंटर में मार गिराया गया. जो पांच आतंकवादी रिहा किए गए थे उनमें से एक शेख हमीद भी नवंबर, 1992 में सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में मार दिया गया. शेर खान, जो पाक अधिकृत कश्मीर का रहने वाला था, 2008 में उसकी संदिग्ध हालात में मौत हो गई. दो और रिहा हुए आतंकी जावेद अहमद जरगर और नूर मोहम्मद कलवल को दूसरे मामलों में 12-12 साल के लिए जेल भेज दिया गया. जबकि एक अल्ताफ बट रिहाई के बाद से कश्मीर में पूरी तरह अपने काम धंधे में लग गया. #किताबी किस्से क्या कहते हैं? गृहमंत्री की बेटी का अपहरण आम बात नहीं थी. इस पर कई किताबें लिखी गईं. जिनमें से दो किताबों का ज़िक्र ज़रूरी मालूम होता है. रुबिया सईद के अपहरण के वक़्त नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) के डायरेक्टर जनरल थे- वेद मारवाह. उन्होंने जो किताब लिखी उसका नाम था Uncivil Wars: The Pathology of Terrorism in India. इस किताब में रुबिया सईद के अपहरण के बाद सरकार की अप्रोच कैसी रही इसपर डिटेल से बताया गया है. वेद मारवाह के मुताबिक़ पूरे मामले पर मुफ्ती मोहम्मद सईद उस वक्त ज्यादा कुछ नहीं बोल रहे थे. प्राइम मिनिस्टर वीपी सिंह ने इस मामले की पूरी जिम्मेदारी वाणिज्य मंत्री अरूण नेहरू को सौंप रखी थी. नेहरू ही पूरे ऑपरेशन को लीड कर रहे थे. वेद मारवाह के मुताबिक सरकार की एप्रोच सही नहीं थी. अपहरणकर्ताओं से बातचीत के एक से ज्यादा चैनल खोल दिए गए थे. और सभी लोग सिर्फ इस कोशिश में लगे थे कि रूबिया सईद की रिहाई उनके चैनल से हो. इसी का फायदा अपहरणकर्ताओं ने उठाया और 5 आतंकवादियों को रिहा करवाने में कामयाब रहे.’
दूसरी किताब है, अलगाववादी नेता हिलाल वार की. किताब का नाम है- ‘The Great Disclosures- Secrets Unmasked. हिलाल वार ने अपनी किताब में मुफ्ती मोहम्मद सईद पर आरोप लगाया है कि उन्होंने गृहमंत्री रहते हुए खुद अपनी बेटी रूबिया सईद के अपहरण की साजिश रची और आंतकवादियों को छुड़वाया, जिसके बाद कश्मीर के हालात और बिगड़ गए. हिलाल वार ने अपनी किताब में रुबिया सईद के बदले आतंकियों की रिहाई के बाद के घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्यौरा दिया है. वार के मुताबिक कश्मीर को अस्थिर करने का ब्लूप्रिंट बहुत पहले तैयार किया जा चुका था. लेकिन इसे पूरी तरह अमल में 13 दिसंबर 1989 के बाद लाना शुरू हुआ. 90 के दशक में छिट-पुट वारदातों को छोड़ दिया जाए तो घाटी के हालात ठीक थे. वार के मुताबिक रुबिया सईद की किडनैपिंग महज़ एक ड्रामा था. जिसे सियासी उद्देश्यों कों पूरा करने के लिए रचा गया था. हिलाल कहते हैं कि रुबिया के अपहरण की साजिश कामयाब होने के बाद से ही कश्मीर में आतंकी घटनाएं बढीं.
आतंकियों की रिहाई के बाद श्रीनगर की सड़कों पर नारे लगाते लोग (फोटो सोर्स -ट्विटर)
आतंकियों की रिहाई के बाद श्रीनगर की सड़कों पर नारे लगाते लोग (फोटो सोर्स -ट्विटर)


रुबिया का अपहरण तो शुरुआत थी. सही भी है क्योंकि, इसी घटना के बाद कश्मीर यूनिवर्सिटी के वीसी प्रोफ़ेसर मुशीरुल हक़ और उनके सेक्रेटरी अब्दुल गनी का अपहरण हुआ. आरोप लगा स्टूडेंट लिबरेशन फ्रंट पर. इसके बाद JKLF ने एचएमटी के जनरल मैनेजर एचएल खेड़ा को किडनैप किया. और इंडियन ऑयल कारपोरेशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर दुरई स्वामी भी किडनैप कर लिए गए. इसके पीछे हिजबुल मुजाहिदीन का हाथ था. कश्मीर के हालात और बिगड़े और साल 1999 में कंधार हाइजैक कांड हुआ. और साल 2001 में संसद पर हमला.
कंधार में खड़ा भारतीय हवाई जहाज, और संसद पर हमले के दौरान पोजीशन लिए हुए सुरक्षाकर्मी (फोटो सोर्स -आज तक)
कंधार में खड़ा भारतीय हवाई जहाज, और संसद पर हमले के दौरान पोजीशन लिए हुए सुरक्षाकर्मी (फोटो सोर्स -आज तक)


आतंकी हमले और किडनैपिंग या हाइजैकिंग. दोनों ही आतंकी घटनाएं हैं. लेकिन दोनों का उद्देश्य अलग-अलग है. इतिहास में हुई घटनाओं से पता चलता है कि किडनैपिंग या हाइजैकिंग का उपयोग आतंकियों की रिहाई के लिए लिए किया जाता है. और इसमें dichotomy ये है कि अगर एक बार आपने आतंकियों की मांग मान ली. तो उन्हें आगे के लिए अपने साथियों की रिहाई का एक कारगर तरीक़ा मिल जाता है. हालांकि, ये कह देना कि अगवा किए गए लोगों को छुड़ाने के प्रयास ना किए जाएं, असंवेदनशीलता होगी. लेकिन इतना ज़रूर निश्चित किया जाना चाहिए कि इन मामलों में सरकार की एक निश्चित पॉलिसी हो. उदाहरण के लिए अमेरिका जैसे देशों की मिसाल ली जा सकती है, जहां सरकार की स्टेटेड पॉलिसी है कि वो किसी आतंकी से नेगोशिएशन नहीं करेंगे.

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