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मुग़ल सेना की नाक काटने वाली रानी

17 वीं सदी की शुरुआत में गढ़वाल में रानी कर्णावती ने मुग़ल सेना को नाक काटकर वापस भेजा.

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rani Karnavati
राजा महीपति की मौत के बाद रानी कर्णावती ने सात साल के पृथ्वीपति का राज्याभिषेक किया लेकिन कुछ सालों तक सत्ता खुद करती रहीं
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19 जुलाई 2022 (Updated: 15 जुलाई 2022, 19:00 IST)
Updated: 15 जुलाई 2022 19:00 IST
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 29 मई 1658 को समुगढ़ में औरंगज़ेब और दारा शिकोह के बीच लड़ाई हुई थी. इस जंग में दारा शिकोह की हार हुई. औरंगज़ेब ने खुद को हिंदोस्तान का बादशाह घोषित किया. और दारा शिकोह की हत्या करवा दी.

यहां पढ़ें - दारा शिकोह और औरंगजेब की जंग

दारा शिकोह की हत्या के बाद उसके बच्चों का नंबर आया. दारा शिकोह की दो बेटियों और एक बेटे को औरंगज़ेब ने जिन्दा छोड़ दिया. लेकिन ये मेहरबानी दारा के सबसे बड़े बेटे शहजादे सुलेमान शिकोह के हिस्से नहीं आई. क्योंकि वो दारा की सत्ता का वारिस था. औरंगज़ेब की पकड़ से बचने के लिए सुलेमान शिकोह ने पहाड़ों में शरण ली. मुंतख़ब-अल-लुबाब नाम का मुग़ल इतिहास का एक दस्तावेज़ है. जिसमें इस घटना का जिक्र है. (Rani Karnavati)

उत्तर भारत में जिसे हम आज उत्तराखंड कहते हैं, वहां दो राज्य हुआ करते थे, गढ़वाल और कुमाऊं. गढ़वाल राज्य में तब राजा पृथ्वीपतिशाह का राज था. सुलेमान शिकोह उनकी शरण में पहुंचे. औरंगज़ेब को इसकी खबर मिली. उन्होंने संदेश भिजवाया कि शहजादे को मुग़ल दरबार के हवाले कर दो. पृथ्वी शाह ने जवाब में लिखा,

“चार हिंदोस्तान के बराबर सेनाएं भी आ जाएं तो पहाड़ों में इतने पत्थर हैं कि सिर्फ उन्हीं के सहारे सेना को घुटनों पर लाया जा सकता है”

दारा शिकोह और्व सुलेमान शिकोह (तस्वीर: Wikimedia Commons)

इसके बाद औरंगज़ेब (Aurangzeb) ने सुलेमान को पकड़ने का जिम्मा आमेर के मिर्जा राजा जय सिंह को सौंपा. जय सिंह ने एक के बाद एक खत भेजे, पृथ्वी शाह को धन-दौलत का लालच दिया. लेकिन राजा पृथ्वी शाह नहीं माने. अंत में राज जय सिंह ने संदेश भिजवाया. कहा, आख़िरी रास्ता सिर्फ यही है कि मुग़ल सेना पहाड़ पर चढ़ाई कर दे. पृथ्वी शाह ने जवाब में लिखा, ‘औरंगज़ेब को बता देना, जो नाक काट सकते हैं वो सर भी काट सकते हैं.’

अब ये नाक काटने की बात कहां से आई? इसी से जुड़ी है हमारी आज की कहानी. 19 जुलाई की तारीख का सम्बन्ध है गढ़वाल राज्य से. दरअसल यही वो तारीख थी जब गढ़वाल रियासत के आख़िरी राजा मानबेन्द्र शाह ने साल 1949 में भारत संघ में विलय की घोषणा की थी.

52 गढ़ों वाला गढ़वाल

गढ़वाल राज्य की कहानी शुरू होती है राजा कनक पाल से. कनक पाल मालवा से गढ़वाल पहुंचे थे. कब? इसको लेकर इतिहासकारों में कुछ मतभेद हैं. पंडित हरी कृष्ण रतूड़ी अपनी किताब ‘गढ़वाल वर्णन’ में सन 688 का जिक्र करते हैं. कुछ और जगह ये समय सन 847 से 873 के आसपास बताया गया है. वहीं ब्रिटिश आर्कियोलॉजिस्ट एलेग्जेंडर कनिंघम के अनुसार कनकपाल के शासन का साल 1159 के आसपास है.

यहां पढ़ें- मुग़ल बादशाह अकबर को ईसाई बनाने की कोशिश की तो क्या जवाब मिला?

गढ़वाल का नक्शा (तस्वीर:म Wikimedia Commons)

कनकपाल गढ़वाल क्यों पहुंचे, इसको लेकर भी मतभेद हैं लेकिन एक धुरी है जो हर कहानी में मिलती है. कनक पाल बद्रीनाथ धाम के दर्शन करने के लिए गढ़वाल पहुंचे थे. गढ़वाल का नाम इसके 52 गढ़ो के ऊपर पड़ा है. ऐसे ही एक गढ़ चंद्रपुर पर तब भानुप्रताप का शासन था. वो अपनी बेटी के लिए वर की तलाश में थे. जैसे ही उनकी मुलाक़ात कनक पाल से हुई, उन्होंने उनके सामने अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव रखा. कनक पाल का विवाह हुआ और भानुप्रताप ने चंद्रनगर की जागीर कनकपाल के नाम कर दी. इसके बाद कनकपाल एक के बाद एक गढ़ जीतते हुए अपने राज्य का विस्तार करते गए.

गढ़वाल राजशाही में अगला बड़ा नाम है राजा अजय पाल का. अजय पाल के शासन काल को लेकर भी कुछ मतभेद हैं. कुछ लोग इसे 1500 से 1519 से बीच मानते हैं. तो वहीं कई जगह ये वक्त 1358 के आसपास लिखा हुआ है. बहरहाल एक बात जिस पर सब सहमत हैं, वो ये है कि अजय पाल ने ही सारे गढ़ों को इक्कठा कर गढ़वाल को एक किया. 1622 में राजा बलभद्र गढ़वाल की सत्ता पर काबिज हुए. उन्होंने अपने नाम के आगे शाह की पदवी लगाई. इसके बाद आगे जितने राजा हुए उन सभी के आगे शाह की उपाधि लगती रही.

रानी कर्णावती

1622 में राजा बने महीपति शाह. महीपति शाह को गर्व भंजन नाम से जाना जाता था. कारण कि वो जंग के मैदान पर दुश्मनों का गर्व चूर-चूर कर देते थे. राज महीपति के काल में गढ़वाल ने तीन बार तिब्बत पर आक्रमण किया. इनकी रानी का नाम था कर्णावती और बेटे का नाम था पृथ्वीपतिशाह. वही पृथ्वी पत शाह जिन्होंने मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को चुनौती दी थी.

बहरहाल पृथ्वीपतिशाह जब 7 साल के थे तब महीपति शाह की मृत्यु हो गई. पृथ्वीपतिशाह का राज्याभिषेक हुआ लेकिन राज्य का कारभार संभाला राजमाता कर्णावती ने. चूंकि राजा की उम्र कम थी. गढ़वाल पर मुग़लों की नजर पड़ी. शाहजहां के आदेश पर मुग़ल सेना ने पहाड़ों की ओर कूच किया. कई जगह ये जिक्र भी मिलता है कि राजमाता कर्णावती के दरबार में मुग़ल राजदूत की बेज्जती हुई थी. इसी का बदला लेने के शाहजहां ने हमले का आदेश दिया.

यहां पढ़ें - जब बीच जंग में पागल हाथी औरंगज़ेब की ओर दौड़ पड़ा!

निकोलाओ मनूची नाम के इतालवी यात्री 17वीं शताब्दी में भारत आए थे. अपने लिखे में उन्होंने मुग़ल इतिहास का विस्तार से वर्णन किया है. मनूची के अनुसार, 30 हजार की मुग़ल फौज गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर पर चढ़ाई के लिए पहुंची. इसे लीड कर रहे थे मुग़ल कमांडर नजाबत खां.

मुग़ल बादशा शाहजहां (तस्वीर: Wikimedia Commons) 

नजाबत खां ने गढ़वाल की सीमा पर पहुंचकर डेरा डाला. इसके बाद एक सन्देश भेजा. मुग़ल सल्तनत की अधीनता स्वीकार करो और बतौर नजराना 10 लाख रूपये अदा करो, वरना हमले के लिए तैयार रहो. गढ़वाल के सैनिकों को पहाड़ों में युद्ध का लम्बा अनुभव था. वो कई बार तिब्बत और पड़ोसी राज्य कुमाऊं से जंग कर चुके थे. इसके अलावा वहां माधोसिंह भंडारी और दौलत बेग जैसे अनुभवी कमांडर थे. अजय शाह ने गढ़वाल के इतिहास पर एक किताब लिखी है, गढ़वाल हिमालय: अ स्टडी इन हिस्टॉरिकल पर्सपेक्टिव. अजय शाह बताते हैं कि माधोसिंह के युद्धकौशल के काफी चर्चे थे. उनके नाम से एक कहावत चलती थी,

एक सिंह रेंदो बण एक सिंघ गाय का
एक सिंह माधो सिंघ और सिंघ काहे का

मतलब, “धरती पर तीन ही सिंह हैं. एक शेर वाला सिंह , एक गाय का सींग और तीसरा माधो सिंह”

मुगल सेना की नाक काट डाली

महारानी कर्णावती ने मुग़ल फौज के आगे झुकने के इंकार कर दिया. इसके बाद मुग़ल सेना ने श्रीनगर पर चढ़ाई की कोशिश की. लेकिन अत्यंत दूभर पहाड़ी रास्तों पर युद्ध करना तो दूर आगे बढ़ना भी मुश्किल था. गढ़वाल सैनिकों ने पीछे हटते हुए मुग़ल फौज को पहाड़ में काफी अंदर तक ला दिया था. इसके बाद उन्होंने मुग़ल फौज के पीछे हटने का रास्ता बंद कर दिया. पीछे जाने का रास्ता बंद हुआ तो मुग़ल फौज में हड़बड़ी मच गई. आगे बढ़ना मुश्किल था और पीछे जाने का कोई रास्ता नहीं.

गढ़वाल और मुग़ल फौज के बीच जंग (सांकेतिकतस्वीर: satyagrah.com)

रसद का सामान ख़त्म होने लगा तो मजबूरी में नजाबत खां ने महारानी कर्णावती को शांति प्रस्ताव भेजा. कर्णावती ने जवाब में लिखा, अब काफी देर हो चुकी है. निकोलाओ मनूची लिखते हैं गढ़वाल की सेना मुग़ल फौज का सफाया कर सकती थी लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. इसके बजाय रानी कर्णावती ने नजाबत खां के पास एक और सन्देश भेजा. अबकी सन्देश में लिखा था, मुग़ल सैनिकों जिन्दा वापिस लौट सकते हैं. लेकिन एक शर्त पर. क्या थी ये शर्त?

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सैनिकों को अपनी नाक काटकर देनी होगी. जान बचाने के लिए मुग़ल सैनिक तैयार भी हो गए. नजाबत खां को भी अपनी नाक कटवानी पड़ी. इसके बाद मुग़ल सैनिकों ने अपने हथियार डाले और तब जाकर उन्हें वापिस लौटने दिया गया. मनूची लिखते हैं कि शर्म के मारे नजाबत खां ने वापिस पहुंचने से पहले ही जहर खाकर अपनी जान दे दी. उधर बादशाह शाहजहां भी अपनी इतनी हार से इतने शर्मसार हुए कि उन्होंने गढ़वाल पर दोबारा हमले का विचार नहीं किया.

औरंगज़ेब ने गढ़वाल पर नजर क्यों डाली? 

इस जंग के बाद रानी कर्णावती का नाम पड़ गया नक्कटी रानी. यानी ऐसी रानी जो दुश्मनों की नाक काट देती है. ऐतिहासिक रूप से इस नाम का जिक्र दो जगह और मिलता है. 'मआसिर-उल-उमरा’, मुग़ल इतिहास के ऊपर लिखी गई एक किताब का नाम है. इस किताब में और यूरोपीय इतिहासकार टेवर्नियर के लिखे में नक्कटी रानी का जिक्र मिलता है. कर्णावती का शासन काल संभवतः 1640 तक रहा. इसके बाद उनके बेटे पृथ्वीपतिशाह ने शासन संभाला.

रानी कर्णावती (तस्वीर: ट्विटर)

उनके शासन काल में एक गढ़वाल राज्य का मुग़लों से एक और बार पाला पड़ा. इस किस्से के बारे में हमने आपको शुरुआत में बताया था.जब दारा शिकोह के बेटे शहजादे सुलेमान शिकोह ने औरंगज़ेब से अपनी जान बचाने के लिए गढ़वाल में शरण ली. औरंगज़ेब ने सुलेमान को उनके हवाले करने को कहा. राजा पृथ्वीपतिशाह ने इंकार कर दिया. इतिहासकार कलिका रंजन कानूनगो के अनुसार औरंगज़ेब की तरफ से आमेर के राजा मिर्जा राजा जय सिंह ने कमान संभाली. जब बातचीत से बात नहीं बनी तो एक साजिश के तहत पृथ्वीपतिशाह को ज़हर देने की कोशिश हुई. लेकिन पृथ्वीशाह इससे बच निकले.

पृथ्वी शाह के राजकुमार मेदिनी शाह हुए. उनके साथ भी मुग़ल दरबार से वही पैंतरे अपनाए गए. अजय शाह लिखते हैं की अंत में मेदिनी शाह ने प्रेशर में आकर अपने पिता से विद्रोह कर दिया और सुलेमान शिकोह को औरंगज़ेब के हवाले कर दिया. 16 मई, 1662 को सुलेमान शिकोह को सजा-ए-मौत दे दी गई.

अगले 150 सालों तक शाह वंश ने गढ़वाल पर राज किया. साल 1803 में गोरखाओं के हमले में उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी. 1814 तक गोरखाओं ने यहां राज किया. 1812 में गढ़वाल के निर्वासित राजा सुदर्शन शाह ने ब्रिटिशर्स के साथ संधि की और और अपना राज वापिस हासिल किया. लेकिन इस संधि के चलते उन्हें अपना आधे से ज्यादा राज्य अंग्रेज़ों को देना पड़ा. मानवेन्द्र शाह गढ़वाल रियासत के आख़िरी राजा हुए. और 1949 में गढ़वाल राज्य का भारत संघ में विलय कर दिया गया.

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