जिस मूवमेंट से नेहरू और जिन्ना जुड़े, वो दो साल में ही बंद क्यों हो गया?
ऑल इंडिया होम लीग मूवमेंट, भारत की आज़ादी के वास्ते ये कर गया!
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लेफ़्ट टू राइट: नेहरू, एनी बेसेंट, जिन्ना
आज 3 सितंबर है और आज की तारीख़ का संबंध है, एक ऐसे आंदोलन से, जो बाद में हिंदुस्तान की आज़ादी की नींव की ईंट बना. और जैसी नींव की ईंट की तक़दीर होती है, वैसी ही इसकी भी रही. ये भी कहीं गुमनामी में खो गया. आंदोलन का नाम, ‘होम रूल मूवमेंट.’इस आंदोलन की हिस्ट्री जानने के लिए हमें आयरलैंड चलना होगा. यहां 1870 से लेकर प्रथम विश्व युद्ध तक एक आंदोलन ख़ूब चला. जिसका नाम था, ‘आयरिश होम रूल मूवमेंट’. मई 1870 में, बैरिस्टर इसहाक बट ने एक नए उदारवादी राष्ट्रवादी आंदोलन ‘आयरिश होम गवर्नमेंट एसोसिएशन’ की शुरुआत की, जो बाद में ‘होम रूल लीग’ कहलाया. इस लीग का उद्देश्य बहुत सीमित था: आयरलैंड, यूनाइटेड किंगडम का एक ही हिस्सा रहे लेकिन उसमें स्वशासन हो.

लेखिका, वक्ता, शिक्षाविद और महिला अधिकारों के लिए कार्य करने वालीं एनी बेसेंट मूलतः एक आयरिश लेडी और ‘आयरिश होम रूल मूवमेंट’ की कट्टर समर्थक थीं. 3 सितंबर, 1916 यानी आज ही के दिन एनी बेसेंट के प्रयासों से ‘ऑल इंडिया होम लीग’ अस्तित्व में आई. इसकी स्थापना उन्होंने हेनरी स्टील ओल्कॉट के साथ मिलकर की. भारत की इस लीग का उद्देश्य भी आयरलैंड की उस लीग सरीखा ही था जिसका ज़िक्र हमने अभी किया था. मतलब ये भी स्वशासन की मांग का नेतृत्व करने वाल एक राजनीतिक संगठन था. ‘इंडियन होम रूल मूवमेंट’ की शुरुआत इसी ‘ऑल इंडिया होम रूल लीग’ द्वारा की गई थी.
अगर ‘ऑल इंडिया होम रूल लीग’ के टाइमलाइन की बात करें तो जिन दिनों आयरलैंड की होम लीग पतन की ओर थी, तब भारत की होम लीग जन्म ले रही थी. तब ब्रिटेन को युद्ध में फंसा देख एनी बेसेंट ने कहा था-
इंग्लैंड की ज़रूरत, हमारे लिए मौक़ा है.

इधर, प्रथम विश्व युद्ध में भारतीयों का समर्थन पाने के लिए अंग्रेज कई सारे वादे किए जा रहे थे. उधर भारतीयों की हालत ग़ालिब का एक शेर बयान कर रहा था-
तेरे वादे पे जिए हम, तो ये जान झूठ जानां,इसी दौरान मुहम्मद अली जिन्ना, बाल गंगाधर तिलक जैसे लोगों ने भारत भर में मौज़ूद अलग-अलग लीग्स को एकजुट करने का प्लान किया. यूं बाल गंगाधर तिलक ने बेलगाम में बॉम्बे प्रांतीय कांग्रेस में पहली होम रूल लीग की स्थापना की और एनी बेसेंट ने 3, सितंबर 1916 को मद्रास के अडयार में दूसरी लीग की स्थापना की. तिलक की लीग ने महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रांतों और बरार जैसे क्षेत्रों में काम किया, वहीं एनी बेसेंट की लीग ने शेष भारत में काम किया.
के ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता.
लीग के द्वारा शुरू किए गए ‘होम रूल आंदोलन’ का मुख्य उद्देश्य था ब्रिटिश साम्राज्य के भीतर रहते हुए एक डोमिनियन का दर्जा प्राप्त करना. मतलब ठीक वैसा सेटअप जैसे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड जैसों देशों में रहा था. नीचे इस लीग के झंडे को देखिए. बाकी सारी चीज़ों के अलावा लेफ़्ट टॉप में ब्रिटिश फ़्लैग. जैसा ऑस्ट्रेलिया सरीखे किसी भी डोमिनियन राष्ट्र का हुआ करता है.

इस लीग के वर्क प्रोफ़ाइल में एक मज़ेदार काम ये सिद्ध करना भी था कि ‘पश्चिम के देश उन दिनों जिन नई-नई तकनीकों का अविष्कार कर रहे थे, वो हिंदू ऋषियों द्वारा कई सदियों पहले ही बना या खोज ली गई थीं.’
इसलिए ही होम रूल लीग ने ब्रह्म समाज और आर्य समाज को अपनी ओर काफ़ी आकर्षित किया. और इसी सब के चलते होम रूल लीग को कायस्थों, कश्मीरी ब्राह्मणों, हिंदू तमिल अल्पसंख्यकों, उद्योगपतियों और वकीलों का भी बहुत समर्थन मिला.
1917 के आते आते ‘ऑल इंडिया होम लीग’ से 27,000 से ज़्यादा सदस्य जुड़ चुके थे. अकेले मुंबई में इसके ढाई हज़ार के क़रीब सदस्य हो गए थे. इसने हर तरह से अपने उद्देश्यों को पाने की कोशिश की. ढेरों याचिकाएँ ब्रिटिश अधिकारियों को सौंपी. भाषण, सेमिनार, व्याख्यान वग़ैरह आयोजित किए. कई लाईब्रेरीज़ स्थापित कीं. मुंबई में होने वाली इनकी मीटिंग्स में दसियों हज़ार लोग शिरकत करते थे.

‘ऑल इंडिया होम लीग’ बिहार और उड़ीसा जैसे राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में भी राजनीतिक जागरूकता पैदा कर रही थी. एनी बेसेंट की गिरफ्तारी के बाद लीग और इसके आंदोलन में और अधिक तेज़ी आने लगी थी. उनकी इस गिरफ्तारी का देशव्यापी विरोध हुआ. आंदोलन और विस्तार पाने लगा. मुहम्मद अली जिन्ना जैसे मुस्लिम नेता भी आंदोलन में शामिल होने लगे. इसी आंदोलन के दबाव के चलते 20 अगस्त, 1917 को ब्रिटिश राज ने ‘मोंटेग डिक्लेरेशन’ की घोषणा की. जिसका ‘कथित उद्देश्य’ भारतीयों को और अधिक प्रतिनिधित्व देना था.
लेकिन जिस तरह फ़ेसबुक के आते ही भारत में ऑरकुट का हाल हुआ, मतलब पीक में पतन. वही हाल महात्मा गांधी और उनके सत्याग्रह आंदोलन ने ‘ऑल इंडिया होम लीग’ कर दिया. ‘डोमिनयन’ कीवर्ड धुंधला होता चला गया और ‘पूर्ण स्वराज’ बोल्ड. इधर बाल गंगाधर तिलक इंग्लैंड चले गए और एनी बैंसेंट ने इंग्लैंड के ‘मोंटेग डिक्लेरेशन’ जैसे सब्ज़बाग वादों पर एतबार कर लिया.

बहरहाल, 1920 में होम रूल लीग ने गांधी को अपने अध्यक्ष के रूप में चुन लिया और एक वर्ष के भीतर-भीतर लीग का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विलय हो गया. हालांकि होम रूल आंदोलन से जुड़े बहुत से युवा भविष्य में ऐसे चमके जैसे जेपी आंदोलन के बाद लालू प्रसाद यादव या इमरजेंसी के बाद अटल बिहारी. होम रूल आंदोलन से जुड़े इन युवाओं में सबसे चमकदार चेहरा थे, जवाहरलाल नेहरू.
जाते जाते आपको एक और इंट्रेस्टिंग बात बताते हैं कि जिस होम रूल लीग की शुरुआत थियोसॉफी को नींव बनाकर की गई थी, वो आज भी चेन्नई के अडयार में एक थियोसोफिकल सोसायटी के रूप में मौजूद है.