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सुमन कल्याणपुर, वो गायिका जिन्होंने लता मंगेशकर जैसी आवाज़ होने का तगड़ा नुकसान उठाया

मोहम्मद रफ़ी के साथ कई बेहतरीन गाने गाए हैं सुमन कल्याणपुर ने.

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लता मंगेशकर और सुमन कल्याणपुर.
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28 जनवरी 2021 (Updated: 28 जनवरी 2021, 08:20 AM IST) कॉमेंट्स
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80 के दशक के अंतिम वर्षों में से किसी एक साल की बात है. टीवी पर दूरदर्शन का लोकप्रिय शो 'छायागीत' प्रसारित हो रहा था. गाना आता है 'ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे'. शो की प्रथा के अनुसार होस्ट गायकों का नाम बताते हैं. मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर. प्रसारण खत्म होता है. कुछ समय बाद प्रसार भारती के दफ्तर का फ़ोन बजता है. फ़ोन करने वाली हैं 20 वर्षीय चारुल कल्याणपुर. चारुल उन्हें बताती हैं कि ये गीत लता जी ने नहीं, बल्कि उनकी मां सुमन कल्याणपुर ने गाया है. लेकिन कोई उनकी बात का यकीन नहीं करता. कोई करता भी कैसे, जब खुद कई बार लता मंगेशकर जी के सहायक और उनके करीबी मिलने वाले भी उनकी और सुमन जी की आवाज़ के बीच धोखा खा जाते थे.
'आजकल तेरे मेरे प्यार के चर्चे हर ज़ुबान पर...सबको मालूम है और सबको खबर हो गयी.'
प्यार के चर्चे तो हर ज़ुबान पर चढ़े. ये गीत भी सबकी ज़ुबान पर चढ़ा. लेकिन इस गीत और ऐसे कई गीतों में अपनी आवाज़ देने वाली गायिका के बारे में ना किसी को ठीक से मालूम हुआ और ना ही किसी को अच्छे से खबर हुई. कुछ संगीन संगीतप्रेमियों को खबर हुई भी, तो आवाज़ की मधुरता से चकमा खा गलत ही खबर हो गयी. दरअसल इस गीत को गाया तो है मोहम्मद रफ़ी और सुमन कल्याणपुर ने. लेकिन आज भी अगर सिर्फ़ ऑडियो सुनकर सिंगर पहचानने को बोला जाए, तो आधे से ज़्यादा लोग आवाज़ सुन मोहम्मद रफ़ी के साथ लता मंगेशकर का नाम लेंगे. कसूरवार उनको भी नहीं ठहरा सकते क्योंकि सुमन कल्याणपुर जी और लता मंगेशकर जी की आवाज़ की मधुरता और बारीकियां लगभग एक जैसी ही हैं.
चूंकि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लता ताई ने सुमन जी से पहले कदम रखा और अपने कोयल कंठ से लोकप्रियता के एक ऐसे शिखर पर पहुंच गईं, जहां उनकी आवाज़ से अपरिचित शख्स ढूंढना नामुमकिन सा हो गया. जिस कारण कुछ सालों बाद जब सुमन कल्याणपुर जी इंडस्ट्री में आयीं और उनके गाने रेडियो पर बजे तो ज़्यादातर लोग सुमन जी की आवाज़ को लता मंगेशकर की ही समझते रहे. आज हम आपको सुमन कल्याणपुर जी के जीवन के कुछ सुने-अनसुने-कमसुने किस्सों से अवगत कराते हैं. # ना ना करते सिंगर बन बैठे 28 जनवरी 1937 को ढाका में (उस वक़्त भारत का हिस्सा था) सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के बड़े बाबू शंकर राव हेमाड़ी के यहां उनकी पहली संतान ने जन्म लिया. शंकर बाबू और उनकी पत्नी सीता ने अपनी सुपुत्री का नाम सुमन रखा. सुमन के अलावा शंकर बाबू के यहां 5 संतानें और हुईं. इनकी पढ़ाई-लिखाई बेहतर ढंग से हो पाए इस लिए शंकर बाबू परिवार के साथ 1943 में बंबई (अब मुंबई) शिफ्ट हो गए. सुमन का रुझान बचपन से ही पेंटिंग और म्यूज़िक की तरफ़ था. जिसके चलते स्कूल के बाद ग्रेजुएशन भी आर्ट्स में की. वो पेंटर बनना चाहती थीं. लेकिन सुमन जी की आवाज़ की परख उनके पड़ोसी औऱ पिता के दोस्त पंडित केशव राव भोले को हो गयी थी. उन्होंने सुमन के पिता से सुमन को संगीत सिखाने की बात कही. पहले तो सुमन शौकिया ही संगीत सीख रहीं थीं लेकिन समय के साथ-साथ इसमें उनकी रुचि बढ़ने लगी. संगीत को वो और गंभीरता से सीखने लगीं. आने वाले सालों में सुमन ने उस्ताद खान, अब्दुल रहमान खान और गुरुजी मास्टर नवरंग जैसे दिग्गजों से भी संगीत की बारिकियां सीखीं.
कंठ कोकिला लता और सुमन
कंठ कोकिला लता और सुमन.

# सुगम सुमन शुरुआत सुमन जी के घर का माहौल हालांकि संगीतमय ही था, मगर किसी को भी बाहर गाने- बजाने की इजाज़त नहीं थी. लेकिन जब गुरु केशव राव भोले ने, जो उस वक़्त ऑल इंडिया रेडियो बॉम्बे में म्यूज़िक प्रड्यूसर थे, रेडियो पर गाने का प्रस्ताव दिया तो वो मना नहीं कर सकीं. ये पहली बार था, जब सुमन जी की आवाज़ चारदीवारी के बाहर दर्शकों के कानों तक पहुंची थी. जल्द ही सुमन जी को फ़िल्म में गाने का ऑफर भी आ गया. ये फ़िल्म थी 1953 में रिलीज़ हुई मराठी फ़िल्म 'शुक्राची चांदनी'. फ़िल्म जब थिएटर में चली, तो दर्शक दीर्घा में बैठे जाने-माने डायरेक्टर शेख मुख्तार के ज़हन में फ़िल्म से ज़्यादा फ़िल्म के गीत रह गए. सुमन की आवाज़ की कोमलता से प्रभावित होकर उन्होंने सुमन को उनकी आने वाली फ़िल्म "मंगू" में तीन गाने ऑफर कर दिए. फ़िल्म में म्यूज़िक दे रहे थे मोहम्मद शफी.
सुमन ने तीनों गाने खूबसूरती से गाए और फ़िल्म रिलीज़ का इंतज़ार बेसब्री से करने लगीं. लेकिन रिलीज़ से पहले किसी कारणवश फ़िल्म के म्यूज़िक की ज़िम्मेदारी मोहम्मद शफी की जगह ओपी नैय्यर को सौंप दी गयी. नैय्यर साब ने सुमन जी के गाए तीन गानों में से सिर्फ एक गाने को ही फ़िल्म में जगह दी. इस बात से उन्हें थोड़ी निराशा तो हुई लेकिन फिर सोचा चलो फ़िल्म में कम से कम एक गाना तो रखा गया. और इस तरह 1954 में रिलीज़ हुई 'मंगू' के गीत 'कोई पुकारे धीरे से तुझे' से सुमन कल्याणपुर की हिंदी फिल्मों का सफ़र शुरू हुआ.
सुमन कल्याणपुर जी को बचपन में संगीत के साथ पेंटिंग का भी शौक था.
सुमन कल्याणपुर जी को बचपन में संगीत के साथ पेंटिंग का भी शौक था.


'मंगू' से शुरू हुए फिल्मों में गाने के सफ़र ने आगे खूब रफ्तार पकड़ी. इसी साल फ़िल्म 'दरवाज़ा' में सुमन ने तलत महमूद के साथ अपना पहला डुएट गाया. तलत महमूद जैसे कद वाले सिंगर के साथ गाना गा सकने पर सुमन पर इंडस्ट्री की नज़र घूमी. भविष्य में सुमन कल्याणपुर जी ने हिंदी, मराठी फिल्मों में हज़ार के आस-पास गाने गाए. हिंदी, मराठी के अलावा गुजराती, मैथिली, तमिल, भोजपुरी, पंजाबी जैसी कई भाषाओं में भी गाने गाए. उनके गाए 'ना ना करते प्यार तुम्हीं से कर बैठे', 'दिल ने फिर याद किया', 'चांद तकता है इधर' जैसे ढेरों सदाबहार गीत आज भी खूब सुने जाते हैं.
सुमन कल्याणपुर अपनी बेटी चारुल कल्याणपुर के साथ.
सुमन कल्याणपुर अपनी बेटी चारुल कल्याणपुर के साथ.

# किफ़ायती लता 1950 और 60 का दशक हिंदी म्यूज़िक इंडस्ट्री में गोल्डन एरा माना जाता है. आखिर माना भी क्यों ना जाए. मानो कुदरत ने अपने सारे रत्न एक साथ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को इसी दौरान सौंप दिए थे. किशोर, रफ़ी, मुकेश की आवाज़ें जहां पुरुषों के दुख, उम्मीद और प्यार की आवाज़ बन रही थीं. वहीं फीमेल वॉयस के नाम पर सबकी पसंद मंगेशकर बहनें थीं. जिसमें लता जी की डिमांड पीक पर रहती थी. डिमांड ऐसी कि उस दौर में भी लता जी एक गाना गाने के 100 रुपये लेती थीं. बिज़ी शेड्यूल और महंगी फीस के चलते लता जी तक सिर्फ कुछ ही बेहद बड़े प्रड्यूसर्स पहुंच पाते थे. ज़्यादातर प्रड्यूसर्स को उनकी डेट्स नहीं मिलती थीं और कुछ उनकी महंगी फीस की वजह से उनके पास जाते ही नहीं थे.
ऐसे दौर में हूबहू लता मंगेशकर की आवाज़ वाली सिंगर मिलना इन प्रड्यूसर्स के लिए खज़ाना मिलने से कम नहीं था. परिणाम स्वरूप सुमन कल्याणपुर जी के पास फिल्मों का तांता लग गया. एक तरीके से इंडस्ट्री को दूसरी लता मिल गयी थीं. कहा जाता है कि ये बात लता जी को बिल्कुल पसंद नहीं आती थी कि कोई उनकी आवाज़ की नकल करता है. कहते हैं कि उन्होंने कई प्रड्यूसर्स से कह भी दिया था अगर वो सुमन के साथ काम करेंगे, तो वो उनके साथ काम नहीं करेंगी.
गाने की रिकॉर्डिंग करते समय खींची गयी सुमन जी की तस्वीर.
गाने की रिकॉर्डिंग करते समय खींची गयी सुमन जी की तस्वीर.

# द म्यूज़िकल डुओ 1960 के करीब लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी के बीच गानों की रॉयल्टी को लेकर बहस हो गयी. जिस कारण दोनों ने एक दूसरे के साथ काम करने को मना कर दिया. ऐसे में मोहम्मद रफ़ी के साथ डुएट गा सकने वाली गायिका की तलाश शुरू हुई और आकर थमी सुमन कल्याणपुर जी के पास. पब्लिक में भी मोहम्मद रफ़ी और सुमन के गाए गाने खूब चल निकले. शायद उस वक़्त किसी को एहसास ही ना हुआ हो कि जिस आवाज़ को वो सुन रहे हैं वो लता मंगेशकर की नहीं है. पॉपुलर डिमांड के चलते सुमन कल्याणपुर ने रफ़ी साब के साथ 140 से ऊपर गाने गाए.
 रफ़ी साब के साथ सुमन कल्याणपुर जी.
रफ़ी साब के साथ सुमन कल्याणपुर जी.

# जब 45 साल कराया अमीन सयानी को इंतज़ार जाने-माने रेडियो अनाउंसर अमीन सयानी 45 सालों तक सुमन जी से एक इंटरव्यू की दरख्वास्त करते रहे. लेकिन सुमन जी हर बार टाल जाती थीं. आखिर 45 सालों के बाद अमीन साब का इंतज़ार 2005 में खत्म हुआ, जब सुमन जी एक घंटे के इंटरव्यू के लिए राज़ी हुईं. हालांकि उन्होंने इंटरव्यू की मंजूरी सिर्फ इस शर्त पर दी कि कोई उनकी फोटो नहीं खींचेगा और अगर कोई सवाल उन्हें असहज़ लगा तो वो उसका जवाब नहीं देंगी. अमीन साब ने फौरन शर्त मंज़ूर कर ली और इंटरव्यू लेने उनके घर पहुँच गए जहां वो अपनी बेटी के साथ रहती थीं. इंटरव्यू के दौरान उन्होंने लता जी के अपने ऊपर प्रभाव को माना भी. वो बताती हैं-
"मैं उनकी आवाज़ से बहुत ज़्यादा प्रभावित थी. कॉलेज में मैं उनके गाने गाती थी. मेरी आवाज़ नाज़ुक और काफ़ी पतली थी. मैं क्या करती ? उस वक़्त रेडियो चलते थे, जिसमें कभी सिंगर का नाम अनाउंस नहीं होता था. इस कारण और कन्फ्यूज़न होता था. श्रेया घोषाल की आवाज़ भी पतली है लेकिन क्या अब ऐसा धोखा हो सकता है ? वो दौर अलग था. लेकिन हम (सुमन और लता) अच्छे दोस्त थे."
हालांकि लता मंगेशकर के साथ साम्यता होना, सुमन कल्याणपुर के लिए नुकसानदेह भी रहा. उनके करियर को वो ऊंचाई नहीं मिली, जिसकी वो हकदार थीं.
अमीन सयानी को एक लंबा अरसा लगा सुमन को इंटरव्यू के लिए राज़ी करने के लिए.
अमीन सयानी को एक लंबा अरसा लगा सुमन को इंटरव्यू के लिए राज़ी करने के लिए.


# सम्मान 2010 में महाराष्ट्र सरकार ने सुमन कल्याणपुर जी को लता मंगेशकर अवार्ड से नवाज़ा. आज के डिजिटल दौर में जहां क्रेडिट के हक के लिए सब डंके की चोट पर संघर्ष कर रहे हैं. वहीं सुमन जी ने कभी ये मुद्दा नहीं बनाया कि उन्हें उनकी योग्यता के मुताबिक़ शोहरत नहीं मिली. दुखद बात ये है कि अब तक किसी म्यूज़िक अवार्ड शो ज्यूरी की भी नज़र सुमन जी के इंडस्ट्री में योगदान पर नहीं गयी है.
सुमन कल्याणपुर जी लता मंगेशकर अवार्ड लेते हुए.
सुमन कल्याणपुर जी लता मंगेशकर अवार्ड लेते हुए.


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