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कहानी कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की

खड़गे की मां और बहन की हत्या किसने की थी?

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mallikarjun kharge
मल्लिकार्जुन खड़गे. (फाइल फोटो)
19 अक्तूबर 2022 (Updated: 26 अप्रैल 2024, 20:32 IST)
Updated: 26 अप्रैल 2024 20:32 IST
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आज़ादी की लड़ाई अपना अंतिम रूप ले रही थी, 1946 का साल था. तब के हैदराबाद राज्य में एक जगह थी वर्वट्टी. फिलवक्त कर्नाटक में है. हैदराबाद के निज़ाम के कुछ सैनिक वर्वट्टी के एक गांव जाते हैं. घर के बाहर एक बच्चा खेल रहा था. उम्र करीब तीन बरस रही होगी. पिता काम पर गए थे. घर में मां और बहन थे. निजाम के सैनिकों ने मां और बहन दोनों को जिंदा जलाकर मार डाला. बच्चा सब देखता रहा. वो दर्दनाक दृश्य जीवन भर के लिए उसकी आंखों में कैद हो गया. वो बच्चा आगे चलकर राजनीति में आता है. कर्नाटक के बड़े और स्थापित नेताओं के बीच अपनी जगह बनाता है. वक्त के साथ पार्टी आलाकमान के सबसे वफादारों में गिना जाने लगता है. और 19 अक्टूबर, 2022 की दोपहर को यही नेता देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष पद का चुनाव जीत जाता है. नाम है मल्लिकार्जुन खड़गे.

अरसे बाद हमने देश की किसी पार्टी में अध्यक्ष का चुनाव होते देखा. दूसरे राजनैतिक दल आरोप लगा रहे हैं कि चुनाव सिर्फ दिखावे का था, मगर ये आरोप भी इसीलिए हैं क्योंकि चुनाव ''हुआ''. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मलिकार्जुन खड़गे और तिरुअनंतपुरम से सांसद शशि थरूर के बीच मुकाबला था. 17 और 18 अक्टूबर को वोटिंग हुई. आज यानी 19 अक्टूबर 2022 को दोपहर तक नॉट सो ब्रेकिंग खबर भी आ गई. चुनाव प्रबंधक मधुसूदन मिस्त्री ने नतीजे घोषित किए तो पता लगा -
कुल वोट पड़े  9 हज़ार 385 
मल्लिकार्जुन खड़गे को 7 हज़ार 897 वोट मिले 
शशि थरूर को 1 हज़ार 72 वोट मिले
जबकि 416 वोट इनवैलिड हो गए.

बड़े अंतर से मलिकार्जुन खड़गे की जीत हुई, जो पहले से ही तय मानी जा रही थी. गांधी परिवार ने सार्वजनिक तौर पर ऐलान नहीं किया था लेकिन सब जानते थे कि खड़गे गांधी परिवार के उम्मीदवार हैं. ऐसे में शशि थरूर की उम्मीदवारी नाम मात्र की रह गई थी. साल 1998 में सोनिया गांधी ने पहली बार कांग्रेस की बागडोर संभाली थी. पूरे 24 साल बाद ऐसा हो रहा है जब गांधी परिवार से इतर कोई व्यक्ति कांग्रेस अध्यक्ष बना. इससे पहले सीताराम केसरी के खाते में ये तमगा जुड़ा था. काउंटिंग के दौरान शशि थरूर गुट ने चुनाव में अनियमितताओं के आरोप लगाए. शशि थरूर के पोलिंग एजेंट सलमान सोज ने मधुसूदन मिस्त्री से चुनाव में हुई गड़बड़ी की लिखित शिकायत की. सलमान सोज ने यूपी, में हुए चुनाव में गड़बड़ी के आरोप लगाए, लेकिन नतीजों के बाद ये बात हवा हो गई.

थरूर ने खड़गे को बधाई दी, नतीजों के बाद दोनों की साथ में तस्वीर भी आई. टिप्पणीकार कहने लगे कि कांग्रेस की राजनीति में 10 जनपथ के बाद अब 10 राजाजी मार्ग का भी महत्व हो चला है. जो कि मलिकार्जुन खड़गे का सरकारी घर है.

तो अब सवाल है कि क्या कांग्रेस का आलाकमान बदल जाएगा ? टिप्पणीकार बताते हैं कि कांग्रेस में खड़गे उतने ही ताकतवर रहेंगे जिनता कि बीजेपी में जेपी नड्डा हैं. इशारे में बड़ी बात कह दी जाती है. हालांकि इसको लेकर राहुल गांधी से भी सवाल हुआ. भारत जोड़ो यात्रा के दौरान आंध्र प्रदेश में राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान उन्होंने कहा कि पार्टी में उनका क्या रोल होगा ये पार्टी के अध्यक्ष ही तय करेंगे. बीजेपी आरोप लगा रही है कि कांग्रेस ने कठपुतली को चुना है, सबकुछ अब भी सोनिया गांधी के जरिए ही होगा. बीजेपी के इस आरोप पर कांग्रेस की तरफ से जवाब आता है, वो पूछते हैं बीजेपी में कौन सा चुनाव होता है या फिर कोई और पार्टी बताइए जहां अध्यक्ष के लिए चुनाव होता हो.  

आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से इतर, एक बार हमें मलिकार्जुन खड़गे की राजनीति को भी समझना होगा. कर्नाटक के दलित परिवार से आने वाले नेता हैं. हिंदी हार्ट लैंड के ज्यादातर लोग उन्हें तब से जानने लगे, जब वो नेता विपक्ष के तौर पर संसद में भाषण दिया करते थे. लेकिन उनका परिचय सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है. मल्लिकार्जुन खड़गे को निजी तौर पर जानने वाले बताते हैं कि वो बेहद शांत स्वभाव के हैं.

गरीबी में बचपन बीता. जैसा हमने शुरू में बताया था. मां की मौत के बाद खड़गे अपने पिता के साथ गुलबर्गा चले गए. पिता एक मिल में काम करते थे. गुलबर्ग में ही खड़गे की शुरुआती पढ़ाई हुई और उसके बाद वहीं के सरकारी कॉलेज में उन्होंने दाखिला ले लिया. वहीं से छात्र राजनीति की शुरूआत होती है. खड़गे ने जीवन में पहली बार चुनाव कॉलेज में ही लड़ा था. उन्हें छात्रसंघ का महासचिव चुना गया था. कॉलेज की राजनीति के दौरान खड़गे मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई में हिस्सा लेने लगे. जब तक पूरी तरह से वो राजनीति में उतरे, तब तक वो संयुक्त मजदूर संघ के प्रभावशाली नेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुके थे.

साल 1969. कांग्रेस में ओल्ड गार्ड और इंदिरा गांधी के बीच संघर्ष चल रहा था. उसी साल खड़गे ने कांग्रेस का दामन थामा. उम्र महज 27 साल थी. उन्हें सपोर्ट मिला कर्नाटक के तब के बड़े नेता देवराज उर्स का. जो सूबे के मुख्यमंत्री रहे थे. देवराज ने खड़गे को पहली बार विधानसभा का टिकट दिलवाया. 1972 में खड़गे राज्य की गुरमितकल सीट से पहली बार विधायक चुने गए. मतलब आज से पूरे 50 साल पहले खड़गे विधायक बन गए थे. 50 साल...बड़ा लंबा वक्त है. ये उनके अनुभव को भी बताता है.

1972 के बाद खड़गे लगातार 9 बार इसी सीट से विधायक चुनकर आते रहे. पहली बार विधायक बनने पर ही खड़गे को तब के सीएम देवराज उर्स ने मंत्री बना दिया. इसके बाद लगातार कर्नाटक की अलग-अलग सरकारों कई विभागों का जिम्मा संभालते रहे. खड़गे के बारे में एक बात कांग्रेसी और उनके विपक्षी भी कहते हैं, वो ये कि सियासत की काजल वाली कोठरी में पांच दशक से ज्यादा रहने के बावजूद उनपर व्यक्तिगत रूप से कभी कोई दाग नहीं लगा.

लल्लनटॉप के सौरभ त्रिवेदी ने उनकी प्रोफाइल लिखी है. वो बताते हैं कि 1994 में खड़गे की भूमिका तब बदलती है, जब कांग्रेस हार जाती है. कर्नाटक में सरकार बनी जनता दल सेक्युलर की. मुख्यमंत्री बने एच डी देवेगौड़ा. खड़गे विपक्ष के नेता बने. अब तक खड़गे कांग्रेस में कद्दावर नेता के साथ-साथ 'यस मैन' की छवि भी स्थापित कर चुके थे. कहा जाता है कि खड़गे कभी भी आलाकमान के फैसले के खिलाफ नहीं जाते हैं. जानकार कहते हैं ये उनके लिए गुण साबित हुआ.

1999 में कर्नाटक में कांग्रेस की वापसी हुई. पिछली विधानसभा में खड़गे विपक्ष के नेता थे. कद बढ़ चुका था. इस बार खड़गे का नाम भी मुख्यमंत्री की रेस में माना जा रहा था. लेकिन आलाकमान ने एस एम कृष्णा को सरकार का जिम्मा सौंप दिया. वही एस एम कृष्णा, जिन्हें मनमोहन सरकार में कांग्रेस ने विदेश मंत्री बनाया था. एस एम कृष्णा की सरकार में गृह विभाग खड़गे को मिला. खड़गे के शासनकाल में ही कुख्यात वीरप्पन ने कन्नड़ सिनेमा के जाने माने एक्टर और गायक राजकुमार का अपहरण किया था. कांग्रेस समर्थक इस मामले को हैंडल करने के लिए खड़गे की तारीफ भी करते हैं.

अगले विधानसभा चुनाव हुए साल 2004 में. कर्नाटक में कांग्रेस फिर जीती. लेकिन नंबर कम थे तो जेडीएस से मिलकर सरकार बनाई. इस बार ये लगभग तय माना जा रहा था कि मल्लिकार्जुन खड़गे के सिर ही मुख्यमंत्री का ताज सजेगा. लेकिन ऐन वक्त पर बाजी पलट गई. निजी तौर पर खड़गे के दोस्त और सियासी प्रतिद्वंदी धरम सिंह को आलाकमान ने मुख्यमंत्री बनने का आदेश दे दिया. कहते हैं खड़गे के लिए ये झटका था, लेकिन उन्होंने पार्टी के फैसले के खिलाफ चूं भी नहीं किया. धरम सिंह खड़गे से जूनियर थे. कइयों ने कहा खड़गे अपने जूनियर के नीचे कैसे काम करेंगे. लेकिन खड़गे ने पार्टी के आदेश को पूरी तरह माना.

खड़गे को यूं ही गांधी परिवार का वफादार नहीं कहा जाता. खड़गे के पांच बच्चे हैं. दो बेटियां और तीन बेटे. एक बेटी का नाम प्रियदर्शिनी है, जो इंदिरा गांधी के बचपन का नाम था और दो बेटों में एक का नाम प्रियांक और दूसरे का राहुल है. दिल्ली से कोसो दूर की राजनीति करने वाले खड़गे गांधी परिवार के करीबी होते गए. 2005 में खड़गे पर भरोसा जताते हुए कांग्रेस ने उन्हें प्रदेश कांग्रेस कमेटी का चीफ़ बनाया.

साल 2008 में कर्नाटक में कांग्रेस की हार हुई. हालांकि, खड़गे अपना चुनाव जीत गए थे.गांधी परिवार की गुड बुक्स में शामिल होने का इनाम खड़गे को मिला. 2009 में कांग्रेस ने खड़गे को उनके घर गुलबर्गा से टिकट दे दिया. खड़गे लोकसभा पहुंचे और मनमोहन सिंह ने उन्हें UPA-2 में लेबर और इम्प्लॉमेंट मंत्रालय का जिम्मा दे दिया.

2013 में फिर विधानसभा चुनाव हुए. कांग्रेस की जीत हुई. एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी और खड़गे को एक फ्रेम में देखा जाने लगा. लेकिन तब तक सिद्धारमैया जनता दल छोड़कर कांग्रेस में आ चुके थे. और आलाकमान ने एक बार फिर खड़गे के ऊपर सिद्धारमैया को चुना. इस बार भी खड़गे ने कोई सवाल नहीं पूछा. लेकिन जवाब में उन्हें 2013 में देश की रेल चलाने का जिम्मा दे दिया गया था. 2013 से ही कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार खराब होता गया. लेकिन इससे इतर खड़गे की राजनीति चमकती गई. 2014 में कांग्रेस को सिर्फ 44 सीट मिलीं. ज्यादातर कैबिनेट मंत्रियों की जमानत तक जब्त हो गई. लेकिन खड़गे, इस मोदी लहर में भी जीतकर लोकसभा पहुंचे. और कांग्रेस ने उन्हें संसद के निचले सदन में पार्टी का नेता चुना. हालांकि, 2019 में खड़गे लोकसभा चुनाव हार गए. ये उनके लंबे राजनीतिक करियर में पहली हार थी. ये एक समराइज्ड तरीके से मलिकार्जुन खड़गे के बारे में बताया. 80 साल के नेता की 50 साल की राजनीति को एक लल्लनटॉप में कतई नहीं समेटा जा सकता.

कर्नाटक की राजनीति में खड़गे की अपनी पहचान है, अगले बरस ही कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. जहां कांग्रेस को काफी उम्मीदें हैं, आपने देखा होगा गुजरात चुनाव के वक्त में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने कर्नाटक में कितना ज्यादा समय दिया. कर्नाटक में ही खड़गे की असली परीक्षा होने वाली है. फिलवक्त वो राज्यसभा के सदस्य हैं, राज्यसभा में नेता विपक्ष भी. मगर आने वाले दिनों में उन्हें पद छोड़ना होगा. क्योंकि कांग्रेस अपने संकल्प -- एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत पर काम कर रही है. कांग्रेस अध्यक्ष तौर पर खड़गे के सामने बड़ी चुनौतियां होंगी. 

देखिए वीडियो: मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की कहानी

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