The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • Lallankhas
  • Story of an IITian Prabhat Saxena who is educating poor students of Bundelkhand to transform Rural India

जिले में टॉप मारा, IIT फोड़ा और अब गांव के बच्चों को IIT पहुंचाने में जुटा ये इंजीनियर

यूपी के बुंदेलखंड में बड़ा काम कर रहा ये पेट्रोलियम इंजीनियर.

Advertisement
Img The Lallantop
आईआईटीएन प्रभात सक्सेना गांवों के बच्चों को स्मार्ट बनाने के लिए बड़ा काम कर रहे.
pic
सौरभ
16 मई 2020 (Updated: 16 मई 2020, 01:20 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
राठ. आप पूछेंगे ये क्या है. तो ये एक तहसील है. पड़ती है उत्तर प्रदेश के उस इलाके में जिसका चुनावों के वक्त बड़ा बोलबाला रहता है. एक से एक बड़े वादे किए जाते हैं इस प्यासे इलाके को लंदन बनाने के. मगर फिर सब फुस्स. समझने वाले समझ गए होंगे. बुंदेलखंड की बात हो रही. तो इसी बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में पड़ती है राठ तहसील.
साल था 2001. इसी राठ के एक किसान के बेटे प्रभात सक्सेना ने 12वीं क्लास में हमीरपुर, यानी पूरे जिले में मार दिया टॉप. 81 पर्सेंट नंबर आए. 81 पर्सेंट देखकर ज्यादा चौंकिए मत. ये यूपी बोर्ड का मामला था. वो वाले यूपी बोर्ड का, जिस पर तब के मुख्यमंत्री और अब के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का सख्ती वाला डंडा चल रहा था. नकल करने वाले धर के सीधा जेल भेजे जा रहे थे. खाली अकल वाले पास हो रहे थे. वैसे भी तब यूपी में बड़ी चौड़ में कहा जाता था. यूपी बोर्ड के 80 पर्सेंट माने सीबीएसई के 95 पर्सेंट.
Kv Schools Pt.
प्रभात यूपी बोर्ड में सख्ती के बाद भी 81 पर्सेंट नंबरों के साथ पास हुए.

तो प्रभात के किसान पिता जो अब वकालत कर रहे थे, उनको लगा लड़के में तो पोटाश है. सो फैसला लिया. लड़के को बाहर पढ़ने भेजने का. बाहर माने विदेश नहीं. कानपुर. कानपुर जोकि तब कोटा फैक्ट्री का छोटा वर्जन बन चुका था. आईआईटी कोचिंग की उभरती मंडी. प्रभात को लेकर उनके पिता पहुंचे काकादेव. काकादेव माने  कानपुर की कोचिंग मंडी वाला इलाका. यहां इनको मिला एक दलाल. एक कोचिंग का नाम लेकर बोला- बस यहां पढ़वा दीजिए. लड़के को आईआईटी निकालने से कोई रोक नहीं पाएगा. बड़ा इंजीनियर बनेगा.
पापा को बात जम गई. कोचिंग में एडमिशन करा दिया. प्रभात जुट गए तैयारी में. पर गांव से शहर पहुंचे प्रभात के लिए ये सब इतना आसान नहीं था. कल तक तो उन्हें आईआईटी का फुलफॉर्म तक नहीं पता था. सो एक साल तो लग गए समझने में कि आईआईटी किस चिड़िया का नाम है और कोचिंग में बताया कितना पढ़ना है और कितना छोड़ना है. पर दूसरे साल तक प्रभात दुनियादारी समझ चुके थे. कोचिंग के सही वाले मास्टर चुने. दलाल के एक्सपर्टाइज से हटके. फायदा मिला और प्रभात ने 2003 में आईआईटी फोड़ दिया.
Iit Dhanbad
प्रभात ने आईआईटी धनबाद से पेट्रोलियम इंजीनियरिंग की.

अब बुंदेलखंड की एक छोटी सी तहसील का ये लड़का धनबाद जा रहा था. कोयला माफियाओं को खत्म करने नहीं. आईआईटी धनबाद में पढ़ने. राठ में प्रभात तीसरे चौथे रहे होंगे जो आईआईटी जैसे देश के बड़े इंजीनियरिंग संस्थान पहुंचे होंगे. प्रभात को भी इस बात का मलाल था कि उनके इलाके के बच्चे क्यों नहीं पहुंच पा रहे यहां तक. तो 2003 में आईआईटी के पहुंचने के साथ ही प्रभात ने एक और काम शुरू किया. राठ के बच्चों को टिप्स देने का. कि कैसे वो भी IIT पहुंचें. 2007 में प्रभात की पढ़ाई पूरी हुई. और वो बन चुके थे पेट्रोलियम इंजीनियर.
अब गांव को वापस देने की बारी
प्रभात की पहली जॉब लगी मुंबई में. फिर आई विदेश जाने की बारी. पहले नॉर्वे, फिर आबू धाबी और अब प्रभात कुवैत में हैं. सीनियर रिजर्वायर इंजीनियर. एक बड़ी पेट्रोलियम कंपनी में. मगर 2003 से शुरू किया अपना काम प्रभात अब तक नहीं भूले हैं. प्रभात आईआईटी जाने के बाद से ही अपने क्षेत्र के बच्चों को ऑनलाइन क्लास लगाकर गाइड करते रहे. मगर फिर प्रभात को लगा कि ये नाकाफी है. सो 2015 में उन्होंने इस काम को बढ़ाने के लिए एक संस्था बनाई. नाम रखा सृजन-एक सोच.
Whatsapp Image 2020 05 11 At 5.34.21 Pm
सृजन संस्था बुंदेलखंड के 15 गांवों में काम कर रही है.

प्रभात बताते हैं कि 2015 में मुझे लगा कि मैं अकेले कब तक ये करूंगा. मैं सेटल भी था तो सोचा कि इस काम को आगे बढ़ाना चाहिए. सो मैंने ये संस्था बनाई. शुरू में वॉलंटियर्स जोड़े जो गांव में बच्चों को पढ़ा सकें. मैंने खुद ऑनलाइन क्लासेज लेनी शुरू कीं. बुंदेलखंड के कई गांवों में स्मार्ट क्लास बनाईं. बच्चों को डिजिटल तरीके से पढ़ाया. 2017-18 में फिर हमने करीब 12 पेड वॉलंटियर्स जोड़े ताकि वो रोज जाकर बच्चों को पढ़ा सकें.
प्रभात बताते हैं कि फिलहाल उन्होंने बुंदेलखंड के करीब 15 गांव गोद ले रखे हैं जहां वो एजुकेशन के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. स्मार्ट क्लास बनवाके वहां के बच्चों का बेस मजबूत कर रहे हैं. एक गांव उत्तराखंड में भी गोद लिया है. आईआईटी रुड़की वाला. इसके अलावा अब प्लान बिहार, एमपी, झारखंड और महाराष्ट्र के पिछड़े इलाके में काम करने का है.
प्रभात कहते हैं गांवों को बच्चों को पढ़ाने से पहले उनको स्कूल लाना ज्यादा मुश्किल काम है. इसके लिए उन्होंने एक तरकीब अपनाई. गांववालों यानी पैरंट्स को साथ जोड़ा. स्किल वर्कशॉप, हेल्थ कैंप लगाकर. उनको विश्वास दिलाके कि वो उनके बच्चों के लिए कुछ बेहतर करना चाहते हैं. नतीजा ये हुआ कि ये लोग अपने बच्चों को पढ़ने भेजने लगे.
Whatsapp Image 2020 05 11 At 5.34.35 Pm
प्रभात की संस्था ने 12 पेड वॉलंटियर्स रखे हैं जो गांव में बच्चों को पढ़ाने का काम कर रहे.

प्रभात बताते हैं कि 2016 में उन्होंने कुछ स्कूल्स से टाइअप किया. हायर एजुकेशन को और अच्छा करने के लिए. नतीजा 2019 तक नजर भी आने लगा. जब उनकी संस्था के गाइडेंस में 5 बच्चे आईआईटी में सेलेक्ट हुए. प्रभात कहते हैं कि उनका लक्ष्य आने वाले दिनों में ये काम 100 गांवों तक पहुंचाने का है. पिछड़े इलाके के गरीब तबके के बच्चों को मौके देने का है. प्रभात कहते हैं कि इस काम में उनके और दोस्त भी मदद करते हैं. उनकी संस्था की मैनेजमेंट कमेटी में करीब 17 लोग हैं. यहां पर उनका काम देखते हैं विनय गुप्ता. माने गांवों को चुनना. वॉलंटियर्स को मैनेज करना. पढ़ाकू बच्चों को छांटकर उनकी ज्यादा हेल्प करना. संसाधन मुहैया करवाना.
कोरोना में भी काम नहीं रुका
कोरोना लॉकडाउन में भी प्रभात की संस्था लोगों की मदद कर रही है. बुंदेलखंड, बिहार में उनकी संस्था 1500 से ज्यादा परिवारों की मदद कर चुकी है. राशन के पैकेट बांटे हैं. इसके अलावा उनकी संस्था ने हाइवे पर जाने वाले ट्रक वालों की मदद की. उनको खाना-पीना देकर. क्योंकि रास्ते में ढाबे वगैरह सब बंद हैं. बिहार के 5 गांवों में संस्था ने सैनिटाइजेशन करवाया है. और ये काम जारी है. प्रभात ने बताया कि क्योंकि हमारा मेन फोकस एजुकेशन पर रहता है तो हमने वीडियोज बनाकर बच्चों के पैरंटस के मोबाइल पर भेजे हैं. ताकि बच्चे उन्हें देख पढ़ सकें. और ये काम हम आगे भी करते रहेंगे.


लल्लनटॉप वीडियो देखें-

Advertisement