क्या राजस्थान में राम और हनुमान दंगा करवाने के साधन बन गए हैं?
कहानी उस नौजवान की भी जिसके एक बयान ने दोनों तरफ के दंगाइयों आइना दिखा दिया
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कमाल की बात है कि हर बार दंगा ईश्वर के नाम पर होता है
4 जनवरी 1544. मारवाड़ के सरहदी इलाके गिरी सुमेल में शेरशाह सूरी अपनी 80,000 की सेना अपने डेरे में बैठी सुस्ता ही रही थी कि 10,000 राजपूत घुड़सवारो ने उसके उपर अचानक धावा बोल दिया. शेरशाह की सेना इसके लिए तैयार ना थी. राजपूत आठ के मुकाबले एक थे लेकिन इस औचक हमले ने उनके पलड़े को भारी कर दिया था. राजपूत अपने दो सबसे भरोसेमंद सरदारों की कमान में लड़ रहे थे. नाम जेता और कुंपा.नतीजा यह हुआ कि सुबह पौ फटने के साथ शुरू हुई जंग में दोपहर होने तक शेरशाह की आधी सेना धराशायी हो चुकी थी.अपनी सेना को उखड़ते देख शेरशाह ने मैदान छोड़ने की तैयारी शुरू कर दी. उसने अपने घोड़े पर काठी कसने के आदेश भी दे दिए. तभी उसके सेनापति खवास खान ने उसे आकर बताया कि वो जैसे-तैसे करके जंग जीत चुके हैं. शेरशाह ने जवाब में कहा, "मैं अभी मुट्ठीभर बाजरे के लिए दिल्ली की सल्तनत गंवा बैठता." इस जंग में जेता और कुम्पा आखिरी दम तक लड़ते-लड़ते अमर हो गए. सुमेल गिरी को नया नाम मिला, 'जैतारण'. सुमेलगिरी के युद्ध लोक साहित्य में कुछ इस तरह से दर्ज किया गया-
बोल्यो सूरी बैन यूँ, गिरी घाट घमसाण, मुठी खातर बाजरी, खो देतो हिंदवाण.

जेता की तस्वीर जिनके नाम पर जैतारण का नामकरण हुआ
आज के नक़्शे में जैतारण राजस्थान के पाली जिले की एक तहसील है. कभी जेता-कुम्पा की वीरता का गवाह रहा जैतारण हनुमान जयंती के दिन सांप्रदायिक दंगों का गवाह बना. जैतारण के बगल में एक और तहसील है 'सोजत'. सोजत अपनी सुरंगी मेहंदी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्द है और अचानक बिगड़ने वाले सांप्रदायिक माहौल के लिए आस-पास के इलाके में बदनाम है. जन्माष्ठमी, राम नवमी, मोहर्रम, हनुमान जयंती स्थानीय लोगों के लिए पर्व और स्थानीय प्रशासन के लिए चुनौती की तरह आते हैं.
31 मार्च को हनुमान जयंती थी. सोजत में तनाव के इतिहास को देखते हुए जिला प्रशासन ने सारा जाब्ता यहां लगा रखा था. स्थितियां नियंत्रण में थीं. हनुमान जयंती के जुलूस शांति से निकले इस वास्ते नया रूट बनाया गया था. सबकुछ शांति से चल रहा था. पुलिस और प्रशासन ने इस कामयाबी पर अपनी पीठ थपथपाने की तैयारी में थी कि मौके पर तैनात आला पुलिस अधिकारीयों के पास आए एक मैसेज ने पुलिस महकमे की बैचेनी बढ़ा दी. यह मैसेज था, "जैतारण में दो समुदायों के बीच पथराव, हालात काबू से बाहर."

जैतारण में आगजनी के बाद बस स्टैंड के आस-पास का इलाका धुएं से भर गया
जैतारण में बस स्टैंड के पास शाम के साढ़े तीन बजे 29 साल के अकरम (बदला हुआ नाम) अपने मोबाइल पर तेजी से तीन डिजिट वाला नंबर डायल कर रहे थे. इंजीनिरिंग की पढ़ाई कर चुके अकरम ने अबतक दीवारों और अखबारों में छपे इस्तीहर से यह जाना था कि आग लगने पर क्या किया जाना चाहिए. यह मौक़ा था जब उन्होंने अपने फोन से '102' डायल किया. आश्चर्यजनक तौर पर यह नम्बर एंगेज आ रहा था. 100 नंबर डायल करने से कोई मतलब नहीं था क्योंकि कस्बे की पुलिस किसी तरह से खुद को पत्थरों से बचाने की जद्दोजहद में लगी हुई थी. अकरम को याद आया कि 108 नंबर हर किस्म की आपात स्थिति से निपटने में कारगर साबित हो सकता है. उसने वो भी मिलाकर करदेखा. अकरम ने पाया कि उसके कान में एंगेज टोन लगातार बज रही है और 100 फीट दूर जल रही बस से उठता धुंआ हर बीतते क्षण और गहरा होता जा रहा है.
15 मिनट के भीतर बस राख में तब्दील हो चुकी थी. शाम होते-होते उसने किसी के मुंह से सुना कि बलवे में 8 दुकाने, एक बस, एक चार पहिया गाड़ी और 50 के करीब मोटरसाईकिल जला दी गई हैं. इनमें से ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के लोगों की हैं. बलवा चाहे 31 मार्च को हुआ हो लेकिन इसकी नींव काफी पहले रखी जा चुकी थी.
एक सड़क जो दंगे तक जाती है
जैतारण शहर में शीतला माता का एक मंदिर है. इस मंदिर की तरफ जाती सड़क को लोग अपनी सहूलियत के लिए शीतला माता रोड कहते हैं. इस रोड के एक तरफ शमसान है और दूसरी तरफ ईदगाह की जमीन है. मसला यह था कि शीतला माता मंदिर रोड की चौड़ाई 8 फीट है. आस-पास के लोग इस रोड के संकरी होने का हवाला देकर इसे 20 फीट चौड़ी करने की मांग कर रहे थे. इस मांग में एक पेंच था. सड़क चौड़ी करने के लिए ईदगाह को अपनी जमीन का एक हिस्सा कुर्बान करना पड़ता. मुस्लिम समुदाय के लोग इसके लिए तैयार नहीं थे. इस बात को लेकर दोनों समुदायों के बीच काफी तनाव था.
जैतारण में एक एसडीएम थे जेपी बैरवा. यह मामला 10 दिन पहले उनके सामने आया. उन्होंने ईदगाह कमिटी के कागजात देखकर बताया कि जमीन पर कानूनी तौर पर कमिटी का अधिकार है. यह कमिटी की इच्छा पर है कि वो अपनी जमीन छोड़ती है या नहीं. आखिरकार बात यहां पर छूटी कि दोनों पक्ष जल्द ही आपस में बैठकर कोई ना कोई समझौता कर लेंगे.

आगजनी का शिकार एक निजी बस
चार दिन पहले एसडीएम जेपी बैरवा को जैतारण से एपीओ कर दिया गया. यह एक सरकारी टर्म है. सरल भाषा में समझे तो इसका मतलब होता है आप हालिया नियुक्ति से हटा दिए गए हैं और आगे की नियुक्ति के लिए आपको घर बैठकर इंतजार करना है. सरकारी कर्मचारी के लिए यह ऐसी सजा है जो सस्पेंड हो जाने से थोड़ी हल्की है.
सुरेन्द्र गोयल जैतारण के हालिया विधायक हैं और राज्य सरकार में जन स्वास्थ्य और भूजल का महकमे के मंत्री हैं. गोयल की इस मामले में दिलचस्पी जगजाहिर थी. जेपी बैरवा को एपीओ किए जाने को लोग गोयल से जोड़कर देख रहे थे. सच्चाई जो भी हो जेपी बैरवा को एपीओ किए जाने से माहौल एकबार फिर से गर्म हो गया.
वो करतब देखने गया था
हनुमान जयंती के दिन हर साल हिंदू संगठन जुलूस निकालते आए हैं. जुलूस में सबसे आगे करतबबाजो की एक टुकड़ी हुआ करती है. यह टुकड़ी लाठी, तलवार चलाने जैसे करतब करते हुए चलती है. जैतारण में बस स्टैंड और नयाबास के आप-पास आधे किलेमीटर की लम्बाई में मुस्लिम समुदाय के लोगों की आबादी काफी घनी है. जुलूस हर साल यहां से निकलता है. इस बार भी कुछ ऐसा ही था. बस स्टैंड के आप-पास के दुकानदार अपने धंधे में लगे हुए थे. मुस्लिम आबादी के लड़के करतबबाजों का करतब देखने के लिए जुलूस के पास खींचे चले आए थे.
करतबबाज अपना करतब दिखा रहे थे और पीछे जय श्री राम के नारे लग रहे थे. एक करतबबाज सिर पर फ्यूज हो चुकी ट्यूबलाइट फोड रहा था. उसके सिर पर ट्यूब से निकलने वाली सफेदी जम चुकी थी. अचानक फूटी हुई ट्यूब का एक टुकड़ा पास ही खड़े एक मुस्लिम किशोर पर गिर गया. बदले में उसने गाली निकाल दी. यहां से माहौल गर्म होना शुरू हो गया. पास ही खड़े कुछ लोगो ने समझाइश शुरू की. 'बच्चा है' कह कर मामले को शांत करने की कोशिश की. इतने में जुलूस के पिछले हिस्से से हल्ला होना होना शुरू हो गया.आगे की तरफ खड़े कुछ समझदार लोगों ने मौके की नजाकत को समझते हुए मुस्लिम किशोर को पास की गली में घुस जाने के लिए कहा.

बलवे के बाद डॉ दिन से जारी कर्फ्यू
यहां दो अलग-अलग दावे सामने आते हैं. पहला दावा मुस्लिम समुदाय का है जो कहता है कि गली में जा रहे उस किशोर के पीछे से पत्थर फेंके गए जिसके बाद दोनों तरफ से पत्थरबाजी शुरू हुई. वहीं जुलूस में मौजूद लोगों का कहना है कि पहले पत्थर मुस्लिम समुदाय की तरफ से चले. सच्चाई जो भी हो थोड़ी ही देर में जैतारण की गलियां जंग का मैदान बन गई.
इस मामले के चश्मदीद रहे अब्दुल हकीम कहते हैं-
"हर साल यहां से जुलूस निकलता है लेकिन कभी भी इस तरह की घटना नहीं हुई. जैतारण काफी शांत जगह रही है. इस बार के जुलूस में हिन्दू संगठन पूरी तैयारी के साथ आए थे. जुलूस में चल रही तीन ट्रेक्टर-ट्रोली में पत्थर और पेट्रोल की बोतले रखी हुई थी. हमें इस बात का बिल्कुल अंदाजा नहीं था. दस साल में किसी ने इनको पत्थर नहीं मारा. आज क्यों मारते?"एक घंटे के भीतर 8 दुकाने जलाई जा चुकी थीं. बस स्टैंड पर मौजूद अमीन खांजी का पान का डब्बा जला दिया गया. उसके पास ही मौजूद एसआर जनरल स्टोर भी राख हो चुका था. सैय्यद हैंडलूम आगजनी के चपेट में आते-आते बचा. बाइक रिपेयर की चार दुकाने जला दी गईं. उनके बाहर खड़ी दर्जनों बाइक्स भी साथ ही जल गईं. एक निजी बस को भी आग के हवाले क्रर दिया गया.

आग की लपटों में घिरी बस
जिले का सारा पुलिस जाब्ता पास ही तहसील सोजत में तैनात था. सांचौर में जुलूस की सुरक्षा में लगी पुलिस दोनों पक्षों के बीच में फंस गई. पत्थरबाजी में पुलिस के करीब एक दर्जन से ज्यादा जवान घायल हुए. जैसे-तैसे करके पुलिस शाम 6 बजे तक उपद्रवियों को बस स्टैंड के आस-पास से हटाने में कामयाब रही.
बस स्टैंड से बाहर निकलने के बाद उपद्रवियों की एक टुकड़ी तालकिया रोड पर पहुंच गई. यहां मोहम्मद सदीक तेली की एसके टिम्बर मार्केट को आग के हवाले कर दिया गया. उनकी दूकान में काम करने वाले बिहारी मजदूरों को पीटा गया. सदीक कहते हैं कि उनका करीब दस लाख का माल राख हो गया और उन्हें अपना कारोबार फिर से खड़ा करने में काफी वक़्त लग जाएगा.
सांचौर में हुए बलवे के मामले में अब तक 30 से ज्यादा लोग गिरफ्तार किए जा सकते हैं. 60 से ज्यादा लोगों के घायल होने की खबर है. जेता के पराक्रम की गवाही देने वाले इस शहर में पुलिस कर्फ्यू के जरिए तनावपूर्ण शांति बहाल करने में कामयाब रही है. आखिर में असलम के मुंह से निकले शब्द हैं जो शहर में पसरे कर्फ्यू में बेरोक-टोक पूरे शहर में घूम रहे हैं, "हम सबको पता है कि चुनाव पास में हैं और यह सारा बखेड़ा सियासत की वजह से हुआ है. इसलिए हम मन में खटास नहीं लाते."
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