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इंटरनेट पर पहली बार सोनम गुप्ता की बेवफाई का सच

कहां से चला है ये नोट, किसी को नहीं पता. लेकिन अब इसके पीछे की कहानी सामने आई है.

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25 अगस्त 2016 (Updated: 14 नवंबर 2016, 08:47 AM IST) कॉमेंट्स
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Sonam gupta bewafa hai. ये लिखकर गूगल पर एंटर मारो. सबसे ऊपर आएगा 10 रुपए का ये नोट. तुड़ा मुड़ा हुआ सा नोट लेकिन गांधी की मुस्कराहट बरकरार. इस नोट पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है 'सोनम गुप्ता बेवफा है.' फेसबुक-व्हॉट्सएप पर बीते दिनों इस नोट की तस्वीर खूब वायरल हुई. लेकिन क्या किसी ने जानने की कोशिश की, कि इसके पीछे क्या कहानी है? इसे देखकर हमारे साथियों ने सोनम गुप्ता की कथित बेवफाई की संभावित कहानियां लिखी हैं. ये सभी कहानियां काल्पनिक हैं, लेकिन उस सनकपन की पड़ताल करती हैं, जिसमें किसी ने इस नोट पर ये बात लिखी होगी. हो सकता है इनमें से कोई कहानी आपको हंसाए, कोई रुलाए. लेकिन हार्ट बीट कंट्रोल करके पढ़ना.

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फेसबुक की मारी सोनम बेचारी

by प्रतीक्षा पीपी बात है 2010 की. सोनम गुप्ता का इंटर पूरा हो गया था. रिजल्ट का इंतजार था. समय था फॉर्म भराई का. रोज साइबर कैफे के चक्कर लगते. क्योंकि गुप्ता अंकल मानते थे कि इंटरनेट लगवाने से बच्चे बिगड़ जाते हैं. विक्की भइया बीकॉम थर्ड इयर में घिस-घिस के पहुंच चुके थे. सबसे जिगरी दोस्त अतुल निगम की शादी हुई थी अभी लेटेस्ट में. तबसे अतुल निगम ऐसा बेडरूम में घुसे थे कि निकलने का नाम नहीं लेते थे. विक्की भइया ने अकेलेपन में फेसबुक का सहारा ले लिया था. 5 बजे सोनम गुप्ता साइबर कैफ़े पहुंचती. आधे घंटे के 10 रुपये लगते थे. साढ़े पांच बजे गुप्ता अंकल ऑफिस से लौटते हुए स्कूटर का हॉर्न देते. सोनम पापा के साथ घर चली जाती. जबसे विक्की भइया ने सोनम को देखा था, साइबर कैफ़े जाने का टाइम बदल दिया था. 8 दिन. पूरे 8 दिन सामने वाली कंप्यूटर स्क्रीन के पीछे सोनम को देखते रहे. इंटरनेट सोनम के लिए नई चीज थी. एक अद्भुत खिलौना था. आंखें फाड़ के चीजें देखा करती. कभी कभी मुस्कुराती. विक्की भइया का अकेलापन मिटता जाता. 8वें दिन सोनम फिर उसी कंप्यूटर पर बैठी. विक्की भइया अपने कंप्यूटर पर. सोनम धीरे-धीरे टाइप करती. कैफ़े के कीबोर्ड पर आवाज तेज-तेज होती. सोनम हल्के-हल्के से मुस्कुराती. कभी तेजी से ब्लश करती और दांत से अपनी मुस्कान काट के रोक लेती. अचानक सोनम की आंखें उठीं. विक्की भइया से मिल गईं. विक्की भइया तो जैसे बेहोश. स्क्रीन पर देखते हुए तेजी से फ्यूचर की प्लानिंग करने लगे. ये तक सोच लिया गुप्ता अंकल से बेटी का हाथ मांगेंगे तो क्या कहेंगे. इतने में पापा के स्कूटर का हॉर्न बजा. सोनम हड़बड़ा गई. चेहरे की रंगत बदल गई. जल्दी-जल्दी टाइप करने लगी. हॉर्न फिर से बजा. कांच के दरवाजे से देखा पापा झांक रहे थे. सोनम उठी, और झट से भाग गई. विक्की भइया उठे. बेखुदी में सोनम के कंप्यूटर पर पहुंचे. हाय, उसका फेसबुक खुला छूट गया था जल्दी में. एक चैट विंडो खुली थी. विक्की भइया खुद को रोक नहीं पाए. मैसेज पढ़ते गए. ऐसा लगता कोई जानवर अपने नुकीले पांव उनके कलेजे में धंसाता जा रहा है. इतने में पीछे से आवाज आई, 'विक्की भइया, आधा घंटा हो गया. टाइम बढ़ा दूं?' 'नहीं', विक्की भइया ने कहा. कुर्सी से उठे. चमड़ी छोड़ते पर्स से 10 का नोट निकाला. जाते जाते उसपर लिखा, 'सोनम गुप्ता बेवफा है'. और नोट थमाकर बाहर निकल गए. फिर कभी उस कैफ़े में लौटकर नहीं आए.

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सिर्फ बेवफा ही नहीं, चोर भी है

by आशुतोष चचा भोपे भाऊ बचपन से सिंगल थे. दुइ साल पहले जब सारे दोस्त कहीं न कहीं सेटल हो गए तो उनको अपना सिंगल रहना कचोटने लगा. यही मौसम आ गया था सावन वाला. बिरंची लाल आकर कान में बोले "सुनो भोपे, इस सावन में बाबा धाम चलना है कांवड़ लेकर" "सिंघट्टा जाएगा मेरा. तुम साले सबके पास एक एक लड़किनिया भगवान दिए हैं. तुम जाव. हमरे ऊपर उनका कउन अहसान." "अबे भोपे बउरा गए हो का? देखो लड़किनिया यही सावन में सोलह सोमवार व्रत रहती हैं. ताकि उनका तुम्हरे जैसा चीमड़ लउंडा मिले. साले तुमहूं एक बार भोलेनाथ का नाम लेकर चल दो बाबा धाम. भगवान अगर देंगे नहीं तो तुम्हारा कुछ छीन भी न लेंगे." भोपे को आइडिया जम गया. लाल लंगूर बनके गए बाबा धाम. लौट के आए तो पापा ने नया स्मार्टफोन दिला दिया. उसी में मन लग गया. एक दिन फेसबुक पर सोनम गुप्ता की प्रोफाइल दिखी. गांव की गोरी का सुंदर सा तो फोटू लगा रखा था. रिलेशनशिप स्टेटस था सिंगल. वर्किंग ऐट स्टूडेंट. स्टडीड ऐट कल्याणी बाई बालिका इंटर कालेज. इंट्रेस्टेड इन बॉयज. बायो वाला चोंचला तब आया नहीं था. भोपे के मन में गुलाब खिल गए. सारे गुण मिल रहे थे भोलेनाथ की कृपा से. दन्न से रिक्वेस्ट गिरा दी. अगले पौने तीन घंटे में एक्सेप्ट भी हो गई. फिर पहले सिर्फ लाइक तक. फिर कमेंट तक. फिर छेड़ने वाले कमेंट तक. वॉव नाइज पिक्स तक. फिर धीरे से दबे पांव चैट में एंट्री. बातें एक दूसरे के शौक और टाइमपास पूछने से शुरू हुईं और लंतरानी हांकने से. खत्म कैसे हुईं ये न पूछो. वही तो सच्चा घाव है. एक साल इसी छन्नमकैयां में कट गए. फिर भोपे को कुलबुली मचने लगी. कि अब मिला जाए. सोनम गुप्ता ने कुछ दिन टरकाने का नाटक किया फिर हां बोल दी. कस्बे के बाहर वाली बाग में उठती रात को मिलने बुलाया. भोपे भाऊ पहुंचे. वहां सोनम नहीं थी. दूर दूर तक नहीं थीं. चार ठो देवदूत उनका मोबाइल, पर्स सब छीन लिए. मारकर हाथ पैर बांध दिए और लिटा दिया. सुबह करीम दादा मोबिल आयल का डिब्बा लिए निपटने आए थे तो इनकी कराह सुनी. खोल खाल के वापस घर लाए. तब से भोपे भाऊ पागल हो गए हैं. दिमागी संतुलन बिगड़ गया है. लड़की जात को देखते ही ईंटा लेकर दौड़ा लेते हैं. भोलेनाथ की मूर्ति को घर के सिलबट्टे पर एकदम बारीक पी डाला. कांवड़ियों का जत्था देखते ही आपे से बाहर हो जाते हैं. गंदी गालियां बकते हैं इत्ता आउट ऑफ कंट्रोल होते हैं कि बांधना पड़ता है. और हर दरो दीवार, पेड़ पालव, अखबार, चिट और नोट पर लिखते रहते हैं "सोनम गुप्ता बेवफा है."

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शहीद की विधवा, बेवफा सोनम

by कुलदीप सरदार शादी से पहले सोनम गुप्ता, सिर्फ सोनम थी. या कोई और उपनाम रहा होगा उसका, जिसका जिक्र इस कहानी में गैरजरूरी है. अब वो सिर्फ सोनम गुप्ता है. अनिल गुप्ता फौज में था. पोस्टिंग कश्मीर में. साल में एक बार छुट्टी मिलती थी. सोनम अपने सास-ससुर के साथ दिल्ली की एक साधारण कालोनी में रहती थी. शादी को आठ महीने हो गए थे, जब ये सारा बवाल शुरू हुआ. सासू मां ने पोते की डिमांड की. लेकिन सोनम-अनिल को बच्चा नहीं हुआ. और फिर वही हुआ कि सास-ससुर के मन में सोनम के लिए एक गुस्सा पलने लगा. ताने-वाने रोज की बात हो गई. बताते हैं कि एक दिन सासू मां ने मामूली सी बात पर थाली फेंक दी. जाकर सोनम की नाक पर लगी. सोनम रोना चाहती थी, पर रोई नहीं. उसने अनिल को फोन करके सिर्फ इतना कहा कि वो नौकरी करना चाहती है. अनिल ने थोड़ी पूछताछ के बाद इजाजत दे दी. हफ्ते भर में सोनम को एक कंपनी में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिल गई. 'किसी लायक नहीं छोड़ा तूने हमें. एक तो बांझ, ऊपर से इज्जत की मिट्टी कर दी.' ये ससुर जी का रिएक्शन था. सासू मां ने तुरंत अनिल को फोन लगाया, पर अनिल ने कहा कि वो आज कल परेशान चल रही है. कुछ दिन कर लेने दो नौकरी तो दिमाग बंट जाएगा. सोनम को नौकरी करते हुए साल भर हो गया, लेकिन ससुराल उसके लिए नरक बन चुका था.  दीवाली की छुट्टियों में अनिल घर आया. पति-पत्नी डॉक्टर से मिले तो पता चला कि अनिल कभी बाप नहीं बन सकता. ये बात घर पर नहीं बताई गई. सोनम उस रात सोई नहीं. रोई भी नहीं. अनिल ने सोचा था कि सोनम को नौकरी छोड़ने के लिए मना लेगा, पर इस बारे में बात ही नहीं कर सका. चार दिन में वो कश्मीर लौट गया. फिर उसकी खबर आ गई. शहीद अनिल गुप्ता अमर रहें! अमर रहें! तिरंगे में लिपटी लाश. सोनम सुन्न होकर देखती रही. नहीं रोई. इस बात को सालों बीत गए. 28 साल की सोनम दोबारा नौकरी करने लगी. 'एक विधवा वल्नरेबल औरत.' सास-ससुर उससे पीछा छुड़ाना चाहते थे. सोनम को ऑफिस में नवीन मिला और नवीन में उसे वो कंफर्ट मिला जिसके कंधे पर सिर रखकर वो रो सकती थी. अपनी पूरी कहानी बता सकती थी. नवीन और सोनम में दोस्ती हो गई. कहने वाले इस भाषा में कहते हैं कि नवीन ने उसे प्यार के जाल में फंसाया और उसकी वीडियो क्लिप बनाकर इंटरनेट पर डाल दी. उसके सास-ससुर का सबसे बड़ा डर 'बदनामी' ही था. बेटा बचा नहीं. बहू की अश्लील क्लिप मुहल्ले में सबके फोन में थी. बुड्ढे-बुढ़िया ने फांसी लगाकर जान दे दी. ससुर की जेब में परचा मिला. जिसमें सिर्फ एक लाइन लिखी थी, 'सोनम गुप्ता बेवफा है.' सोनम उस दिन रोई. खूब रोई. बताते हैं कि कई दिन तक रोती रही. उसका दिमाग काबू में नहीं रहा. पुलिस केस हुआ पर कोर्ट ने उसे दोषी नहीं पाया. सोनम के लिए उस घर में रहना मुमकिन नहीं था, जिसमें उसने तीन लाशें देखी थीं. वो इधर-उधर भटकने लगी और लोगों ने कहा कि पागल हो गई है. सात साल हो गए इस बात को. वो आज भी गाजीपुर की लाल बत्ती पर भीख मांगती है. जितने नोट उसे भीख में मिलते हैं, उन पर वो खुद लिखती है, 'सोनम गुप्ता बेवफा है.'

और अब सबसे बड़ी बात ये है कि सोनम गुप्ता का जवाब आया है, जिसे आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.


आपको क्या लगता है कि नोट पर 'सोनम गुप्ता बेवफा है' क्यों लिखा गया, हमें lallantopmail@gmail.com पर अपनी कहानी लिखकर भेजिए. अगर हमें पसंद आया, तो हम इसे आपके नाम के साथ छापेंगे.

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