दक्षिण कोरिया से राष्ट्रपति नहीं, सैंटा क्लॉस भारत आया है
मून जे इन की ये यात्रा अगर मुकम्मल रही और सबकुछ सोचे के मुताबिक हुआ तो अपनी बल्ले-बल्ले हो जाएगी.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन ने नोएडा में सैमसंग की एक प्रॉकक्शन यूनिट का उद्घाटन किया. इसे दुनिया का सबसे बड़ा मोबाइल प्रॉडक्शन सेंटर बताया जा रहा है (फोटो; ANI)
आज से 10 साल पहले मेरे गांव में चरवाहों के पास नोकिया का फोन हुआ करता था. बेसिक फोन. छोटा सा. जिसमें रेडियो बजता था. टॉर्च जलती थी. वो अधनंगे से भैंस की पीठ पर पसरे तेज आवाज में गाने सुनते थे.'साजन मेरा उस पार है, मिलने को दिल बेकरार है.'
10 साल बाद भैंसवारों की नई खेप तैयार हो चुकी है. ये नई खेप भी उन्हीं पुरानों की तरह भैंस की पीठ पर लेटे-लेटे गाछी-गाछी घूमती है. वो ही गाने सुनती है. कुछ नहीं बदला उनकी जिंदगी में. सिवा फोन सेट के. अब उनके पास नोकिया नहीं होता. सबकी तो गारंटी नहीं दे सकती. मगर हां, कइयों के पास सैमसंग है, ये पक्का पता है. न नोकिया हिंदुस्तानी था. न सैमसंग हिंदुस्तानी है. नोकिया फिनलैंड की कंपनी है. सैमसंग दक्षिण कोरिया की. ग्लोबलाइजेशन की महिमा. कहां की बनी चीज कहां इस्तेमाल हो रही है. खैर. तो ये साउथ कोरिया छोटा सा देश है. पांच करोड़ से कुछ लाख ऊपर की आबादी है कुल. ये छोटा सा देश दुनिया की कई बड़ी-बड़ी कंपनियों का परमानेंट पता है. एक तो सैमसंग बताया आपको. फिर वो LG. और ह्यूंदै. सैमसंग के बारे में तो ये कहते हैं कि वो सुई से लेकर जहाज तक, सब बनाती है.

विदेश राज्यमंत्री वी के सिंह दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति और उनकी पत्नी को रिसीव करते हुए (फोटो: पीटीआई)
इसी दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति हैं मून जे-इन. 2017 में राष्ट्रपति बनने के बाद अब भारत आए हैं. पहले-पहल. 8 जुलाई को वो भारत पहुंचे. 11 जुलाई को वापसी है उनकी. मून भारत के मेहमान हैं. जाहिर है, हम उनकी खातिरदारी करेंगे. लेकिन द्विपक्षीय रिश्तों की खूबी ये है कि मेहमान के साथ-साथ अपन को भी फायदा मिलना चाहिए. तो क्या दक्षिण कोरिया के साथ मजबूत रिश्तों से भारत को फायदा होगा? ये फायदा लेने के लिए भारत को क्या देना होगा? भारत के साथ मजबूत रिश्ते बनाने से दक्षिण कोरिया को क्या फायदा होगा? अगर आपको इन सारे सवालों के जवाब चाहिए, तो आप एकदम सही चीज पढ़ रहे हैं.

एशिया के उत्तरपूर्वी हिस्से में है दक्षिण कोरिया. कोरियन प्रायद्वीप पहले एक यूनिट थी. दूसरे विश्व युद्ध के समय जापान का कब्जा था इस पर. जापान के हारने के बाद यहां सोवियत की एंट्री हुई. फिर अमेरिका भी आ गया. दोनों ताकतों ने इसे दो टुकड़ों में बांट दिया. उत्तर कोरिया, जिसके ऊपर सोवियत का असर था. दक्षिण कोरिया, जिसके ऊपर अमेरिका का हाथ था (फोटो: गूगल मैप्स)
दक्षिण कोरिया है कहां?
भारत देश है. एशिया महादेश है. महादेश, यानी जमीन का बहुत बड़ा टुकड़ा. जहां ढेर सारे देशों की जगह हो. भारत एशिया के जिस हिस्से में आता है, उसको कहते हैं दक्षिण-पूर्व एशिया. इसी एशिया के मानचित्र में पूरब की ओर देखिए. एशिया के इस हिस्से को नॉर्थ-ईस्ट एशिया कहते हैं. वहां आपको कुछ देशों के झुरमुट दिखेंगे. उनमें चीन है. जापान है. मंगोलिया है. और है कोरियन महाद्वीप. ये कोरियन महाद्वीप कभी एक हुआ करता था. दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत ने इसका बंटवारा कर दिया. दो अलग-अलग देश बन गए- उत्तरी कोरिया और दक्षिणी कोरिया. दक्षिण कोरिया की राजधानी का नाम है सोल. उसका अपने पड़ोसी देश उत्तर कोरिया के साथ पुरानी रार रही है. मगर इस बीच उनके बीच के हालात बदले हैं. उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग-उन ने अपने बर्ताव में थोड़ा बदलाव दिखाया है. पहले उन्होंने मून जे-इन से मुलाकात की. फिर वो सिंगापुर जाकर अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप से मिले. दोनों के बीच कई चीजों पर सहमतियां बनीं. इस दोस्ती के भविष्य को लेकर आशंकाएं हैं, लेकिन वो अलग चीज है. फिलहाल तो स्थितियां सामान्य हैं. शांति है वहां. इस शांति के पीछे मून जे-इन का काफी हाथ है. उन्होंने काफी कोशिश की इसके पीछे.

डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही उनके और नॉर्थ कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन के बीच तनातनी थी. दोनों आए दिन खुलेआम एक-दूसरे की तरफ धमकियां उछालते थे. फिर ये भी हुआ कि सिंगापुर में दोनों मिले. वैसे नॉर्थ कोरिया कितने समय तक शांत रहेगा, इसको लेकर कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है (फोटो: रॉयटर्स)
मून तो चुनाव लड़ने के समय से ही भारत का नाम ले रहे हैं
2017 में दक्षिण कोरिया के अंदर राष्ट्रपति चुनाव हुआ. वहां की राष्ट्रपति थीं पार्क ग्वेन हे. उन्हें भ्रष्टाचार और पद का बेजा इस्तेमाल करने का दोषी पाया गया था. उनके ऊपर महाभियोग चलाया गया. पद तो छिन ही गया. साथ में 24 साल की जेल भी हुई. पार्क ग्वेन हे के जाने के बाद दक्षिण कोरिया में चुनाव हुए. मून जे-इन भी चुनाव लड़े. चुनाव के वक्त नेता अपनी आगे की नीतियां बताते हैं कि वो क्या ऐसा नया काम करेंगे कि उनके देश को फायदा होगा. ऐसी ही बातों के बीच मून जे-इन ने भारत के साथ रिश्ते बढ़ाने की बात कही थी. हां, एक बात बताना रह ही गया. वो पार्क ग्वेन के वक्त भी भारत आए थे. 2014 में.

मून जे-इन और PM मोदी की पहले भी मुलाकात हो चुकी है. 2017 में जर्मनी में जी-20 की बैठक हुई थी. ये उसी समय की फोटो है (फोटो: रॉयटर्स)
इस एक बात में में मोदी और मून एक जैसे हैं
मून की 'न्यू सदर्न पॉलिसी' अपने पारंपरिक सहयोगियों से आगे बढ़कर भारत जैसे दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों से रिश्ते मजबूत करने की बात करती है. दक्षिण कोरिया की परंपरागत विदेश नीति अमेरिका पर आधारित रही है. अमेरिका और चीन उसके सबसे बड़े व्यापारिक सहयोगी हैं. मून जानते हैं कि बदलते अंतरराष्ट्रीय समीकरणों के बीच अमेरिका और चीन पर आधारित नहीं रहा जा सकता. दक्षिण कोरिया को न केवल अमेरिका और चीन से, बल्कि जापान और रूस जैसे अपने करीबी पड़ोसियों से आगे बढ़कर बाकी देशों के साथ रिश्ते बढ़ाने होंगे. चीन और अमेरिका के बीच वैसे ही कुछ ठीक नहीं है. साउथ चाइना सी जैसे विवादों पर अमेरिका के साथ पहले से ही चीन की ठनी हुई थी. अब डॉनल्ड ट्रंप के आने के बाद ट्रेड वॉर भी शुरू हो गया है. ऐसे माहौल में अंतरराष्ट्रीय बाजार ज्यादा अस्थिर हो गया है. शायद इसीलिए मून भारत जैसी तेजी से आगे बढ़ रही अर्थव्यवस्थाओं पर फोकस करना चाहते हैं. उनकी नजर असोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशन्स (ASEAN) पर भी है. इस ग्रुप में इंडोनेशिया, मलयेशिया, फिलिपीन्स, थाइलैंड, सिंगापुर, ब्रूनेई, कंबोडिया, म्यांमार और वियतनाम जैसे मुल्क हैं. राष्ट्रपति बनने के बाद मून जे-इन इंडोनेशिया, फिलिपीन्स और वियतनाम जा चुके हैं. अब वो भारत आए हैं. भारत के ठीक बाद वो सिंगापुर जा रहे हैं.
ये तो थी मून और उनकी 'न्यू सदर्न पॉलिसी' की बात. अब इसी फ्रेम से नरेंद्र मोदी सरकार की 'ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी' को देखिए. ये नीति भारत के पूरब में बसे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों से रिश्ते मजबूत करने की तरफदारी करती है. बीते कुछ समय में भारत ने इंडोनेशिया, वियतनाम, मलयेशिया, जापान, साउथ कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और ASEAN देशों के साथ रिश्ते और मजबूत करने पर ध्यान दिया है. इस 'ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी' की मंशा है इन देशों के साथ आर्थिक, सांस्कृतिक, सामरिक सहयोग बढ़ाना. व्यापार बढ़े. सांस्कृतिक पहचान से जुड़े प्रतीक साझा किए जाएं. लोगों का एक-दूसरे के साथ संपर्क बढ़े. ऐसी तमाम बातों पर जोर दिया जा रहा है. इसी के तहत PM मोदी 2015 में दक्षिण कोरिया पहुंचे थे. मून और मोदी, दोनों की विदेश नीति यहां आकर एक जैसी मालूम पड़ती है.

ये तस्वीर 2015 की है. जब मोदी दक्षिण कोरिया गए थे. उस समय पार्क ग्वेन हे वहां की राष्ट्रपति थीं (फोटो: रॉयटर्स)
दोनों मुल्कों के आपसी व्यापार का क्या हाल है?
शुरुआत करते हैं व्यापार से. दक्षिण कोरिया व्यापार के मामले में बहुत बड़ा मुल्क है. निर्यात के मामले में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश. आयात के मामले में सातवां सबसे बड़ा मुल्क. भारत और साउथ कोरिया ने 2010 में CEPA पर दस्तखत किए थे. CEPA का पूरा नाम है- कॉम्प्रिहेन्सिव इकॉनमिक कोऑपरेशन अग्रीमेंट. इसके बाद दोनों मुल्कों के बीच लगातार व्यापार बढ़ा. हाल-फिलहाल की बात बताएं, तो 2016-17 में भारत और दक्षिण कोरिया का द्विपक्षीय व्यापार 17 बिलियन डॉलर (करीब पौने 12 खरब रुपये) के पार पहुंच गया. भारत का सबसे ज्यादा व्यापार चीन, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे देशों के साथ होता है. वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, भारत सबसे ज्यादा निर्यात करता है अमेरिका को. 2012 से 2016 के बीच भारत ने अपने कुल निर्यात का करीब सवा सोलह फीसद एक्सपोर्ट अमेरिका को भेजा. रुपयों में जोड़ें, तो लगभग 29 अरब रुपये. 2012 से 2016 के बीच भारत ने सबसे ज्यादा आयात किया चीन से. रुपयों में जोड़ें, तो करीब साढ़े 41 खरब रुपये का धंधा. भारत के टॉप पांच एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट वाले देशों में दक्षिण कोरिया का नाम नहीं है. इस लिहाज से देखें, तो भारत और साउथ कोरिया के बीच का द्विपक्षीय व्यापार 17 बिलियन डॉलर पर पहुंच जाना छोटी बात नहीं है. इन दोनों देशों ने अपने बीच और समझ बनाई, तो व्यापार का स्कोप और भी बढ़ सकता है.

साउथ कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन इंडिया कोरिया बिजनस फोरम को संबोधित करते हुए. साउथ कोरिया अमेरिका और चीन जैसे अपने पारंपरिक ट्रेड पार्टनर्स से अलग नए साझेदार तलाश रहा है. ताकि उनके ऊपर से उसकी निर्भरता कम हो सके. एशियाई देशों में बहुत माद्दा है. बहुत स्कोप है. (फोटो: रॉयटर्स)
निवेश का क्या हाल है?
प्रधानमंत्री मोदी 'मेक इन इंडिया' की बातें करते हैं. ये योजना चाहती है कि विदेशी कंपनियां भी भारत में आएं और यहां अपने प्लांट्स लगाएं. ताकि देश को निवेश मिले और लोगों को रोजगार मिले. इस लिहाज से साउथ कोरिया भारत की मदद ही कर रहा है. कई सारी चीजें हैं, जिसमें साउथ कोरिया बहुत शानदार पॉजिशन में है. जहाज बनाने का काम, स्टील, परमाणु ऊर्जा, भारी इलेक्ट्रिकल मशीनरी जैसी चीजों पर उसकी बहुत पकड़ है. इन सब जगहों पर भारत को उसकी एक्सपर्टीज का फायदा मिल सकता है. बोनस ये है कि साउथ कोरिया इन क्षेत्रों में निवेश करने के लिए भी तैयार है.
ह्यूंदै मोटर्स, सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स, एलजी. ये सारी साउथ कोरियन कंपनियां हैं. इन तीन कंपनियों ने दिसंबर 2017 तक भारत में लगभग साढ़े तीन खरब रुपयों का निवेश किया है. 9 जुलाई को मोदी और मून ने साथ मिलकर नोएडा के सेक्टर 81 में सैमसंग के एक कारखाने का उद्घाटन किया. यहां पहले से एक कारखाना था. अभी इसका विस्तार किया गया है. कह रहे हैं कि इस विस्तार के बाद ये दुनिया का सबसे बड़ा मोबाइल फोन बनाने वाला कारखाना बन जाएगा. पहले यहां हर महीने 50 लाख स्मार्टफोन बनाए जाते थे. अब इसकी क्षमता बढ़कर 1.2 करोड़ प्रति महीने हो जाएगी. पैसा तो पैसा है. बहुत सारे लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

मून जे-इन अच्छी छवि के नेता है. टकराव की जगह शांति के हिमायती माने जाते हैं. उन्हें राष्ट्रपति बने एक ही साल हुआ है. लेकिन नीतियों के लिहाज से वो काफी सारी नई चीजें ट्राय कर रहे हैं (फोटो: रॉयटर्स)
निवेश के नाम पर और भी बहुत कुछ है
इसके पहले ह्यूंदै ने तमिलनाडु में एक ऑटोमोटिव प्लांट लगाया था. किया मोटर्स ने आंध्र प्रदेश में दो मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू करने की बात की है. एलजी के भी दो कारखाने हैं भारत में. एक नोएडा में और दूसरा पुणे में. एलजी ग्रुप वेदांता के साथ मिलकर महाराष्ट्र में एक एलसीडी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट शुरू करने वाला है. दक्षिण कोरिया की एक टेक्सटाइल फर्म यूंगोन कॉर्पोरेशन वारंगल में एक कारखाना लगाने वाला है. करीब 10,000 लोगों को नौकरियां मिलेंगी वहां. साउथ कोरिया की स्टील कंपनी POSCO का भारत में अनुभव थोड़ा खराब रहा है. 2005 में उसका ओडिशा सरकार के साथ करार हुआ था. मगर विरोध के कारण उसे 12 साल इंतजार करना पड़ा. फिर भी जरूरी क्लियरेंस अटका रहा. आखिर में जाकर POSCO ने ये करार खत्म कर दिया. मगर इसके बावजूद उसने भारत से अपने पैर वापस नहीं खींचे. महाराष्ट्र में अपना पहला स्टील मिल बनाने का उसका काम पूरा हो चुका है. अब वो उत्तम गालवा ग्रुप के साथ मिलकर अपनी एक और मिल बना रहा है. साउथ कोरिया ने राजस्थान में अपना एक इंडस्ट्रियल पार्क बनाने का भी प्रस्ताव दिया है. इसको लेकर बात चल रही है.

साउथ कोरिया की राजधानी सोल में है POSCO स्टील का मुख्यालय. ओडिशा में अपना प्लांट खोलने का इसका अनुभव काफी खराब रहा. सालों इंतजार करने के बाद भी क्लियरेंस नहीं मिला (फोटो: रॉयटर्स)
सामरिक सहयोग क्या मिलेगा भारत को?
जहाज बनाने के काम और इस फील्ड की तकनीक के हिसाब से साउथ कोरिया बहुत आगे का खिलाड़ी है. भारत और साउथ कोरिया के बीच 2017 में एक समझौता हुआ. इसके तहत साउथ कोरिया नौसेना के लिए जहाज बनाने में हमारी मदद करेगा. ये समझौता भी 'मेक इन इंडिया' का हिस्सा है. भारत की हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (HSL) साउथ कोरिया की ह्यूंदै हैवी इंडस्ट्रीज के साथ मिलकर इंडियन नेवी के लिए जहाज बनाएगी. ये जहाज भारत में ही बनाए जाएंगे. ये तो है ही, इसके अलावा भारत की लारसन ऐंड ट्यूब्रो (L&T) साउथ कोरिया के साथ मिलकर भारतीय सेना के लिए 155mm/52 कैलिबर की आर्टिलरी गन्स भी बनाएगी. इन बंदूकों का नाम होगा- के-9 वज्र.

तस्वीर में बाईं तरफ से दूसरे नंबर पर हैं मून जे-इन. उनके बगल में हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. सबसे दाहिनी तरफ हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. ये मौका है नोएडा में सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स स्मार्टफोन मैन्युफैक्चरिंग फसिलिटी के उद्घाटन का. समझ लीजिए कि ये दुनिया का सबसे बड़ा स्मार्टफोन कारखाना है (फोटो: रॉयटर्स)
इनके अलावा भी भारत और साउथ कोरिया के बीच काफी चीजें हो रही हैं. पूरा फोकस इस बात पर है कि रिश्ते मजबूत हों. सहयोग बढ़े. व्यापार और कारोबार बढ़े. एक-दूसरे की मास्टरी का फायदा लिया जाए. जैसे, भारत IT में एक्सपर्ट है. साउथ कोरिया तकनीकी चीजों का महारथी है. तो ये दोनों किस तरह एक-दूसरे की ज्यादा से ज्यादा मदद कर सकते हैं. किस तरह काम करने वालों को ज्यादा से ज्यादा सहूलियत और अच्छा माहौल दिया जा सकता है. ऐसी तमाम चीजें हो रही दोनों मुल्कों के बीच. इनमें से कुछ चीजें पॉइंट्स में जान लीजिए-
1. साउथ कोरिया ने BRICS में शामिल देशों में से (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) पहली बार किसी के साथ मुक्त बाजार समझौता भारत के साथ ही किया. CEPA नाम के इस समझौते में दोनों देशों ने एक-दूसरे के यहां से एक्सपोर्ट होकर आने वाली चीजों पर टैक्स काफी घटा दिया.
2. CEPA के तहत भारत को न केवल एक्सपोर्ट में, बल्कि टेलिकम्यूनिकेशन्स, कंस्ट्रक्शन, अकाउंटिंग, बिल्डिंग, मेडिकल ट्रीटमेंट जैसी सर्विसेज में भी टैरिफ से छूट मिली. कंप्यूटर के जानकारों, इंजिनियर्स, अंग्रेजी के टीचर्स ऐसे तमाम लोगों के लिए भी वहां नौकरी से मौके बढ़े. भारत ने भी कोरिया के बैंकों को भारत में अपनी शाखाएं खोलने की इजाजत दी. दक्षिण कोरिया के शिनहान बैंक की चार शाखाएं हैं यहां. वूरी बैंक की एक ब्रांच है.
3. साउथ कोरिया खाने-पीने की चीजों की गुणवत्ता को बड़ी गंभीरता से लेता है. भारत की छवि इस मामले में बड़ी खराब है. मगर भारत चाहता है कि उसके यहां पैदा होने वाले आम, अखरोट, अंगीर, भिंडी, बैंगन, जैसी चीजों को दक्षिण कोरिया की हरी झंडी मिल जाए. इसको लेकर दोनों देशों के बीच कई स्तर की बातचीत हो चुकी है. भारत कई बार अपने कृषि उत्पादों के सैंपल साउथ कोरिया के पास जमा कर चुका है. भारत सरकार को उम्मीद है कि साउथ कोरिया से उसे इस फ्रंट पर भी हरी झंडी मिल जाएगी.
4. कोरिया में एक इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स खोला गया. ताकि कोरिया की कंपनियों को भारत के अंदर काम करने में आसानी हो. 2010 में शुरू हुआ था ये. 2017 तक 50 कोरियन कंपनियां इसकी सदस्य बन चुकी हैं.
5. कोरिया ट्रेड इन्वेस्टमेंट प्रमोशन एजेंसी (KOTRA) ने दिल्ली, मुंबई, चेन्नै, बेंगलुरु और कोलकाता में अपने ऑफिस खोले हैं. ये दफ्तर भारत में कारोबार कर रहे कोरियन बिजनसमैन की मदद करते हैं.
6. जनवरी 2016 में हुआ राउंडटेबल. उन कंपनियों का जो भारत में सड़क, पुल टाइप इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी चीजों में निवेश करना चाहते हैं. कोरिया की तरफ से तकरीबन 40 प्रतिनिधि शरीक हुए इसमें. दक्षिण कोरिया भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट पर काफी मदद कर रहा भारत की. उसने लगभग पौने सात खरब रुपयों का एक फंड भी बनाया है.

दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में घूमते-टहलते दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन (फोटो: PTI)
कुल मिलाकर भारत और साउथ कोरिया के बीच अभी सब हैपनिंग-हैपनिंग है. दोनों ही तरफ की सरकारें एक-दूसरे की अहमियत समझ रही हैं. भारत बहुत बड़ा बाजार है. ग्लोबल पावर है. एक मिसाल देखिए. साउथ कोरिया ऑटोमोबाइल और टेक-इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री में बहुत आगे है. उसके लिए भारत में बहुत बड़ा बाजार है. भारत की तरफ से देखिए तो हमें निवेश चाहिए. खूब सारा निवेश. लंबे समय का निवेश. जिससे न केवल पैसा आए, बल्कि नौकरियां भी आएं. 'मेक इन इंडिया' का यही मकसद है. साउथ कोरिया इस मामले में भारत की भरपूर मदद करता हुआ दिखाई दे रहा है. भारत को अभी भी अपनी कुछ बुनियादी कमियों पर काम करना होगा. जैसे, हमें अपने निर्यात का चरित्र सुधारने की जरूरत है. हम अभी भी अनाज टाइप बुनियादी चीजों का ज्यादा निर्यात करते हैं. खैर, वो चुनौतियां हमारी हैं. उनका साउथ कोरिया के साथ हमारे रिश्ते से कोई लेना-देना नहीं है.
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