वो पांच वजहें, जिनके चलते यूक्रेन से जंग ख़त्म नहीं करना चाहते पुतिन!
रूस का इरादा आखिर क्या है, पुतिन, यूक्रेन के साथ युद्ध (Russia Ukraine War) को और लंबा क्यों घसीट रहे हैं? जानकार इसके पीछे कुछ वजहें बताते हैं.

गुरुवार, 14 दिसंबर को रूस (Russia) के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई सवालों के जवाब दिए. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में 600 से ज्यादा पत्रकार मौजूद थे. पुतिन के लिए ये प्रेस कॉन्फ्रेंस सालाना परंपरा जैसी थी. लेकिन बीते साल, यूक्रेन के साथ जंग में (russia ukraine war) रूस की स्थिति अच्छी न होने के चलते, पुतिन पत्रकारों के सामने नहीं आए. इस बार कई और सवाल-जवाबों के इतर, पुतिन का भाषण ज्यादातर, यूक्रेन के इर्द-गिर्द ही रहा.
उन्होंने कहा कि यूक्रेन में तब तक शांति नहीं होगी जब तक रूस अपने लक्ष्य हासिल नहीं कर लेता. पुतिन का ये रुख लगभग वैसा ही है जैसा लगभग दो साल पहले, फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन जंग की शुरुआत के वक़्त था. क्रेमलिन ने तब कहा था कि यूक्रेन की स्थिति तटस्थ होने, विनाजीकरण (नाजी व्यवस्था हटाने) और विसैन्यीकरण (सेना हटाने) के बाद ही शांति संभव होगी.
सवाल ये है कि रूस के अपने लक्ष्य क्या हैं?, पुतिन, यूक्रेन के साथ युद्ध को और लंबा क्यों घसीट रहे हैं? दुनिया भर में कई जानकार, इसके पीछे कुछ वजहें बताते हैं, इन्हें समझते हैं.
पुतिन को धोखा हुआ?डॉक्टर रॉबर्ट जॉनसन, ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग में चेंजिंग कैरेक्टर ऑफ़ वॉर प्रोग्राम नाम के एक रिसर्च प्रोजेक्ट के डायरेक्टर हैं. उन्होंने एक लेख में यूक्रेन के खिलाफ युद्ध को लेकर रूस के शुरुआती इरादे बताए. उनके मुताबिक, रूस के उद्देश्य थे-
- अमेरिका और नाटो के मुकाबले एक नई वैश्विक व्यवस्था बनाना, जिसका सिरमौर रूस हो.
- दो दिन के अंदर क्यीव पर नियंत्रण करना.
- नाटो, पहले से विशाल रूस को स्वीकार करे. रूस, शीत युद्ध के दौर की ताकत और उतने ही इलाके पास काबिज हो सके.
- और, यूक्रेनियों का आत्मसमर्पण.
जॉनसन लिखते हैं कि रूस लंबे वक़्त से गलतफहमियों में था. मॉस्को में पश्चिमी देशों के बढ़ते 'वैश्विक प्रभुत्व' के खिलाफ शिकायत और डर की भावना बढ़ रही थी. रूस में कुछ लोगों ने इन खतरों को गंभीरता से ले लिया. पुतिन का मानना था कि सिर्फ रूस या चीन ही पश्चिम के खिलाफ खड़े हो सकते हैं. पुतिन का मानना था कि जो रूस के सामने आएगा, उसे रास्ते से हटा दिया जाएगा. असफल होने के बाद भी उन्हें लगता है कि वो ये जंग जीत लेंगे. लेकिन पुतिन ये समझने में विफल रहे कि यूक्रेनियों के लिए ये उनके अस्तित्व की लड़ाई है और वे हर कीमत पर रूस का प्रतिरोध करेंगे. पुतिन ने ये गणित भी लगाई होगी कि पश्चिमी देश इस लड़ाई में हाथ नहीं डालेंगे, लेकिन यूक्रेन खुद ही रूस को मजबूर कर सकता है कि या तो वो जंग जारी रखे और भारी नुकसान सहे या फिर लड़ाई रोक कर शांति कायम करने का रास्ता चुने ताकि उसका कुछ नुकसान कम हो. जॉनसन कहते हैं कि पुतिन को इस युद्ध से अब वो सैन्य फायदा नहीं है, जो उन्हें पहले हो सकता था.
क्रेमलिन के समर्थन में टिप्पणी करने वाले ज्यादातर जानकार, रूस की मिलिट्री कमान की आलोचना तो करते हैं लेकिन पुतिन के खिलाफ सीधे कुछ भी बोलने से बचते हैं. एक रूसी जानकार इल्या मतवेव, यूक्रेन से जंग शुरू होने के कुछ महीने बाद CNBC से बात करते हुए कहा था कि पुतिन किसी भी कीमत पर जंग नहीं हारना चाहते. हारना उनके लिए कोई विकल्प नहीं है. हालांकि इल्या ने ये भी कहा था कि परमाणु हथियार भी रूस के लिए समस्या का समाधान नहीं हैं. और यूक्रेनी सेना की बढ़ती मजबूती को वो रोक नहीं सकते. ये असंभव है.
रूस का इंतजार वाला प्लान-Bब्रिटिश थिंक टैंक, चाथम हाउस में रूस और यूरेशिया प्रोग्राम के डायरेक्टर, जेम्स निक्सी, नवंबर, 2023 के अपने एक लेख में कहते हैं कि रूस का प्लान-A था, जंग के शुरुआती हफ़्तों में कीव पर कब्जा करना और उसपर कमोबेस सीधा शासन करना. ये प्लान, अपमानजनक रूप से असफल हो गया है. जबकि प्लान-B है- यूक्रेन के सहयोगियों के हार मानने और जंग से वापस जाने का इंतजार करना. जेम्स के मुताबिक, ये प्लान अभी भी काम कर रहा है. रूस ने जंग के मैदान में खुद को लचीला और धैर्यवान साबित किया है.
जेम्स कहते हैं,
“बड़ी हकीकत यह है कि पुतिन, प्रेसिडेंट बाइडन को यूक्रेन की मदद करने से रोकने में सफल हुए हैं. जंग जीतने के लिए, यूक्रेन को इस मदद की जरूरत थी. अगर अमेरिका ने जरूरी कदम पहले उठाए होते तो, यूक्रेन और मजबूत स्थिति में होता. जर्मनी भी दोषी है, जिसने तनाव बढ़ने के डर से यूक्रेन को लंबी दूरी की टॉरस मिसाइलें मुहैया कराने से इनकार कर दिया.”
जेम्स एक और दिलचस्प बात कहते हैं,
"यूक्रेन की जीत की कल्पना करने लिए राजनीतिक साहस की जरूरत है. अगर ये माना लिया जाता है कि यूक्रेन जंग नहीं जीत सकता तो उसे हथियार नहीं दिए जाएंगे. इसका परिणाम ये होगा कि यूक्रेन युद्ध नहीं जीतेगा."
जेम्स के मुताबिक, पुतिन, बाइडन की झिझक से खुश हैं. वो डोनाल्ड ट्रंप के वापस सत्ता में आने से और खुश होंगे. जिस तरह रूस ने साल 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में सहयोगी की भूमिका निभाई थी, (रूस पर आरोप लगते हैं कि उसने ट्रंप के पक्ष में माहौल बनाया था.) उस तरह की भूमिका रूस, 2024 में होने वाले अमेरिका के प्रेसिडेंशियल इलेक्शन में भले न निभा पाए, लेकिन, ट्रंप की वापसी, एक गेम-चेंजर होगी. गौरतलब है कि फिलहाल, अमेरिका, रूस के खिलाफ लड़ने के लिए यूक्रेन को 70 फीसद तक रसद मुहैया करवा रहा है.
जेम्स के मुताबिक,
“अगर यूक्रेन के रिसोर्सेज़ ख़त्म हो गए तो उसका, यूरोपियन यूनियन और नाटो में शामिल होना भी एक खोखली जीत होगी. जबकि अभी यूक्रेन दोनों का ही हिस्सा नहीं है, लेकिन ऐसा होने की पूरी संभावना है. हालांकि ये काफी कुछ अमेरिका पर निर्भर करता है.”
जेम्स के मुताबिक, अभी तक रूस के लिए जंग, बुरी ही गुजरी है. काला सागर पर उसके सैन्य बेड़े को पीछे हटना पड़ा है. उसे अपने प्रायद्वीपीय इलाके बचाने में समस्या आएगी, यूक्रेन के जवाबी हमले भी रूस को महंगे पड़े हैं. लेकिन रूस ये नुकसान झेल सकता है. उसकी कोशिश युद्ध जीतने की है. उसके पास सैनिकों की कमी नहीं पड़ेगी. वो जरूरत के मुताबिक, बाकी संसाधन भी कम नहीं होने देगा. जबकि यूक्रेन के लिए ये दिक्कतें कहीं बड़ी हैं.
जेम्स आगे कहते हैं कि एक कमजोर प्लान और एक कमजोर दो अलग बातें हैं. कमजोर सेना गलतियों से नहीं सीखती. लेकिन रूस की सेना सीखती है. जेम्स कहते हैं कि पुतिन की विचारधारा बेशक भ्रामक है, लेकिन इस जंग को एक सफल निष्कर्ष तक ले जाने का उनका इरादा पक्का. और प्रिगोझिन मामले से उबरने के बाद, वह निश्चित रूप से मानते हैं कि वह जीत सकते हैं.
परमाणु हथियारों पर भरोसा?यूक्रेन से युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक, पुतिन कई बार रूस के परमाणु हथियारों का जिक्र कर पश्चिम देशों, ख़ास तौर पर अमेरिका को धमका चुके हैं. क्या परमाणु ताकत के भरोसे ही पुतिन युद्ध को जस का तस बनाए हुए हैं? द हार्वर्ड गैजेट के मुताबिक़, CIA के लिए न्यूक्लियर काउंटर-टेररिज्म ऑफिसर रह चुके रॉल्फ मोवाट लार्सेन के मुताबिक पुतिन को सबसे बड़ा डर था- यूक्रेन का यूरोपियन यूनियन और नाटो में शामिल होना.
14 दिसंबर की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी पुतिन ने यही कहा,
“हमारी सीमाओं की ओर बढ़ने की बेलगाम इच्छा, यूक्रेन को NATO में ले जाना, ये सब इस त्रासदी की वजह बना. उनके कदमों ने हमें इसमें (जंग में) शामिल होने के लिए मजबूर किया. या तो हम, उनसे सहमत हो सकते हैं या ताकत से इस मुद्दे को सुलझा सकते हैं."
लेकिन अब रूस के लिए हालात मुश्किल हो चुके हैं. रॉल्फ कहते हैं,
“जिस तरह से रूस को रणनीतिक स्तर नुकसान हुआ है, वह यूक्रेन में उसे होने वाले फायदे से कहीं ज्यादा है. नाटो, जितना सैन्य खतरा रूस के लिए पैदा कर सकता था, उससे ज्यादा अपना नुकसान रूस खुद ही कर चुका है.”
रॉल्फ के मुताबिक, सबसे बड़ी चिंता ये है कि अब किसी भी समय, पुतिन ये मान सकते हैं कि उनकी सेना अब उन इलाकों को वापस पाने में सक्षम नहीं है, जिन्हें वो रूस के इलाकों के तौर पर देखते हैं.
वो कहते हैं,
"यही एक ऐसी स्थिति है, जब मुझे लगता है कि पुतिन, हल्के परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करेंगे. और यही समय होगा जब अमेरिका को भी ये सोचना शुरू कर देना चाहिए कि रूस को कैसे रोका जाए."
-अमेरिकन थिंक टैंक, सेंटर फॉर स्ट्रैटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज के लिए एक रिसर्च में एमिली हार्डिंग, बेजामिन जेन्सेन और हीदर विलियम्स जैसे एक्सपर्ट्स ने बताया है कि पुतिन परमाणु हथियारों पर भरोसा क्यों कर रहे हैं. फरवरी, 2023 में छपी इस रिसर्च के मुताबिक,
जंग से इनका भी फायदा है“पुतिन, दो वजहों से परमाणु हथियारों पर भरोसा कर रहे हैं, एक कि वो नाटो को यूक्रेन में सीधे हस्तक्षेप से रोकना चाहते हैं. जबकि वेस्ट ने धीरे-धीरे यूक्रेन के लिए मिलिट्री सपोर्ट बढ़ाया है. दूसरा कारण और भी खतरनाक है. परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की बात करके पुतिन जंग जीतने का अपना पक्का इरादा जाहिर कर रहे हैं. अगर रूस को युद्ध के मैदान में हार का सामना पड़ा तो, पुतिन खेरसॉन जैसे इलाकों में हल्के परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकते हैं.”
अमेरिकी रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन, रैंड कॉर्पोरेशन के लिए मौली डुनिगन जैसे कई पॉलिटिकल रिसर्चर्स की एक सम्मिलित रिपोर्ट, इस बात की तस्दीक करती है कि यूक्रेन के खिलाफ जंग जारी रहने से रूस के कई प्राइवेट मिलिट्री एक्टर्स को बड़ा फायदा है. प्राइवेट मिलिट्री एक्टर्स मने ऐसे मिलिटेंट ग्रुप्स जो रूस के लिए अनौपचारिक रूप से दुनिया के कई हिस्सों में जंग लड़ते आए हैं.
रैंड में छपी रिसर्च के मुताबिक, सीरिया, यूक्रेन के अलावा कई अफ्रीकी देशों और दुनिया भर में कई और ऐसी जगहों पर ये प्राइवेट मिलिट्रीज, रूसी सरकार से अलग रहकर भी उसके लिए जंग लड़ती हैं. रिसर्च के निष्कर्षों के मुताबिक, रूस के प्राइवेट मिलिट्री एक्टर्स, दुनिया भर में काम कर रहे हैं, इन्हें पहचानना मुश्किल है, ये किसके नेतृत्व में काम करते हैं ये भी कहना मुश्किल है. लेकिन ये प्राइवेट ग्रुप्स, देशभक्ति या सरकार के प्रति वफादारी की भावना के बजाय, बड़े आर्थिक फायदे के लिए रूस की तरफ से लड़ते हैं.
रूस लंबे समय से ये दावा करता रहा है कि यूक्रेनी सरकार कट्टरपंथी राष्ट्रवादी और नियो-नाजी ग्रुप्स से प्रभावित है. हालांकि, यूक्रेन और पश्चिमी देश इसे नकारते हैं. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान, सोवियत रूस, बड़ी मजबूती से नाजी जर्मनी के खिलाफ खड़ा हुआ था. रूस के इस राष्ट्रवादी इतिहास की कल्पना और पुतिन का यूक्रेन पर नाजीवादी प्रभाव होने का दावा, रूस की आम जनता के बीच उनके प्रति समर्थन को बढ़ावा देता है. बीते साल मई में पुतिन ने कहा था,
"जब मातृभूमि के भाग्य का फैसला हो रहा हो तो उसकी रक्षा करना हमेशा से सबसे पवित्र मकसद रहा है."
और अब, अगले ही साल रूस में चुनाव है. कुछ ही दिन पहले पुतिन ने घोषणा की है कि वो चुनाव में हिस्सा लेंगे. ये बात दीगर है कि इस चुनाव में भी पुतिन का जीतना लगभग तय है. जिसके बाद पुतिन साल 2030 तक राष्ट्रपति बने रहेंगे. दिलचस्प बात ये है कि 2030 तक पुतिन का शासन रहा तो वो जोसेफ स्टालिन सहित, सोवियत संघ के दौर के सभी शासकों को पीछे छोड़ते हुए, 18 वीं सदी में रूस की महारानी रहीं कैथरीन द ग्रेट के बाद सबसे लंबे वक़्त तक रूस की सत्ता पर काबिज रहने वाले दूसरे शासक हो जाएंगे.
जाहिर है रूस को सोवियत के दौर से ज्यादा महान, विस्तृत और शक्तिशाली बनाने का मंसूबा लेकर यूक्रेन पर चढ़ाई करने वाले पुतिन, अपने और रूस के इतिहास में आत्मसमर्पण का एक काला पन्ना नहीं जोड़ना चाहेंगे.
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