The Lallantop
Advertisement

शांति प्रिय बौद्ध म्यांमार में क्यों बने जा रहे हैं मुसलमानों के कातिल?

जानिए रोहिंग्या मुस्लिमों के पूरे मसले को. क्यों भिक्षु भी इन मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा पर उतर आए हैं.

Advertisement
Img The Lallantop
24 जून को म्यांमार में मस्जिद पर हमला किया गया. reuters
pic
पंडित असगर
5 जुलाई 2016 (Updated: 5 जुलाई 2016, 02:36 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
1949 में एक फिल्म आई थी 'पतंगा'. उसमें शमशाद बेगम का गाना था 'मेरे पिया गए रंगून.' बहुत सारे युवाओं को आज भी याद होगा, वो बात अलग है शायद ज्यादातर को इसका रिमिक्स याद होगा. जो भी हो एक जमाना वो भी था, जब ज्यादातर को  विदेश के नाम पर सिर्फ रंगून याद था. रंगून अब यांगून के नाम से जाना जाता है. नाएप्यीडॉ से पहले यांगून म्यांमार की राजधानी थी. लेकिन अब इस विदेश, म्यांमार के हालात अच्छे नहीं हैं.
मुसलमानों की जब भी बात होती है,  पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, सऊदी अरब की बात होती है. लेकिन एक देश ऐसा भी है, जहां के मुसलमानों पर जरूरी बात होनी चाहिए. क्योंकि जिन्हें पूरी दुनिया में शांति के लिए जाना जाता है. वो  म्यांमार में उग्र हुए जा रहे हैं. मुसलमानों को लेकर. म्यांमार के मुसलमानों की हालत ऊपर लिखे देशों के मुस्लिमों से बिलकुल अलग हैं.
म्यांमार में मुसलमान बेहद दयनीय जिंदगी जीने को मजबूर हैं. हालात ये हैं कि इन्हें सिटीजनशिप तक नहीं मिली है. घर से बेघर. 2012 में हुए दंगों से सांप्रदायिकता हिंसा में तमाम लोगों की जान चली गई थी. तब से हालात बदतर ही हुए हैं म्यांमार के.
फिलहाल के हालात ये हैं कि बौद्ध लोगों का मुसलमानों के खिलाफ गुस्सा बढ़ रहा है. प्रदर्शन किए जा रहे हैं. म्यांमार के करीब 10 लाख रोहिंग्या मुस्लिम बेघर हैं. रहाइन स्टेट पर ज्यादा असर हुआ है. रोहिंग्या मुस्लिमों को रहाइन के बौद्ध लोगों से भारी नफरत का सामना करना पड़ रहा है. ये बौद्ध नहीं चाहते हैं कि राज्य से रोहिंग्या मुस्लिमों को किसी भी तरह का कोई अधिकार मिले. ये इन्हें अवैध बांग्लादेशी प्रवासी मानते हैं. बौद्ध लोगों को रोहिंग्या शब्द पर भी दिक्कत है.
24 जून को मस्जिद में बौद्धों ने हमला किया और मस्जिद में तोड़फोड़ की. REUTERS
24 जून को मस्जिद में बौद्ध लोगों ने हमला किया और मस्जिद में तोड़फोड़ की. (फोटू क्रेडिट: REUTERS)

मानवाधिकारों के लिए जानी जाने वाली अांग सान सू की इस मसले पर चुप नजर आ रही हैं. वहां की सरकार ने भी रोहिंग्या शब्द के इस्तेमाल को रोकने का निर्देश दिया है. सरकार का कहना है कि इनके लिए रहाइन के मुस्लिम टर्म का इस्तेमाल किया जाए. प्रोटेस्ट कर रहे बौद्ध लोगों को इस पर भी आपत्ति है. उनका कहना है इस टर्म से मुस्लिमों को बौद्ध देश में मान्यता मिलेगी. मुस्लिमों के खिलाफ रैलियां निकली जा रही हैं. नारा दिया गया है 'रहाइन स्टेट को बचाओ'. देशभर में हो रहे प्रोटेस्ट के चलते मुस्लिमों को बौद्ध बस्तियों से अलग कैंपों में शिफ्ट कर दिया गया. एक हफ्ते के अंदर वहां दो मस्जिदों को आग के हवाले कर दिया गया है. अभी संडे को ही वहां पर मुस्लिमों के खिलाफ प्रदर्शन किया गया. इसमें बौद्ध भिक्षु भी शामिल हुए. कौन हैं रोहिंग्या मुस्लिम ? रोहिंग्या मुस्लिम म्यांमार के रहाइन (राखिन के नाम से भी जाना जाता है) स्टेट में रहने वाले अल्पसंख्यक हैं. जो सुन्नी इस्लाम को मानते हैं. ये रोहिंग्या भाषा बोलते हैं. प्रतिबंध होने की वजह से ये पढ़े-लिखे नहीं हैं. सिर्फ बुनियादी इस्लामी तालीम ही हासिल कर पाते हैं. इस देश में सदियों से हैं. 1400 के आसपास ये रहाइन में आकर बसे थे. 1430 में ये रहाइन पर राज करने वाले बौद्ध राजा नारामीखला के दरबार में नौकर थे. राजा ने मुस्लिम एडवाइजरों और दरबारियों को अपनी राजधानी में जगह दी. रहाइन स्टेट म्यांमार का वेस्ट बॉर्डर है, जो बांग्लादेश के बॉर्डर के पास है. यहां के शासकों ने भी मुगल शासकों की तरह अपनी सेना में मुस्लिम पदवियों को रखा और इस तरह मुस्लिम कम्युनिटी वहां पनपती गई. कैसे बढ़ी नफरत? साल 1785 बर्मा के बौद्धों का अटैक. रहाइन पर कब्ज़ा कर लिया. ये म्यांमार में पहला मौका था, जब मुस्लिमों को मारा गया. जो बाकी बचे उन्हें वहां से खदेड़ दिया गया. इस दौरान करीब 35 हजार लोग बंगाल चले गए. 1824 से 1826 तक हुआ एंग्लो-बर्मीज वार. 1826 में रहाइन अंग्रेजों के कब्जे में आ गया. अंग्रेजों ने बंगालियों को बुलाया और रहाइन इलाके में बसने को कहा. इसी दौरान रोहिंग्या मूल के मुस्लिमों को भी रहने के लिए प्रोत्साहित किया. बड़ी तादाद में बंगाल और भारत से प्रवासी वहां पहुंचे. रहाइन के बौद्धों में एंटी मुस्लिम फीलिंग पनपने लगी और ये ही जातीय तनाव अब बड़ा रूप ले रहा है.
दूसरा वर्ल्ड वार. जापान का इस इलाके में दबदबा बढ़ा. अंग्रेज रहाइन छोड़ गए. बस फिर क्या मुस्लिम और बौद्ध एक दूसरे को क़त्ल करने लगे. रोहिंग्या मुस्लिमों को लगा अंग्रेजों का संरक्षण मिले तो वो सेफ रह सकते हैं, इसलिए इन्होंने जापानी सैनिकों की जासूसी की. जापानियों का पता चला तो मुस्लिमों पर और जुल्म बढ़ गया. हत्याएं हुईं, रेप किये गए. लाखों मुस्लिम एक बार फिर बंगाल चले गए. नहीं मिली सिटीजनशिप 1962 में जनरल नेविन की लीडरशिप में तख्तापलट हुआ. रोहिंग्या मुस्लिमों ने रहाइन में एक अलग रोहिंग्या देश बनाने की मांग की. सैनिक शासन ने रोहिंग्या लोगों को सिटीजनशिप देने से इनकार कर दिया. तब से ये बिना देश वाले बनकर रह रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र की कई रिपोर्ट में जिक्र हुआ कि रोहिंग्या दुनिया के ऐसे मुस्लिम हैं, जिनका सबसे ज्यादा दमन हुआ.
बर्मा के सैनिक शासन ने 1982 में सभी राइट्स छीन लिए. तब से अबतक कई बार इनकी बस्तियों को जलाया गया. जमीने हड़पी गईं. मस्जिदों को ढहाया गया. देश से खदेड़ा गया. नए स्कूल, मकान, दुकानें और मस्जिदें बनाने की इजाजत नहीं है. बौद्ध भिक्षु भी गुस्से में अब तक बौद्ध लोग ही हिंसा में शामिल होते थे. अब बौद्ध भिक्षु भी मुस्लिमों के खिलाफ हिंसा में शामिल होने लगे. ये काफी हैरान करने वाला है. मस्जिदों को तोड़ा जा रहा हो या फिर कोई और जुल्म हो रहा हो, बौद्ध भिक्षु इन हमलों में भाग ले रहे हैं. वो नहीं चाहते कि मुस्लिम यहां रहें.
जब आंग सान सू की डेमोक्रेसी ला रही थीं, तब उम्मीद जगी थी कि शायद मुस्लिमों को राहत मिले. डेमोक्रेसी की बात करने वाली आंग सान सू की मुस्लिमों पर हो रहे जुल्म पर खामोश हैं.या फिर वो भी कुछ कर पाने में समर्थ नहीं हैं. मानवाधिकार संस्थाएं भी कुछ नहीं कर पा रही हैं. फिलहाल के हालात पर गौर किया जाए, तो म्यांमार के मुस्लिमों को फिलहाल कोई राहत नहीं मिलने वाली है. क्योंकि मानवाधिकार पर बात करने वाले ही चुप हैं.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement