एक अदना कार्टूनिस्ट जो खूंखार बाल ठाकरे, इंदिरा गांधी को मुंह पर सुना देता था
आर. के. लक्ष्मण का आज बर्थडे है.

"कार्टून में ऑब्जर्वेशन होता है. सेंस ऑफ़ ह्यूमर होता है. मूर्खताएं होती हैं और विरोधाभास होते हैं. यही बात जिंदगी पर भी लागू होती है."
- आर के लक्ष्मण (1921-2015)
मालगुडी डेज में आर के लक्ष्मण का सिग्नेचर चित्र
ता ना ना ना ना ना ना ना.. ये धुन याद है? 'मालगुडी डेज' की. दूरदर्शन वाला सीरियल. हमारा सामूहिक नॉस्टेल्जिया. अब याद कीजिए इस धुन के साथ शुरू में आने वाले कई सारे स्कैच. मालगुडी का रेलवे स्टेशन वाला तो अब तक ज़ेहन में अटका हुआ है. आर. के. लक्ष्मण के चित्रों से ये हमारी पीढ़ी का पहला परिचय था. वो बात अलग है तब मालूम नहीं होता था इन्हें बनाने वाला बहुत बड़ा कार्टूनिस्ट हैं लेकिन चित्र अच्छे लगते थे. ये सीरियल आर. के. लक्ष्मण के बड़े भाई आर. के. नारायण की कहानियों पर बना था.
बाद में हम लोगों की स्कूली किताबों में उनके कार्टून दिखाई दिए. ज्यादातर में धोती और चेकदार कोट पहने एक बूढ़ा आदमी होता था. इसका नाम था 'कॉमन मैन.' बोले तो, आम आदमी. आर. के. लक्ष्मण की कूची से निकला उनका अमर कैरेक्टर जो उनके कार्टून में चुभते सवाल की तरह मौजूद रहा है. वो समाज में हो रही चीजों को देख रहा होता है. विडंबना के साथ. इस कैरेक्टर की आंखों से हम अपने आसपास की उन सच्चाइयों को देखते थे जो हमें खुद नहीं दिखती थी. उसी विडंबना के साथ.
उनका कैनवस गांव, मोहल्ले से लेकर पूरा विश्व था. उनके पॉलिटिकल कार्टून तो दस्तावेज हैं. एक पूरे समाज के दस्तावेज जिन्हें कभी भी पलटकर देखो तो लगता है 2017 में भी हम लोग बहुत जागरूक रह सकते हैं.
चुनावों का एक और मौका आया है और ये पुराना कार्टून आज भी एकदम नया है. साभारः TOI
वो कैसे इंसान थे और कैसा काम किया था, उसका अंदाजा कुछ किस्सों से होता है. पढ़ें, फटाफटः
लक्ष्मण पर आर. के. नारायण ने कहानी लिखी थी
24 अक्टूबर, 1921 को पैदा हुए. उनका नाम रखा गया था रासीपुरम कृष्णा स्वामी लक्ष्मण. फिर जाने गए आर. के. लक्ष्मण के नाम से. छुटपन में दीवारों पर पेंसिल चलाते रहते रहते थे. उनके बड़े भाई आर. के. नारायण की एक कहानी है 'दोडू' जिसमें चुलबुले टाइप का लड़का दोडू केंद्र में होता है. कहते हैं ये कैरेक्टर उन्होंने भाई लक्ष्मण से प्रभावित होकर लिखा था.
उन्हें जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट ने एडमिशन नहीं दिया था
आर. के. लक्ष्मण के परिवार का बैकग्राउंड एेसा था कि वहां क्रिएटिविटी को काफी मूल्य दिया जाता था. उनके पिता हाई स्कूल के हेड मास्टर थे. पढ़ाई लिखाई पर जोर देते थे. उनकी मां टेनिस और चेस बढ़िया खेलती थीं. मैसूर की महारानी उन्हें शतरंज खेलने के लिए बुलाती थीं.

साभारः TOI
लक्ष्मण यंग एज में ही मैगजीन में कार्टून देखते थे और उनकी दिलचस्पी इसी में हो गई. मुंबई के जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट में एडमिशन के लिए उन्होंने आवेदन किया. वहां के डीन ने दाखिला देने से मना कर दिया. वजह बताई कि उनमें स्किल की कमी है. कोई 10-15 साल बाद जे. जे. स्कूल ने खुद उन्हें वहां स्पीच देने के लिए बुलाया. वहां उन्होंने अपनी स्पीच में ये बात बता दी कि इसी स्कूल ने मुझे दाखिला देने से मना कर दिया था.

साभारः TOI
एडिटर से मतभेद के बाद छोड़ दी नौकरी
पॉलिटिकल कार्टून उन्होंने स्वतंत्र अखबारों में बनाने शुरू किए थे. उनके कार्टून कॉलेज की प्रदर्शनी में भी लगाए जाते थे. नौकरी की खोज में मद्रास के जेमिनी रोहन स्टूडियोज में काम किया. फिल्म 'नारद' के लिए कार्टून बनाए. लेकिन परमानेंट नौकरी नहीं मिली. उस दौरान देश गुलाम था. देश भर के पोस्ट-ऑफिस हड़ताल पर थे. लक्ष्मण डाक से अपने कार्टून अखबारों को भेजते थे लेकिन ये सिलसिला बंद हो गया. तब उन्होंने एक कार्टून बनाया जिसे लेकर 'स्वराज' के दफ्तर पहुंच गए. पचास रुपए सैलरी पर काम किया लेकिन ज्यादा दिन यहां नहीं टिके.
लक्ष्मण मुंबई गए और कार्टूनिस्ट के तौर पर फुल टाइम जॉब उन्हें फ्री प्रेस जर्नल में मिली लेकिन ये नौकरी भी उन्होंने छोड़ दी. वजह बताई कि सम्पादक उनसे अपनी विचारधारा के हिसाब से कार्टून बनवाना चाहता था.

कांग्रेस के सोशलिज्म पर लक्ष्मण का टेक.
बाल ठाकरे के दोस्त
फ्री प्रेस जर्नल में एक शख्स उनके साथ कार्टूनिस्ट के तौर पर काम करता था. नाम था बाल ठाकरे. दोनों हमेशा अच्छे दोस्त रहे लेकिन जब बाल ठाकरे पॉलिटिक्स में गए और महाराष्ट्र के बड़े नेता बन गए तो लक्ष्मण ने उनके खिलाफ भी कार्टून बनाए.

यहां बाल ठाकरे पर व्यंग्य है, उनके सामने प्रमोद महाजन खड़े हैं. साभारः TOI
लोग अपनी समस्याएं लक्ष्मण के पास लाते थे
फ्री प्रेस जर्नल की नौकरी छोड़ने के बाद उसी दिन लक्ष्मण टाइम्स ऑफ़ इंडिया के ऑफिस पहुंच गए. आर्ट डायरेक्टर ने उनसे एक स्कैच बनवाया और नौकरी दे दी. यहां उन्होंने 50 साल से भी ज्यादा समय तक काम किया. यहां उन्हें सैकड़ों चिट्ठियां मिला करती थीं. ऑफिस में उनके लिए सैकड़ों फ़ोन आते थे. उनके पास लोग अपनी रोजमर्रा की समस्याएं लेकर आते थे. पानी, बिजली से लेकर घूसखोरी तक. स्ट्रीट लाइट खराब होने से लेकर पुलिया की दिक्कत तक. उन्हें लगता था लक्ष्मण के कार्टून का सरकारों पर काफी प्रभाव पड़ता था और ऐसा वाकई में था भी.
इंदिरा अपनी कैबिनेट से भी बड़ी दिख रही हैं. साभारः TOI
इंदिरा गांधी को बोल दिया आप गलत कर रही हैं
1944 से लेकर 64 तक का नेहरु युग वाला भारत उनके कार्टून्स में बहुत नज़र आया. इसके बाद जब इंदिरा गांधी ने देश में इमरजेंसी लगा दी तो भी बिना डर के आर. के. लक्ष्मण की कूची चली. प्रेस की आजादी पर उन्होंने कई कार्टून बनाए. इस दौरान एक बार लक्ष्मण इंदिरा गांधी से मिले थे और उनसे दो-टूक कहा था कि 'गलत कर रही हैं आप'. उस दौरान उन्हें धमकियां भी मिलती रहीं. लेकिन उनका नाम घर-घर तक पहुंच गया था. जनता पार्टी के समय की उठापटक भी उनके कार्टून में देखी जा सकती है.

साभारः TOI
एशियन पेंट्स के मशहूर कैरेक्टर गट्टू को भी उन्होंने रचा था.

गट्टू
आर. के. लक्ष्मण के कॉमन मैन वाले किरदार का डाक टिकट 1988 में जारी किया गया. पुणे के सिम्बायोसिस इंस्टिट्यूट और वर्ली में समंदर किनारे उनके कॉमन मैन की मूर्ति भी लगी है.

सिम्बायसिस इंस्टिट्यूट में 'कॉमन मैन' की मूर्ति.
26 जनवरी 2015 को 'कॉमन मैन' का 'अनकॉमन' कार्टूनिस्ट इस दुनिया से चला गया.
आर. के. लक्ष्मण का कार्टून बनाते हुए वीडियो
https://www.youtube.com/watch?v=SP-cqJ213Zw
निशांत ने ये स्टोरी की है.
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