RSS स्वयंसेवक ने बीमे का पैसा पाने के लिए नौकर को मारकर खुद को मरा दिखाया!
जिसे मारने का प्लान था, वो ठंड के चलते बच गया. जिसने साथ बीड़ी पी, उसकी जान चली गई.
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बाएं से दाएं - हत्या का आरोपी हिम्मत पाटीदार और मृतक मदन मालवीय. (फोटोः विजय मीणा/ इंडिया टुडे)
हत्या नंबर 'पांच' - जो हुई ही नहीं
राजनैतिक हिंसा का जैसा इतिहास केरल, पश्चिम बंगाल या बिहार का रहा है, वैसा मध्यप्रदेश का नहीं रहा. लेकिन जनवरी में 10 दिन के अंदर हुई 4 लोगों की हत्या ने इस दावे पर सवालिया निशान लगा दिए थे. मंदसौर में बीजेपी के नगरपालिका अध्यक्ष प्रहलाद बंधवार, बड़वानी में भाजपा के मंडल अध्यक्ष मनोज ठाकरे, इंदौर में भाजपा नेताओं के फाइनेंसर संदीप अग्रवाल और गुना में भाजपा नेता के रिश्तेदार परमाल कुशवाह का कत्ल हुआ था. खूब हंगामा हुआ. शिवराज सिंह चौहान और दीगर भाजपा नेताओ ने ट्वीट पर ट्वीट किए, बयान दिए.

लगातार हो रही हत्याओं को भाजपा ने मुद्दा बना लिया है.
इस मौके पर कमल नाथ का एक पुराना बयान बार-बार दोहराया गया जिसमें विधानसभा चुनावों के समय एक वीडियो में वो कथित तौर पर चुनाव के बाद ‘आरएसएस को देख लेने’ की बात कह रहे थे. कहा गया कि ‘देख लेने’ की शुरुआत हो गई है. उधर ये बात भी चल पड़ी कि ‘डर का ये माहौल भाजपा खुद अपने फायदे के लिए तैयार कर रही है.’ इसी तमातमी के माहौल में 23 जनवरी, 2019 की सुबह रतलाम जिले में पड़ने वाले गांव कमेड़ में रहने वाले लक्ष्मी पाटीदार को अपने खेत में एक लाश नज़र आई. लाश का चेहरा जला हुआ था.
पुलिस को इत्तला की गई. लाश के चहरे से पहचान हो नहीं पा रही थी. लेकिन लाश के कपड़ों से लगता था कि वो हिम्मत पाटीदार है. खेत मालिक लक्ष्मी पाटीदार का बेटा. पुलिस ने लाश के आस-पास छानबीन की एक-एक करके हिम्मत पाटीदार की चीज़ें मिलने लगीं – कपड़े, जूते, डायरी, मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड, आधार कार्ड वगैरह. आखिर हिम्मत के परिवार ने पुलिस के सामने मरने वाली की शिनाख्त हिम्मत के रूप में कर दी. इसके हत्या की खबर पूरे सूबे में तेज़ी से फैली. क्योंकि 36 साल का हिम्मत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा था. उसे शहर में निकलने वाले संघ के पथ संचलनों में कई बार देखा गया था. हिम्मत के ताऊ का लड़का संजय पाटीदार संघ का रतलाम जिला घोष प्रमुख है. 23 जनवरी की शाम को हिम्मत का अंतिम संस्कार कर दिया गया. इस वक्त स्थानीय भाजपा नेता मौजूद थे.

हिम्मत की 'मौत' की खबर लगने पर शिवराज सिंह चौहान ने भी ट्वीट किया था. शिवराज कमलनाथ सरकार के खिलाफ लगातार मुखर बने हुए हैं.
जैसे-जैसे जांच होती गई, मामला पेचीदा होता गया
लाश का सिर्फ चेहरा जले होने का एक ही मकसद हो सकता था - पहचान छुपाना. फिर लाश के कपड़े भी इस तरह के थे कि उन्हें जल्दी-जल्दी पहना गया हो. इसीलिए शव को किसी के भी सुपुर्द करने से पहले पुलिस ने फॉरेंसिक जांच के लिए लाश के नाखून और बालों का सैम्पल लिए. ताकी पहचान ठोस तरीके से मालूम चल सके. हिम्मत की ‘नृशंस हत्या’ की जांच में पुलिस ने ऐसे लोगों के बारे में मालूम किया जो हिम्मत के दुश्मन हो सकते थे. इस लिस्ट में एक नाम था मदन मालवीय का. मदन दो बरस पहले हिम्मत के यहां हाली था. हाली माने खेत में काम करने वाला मज़दूर. मदन अब गांव में रहने वाले सत्तार खान के यहां काम करता था. लेकिन जब से हिम्मत की लाश मिली थी, मदन गायब था. पुलिस ने इस दिशा में छान-बीन करनी शुरू की कहीं मदन का हिम्मत से हिसाब-किताब के लिए कोई झगड़ा तो नहीं था, जिसके चलते उसने हिम्मत को मार डाला हो.
जांच शुरू ही हुई थी कि पुलिस को ये मालूम चला कि लाश के कुछ दूर मिले जूते हिम्मत के नहीं थे. ये जूते मदन मालवीय के थे. इसने ये सवाल पैदा किया कि आखिर कोई हत्यारा अपने जूते घटनास्थल पर क्यों छोड़ेगा? लेकिन पुलिस मदन को संभावित कातिल मानकर आगे बढ़ती रही. मदन और हिम्मत दोनों के घर वालों को थाने बुलाया गया और पूछताछ की गई. पुलिस ने इसी दौरान दोनों परिवारों के सदस्यों के सैंपल लिए ताकी उन्हें लाश के डीएनए से मैच करके देखा जा सके. ये सैंपल भेजे गए सागर. मध्यप्रदेश में डीएनए फिंगरप्रिंटिंग की सुविधा सागर की फॉरेंसिक साइंस लैब में है. यहां से रिपोर्ट आने में 48-72 घंटे लगते हैं. पुलिस ने ये वक्त लगाया छानबीन में.

शिवराज को दिल्ली बुला लिया गया है. लेकिन वो मध्यप्रदेश में अपनी पकड़ ढीली करने को कतई तैयार नहीं है. ट्विटर उनकी सक्रियता की एक बानगी भी है.
मदन के भाई ने मीडिया को बताया कि पुलिस उनके परिवार को थाने के बाद मदन की तलाश में रिश्तेदारों के यहां भी ले गई. मदन के भाई को थाने में ही बैठा लिया गया. जब मदन की मां की तबीयत खराब हुई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत आई तब जाकर मदन के भाई को छोड़ा गया.
इधर हिम्मत की लाश के पास से बरामद चीज़ों से हत्या का सुराग लेने की कोशिश हुई. डायरी में एक बीमा पॉलिसी का नंबर, एक एफडी और दूसरी बैंक डीटेल्स जैसे पिन नंबर वगैरह मिले. लेकिन फोन से सारा डाटा गायब था. इसलिए पुलिस हिम्मत के नंबर की डिटेल्स निकलवाईं. मालूम चला कि वो रात को काफी देर तक इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहा था. खोजबीन में ये भी मालूम चला कि हिम्मत ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से दिसंबर 2018 में ही 20 लाख रुपए की बीमा लिया था, जिसकी नॉमिनी उसकी पत्नी थी. हिम्मत ने इसकी एक हज़ार रुपए की किस्त भी भर दी थी. और फिर सामने आई ये बात कि हिम्मत के यहां अच्छी खासी खेती थी तो, लेकिन वो वो ब्याज़ पर पैसे चलाने का काम भी करता था. उसपर तकरीबन 26 लाख रुपए का कर्ज़ हो गया था. हत्या से ठीक एक दिन पहले भी हिम्मत ने एक व्यापारी से 50 हज़ार लिए थे.
और फिर आई डीएनए रिपोर्ट
28 जनवरी की सुबह एक सीलबंद लिफाफे में सागर लैब की रिपोर्ट रतलाम पुलिस को मिली. इसमें लिखा था कि लाश हिम्मत की नहीं, मदन मालवीय की है. इसके बाद पुलिस को मामला समझने में देर नहीं लगी. दोपहर 12 बजे के करीब पुलिस ने प्रेस के सामने दावा किया कि ये सब हिम्मत का किया धरा है. कर्ज़ चुकाने से बचने और बीमे की राशि हड़पने के लिए उसने पूरी साजिश रची थी.

प्रेस से बात करते रतलाम एसपी गौरव तिवारी. (फोटोः विजय मीणा/ इंडिया टुडे)
वो आदमी जिसे जनवरी की ठंड ने बचा लिया
पुलिस की तफ्तीश में रामगोपाल मालवीय उर्फ कालू नाम का एक शख्स सामने आया. रामगोपाल ने बताया कि हिम्मत ने घटना वाली रात करीब डेढ़ बजे उन्हें फोन कर खेत पर बुलाया था. लेकिन ठंड के कारण उन्होंने बहाना बनाकर मना कर दिया और शायद इसी बहाने उनकी जिंदगी बच गई. मदन के मर्डर से तीन दिन पहले हिम्मत कालू को एक नाई के यहां ले गया था. तब उसने कालू के बाल अपनी तरह कटवा दिए थे. अब कालू भगवान का शुक्रिया अदा कर रहा है कि अच्छा हुआ उसने हिम्मत की बात नहीं मानी. वर्ना ये सब बताने के लिए वो शायद ज़िंदा ना होते.
क्या हुआ था उस रात?
पुलिस की थ्योरी तीन चीज़ों पर टिकी है. फॉरेंसिक लैब की रिपोर्ट, हिम्मत का बैकग्राउंड और गांव वालों के बयान. बीमा क्लेम करने के लिए हिम्मत पाटीदार को खुद को मरा साबित करना था. और इसके लिए एक लाश चाहिए थी, जो उसके जैसी दिखे. हिम्मत ने इसकी प्लानिंग बहुत पहले कर ली थी. लेकिन मदन शुरुआत से उसके निशाने पर नहीं था. वो एक तेज़ी से बदले घटनाक्रम में हिम्मत का शिकार बना.
हिम्मत तकरीबन एक हफ्ते से खेत पर नहीं गया था. घटना की रात गांव वालों ने हिम्मत को खेत पर देखा. लेकिन हिम्मत खेत पर काम से नहीं गया था. न उसने मोटर चलाई, खेत में पानी दिया. उसने कालू को दो बार फोन किया. लेकिन कालू ठंड की बात कहकर आए नहीं. इसके बाद हिम्मत उस खेत पर गया जहां कालू काम करते हैं. लेकिन कालू वहां भी नहीं मिले. अब हिम्मत के दिमाग में मदन मालवीय का नाम आया, जो पास ही के खेत में काम करता था. हिम्मत मदन के पास पहुंचा और साथ चलने को कहा. मदन चूंकि हिम्मत के यहां काम कर चुका था, उसे हिम्मत की बाइक पर बैठते हुए बिलकुल शक नहीं हुआ. हिम्मत के खेत पहुंचने के बाद दोनों ने साथ में बीड़ी पी. इसके बाद हिम्मत ने मदन का गला घोंट दिया. फिर अपने खेत पर रखी तलवार से मदन के गले पर वार किए. जब मदन की जान चली गई, तब हिम्मत ने उसे अपने कपड़े पहनाए. इसके बाद लाश का चेहरा जला दिया. आखिर में उसने अपनी चीज़ें लाश के आसपास बिखेर दीं.

हिम्मत पाटीदार के घरवालों की भूमिका पर पुलिस अभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है.
मंदिर की धर्मशाला में छिपा था हिम्मत
प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुलिस ने इस केस का पर्दाफाश करने का दावा करने के साथ ही हिम्मत को फरार घोषित कर दिया था. उसपर 10 हज़ार का इनाम भी रखा गया था. 31 जनवरी की रात पुलिस ने हिम्मत को राजस्थान के प्रतापगढ़ में एक धर्मशाला से गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी के बाद ये मालूम चला कि पुलिस ने मदन की हत्या के बाद हिम्मत अपने घर लौटा था. इसके बाद कपड़ों से भरा एक बैग और जूते लेकर हिम्मत ने पहले एक बस पकड़ी और फिर ट्रेन से इंदौर गया. इंदौर से हिम्मत बस पकड़कर उज्जैन गया और फिर उज्जैन से प्रतापगढ़ पहुंचा. यहां एक मंदिर की धर्मशाला में उसने 10 रुपए रोज़ में एक कमरा लिया, जहां से वो गिरफ्तार हुआ.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस को हिम्मत के पास 48, 715 रुपए, हनुमान चालीसा और एक कागज़ मिला, जिसपर घर वालों के नंबर लिखे हुए थे. हिम्मत पर एससीएसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया है. और हत्या के साथ साज़िश की धारा भी लगाई है.
कमेड में हिम्मत का बड़ा सा घर है. इस किलेनुमा घर में दर्जनों कमरे हैं. पुलिस इस बात की जांच में लगी है कि इस घर में रहने वाले हिम्मत के रिश्तेदार तो हत्या में शामिल नहीं हैं. हालांकि हिम्मत के बड़े भाई ने मीडिया से कहा है कि परिवार से लाश पहचानने में गलती हुई है लेकिन वो हिम्मत के प्लान का हिस्सा नहीं थे.
‘आखिर उसने ऐसा क्यों किया?’
पहले मदन को कातिल कहा गया. अब मालूम चला है कि उसी की हत्या हुई है, तो घरवालों को उसकी मिट्टी तक नसीब नहीं हुई. मदन का पूरा परिवार मज़दूरी करता है. बीवी बोल नहीं सकतीं. मदन की दो बच्चियां हैं, जिनका हवाला देकर मदन के बूढ़े मां-बाप हिम्मत के लिए फांसी की मांग कर रहे हैं. और मांग कर रहे हैं एक जवाब की भी, कि आखिर हिम्मत ने ऐसा क्यों किया?
इस खबर के लिए जानकारियां और तस्वीरें हमें इंडिया टुडे से जुड़े पत्रकार विजय मीणा (रतलाम)
और
रवीश पाल सिंह (भोपाल) से मिली हैं.
वीडियोः कहानी शबनम की, जो अपने ही परिवार के लोगों का मर्डर करते वक्त प्रेग्नेंट थी