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राहुल गांधी ने अडानी को एयरपोर्ट पर जो बोला है, उसके पीछे की कहानी ये है!

अडानी को ऐसे मिले एयरपोर्ट!

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अडानी पर राहुल गांधी के बयान की इनसाइड स्टोरी (फोटो सोर्स- India Today, ANI)
GVK Adani Airport Rahul Gandhi
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सिद्धांत मोहन
8 फ़रवरी 2023 (Updated: 8 फ़रवरी 2023, 05:37 PM IST) कॉमेंट्स
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7 फरवरी की तारीख को संसद में राहुल गांधी (Rahul Gandhi) गौतम अडानी के माध्यम से मोदी सरकार (Modi Government) को घेर रहे थे. अडानी (Adani) के ऐवीऐशन सेक्टर में एंट्री की बात हुई और मुंबई एयरपोर्ट (Mumbai Airport) की देखरेख करने का प्रभार बलपूर्वक अडानी को देने की भी बात हुई.

और ऐवीऐशन यानी उड्डयन के क्षेत्र में एंट्री हुई अडानी की. देश के 6 एयरपोर्ट को मैनेज करने का ठेका मिला, उससे ही.

ऐसे में हम जनवरी 2021 की एक रिपोर्ट का ज़िक्र करते हैं, जो हमने इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के आधार पर लिखी थी. रिपोर्ट का लब्बोलुआब ये कि वित्त मंत्रालय और नीति आयोग ने अडानी समूह को एयरपोर्ट की देखरेख करने का जिम्मा देने पर आपत्ति दर्ज की थी, लेकिन एयरपोर्ट अडानी समूह को दे दिए गए.

राहुल गांधी ने 7 फरवरी 2023 को कहा भी था कि एयरपोर्ट मैनेज करने वाले GVK समूह पर दबाव डालकर मुंबई एयरपोर्ट को मैनेज करने का काम अडानी को दिया गया, हालांकि GVK समूह ने अपने हालिया बयान में इसका खंडन भी किया है.

लेकिन अभी बात करते हैं नीति आयोग और वित्त मंत्रालय की आपत्तियों की. और परिणामस्वरूप लग रहे आरोपों की.

क्या हुआ था?

केंद्र की मोदी सरकार ने 2018 में अपना सबसे बड़ा निजीकरण कार्यक्रम शुरू किया. इसके लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने देश के कुछ एयरपोर्ट्स को संचालन के लिए निजी कम्पनियों को देने का प्रस्ताव रखा. इनमें अहमदाबाद, मंगलोर, लखनऊ, जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम के एयरपोर्ट थे. इस प्रपोज़ल पर केंद्र सरकार की पब्लिक प्राइवेट पार्ट्नरशिप अप्रेज़ल कमिटी (PPPAC) ने 11 दिसंबर 2018 को विचार किया. बैठक में बात हुई कि इनके लिए नीलामी का नोटिस निकाला जाए.

लेकिन इंडियन एक्सप्रेस ने मीटिंग के दस्तावेजों के हवाले से दावा किया कि इस बातचीत के एक दिन पहले यानी 10 दिसंबर 2018 को आर्थिक मामलों के विभाग ने कहा,

“इन 6 एयरपोर्ट्स में काफ़ी ज़्यादा पूंजी का निवेश होना है. ऐसे में एक ऐसा नियम लगा देना चाहिए कि नीलामी में बोली लगाने वाली कम्पनी को दो एयरपोर्ट से अधिक नहीं दिए जायेंगे. इससे गुणवत्ता और आर्थिक मोर्चे पर जो ख़तरे हैं, उनसे थोड़ा बचा जा सकेगा. अलग-अलग कम्पनियों को एयरपोर्ट दिए जाने से कम्पनियों के बीच में प्रतिस्पर्धा भी बनी रहेगी.”

अपनी बात को और ठीक से समझाने के लिए आर्थिक मामलों के विभाग ने दिल्ली और मुंबई के एयरपोर्ट्स का ज़िक्र किया. उन्होंने कहा कि इनकी नीलामी में बोली लगाने वाली कम्पनियों में GMR सबसे कुशल कम्पनी थी. लेकिन GMR को भी दोनों एयरपोर्ट नहीं दिए गए. आर्थिक मामलों के विभाग ने दिल्ली के ऊर्जा विभाग का भी ज़िक्र किया. कहा कि दिल्ली में बिजली का भी निजीकरण हुआ है. लेकिन शहर को तीन ज़ोन में बांटा गया, और दो कम्पनियों को दे दिया गया.

नीति आयोग ने भी इस मुद्दे पर कहा था कि ऐसे लोगों को एयरपोर्ट न दिए जाएं, जिनकी इस दिशा में कोई तकनीकी जानकारी नहीं है. लेकिन, अखबार का दावा है कि PPPAC की मीटिंग में आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा दिए गए इन सुझावों पर कोई डिस्कशन नहीं हुआ.

इंडियन एक्सप्रेस को मिले दस्तावेज दिखाते हैं कि उसी दिन नीति आयोग ने अलग से हवाई अड्डों की इस नीलामी की प्रक्रिया पर अपनी चिंता ज़ाहिर की थी. नीति आयोग ने अपने मेमो में कहा था,

“नीलामी में बोली लगाने वाली संस्था के पास अगर तकनीकी क्षमता नहीं है, तो इससे प्रोजेक्ट को नुक़सान होगा. और सरकार सेवाओं का जो स्तर उपलब्ध कराना चाहती है, उसमें भी समझौता करना पड़ेगा.”

मतलब ये कि नीलामी में बोली लगाने वाली कम्पनियों के पास एयरपोर्ट विकसित करने की तकनीकी जानकारी और क्षमता होनी चाहिए.

PPPAC की उस मीटिंग की अध्यक्षता एससी गर्ग कर रहे थे. एससी गर्ग उस समय आर्थिक मामलों के विभाग में सचिव के पद पर थे. और आर्थिक मामलों के विभाग से ही इस पूरी प्रक्रिया में पहली आपत्ति आयी थी. एससी गर्ग ने PPPAC की मीटिंग में कहा कि सचिवों के एम्पावर्ड ग्रुप (यानी निवेश लाने की नीयत से बनाया गया शक्तिशाली नौकरशाहों का समूह) ने ये पहले ही डिसाइड कर लिया है कि एयरपोर्ट बनाने का पुराना अनुभव इस बार नीलामी में बोली लगाने वाली कम्पनियों के लिए बाध्य नहीं होगा. ऐसे में नयी कंपनियां भी बोली लगा सकेंगी. इससे ब्राउनफ़ील्ड एयरपोर्ट (यानी वो एयरपोर्ट जो पुराने और चालू एयरपोर्ट को विकसित करके बनाए जाते हैं) के विकास के लिए कंपटीशन भी देखने को मिलेगा.

यानी नीति आयोग और आर्थिक मामलों के विभाग की चिंताओं को एक तरह से ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. नीलामी हुई. अडानी समूह ने बोली लगायी. जिन 6 एयरपोर्ट के नाम हमने ऊपर बताए थे, उन्हें अडानी समूह को आवंटित कर दिया गया.

एयरपोर्ट मिलने के बाद क्या हुआ?

साल 2018 के आख़िर तक नीलामी की प्रक्रिया में 6 के 6 एयरपोर्ट अडानी समूह के पास आ गए. इसके लगभग एक साल से ज़्यादा समय के बाद फ़रवरी 2020 में अडानी समूह ने अहमदाबाद, मंगलोर और लखनऊ के एयरपोर्ट के लिए छूट की एक डील साइन की. एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (AAI) के साथ.

एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ने अडानी से कहा कि वो 9 महीनों के दरम्यान सभी आवंटित एयरपोर्ट्स का अधिग्रहण कर लें.

लेकिन इसी के एक महीने बाद देश भर में कोविड का डर फैल गया और उसकी वजह से लॉकडाउन लग गया. इसी महीने अडानी समूह ने कोरोना की वजह से फ़ोर्स मैज़ुर का हवाला दिया. आसान भाषा में समझें तो कहा कि चूंकि ऐसे घटनाक्रम हो रहे हैं, जिन पर कंपनी का कोई नियंत्रण नहीं है, ऐसे में हम किसी नुकसान की भरपाई नहीं कर सकते हैं. एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया से अडानी समूह ने कहा कि जिन तीन एयरपोर्ट को लेकर हमने डील साइन की है, उनका समय से अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है. फ़रवरी 2021 तक का समय चाहिए.

AAI ने कहा कि नवंबर 2020 तक का समय दे रहे हैं. उस अवधि तक तीनों एयरपोर्ट का अधिग्रहण करिए. अडानी समूह ने ऐसा ही किया. और इसके पहले सितम्बर 2020 में जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम के एयरपोर्ट के लिए भी छूट की एक डील साइन की गयी थी.

अडानी समूह को ये 6 एयरपोर्ट 50 साल के लिए दिए गए. मतलब 50 सालों तक अडानी समूह इन एयरपोर्ट्स का रखरखाव और संचालन करेगा. इसके पहले दिल्ली और मुंबई के एयरपोर्ट भी दूसरी कम्पनियों को आवंटित किए गए थे, लेकिन वो बस 30 सालों के लिए ही किए गए थे.

मुंबई एयरपोर्ट का मामला क्या है?

देश का दूसरा सबसे बड़ा मुंबई एयरपोर्ट भी अब अडानी समूह के पास है. और इसी एयरपोर्ट के पास बची हुई कहानी है. भारत में एक आयोग है. प्रतिस्पर्धा आयोग या अंग्रेज़ी में कहें तो कॉम्पटीशन कमीशन ऑफ़ इंडिया (CCI). इस आयोग की ज़िम्मेदारी है कि ऐसे आवंटनों और बिज़नेस प्रैक्टिसेज़ पर लगाम लगायी जाए, जिससे देश में कम्पनियों के बीच प्रतिस्पर्धा ख़त्म होती हो. आसान भाषा में समझाएं तो देश में एक ही सामान या सुविधा देने के लिए हर हाल में तीन या तीन से ज्यादा कंपनियां बनी रहें, ये इस आयोग की जिम्मेदारी है. पेंसिल से लेकर एयरपोर्ट तक. सबकुछ.

किसी भी परियोजना का आवंटन या अधिग्रहण बड़े स्तर पर होता है, तो उसके लिए CCI की अनुमति लेनी होती है. अब अडानी को 6 एयरपोर्ट दिए जाने के मामले में CCI की अनुमति तो मिल ही गयी थी. मुंबई एयरपोर्ट अडानी समूह को देने के नाम पर भी CCI ने कोई आपत्ति नहीं दिखाई. अडानी समूह से पहले मुंबई एयरपोर्ट को हैदराबाद की कम्पनी GVK इंटरनेशनल संचालित कर रही थी. उसके साथ एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और दूसरी कुछ कंपनियों के पास भी एयरपोर्ट में हिस्सेदारी थी. सभी का आपस में समझौता था.

खबर बताती है कि CCI की सहमति के बावजूद GVK समूह मुंबई एयरपोर्ट अडानी को बेचना नहीं चाहता था. लिहाज़ा GVK ने अडानी समूह को रोकने का प्रयास किया. लेकिन GVK की चली नहीं. एक तरफ GVK समूह एक आक्रामक खरीददार से जूझ रहा था. "संयोग" से इसी वक्त GVK समूह के खिलाफ एक दूसरा मोर्चा केंद्रीय एजेंसियों ने खोल दिया. जून 2020 में CBI ने GVK समूह और इसके चेयरमैन जीवीके रेड्डी, उनके बेटे जीवी संजय रेड्डी के खिलाफ़ FIR दर्ज कर दी. CBI ने कहा कि मुंबई एयरपोर्ट के विकास में 705 करोड़ की हेराफेरी हुई है. ED ने इसकी बिना पर मनी लॉन्डरिंग का केस दर्ज कर लिया. और 31 अगस्त 2020 को खबर आई कि GVK समूह ने मुंबई एयरपोर्ट और नवी मुंबई एयरपोर्ट में अपनी हिस्सेदारी अडानी समूह को बेच दी है.

और यही है पूरा बवाल. अब तक का.

वीडियो: कांग्रेस ने अडानी पर क्या सीरीज़ शुरू की, पीएम मोदी से कौन से तीन सवाल पूछे?

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