संसद में राहुल गांधी और महुआ मोइत्रा के आरोपों के पीछे का सच खुल गया!

इंसान को जो चीज़ें इंसान बनाती हैं, उनमें से एक है, संवाद करने की इच्छा. इसीलिए वैज्ञानिकों ने बनाए माइक्रोफोन. प्यार से कहें, तो माइक. गले से निकली आवाज़ को बिजली की तरंग में बदलने वाला यंत्र. अब आप इस तरंग या सिग्नल को ब्रह्मांड में कहीं भी भेज सकते हैं. 14 अगस्त 1947 को जवाहरलाल नेहरू संसद के सेंट्रल हॉल में रात के 11 बजकर 55 मिनट पर ट्रिस्ट विद डेस्टिनी वाला ऐतिहासिक भाषण पढ़ते हैं, जिसमें आज़ादी का ऐलान था. वो माइक ही था कि पंडित नेहरू के शब्द अब भी हमारे पास दर्ज हैं.
तब से लेकर अब तक भारतीय के संसदीय इतिहास में माइक का इस्तेमाल हर तरह से हुआ. माइक पर बोलते राम मनोहर लोहिया और अटल बिहारी वाजपेयी. तो पक्ष-विपक्ष सभी एकटक सुनते. माइक पर बोलते पीलू मोदी, तो सब ठहाके लगाते. रामदास आठवले के भीतर छिपे कवि को हम जान पाए, तो माइक की ही कृपा से.
लेकिन माइक का इस्तेमाल सिर्फ एक तरह से नहीं हुआ. हमारे नेताओं ने अभिनव प्रयोग किए. 21 अक्टूबर 1997 का दिन था. उत्तर प्रदेश की विधानसभा में कल्याण सिंह सरकार को बहुमत साबित करना था. लोगों ने जूते का चलना सुन रखा था. लेकिन जूता संसदीय परंपरा कैसे फिट बैठता. तो सदन में माइक चले. 2018 में कमोबेश यही काम गुजरात विधानसभा में भी हुआ.
लेकिन अब माइक की भूमिका बदल गई लगती है. विपक्षी सांसद आरोप लगा रहे हैं कि संसद का माइक चेहरा देखकर चालू-बंद हो रहा है. यही इल्ज़ाम कैमरे को लेकर भी है. ये आरोप हल्का नहीं है. क्योंकि अगर विपक्ष वाकई सदन के भीतर अपनी बात दर्ज नहीं करा पा रहा, तो ये लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छा नहीं है. क्या विपक्ष के आरोपों में दम है या वो अपनी खीझ के चलते बातों को बढ़ा-चढ़ाकर बता रहा है.
राहुल गांधी के लंदन दौरे पर के बाद लोकतंत्र को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ी हुई है. और इसमें की-वर्ड है माइक. विपक्ष लगातार आरोप लगा रहा है कि लोकतंत्र को नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से दबाया और कुचला जा रहा है. इस कड़ी में सबसे बड़ा आरोप ये, कि संसद में विपक्ष के नेताओं को बोलने नहीं दिया जा रहा है. जब विपक्षी नेताओं के बोलने की बारी आती है तो माइक को बंद कर दिया जाता है. ऐसे आरोप हैं. केंद्र की बहस पर आएं उससे पहले दो राज्यों की विधानसभा की हालिया तस्वीरें देखते चलिए.
1. पहली बिहार से जहां, बीजेपी विधायक की तरफ से माइक मर्दन की तस्वीर आती है. बिहार विधानसभा में बीजेपी विधायक लखींद्र पासवान प्रश्न पूछते हैं. तभी उत्तर मिलने के बाद दोबारा प्रश्न किया, पता चला माइक से आवाज नहीं गई. माइक बंद होने से नाराज बीजेपी विधायक ने अपना सारा बाहुबल माइक को उमेठने में लगा दिया. और फिर तोड़ कर ही दम लिया.
2. दूसरी के लिए, उत्तराखंड चलते हैं. राहुल गांधी विदेश में भारतीय लोकतंत्र पर खतरे की बात करके आए हैं. उन्हीं के विधायकों ने उत्तराखंड विधानसभा में रूल बुक फाड़ डाली, इस पर भी संतोष नहीं हुआ तो माइक को नोंचा और तोड़कर पटक दिया.
यहां जहां जो विपक्ष में है, वो माइक पर ही सारा गुस्सा उड़ेले दे रहा है. केंद्र में भी माइक के इर्द-गिर्द ही बहस चल रही है. लोकसभा में कांग्रेस के नेता सदन अधीर रंजन चौधरी ने बुधवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सदन में 'सरकार प्रायोजित व्यवधान' हेडर के साथ पत्र लिखा. उन्होंने स्पीकर से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि विपक्षी सदस्यों को निष्पक्ष तरीके से अपने विचार व्यक्त करने का अवसर मिले.खत में चौधरी ने ये आरोप भी लगाया कि उनकी मेज पर लगा माइक पिछले तीन दिनों से बंद है और इससे राहुल गांधी के उस बयान की पुष्टि होती है कि 'भारत में विपक्षी सदस्यों के माइक बंद कर दिए जाते हैं.'
ब्रिटेन में राहुल गांधी ने भी ब्रिटिश सांसदों की मौजूदगी में एक सवाल के जवाब में कहा था- हमारे माइक खराब नहीं हैं, वे काम कर रहे हैं, लेकिन आप उन्हें चालू नहीं कर सकते. मेरे भाषण के दौरान ऐसा कई बार हुआ है'' बजट सत्र में अपनी स्पीच के दौरान भी राहुल गांधी ने कहा था, कि उनका माइक बंद कर दिया जाता है.
राहुल गांधी के लंदन वाले बयान पर विवाद हुआ, बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया दी और लोकतंत्र का अपमान बताया. लेकिन अब माइक को लेकर ऐसी बयान तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा की तरफ से भी आया. बुधवार देर रात ट्वीट कर स्पीकर पर गंभीर आरोप लगाते हुए लिखा,-
''पिछले तीन दिनों से हम देख रहे हैं कि माननीय अध्यक्ष ओम बिरला केवल बीजेपी के मंत्रियों को संसद में बोलने दे रहे हैं. इसके बाद उन्होंने संसद को स्थगित करने की घोषणा कर देते हैं, किसी भी विपक्षी सदस्य को बोलने का मौका नहीं दिया जा रहा है.आज देश का लोकतंत्र खतरे हैं. स्पीकर इसे सामने से लीड कर रहे हैं.अगर मुझे इस ट्वीट को करने के लिए जेल जाना पड़े तो मैं तो भी मुझे दिक्कत नहीं है."
वजह जो भी रही हो, मगर अब महुआ मोइत्रा का ये ट्वीट डिलीट हो चुका है. लोकतंत्र के खतरे और माइक बंद करने के आरोपों के बाद आज राहुल गांधी संसद पहुंचे. इससे पहले संसद में बीजेपी के बड़े नेताओं ने राहुल गांधी से माफी की मांग कर चुके थे. हाल ही में राहुल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि वो संसद में लगे आरोपों का जवाब वो संसद में ही देंगे, इसके साथ ही वो अडानी और पीएम मोदी को भी एक ही बयान में नत्थी कर गए. खबर आई कि राहुल ने स्पीकर से मिलने का समय भी मांगा है.
राहुल गांधी ने सीधे प्रधानमंत्री पर आरोप लगाए थे, लाजमी था कि बीजेपी जवाब देने में वक्त नहीं लगाएगी. सो उनकी तरफ से भी प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई. माइक पर थे पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद. उनका कहना है कि राहुल के आरोप निराधार हैं. वो अब आक्रामक रूप से राहुल गांधी की माफी का कैंपन चलाने जा रही है. इस पर कांग्रेस कह रही है, ये अडानी के मुद्दे को दबाने की कोशिश है. खैर राहुल गांधी, महुआ मोइत्रा और अधीर रंजन चौधरी की शिकायतों का कुल जमा जोड़ यही निकल रहा है कि लोकसभा में सत्ता और विपक्ष के सांसदों को बराबर मौका नहीं मिल रहा है. महुआ ने तो सीधे स्पीकर का नाम भी लिया था. हम स्पीकर पर टिप्पणी तो नहीं कर सकते. लेकिन नियमों और परंपराओं की जानकारी ज़रूर दी जा सकती है. इसके लिए हमने बात की इंडिया टुडे टीवी में नेशनल अफेयर्स के एडिटर, राहुल श्रीवास्तव से. इन्होंने 27 साल लोकसभा और राज्यसभा को कवर किया है. हमने पहला सवाल संसद की कार्यवाही की लाइव प्रोसिडिंग और उसके इतिहास को लेकर किया. उन्होंने बताया,
"1998 से लोकसभा की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग शुरू की गई. 24 जुलाई 2006 से लोकसभा की फुटेज टीवी लाइव दिखाई जाने लगी. 2011 में इसके लिए लोकसभा का चैनल भी बना दिया गया. तब से संसद की कार्यवाही टीवी पर टेलिकास्ट हो रही है."
यहां सबसे जरूरी सवाल अभी बाकी था. हमने उनसे पूछा कि माइक कब चालू होते हैं, कौन चालू करता है और ये कैसे तय होता है कि कैमरे पर क्या दिखाया जाएगा, और क्या नहीं. इसका जवाब देते हुए उन्होंने बताया,
"UPA सरकार के समय की बात है. लोकसभा में लोकपाल बिल पर चर्चा हो रही थी. तब विपक्ष जोर-शोर से अपना पक्ष रख रहा था. उस समय सत्ता पक्ष विपक्ष का माइक तो चालू रखता था लेकिन कैमरा स्पीकर की तरफ या सत्ता पक्ष में शांति से बैठे नेताओं की ओर मोड़ दिया जाता था. ये परंपरा तभी से शुरू हुई है. माइक बंद करने का हक किसी को नहीं है. सरकार कभी माइक बंद नहीं कराती. माइक बंद करने का आदेश सिर्फ स्पीकर देता है. अगर बिना अपनी बारी के कोई सांसद अपनी बात रखता है, तो मजबूरन स्पीकर को माइक बंद करना पड़ता है. और विपक्ष इसका आरोप सरकार पर लगा देता है लेकिन इसमें सरकार की कोई गलती नहीं है. "
हमने आपको पक्ष-विपक्ष के आरोप बताए, साथ में नियमों की जानकारी भी दे दी. अब आप सभी माननीयों का मूल्यांकन करें. कि सांसदों और संवैधानिक पदों पर आसीन लोग अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन कैसे कर रहे हैं, और उनके प्रदर्शन से आप कितने संतुष्ट हैं.
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