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भारत के लिए 'नया संविधान' मांग रहे बिबेक देबरॉय कौन हैं?

देबरॉय का सीवी बहुत तगड़ा है. खूब पढ़ चुके हैं. खूब पढ़ा चुके हैं. पीएम मोदी को सलाह भी देते हैं. लेकिन एक लेख के चलते सवालों के घेर में हैं.

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Know about Bibek Debroy, who is facing remarks over article on Constitution
देबरॉय एक लेखक भी हैं. वो लगातार अखबारों के लिए लिखते रहते हैं. इसके अलावा उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं. (फोटो- इंडिया टुडे/LinkedIn)
17 अगस्त 2023 (Updated: 17 अगस्त 2023, 01:02 IST)
Updated: 17 अगस्त 2023 01:02 IST
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बिबेक देबरॉय. प्रधानमंत्री मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC) के चेयरमैन. 14 अगस्त को मिंट अखबार में Bibek Debroy का एक लेख छपा जिसमें उन्होंने भारत के लिए एक ‘नए संविधान’ (new Constitution for India) की वकालत की. देबरॉय की दलील थी कि हमारा मौजूदा संविधान काफी हद तक साल 1935 के भारत सरकार अधिनियम पर आधारित है. ऐसे में विचार किया जाना चाहिए कि साल 2047 के लिए भारत के लिए कैसे संविधान की जरूरत होगी? देबरॉय के इस लेख पर अब राजनीति शुरू हो गई है, जिसपर हम बाद में आएंगे. फिलहाल ये जान लेते हैं कि बिबेक देबरॉय हैं कौन और प्रधानमंत्री के सलाहकार बनने से पहले वो क्या-क्या कर चुके हैं.

बहुत तगड़ा सीवी है इनका

अर्थशास्त्री के रूप में ख्यात बिबेक देबरॉय का जन्म मेघालय के शिलांग में हुआ था. तारीख 25 जनवरी. साल 1955. देबरॉय के दादा-दादी बांग्लादेश के सिलहट से भारत आए थे. उनके पिता भारत सरकार की इंडियन ऑडिट एंड अकाउंट्स सर्विस में काम करते थे.

देबरॉय की शुरुआती शिक्षा पश्चिम बंगाल के नरेंद्रपुर स्थित रामकृष्ण मिशन विद्यालय से हुई. इसके बाद उन्होंने इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से. देबरॉय ने इकोनॉमिक्स में ही मास्टर्स किया. इसके लिए वो दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स आए. फिर वो ट्रिनिटी कॉलेज स्कॉलरशिप पर आगे की पढ़ाई के लिए यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज चले गए.

यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज में बिबेक देबरॉय अपने सुपरवाइजर और ब्रिटिश इकोनॉमिस्ट फ्रैंक हान से मिले. हान की निगरानी में देबरॉय ने जनरल इक्विलिब्रियम फ्रेमवर्क पर काम किया. वैसे तो देबरॉय यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज अपनी PhD करने गए थे. लेकिन उन्होंने वहां से MSc डिग्री हासिल की, और अपने देश वापस आ गए.

पहले पढ़ाया, फिर सरकार को सलाह देने लगे

बिबेक देबरॉय ने साल 1979 से 1983 के बीच कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में बतौर लेक्चरर पढ़ाया. यही नहीं, उन्होंने गोखले इन्स्टिट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स और इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड (IIFT) में भी पढ़ाया. आर्थिक उदारीकरण के बाद सरकार को बड़े पैमाने पर नई नीतियों के लिए विशेषज्ञों से सलाह की ज़रूरत पड़ी. सो साल 1993-98 के बीच देबरॉय ने वित्त मंत्रालय में लीगल रिफॉर्म्स के प्रोजेक्ट पर काम किया.

साल 2004 से 2009 के बीच देबरॉय नेशनल मैन्युफैक्चरिंग कॉम्प्टीटिव काउंसिल के सदस्य भी रहे. इसके बाद उन्हें 2014-15 के बीच रेल मंत्रालय की हाई पावर कमेटी का चेयरमैन नियुक्त किया गया. रेल सेक्टर को लेकर देबरॉय कमेटी के सुझाव चर्चा (और कुछ मामलों में विवाद) का विषय बने थे. कमेटी ने शताब्दी और राजधानी जैसी प्रीमियम ट्रेनों के संचालन में प्राइवेट सेक्टर को लाने की सिफारिश की. रेलवे के संगठन में ऊपर से नीचे तक आमूल-चूल परिवर्तन/पुनर्गठन की वकालत की. साथ ही दलील दी, कि अलग से रेल बजट पेश करने का कोई खास तुक नहीं है. इनमें से कुछ सुझावों पर मोदी सरकार ने अमल भी किया.   

मोदी सरकार योजना आयोग की जगह नीति आयोग ले आई, तो देबरॉय को वहां भी जगह मिली. वो जनवरी 2015 में आयोग के स्थाई सदस्य बने. साल 2019 तक उन्होंने इसी हैसियत में काम किया. सितंबर 2017 में देबरॉय को पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC) का चेयरमैन नियुक्त किया गया. माने भारत के प्रधानमंत्री को आर्थिक मामलों पर सलाह देने वाली कमेटी के वो अध्यक्ष बना दिए गए. इसके अलावा सितंबर 2018 से सितंबर 2022 के बीच उन्होंने इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिट्यूट के प्रेसिडेंट के रूप में भी काम किया.

जब इतना खर्चा हो ही रहा है तो…

एक स्कॉलर, टीचर और सरकार के लिए चोटी के सलाहकार होने के साथ-साथ देबरॉय एक लेखक भी हैं. वो लगातार अखबारों के लिए लिखते रहते हैं. कई किताबें भी लिख चुके हैं. उन्होंने महाभारत से लेकर भगवत गीता, वेद और रामायण का अनुवाद भी किया है. देबरॉय को साल 2015 में भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार - पद्म श्री से भी सम्मानित किया जा चुका है.

नए संविधान की मांग पर बवाल

JDU और RJD ने देबरॉय के लेख पर आपत्ति जताई है. JDU के राष्ट्रीय सचिव राजीव रंजन ने कहा कि बिबेक ने जो कहा है उसने BJP और RSS की ‘नफरत से भरी सोच’ को फिर सामने ला दिया है. भारत इस तरह की कोशिशों को कभी स्वीकार नहीं करेगा. फिर कुछ लोगों ने ये भी कहा है कि देबरॉय ने तो सुझाव मात्र दिया है. इसपर बहस से कुछ बिगड़ नहीं जाएगा. रही बात भारत सरकार की, तो प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (जिसके देबरॉय अध्यक्ष हैं) ने 18 अगस्त की रात साफ कर दिया कि देबरॉय ने जो कहा, निजी क्षमता में कहा था, उसका न EAC से संबंध है, न भारत सरकार से.

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