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अमित शाह की बैठक में PFI पर क्या बात हुई?

PFI अध्यक्ष ओमा सलाम और स्टेट प्रेसिडेंट सी पी मुहम्मद बशीर को मलप्पुरम के मंजेरी से हिरासत में लिया गया.

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सांकेतिक फोटो (साभार: इंडिया टुडे)
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22 सितंबर 2022 (Updated: 22 सितंबर 2022, 24:30 IST)
Updated: 22 सितंबर 2022 24:30 IST
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रात में यही कोई 3 बजे का वक्त था, घुप अंधेर और सन्नाटा. अचानक से मुंबई से करीब 580 किलोमीटर दूर नांदेड़ के देगलूर नाका इलाके में एक घर से कुंडियों के खड़कने की आवाज आने लगती है. थोड़ी देर तक किसी को कुछ समझ नहीं आता, नींद में एक शख्स जम्हाई लेते हुए दरवाजा खोलता है. सामने दर्जनों की संख्या में खड़े लोगों ने उसकी नींद उड़ा दी. उसके सामने खड़े लोग ATS यानी एंटी टेरर स्कॉड के जवान थे. छापा पड़ा था. गिरफ्तारी के लिए. गिरफ्तार होने वाले का नाम मिराज अंसारी. पहचान - महाराष्ट्र पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI का मुख्य सचिव. लेकिन ये सिर्फ शुरुआत थी.

पौ फटने तक बिना किसी सायरन, बिना किसी शोर के नेशनल इन्वेस्टिगेश एजेंसी NIA की  टीमें निकल गईं. 8 बजते-बजते दर्जनों गिरफ्तारियां अलग-अलग इलाकों से हो चुकी थीं. अभी भी धरपकड़ चल रही थी कि इधर दिल्ली में फोन की घंटियां बजने लगी. कुछ ही देर में एक हाईप्रोफाइल मीटिंग शुरु हुई. गृहमंत्री अमित शाह, NSA अजीत डोभाल, गृह सचिव अजय भल्ला, NIA के DG दिनकर गुप्ता. एक कमरे में एक साथ मौजूद. अब तक PFI के इतिहास में ये उस पर हुई ये सबसे बड़ी और कार्रवाई थी. इस देशव्यापी कार्रवाई में इतनी बड़ी छापेमारी क्यों हुई और क्या हैं आरोप.  

महाराष्ट्र के नांदेड़ में रात के 3 बजे छापेमारी हुई तो यूपी के गाजियाबाद में वक्त था सुबह 4 बजे का. मोदीनगर के पास कलछीना गांव. PFI से जुड़े परवेज नाम के शख्स को तलाशते हुए लखनऊ ATS की टीम उसके दरवाजे पर थी. उसे पकड़ने की कोशिश हुई तो घर की महिलाओं ने विरोध किया. नोंकझोक के बीच परवेज भाग निकला. असफलता हाथ लगी तो सुबह 7 बजे ATS ने फिर से ट्राई किया. सूत्रों के मुताबिक इस बार ATS ने घर में जाने के लिए पड़ोसियों के छत का इस्तेमाल किया. परवेज फिर भी नहीं मिला. तो परवेज के पिता, भाई फुरकान और इरफान को यहां से हिरासत में ले लिया गया.

परिवार का कहना है परवेज कबाड़ का काम करता है, पुलिस वाले सिविल वर्दी में थे तो लगा चोर घुस आए हैं. इस वजह से झड़प हुई. स्थानीय पुलिस कुछ भी कहने से बच रही है, मगर परवेज को तल्लीनता के साथ ढूंढा जा रहा है.

ये दोनों महज उदाहरण थे. ऐसे देश भर में करीब 93 जगहों पर ऐसी छापेमारी हुई. और सिर्फ कार्रवाई सिर्फ कार्यकर्ताओं या नेताओं तक सीमित नहीं रही. भोर में ही NIA की टीम केरल के मल्लापुरम जिले के मंजरी पहुंच गई. जहां PFI के चेयरमैन ओमा सलाम का घर है. कार्यकर्ताओं को इस बात की भनक लग गई. पुलिस को मौके पर लगाया गया. गाड़ियां पहुंची तो PFI कार्यकर्ताओं को लगा ED की टीम छापेमारी के लिए आई है, नारेबाजी शुरू हो गई.

ईडी गो बैक के नारे लग रहे थे, मगर छापा NIA का था. सूत्रों के मुताबिक NIA ने ओमा सलाम को भी गिरफ्तार कर लिया है. शाम होते- होते गिरफ्तारियों का आंकड़ा 106 पहुंच गया. केरल, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, असम समेत कुल 15 राज्यों से लोगों को उठाया गया. ये सारी कार्रवाई टेरर फंडिंग के आरोपों पर हुई. ईडी भी इस कार्रवाई में शामिल थी. NIA को PFIई और उससे जुड़े लोगों की संदिग्ध गतिविधियों की जानकारी मिली थी, जिसके आधार पर ये एक्शन लिया गया. 

सूत्रों के मुताबिक पटना के फुलवारी शरीफ में दो महीने पहले हुई गिरफ्तारियों की निशानदेही पर ये कार्रवाई हुई. गिरफ्तारियों के बाद देश के अलग-अलग इलाकों से PFI के कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन की भी तस्वीरें सामने आने लगी. चुंकि PFI का केंद्र केरल में है तो कल यानी 23 सितंबर को केरल बंद का भी आह्वान संगठन की तरफ से किया गया है. गिरफ्तारियों पर PFI ने बयान जारी कर कहा,

''पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद, NIA और ED द्वारा देशभर में संगठन के ठिकानों पर की गई छापेमारी का विरोध करती है. परिषद अपने नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों की गलत तरह से हुई गिरफ्तारी और उत्पीड़न की निंदा करती है. NIA के PFI को लेकर किए गए बेबुनियादी दावे और सनसनी फैलाने का मकसद सिर्फ डर का माहौल बनाना है. केंद्र सरकार हमारे खिलाफ एजेंसियों का कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर रही है. हमारे खिलाफ हुई इस खौफनाक कार्रवाई के बाद भी PFI सरेंडर नहीं करेगा. हम अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था और हमारे प्यारे देश के संविधान की भावना को बहाल करने के अपने मकसद पर हमेशा अडिग रहेंगे''

चूंकि PFI का नाम आते ही लोगों की भ्रकुटियां तन जाती तो जाहिर है राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भी आईं. बीजेपी नेताओं की तरफ से एक बार फिर से बैन की मांग की गई. कांग्रेस के राहुल गांधी की भी प्रतिक्रिया दर्ज हुई. उन्होंने कहा- 

"सांप्रदायिकता और हिंसा के सभी रूप, चाहे वो कहीं से भी आएं. सब एक समान हैं, उनका मुकाबला किया जाना चाहिए. जीरो टॉलरेंस की नीति होनी चाहिए."

यानी सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सबके सुर इन कार्रवाइयों पर एक जैसे हैं.

क्या है PFI का इतिहास?

अब इतना सब हो जाने के बाद बहुत से लोग ये जानना चाह रहे हैं कि PFI क्या है? हर संदिग्ध घटना में ये नाम सामने आता है. क्यों इस संगठन का नाम बतौर एक आतंकी संगठन लिया जाने लगा है? और उन घटनाओं में PFI की असल जिम्मेदारी कितनी है? बिलकुल शुरू से बात करते हैं. दौर वो जब 92 के साल में बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया. इसी दौरान अगले ही साल यानी 1993 में नेशनल डेवलपमेंट फ़्रंट यानी NDF नाम का एक संगठन बना. मकसद मुस्लिमों को एक साथ सामाजिक मोर्चे पर मोबलाइज करना. NDF का कार्यक्षेत्र मूलरूप से केरल रहा. समय के साथ NDF के काम करने का दायरा बढ़ा. सामाजिक और आर्थिक मुद्दों बढ़कर फोकस मिशनरी कामों पहुंच गया. मतलब, दूसरे धर्मों के बीच इस्लाम के संदेश को पहुंचाना. इसे ईसाई संगठनों के मिशनरी वर्क की तरह देखा गया.

तब के दौर में आरोप लगे कि NDF उग्र तरीक़े से धर्मांतरण को बढ़ावा दे रहा था, उसकी गिनती उग्र संगठनों में होने लगी. फिर आता है साल 2002. केरल में कोझिकोड के मराड तट पर मुस्लिमों की भीड़ द्वारा 8 हिंदुओं की हत्या का मामला सामने आया. हिंसा की जांच के लिए तब की केरल कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री एके एंटनी ने एक कमिटी बनाई. जस्टिस टॉमस पी जोसेफ़ कमिटी ने अपनी इन्वाइरी रिपोर्ट में लिखा कि केरल में काम कर रहे कई मुस्लिम संगठनों को इस घटना की पहले से जानकारी थी. इसमें NDF का भी नाम आया. गिरफ़्तारियां हुई. NDF ने ये कहते हुए हिंसा से पल्ला झाड़ लिया कि गिरफ़्तार हुए लोग उनके संगठन से नहीं हैं. घटना की CBI जांच की मांग उठी, तो NDF ने  CBI जांच का स्वागत किया.

मुद्दा बड़ा हुआ तो बीजेपी ने NDF पर पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी ISI से जुड़े होने के आरोप लगाए. फॉरेन फंडिग के भी आरोप लगे. समय-समय पर NDF ने इन आरोपों को नकारा. आरोपो में घिरी NDF पर शिकंजा कसने लगा. तो साल 2004 में साउथ इंडिया काउंसिल का गठन हुआ. इस काउंसिल में कुल तीन सदस्य थे केरल का नेशनल डेवलपमेंट फ़्रंट, कर्नाटक का फ़ोरम फ़ॉर डिग्निटी और तमिलनाडु का मनिथ नीति पासरई.

इनका फ़ोकस था मुस्लिम समुदाय के विकास और आरक्षण पर. दो साल बाद 17 फरवरी 2006 में इन तीनों संगठनों का आपस में विलय हो गया, और जन्म हुआ पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया यानी PFI का. साल 2009 में आंध्र प्रदेश, गोवा, राजस्थान, मणिपुर और पश्चिम बंगाल के एक-एक संगठनों का भी विलय PFI में किया गया. धीरे-धीरे संगठन बड़ा होता रहा. प्राप्त जानकारी के मुताबिक इस वक्त संगठन के 8 लाख से ज़्यादा सक्रिय सदस्य देश के कई राज्यों में हैं.आपने PFI के गठन की कहानी जान ली.अब जरा इस पर लगे आरोपों को भी जानते चलिए.

PFI पर क्या-क्या आरोप हैं? 

गठन के साथ ही PFI हमेशा विवादों में रहा. आरोप तो यहां तक लगते हैं कि ये प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी का बदला हुआ स्वरूप है.  SIMI की शुरुआत 1977 में अलीगढ़ में हुई थी. कई आतंकी हमलों के बाद गिरफ्त में लिए गए लोग SIMI के सदस्य निकले. साल 2001 में अमेरिका में नाइन-इलेवन का बड़ा आतंकी हमला हुआ और इस समय तक भारत में SIMI की बतौर आतंकी संगठन पहचान हो चुकी थी. अमेरिका में हुए हमलों के बाद भारत सरकार ने SIMI पर प्रतिबंध लगा दिया.

दावा है कि SIMI पर बैन लगने के बाद इससे जुड़े कई कार्यकर्ता PFI में शामिल हो गए. द प्रिंट की एक रिपोर्ट के  मुताबिक PFI के नेशनल वाइस चेयरमैन अब्दुल रहमान एक समय SIMI के बड़े पद पर सक्रिय रह चुके थे. साथ ही PFI की केरल यूनिट के कई कार्यकर्ता और सदस्य लंबे समय SIMI के लिए काम करते रहे थे. 2012 में, कांग्रेस के ओमान चांडी के नेतृत्व वाली केरल सरकार ने भी केरल हाईकोर्ट में कहा,

"PFI प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के एक अन्य रूप में पुनरुत्थान के अलावा कुछ नहीं था."

इसीलिए PFI को बैंड इस्लामिक संगठन SIMI के प्रॉक्सी फ्रंट की तरफ देखा जाता है. मगर PFI ने हमेशा इन आरोपों को नकारा है.

गठन से लेकर अब तक PFI पर हथियार रखने, हत्या, अपहरण, हेट स्पीच देने, ज़बरन धर्म परिवर्तन कराने, आतंकी ट्रेनिंग कैम्प चलाने, देशविरोधी ताक़तों से चंदा लेने, ISI से लिंक, CAA के दौरान हिंसा भड़काने जैसे कई संगीन आरोप हैं. PFI पर ये भी आरोप लगे कि केरल से जो युवा ISIS में शामिल होने देश से बाहर गए, उन्हें ग्रूम करने, मतलब आतंकी तैयार करने का PFI ने किया, हम फिर दोहरा देते हैं ये सब आरोप हैं और आरोपों के फेहरिस्त बड़ी लंबी और संगीन है.

साल 2010 में  NewMan college के प्रोफेसर टीजे जोसेफ़ ने एक बार अपने छात्रों से परीक्षा में प्रॉफेट मुहम्मद को लेकर सवाल पूछे, जिसका कई संगठनों ने विरोध किया. टीजे जोसेफ़ पर मुक़दमा दर्ज हुआ. जेल गए. ज़मानत पर बाहर आए. बाहर आते ही टीजे जोसेफ़ पर हमला हुआ. उनका एक हाथ काटकर अलग कर दिया गया. 15 घंटे तक सर्जरी चली, जिसके बाद उनका हाथ, शरीर से दोबारा जोड़ा जा सका. इस हमले के पीछे भी PFI का नाम सामने आया. PFI से जुड़े 37 लोग गिरफ़्तार किए गए. हालांकि बाद में टीजे जोसेफ को भी धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोपों से बरी कर दिया गया.

ये एक घटना थी. 2011 में एक और बड़ी घटना हुई. 2011 में PFI में शामिल हुए कर्नाटक फ़ोरम फ़ॉर डिग्निटी पर भी अपहरण और किडनैपिंग के आरोप लगे. एक बच्चे का अपरहण हुआ, आरोप लगे कि अपरहण के बाद PFI के लिए 5 करोड़ रुपये चंदा मांगा गया, फिरौती के तौर पर. बाद में बच्चे की हत्या कर दी गयी. पकड़े गए सारे आरोपी कर्नाटक फ़ोरम फ़ॉर डिग्निटी से ताल्लुक़ रखते थे, जो 2006 में PFI में शामिल हो गया था. जिसका जिक्र हमने पहले किया.

कई मौक़ों पर केरल और आसपास के दक्षिण भारतीय राज्यों की कई हिंसक घटनाओं में PFI का नाम आता रहा. 2012 में जब उत्तर-पूर्व राज्यों के छात्रों और उत्तर और दक्षिण भारत के राज्यों के छात्रों के बीच टकराव शुरू हुए थे, उस समय PFI का नाम सामने आया. कहा गया कि PFI के लोगों ने एक दिन के भीतर 6 करोड़ से ज़्यादा SMS पूर्वोत्तर से आने वाले छात्रों को भेजे, जिसके बाद भारी संख्या में छात्र राज्य छोड़कर जाते देखे गए थे. उसी वक्त PFI ने अपनी छवि सुधारने का बीड़ा उठाया.

2012 में संगठन ने 'PFI ही क्यों' नाम से एक कैम्पेन भी शुरू किया. मगर विवादों से PFI का नाता कभी नहीं टूटा. 2013 में केरल पुलिस ने दावा किया कि कन्नूर के नरथ इलाके  में PFI हथियार बनाने का कैम्प चला रही थी. कैम्प से पुलिस ने PFI के 21 सदस्यों को गिरफ़्तार किया. PFI ने सफाई देते हुए कहा एक योग का ट्रेनिंग कैम्प था. दिलचस्प ये रहा कि पुलिस ने बताया, जब गिरफ़्तार हुए लोगों से योग के बारे में पूछा गया, तो वे इस बारे में कुछ भी नहीं जानते थे.

2019 में CAA के खिलाफ हुए प्रदर्शन और हिंसा में PFI का नाम आया था. पुलिस ने PFI के उत्तर प्रदेश प्रमुख वसीम के साथ-साथ संगठन के 25 लोगों को गिरफ़्तार किया. यूपी में ही नहीं. पुलिस ने असम के प्रमुखों अमीनुल हक़ और मोहम्मद मुज़म्मिल हक़ को गिरफ़्तार किया गया. यूपी के तत्कालीन DGP ओपी सिंह ने प्रेस में बयान दिया कि यूपी पुलिस के पास पर्याप्त सबूत हैं कि PFI एक आतंकी संगठन है. हालांकि अब तक ये साबित नहीं हो पाया है.

यूपी सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से मांग की, PFI पर बैन लगाया जाए. केरल और कर्नाटक की सरकारें केंद्र सरकार से समय-समय पर ये मांग करती रही हैं कि वे PFI पर प्रतिबंध लगाएं. इसके लिए अक्टूबर 2017 में भी केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कई मीटिंग की थीं. मगर किसी नतीजे पर नहीं पहुंची. आज फिर आतंक से संबंध के आरोप में NIA ने गिरफ्तारियां की हैं. जिसका विरोध PFI देश के अलग-अलग इलाकों में कर रही है. PFI ना सिर्फ अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार करती है, बल्कि सरकार पर द्वेषपूर्ण भावना का आरोप भी लगाती है. अब सवाल है कि अगर आरोपों में दम है तो राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार प्रतिबंध क्यों नहीं लगा रही है? अगर देश में होने वाली हर संदिग्ध गतिविधि के पीछे PFI ही है तो उसे बैंड संस्थानों की लिस्ट में क्यों नहीं डाल दिया जा रहा है?

इस पर जानकारों का मानना है कि PFI के बारे में कही जा रही बातें अक्सर आरोप की ही शक्ल में सामने आती रही हैं मगर किसी भी जांच में PFI का गुनाहों से पुख्ता संबंध स्थापित नहीं हो पाया. PFI का दावा भी है कि वो अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकार और विकास के लिए खड़ा रहता है. मतलब समाजसेवा करता है. ऐसे में जांच एजेंसियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है कि PFI पर लगे आरोपों के मद्देनज़र साक्ष्य जुटाना, जिसमें अभी तक पुख़्ता कामयाबी नहीं मिल सकी है. इस बार भी 100 ज्यादा आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, मगर क्या आरोप स्थापित होंगे? क्या कड़ी कार्रवाई के तहत कोई बैन लगेगा? बैन लगा और विकल्प में कोई दूसरा संगठन, दूसरे नाम से खड़ा कर लिया गया. तो उसको नियंत्रित करने का तरीका क्या होगा ? ये ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब सिर्फ वक्त दे सकता है. फिलवक्त तो सरकार के पास भी नहीं है.

वीडियो: PFI पर हुई छापेमारी में NIA किसको-किसको पकड़ा?

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