नेपाल में ओली पीएम बने रहने के लिए क्या-क्या जुगाड़ लगा रहे हैं?
कोरोना की वजह से ओली के विरोध की गुंजाइश भी कम हो गई है?
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नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली. (तस्वीर: एपी)
हमने कहा, दुहराया जा रहा है. इससे पहले कब हुआ था? बमुश्किल पांच महीने पहले. तारीख़ थी 20 दिसंबर 2020 की. सुबह के दस बजे कैबिनेट की एक आपात बैठक शुरू हुई. प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के कहने पर. बैठक ख़त्म होते ही ओली पहुंचते हैं राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी के पास. एक सिफ़ारिश के साथ. क्या? राष्ट्रपति महोदया, मैं सदन भंग करने की मांग करता हूं. राष्ट्रपति ने कलम उठाकर कहा, तथास्तु. नेपाल की संसद भंग हो गई. नए चुनावों की तारीख़ तय हुई. कहा गया, अगले बरस 30 अप्रैल और 10 मई को वोटिंग होगी.
इस ऐलान के तुरंत बाद विपक्षी पार्टियों ने विरोध शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि ये फ़ैसला असंवैधानिक और लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है. वे इस निर्णय के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट गए. वहां से फ़ैसला आया, 23 फ़रवरी 2021 को. चीफ़ जस्टिस चोलेन्द्र शमशेर राणा ने फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि संसद भंग करने का फ़ैसला असंवैधानिक है. यानी संसद बहाल रहेगी. अदालत ने ये भी आदेश दिया कि अगले 13 दिनों के भीतर ‘प्रतिनिधि सभा’ की बैठक बुलाई जाए. प्रतिनिधि सभा, नेपाल की संसद का निचला सदन है. भारत में लोकसभा की तरह. प्रतिनिधि सभा में बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने की व्यवस्था है.
सर्वोच्च अदालत का फ़ैसला ओली के लिए बड़ा झटका था. अब उन्हें संसद में बहुमत हासिल करना था. इसी डर से उन्होंने दिसंबर में संसद भंग करने की सिफ़ारिश की थी.

नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी. (तस्वीर: एएफपी)
इस डर का बैकग्राउंड समझते हैं.
ये कहानी शुरू हुई 2015 में. इस साल सितंबर महीने में नेपाल को उसका नया संविधान मिला. इसके बाद देश में चुनाव हुए. इसी चुनाव में जीतकर पहली बार प्रधानमंत्री बने के पी शर्मा ओली. तारीख़ थी- 11 अक्टूबर, 2015.
इस सरकार में दो पावर सेंटर्स थे. एक, ओली. दूसरे, पुष्प कमल दहल. शुरू में सब ठीक रहा. मगर फिर खटास बढ़ने लगी. दहल सपोर्ट वापस लेना चाहते थे. लेकिन कहते हैं कि चीन ने दहल पर दबाव बनाया और ओली को बचाया.
उस वक़्त तो बच गए ओली. मगर फिर जुलाई 2016 में उनकी कुर्सी चली गई. नेपाली कांग्रेस पार्टी और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल ‘माओइस्ट’ के प्रेशर में उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा. अगस्त 2016 में सत्ता से निकले ओली की वापसी हुई फरवरी 2018 में. वो फिर से नेपाल के प्रधामंत्री बने.

नेपाल के बड़े नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड. (तस्वीर: एएफपी)
प्रचंड धड़ा नाराज़ क्यों हुआ?
ओली के राजनैतिक दल का नाम- नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी. शॉर्ट में, NCP. इसके दो मुखिया बने. एक, ओली. दूसरे, पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’. ये कैसे हुआ? दरअसल, सरकार बनाते समय ओली की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) और प्रचंड की नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने आपस में विलय कर लिया. इससे मिलकर नई पार्टी बनी ‘नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी’. ओली और प्रचंड नई पार्टी के सह-अध्यक्ष बने. कुछ समय बाद ओली पर दबाव बढ़ा कि वो प्रधानमंत्री या पार्टी अध्यक्ष, दोनों में से कोई एक पद छोड़ दें.
ओली इस मांग को टालते रहे. इसको लेकर पार्टी के भीतर तकरार शुरू हुई. प्रचंड धड़ा नाराज़ हो गया. इसके अलावा ओली पर भ्रष्टाचार फैलाने और सरकार में तानाशाही चलाने के आरोप भी लगे. ओली को अविश्वास प्रस्ताव का डर सताने लगा. उन्हें बहुमत हासिल करने का भरोसा नहीं था.
जब फ़रवरी 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने संसद भंग के फ़ैसले को मानने से इनकार किया, केपी शर्मा ओली वापस उसी पोजिशन में पहुंच गए थे. अब उन्हें सदन में अविश्वास प्रस्ताव के आने का इंतज़ार करना था.

नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली और पुष्प कमल दहल प्रचंड. (तस्वीर: एएफपी)
क़यामत का वो दिन आया, 10 मई 2021 को
सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश हुआ. प्रतिनिधि सभा में कुल सदस्यों की संख्या 275 है. वोटिंग के दिन सिर्फ़ 232 सदस्य ही मौजूद थे. इसमें से 124 सांसदों ने केपी शर्मा ओली के ख़िलाफ़ वोट दिया. उनके पक्ष में सिर्फ़ 93 वोट पड़े. बाकी के 15 सांसदों ने न्यूट्रल का बटन दबाया. ओली विश्वासमत हार चुके थे.
इसके बाद राष्ट्रपति ने सभी पार्टियों को बहुमत साबित करने के लिए 14 मई तक का समय दिया. इस अवधि तक किसी भी पार्टी ने बहुमत होने का दावा नहीं किया. 15 मई को राष्ट्रपति ने फिर से केपी शर्मा ओली को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी. विश्वास-मत हारने के बाद ओली केयरटेकर प्रधानमंत्री की भूमिका निभा रहे थे.

नेपाल के बड़े नेता माधव कुमार नेपाल. (तस्वीर: एएफपी)
राष्ट्रपति ने हफ़्ते भर पहले ही विश्वास-मत से वंचित रहे व्यक्ति को शपथ कैसे दिला दी?
दरअसल, नेपाल के संविधान में इसकी व्यवस्था है. राष्ट्रपति संसद के किसी भी सदस्य को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त कर सकते हैं. बशर्ते उन्हें ये भरोसा हो कि चुना गया सदस्य तीस दिनों के भीतर सदन में बहुमत हासिल कर लेगा.
20 मई को ओली ने राष्ट्रपति को एक और सुझाव दिया. कहा कि आप किसी ऐसे सदस्य को चुनिए, जो सदन में बहुमत साबित करने का इच्छुक हो. अपने पद से इस्तीफ़ा दिए बिना. विडंबना देखिए, एक व्यक्ति प्रधानमंत्री पद पर बैठा था, और उसी के कहने पर नए प्रधानमंत्री की तलाश चल रही थी.
राष्ट्रपति ने वैसा ही किया. बहुमत साबित करने के लिए 21 घंटे का अल्टीमेटम दिया गया. सीमित समय के बावजूद विपक्षी गठबंधन ने 149 सांसदों के दस्तख़त जुटा लिए. इस गठबंधन के अगुआ हैं, नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देऊबा. उन्हें ओली के पूर्व सहयोगी प्रचंड और माधव कुमार नेपाल धड़े का समर्थन है. इसके अलावा, उन्हें जनता समाजवादी पार्टी (JSP) के कुछ सांसदों ने भी सहयोग दिया है.

नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देऊबा. (तस्वीर: एएफपी)
इससे पहले कि देऊबा को पीएम बनाया जाता, बीच में एक और ट्विस्ट आया. उनके राष्ट्रपति निवास पहुंचने से पहले ही ओली वहां पहुंच गए. उन्होंने दावा किया कि उनके पास 153 सांसदों का समर्थन है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, न तो ओली के पास सभी के दस्तख़त थे. और, न ही शारीरिक तौर पर सभी सांसद वहां उपस्थित थे. आरोप ये भी हैं कि ओली ने उन सासंदों के नाम भी अपनी चिट्ठी में लिख दिए, जो शेर बहादुर देऊबा का समर्थन करने का ऐलान कर चुके थे.
राष्ट्रपति भंडारी ने क्या किया?
उन्होंने दोनों चिट्ठियों की सत्यता जांचे बिना उन्हें खारिज कर दिया. प्रेसिडेंट ऑफ़िस की तरफ से कहा गया कि दोनों पक्षों के बहुमत का दावा ग़लत है. किसी भी दल ने सरकार बनाने के लिए ज़रूरी अहर्ताएं पूरी नहीं की.
इसके बाद 21 मई की आधी रात को कैबिनेट की मीटिंग हुई. इसमें संसद भंग करने की सिफ़ारिश की गई. रात के दो बजे राष्ट्रपति ने इस सिफ़ारिश को मंज़ूरी भी दे दी. ऐलान हुआ कि 10 और 17 नवंबर को दो चरणों में चुनाव कराए जाएंगे. तब तक के लिए केपी शर्मा ओली कार्यवाहक प्रधानमंत्री की भूमिका निभाते रहेंगे.

नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली. (तस्वीर: एपी)
विपक्ष इसके चलते गुस्से में है. नेपाली कांग्रेस ने राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी पर ओली को ग़लत फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया. विपक्ष ने ये भी कहा कि आधी रात में कैबिनेट की बैठक बुलाकर संसद भंग करना संविधान और लोकतंत्र के ख़िलाफ़ है.
विपक्षी गठबंधन ने फिर से सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है. उनकी तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि अदालत शेर बहादुर देऊबा के प्रधानमंत्री बनने के हक़ में फ़ैसला दे. इसके अलावा, ये भी कहा गया है चूंकि संसद भंग करने का फ़ैसला असंवैधानिक है. इसलिए संसद को फिर से बहाल किया जाए. विपक्षी धड़े की याचिका पर 146 सांसदों ने साइन किया है. अब गेंद पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के पाले में है. हालांकि, फ़ैसला क्या होगा और कब आएगा, इसपर अभी कुछ तय नहीं है.
उधर, ओली का कहना है कि राष्ट्रपति के फ़ैसले का विरोध मतलब देश का विरोध है. उन्होंने ये भी कहा कि प्रधानमंत्री के निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती.
ओली संसद भंग करने को लेकर इतने उतावले क्यों हैं?
इसका जवाब विपक्षी नेताओं की आशंका में मिलता है. कहा जा रहा है कि ओली नवंबर में चुनाव तक केयरटेकर प्रधानमंत्री रहेंगे. ऐसे में वो चुनाव को अपने पाले में करने के लिए पद का फायदा उठा सकते हैं. अभी कोरोना की वजह से ओली का विरोध करने की गुंज़ाइश भी नहीं है.

कोरोना वायरस से नेपाल का बुरा हाल है. (तस्वीर: एपी)
फिलहाल, नेपाल कोरोना की दूसरी लहर का सामना कर रहा है. रोज़ाना सात हज़ार से अधिक मामले सामने आ रहे हैं. कुल मरनेवालों की संख्या छह हज़ार के पार पहुंच गई है. नेपाल में कम संख्या में टेस्ट हो रहे हैं. ऐसे में संक्रमण का असली आंकड़ा बता पाना मुश्किल है. नेपाल कोरोना वैक्सीन की कमी का भी सामना कर रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि नेपाल ‘मिनी भारत’ बनने की कगार पर है. ऐसे दौर में पीएम की कुर्सी को लेकर चल रहा घमासान नेपाल के लोगों के लिए कतई अच्छा नहीं है.
नेपाल के हालात पर भारत की भी नज़र बनी हुई है. पिछले कुछ सालों में नेपाल में चीन का दखल बढ़ा है. भारत ने वैक्सीन की मदद देकर बढ़त हासिल करने की कोशिश की थी. भारत को कोरोना सुनामी में वैक्सीन का निर्यात बंद करना पड़ा. इस वजह से वहां एक वैक्यूम पैदा हुआ है. चीन इस खाली जगह को भरने की फ़िराक़ में है.