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चीन के व्यापार की लाइफलाइन मलक्का स्ट्रेट, जिस पर भारत-सिंगापुर के समझौते से परेशान हो रहा ड्रैगन

मलक्का स्ट्रेट मलय प्रायद्वीप (Peninsula) और सुमात्रा द्वीप के बीच से अजगर की तरह गुजरता एक समुद्री रास्ता जिसे दुनिया के सबसे बिजी समुद्री व्यापार मार्गों में से एक माना जाता है.

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Malacca strait
सिंगापुर से भारत ने मलक्का स्ट्रेट में पेट्रोलिंग में साझेदारी पर बात की है (India Today)
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राघवेंद्र शुक्ला
6 सितंबर 2025 (Published: 06:09 PM IST)
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‘जलमेव यस्य. बलमेव तस्य.’ मतलब पानी पर जिसका राज है, ताकत उसी के पास है. पानी यानी समंदर. समदंर पर लोग नहीं रहते लेकिन 70 फीसदी पानी वाली धरती पर जितने लोग रहते हैं, उनके जीवन की डोर व्यापार के जरिए समंदर से जुड़ी है. और इसीलिए समंदर पर कब्जे की लड़ाई कोई आज की बात नहीं है. ये लड़ाई सदियों से भी पुरानी है. तबसे तो है ही जब व्यापारी हो गए इंसानों को ये पता लग गया कि व्यापार जमीन से ज्यादा पानी पर तेज भागता है. 

यहीं से बंदरगाहों, कनाल और स्ट्रेट यानी जलडमरूमध्य का रोल किसी ‘हीरो’ की तरह उभरता है. पनामा हो या सुएज, होमरूज हो या मलक्का, अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विराट शरीर में दिल तक जाने वाली नसों की तरह ये जरूरी हो जाते हैं. और इन पर अपना नियंत्रण हासिल करना ‘वर्ल्ड पावर्स’ यानी वैश्विक ताकतों का प्राथमिक मंसूबा बन जाता है.

मलक्का ऐसा ही स्ट्रेट है. मलय प्रायद्वीप (Peninsula) और सुमात्रा द्वीप के बीच से अजगर की तरह गुजरता एक समुद्री रास्ता जिसे दुनिया के सबसे बिजी समुद्री व्यापार मार्गों में से एक माना जाता है. हर साल तकरीबन 1 लाख व्यापारी जहाज यहां से होकर गुजरते हैं. चीन के लिए तो यह इतना जरूरी है कि ‘चिकन-नेक’ की तरह इस व्यापारी रास्ते को बचाने के लिए वह कुछ भी कर सकता है. उसके 80 फीसदी तेल और ऊर्जा के व्यापार का यह इकलौता रास्ता है. ये बंद हुआ तो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले इस एशियाई देश की सांसें अटक जाएंगी.

जेएनयू के पूर्व प्रफेसर और दक्षिण-पूर्व एशिया के राजनीतिक और सुरक्षा मामलों के जानकार सुखदेव मुनि बताते हैं, 

मलक्का स्ट्रीट अजगर के खुले हुए मुंह की तरह है, जिसके ऊपर इंडिया बैठा हुआ है. उसके साइड में इंडोनेशिया है. आगे मलेशिया और फिर थाईलैंड है. इंडियन ओशन से पैसिफिक की तरफ जाने के लिए व्यापार का यह सबसे बड़ा रास्ता है.

लेकिन आज हम मलक्का स्ट्रेट की बात क्यों कर रहे हैं? ठीक है कि वह दुनिया की सबसे बड़ी मौजूदा जरूरत व्यापार को राह देती है और बहुत सालों से देती आ रही है लेकिन आज इसकी चर्चा क्यों? 

क्योंकि, इस स्ट्रेट को कंट्रोल करने वाले इंडोनेशिया, मलेशिया, सिंगापुर और थाइलैंड में से सिंगापुर ने यहां पर भारत के पेट्रोलिंग की मांग को अपना समर्थन दिया है. रणनीतिक लिहाज से यह काफी बड़ा कदम है, क्योंकि मलक्का स्ट्रेट अंडमान सागर का पड़ोसी है और इस इलाके में भारत की अपनी सुरक्षा चिंताएं हैं. 

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मलक्का स्ट्रेट (फोटोः गूगल अर्थ)

साथ ही यह वैश्विक अर्थव्यवस्था में सप्लाई चेन की रीढ़ भी है. हिंद महासागर के रास्ते प्रशांत महासागर का प्रवेश द्वार है. इस इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बड़ी-बड़ी ताकतें अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की होड़ में हैं, जिनमें सिर्फ चीन ही नहीं है बल्कि भारत, अमेरिका और जापान भी शामिल हैं. स्ट्रेट पर चीन की उपस्थिति बढ़ रही है और ये भारत की अहम चिंता है. 

स्ट्रेट में पेट्रोलिंग का अधिकार हिंद-प्रशांत इलाके में भारत की भू-राजनीतिक स्थिति को भी मजबूत करता है. इसके आसपास के देशों के साथ क्षेत्रीय सहयोग की अहमियत अपनी जगह पर है ही. विदेश मंत्रालय में सचिव पी कुमारन ने बताया कि मलक्का में चार देश रेगुलर पेट्रोलिंग करते हैं. अंडमान के मलक्का के नजदीक होने की वजह से भारत लगातार इसमें हिस्सा लेने की मांग करता रहा है. अब इस पर चर्चा तेज हुई है, जिससे ये उम्मीद जगी है कि समन्वय का कोई रास्ता सामने निकलकर आएगा. 

भारत के पेट्रोलिंग में क्या दिक्कत है?

एसडी मुनि बताते हैं कि भारत हमेशा से यह कहता रहा है कि पेट्रोलिंग में उसे भी हिस्सा लेना है. लेकिन साउथ-ईस्ट एशिया के देश कहते हैं कि वो स्ट्रेट के ज्यादा नजदीक हैं. आप (भारत) उसके मुंहाने पर बैठे हो. ऐसे में वो नहीं चाहते कि भारत इसमें इन्वॉल्व हो क्योंकि अगर वह इन्वॉल्व होता है तो उनको लगता है कि चीन से उन पर दबाव आएगा. ये ऑब्जेक्शन सबसे पहले मलेशिया ने उठाया था, जिसके चीन के साथ ज्यादा गहरे रिश्ते हैं. उसने कहा था कि भारत को इस स्ट्रेट में दखल देने की जरूरत नहीं है. हम अपना देख लेंगे. 

उन्होंने आगे बताया कि हालांकि, इन देशों का भारत से कोई झगड़ा नहीं है. लेकिन वो नहीं चाहते कि उनका जो रीजनल इश्यू है, उसमें कोई और दखल दे. साउथ-ईस्ट एशिया के देशों का पुराना रवैया है कि ये हमारी खाड़ी है और हम ही इसमें रहेंगे. जैसे पर्शियन गल्फ में ईरान किसी को इन्वॉल्व नहीं करना चाहता है. आगे सुएज कैनाल में इजिप्ट वगैरह किसी को इन्वॉल्व नहीं होने देते. ऐसे ही सबका अपना-अपना राग है. जैसे भारत भी नहीं चाहता कि हिंद महासागर या बंगाल की खाड़ी में कोई और आए. इसलिए मलेशिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया तीनों देशों की राय है कि मलक्का स्ट्रेट रीजनल एंटिटी है और यह रीजनल ही रहे. उनके हिसाब से भारत का मेनलैंड इससे बहुत दूर है और उसकी मौजूदगी यहां जरूरी नहीं है. 

भारत के लिए कितना जरूरी?

एसडी मुनि के मुताबिक, स्ट्रेट में पेट्रोलिंग का मुद्दा भारत के लिए इतना जरूरी नहीं है कि उसके लिए झगड़ा किया जाए. अगर स्ट्रेट से निकलने वाले ट्रैफिक या सामानों की निगरानी करनी ही है तो आप ये काम अंडमान सागर से कर सकते हैं. वो कहते हैं 

आपके पास ड्रोन्स हैं, हवाई जहाज हैं, सैटेलाइट हैं. सब तो है. अगर आप इसे ठीक से बिल्डअप करें तो ये काम बिना स्ट्रेट में प्रवेश किए भी कर सकते हैं. जियोग्राफिकली अगर हम अपने अंडमान निकोबार के मिलिट्री बेस को स्ट्रांग करें और जैसा कि पिछले 10 सालों से हम कर रहे हैं, उसको ट्राइलेटरल बेस बना रहे हैं, जहां एयरफोर्स भी हो, नेवी भी हो, आर्मी भी हो तो मलक्का का सारा मूवमेंट हम लोग आसानी से मॉनिटर कर सकते हैं. वो चाहे हमें वहां पेट्रोलिंग करने दें या न करने दें. आप मॉनिटर करो और देखो वहां से कौन जा रहा है. कौन आ रहा है. 

चीन का मलक्का डिलेमा

मलक्का स्ट्रेट के रास्ते चीन का 80 फीसदी ऊर्जा व्यापार होता है. मध्य-पूर्व एशिया से कच्चे तेल की बड़ी खेप इसी रास्ते चीन और जापान जैसे पूर्वी देशों में जाती है. ऐसे में स्ट्रेटिजिकली चीन के लिए यह इलाका बहुत महत्वपूर्ण है. इस स्ट्रेट की लंबाई लगभग 900 किलोमीटर है और चौड़ाई 65 से 250 किलोमीटर के बीच बदलती रहती है. एक पॉइंट पर तो यह सिर्फ 2.7 किमी चौड़ा है. इसीलिए इसे चीन का ‘चिकन नेक’ कहा जाता है.

एसडी मुनि कहते हैं कि 1996 में ताइवान विवाद के बाद अमेरिका ने उसे धमकी दी थी कि वह चीन को मलक्का स्ट्रेट में ब्लॉक कर देगा. इस इलाके में सबसे बड़ा नेवल फोर्स अमेरिका का ही है. हालांकि, अब चीन ने भी यहां अपनी ताकत बढ़ाई है. दक्षिण चीन सागर से उनकी सबमरीन्स भी आने लगी हैं लेकिन पहले यहां अमेरिका का मजबूत नेवल बेस था और वो यहां चीन को ब्लॉक कर सकता था. इसीलिए चीन के बारे में कहा जाता है कि ये इनका ‘मलक्का डिलेमा’ है. उनको ये परेशानी है कि कोई हमको मलक्का में ब्लॉक न कर दे और इसीलिए वो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) बना रहे हैं.

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) चीन के उत्तर-पश्चिमी झिंजियांग और पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को जोड़ने वाली बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का 3000 किलोमीटर लंबा मार्ग है. यह चीन के लिए ग्वादर बंदरगाह से मध्य-पूर्व और अफ्रीका तक पहुंचने का रास्ता बनाता है. इससे उसकी मलक्का स्ट्रेट के बिना हिंद महासागर तक पहुंच बन सकती है.

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ग्वादर पोर्ट पाकिस्तान (फोटोः गूगल अर्थ)

एसडी मुनि कहते हैं कि 

इसके पीछे चीन की यही नीयत है कि उस पर कोई आफत आए तो एक अल्टरनेटिव रास्ता रहे. चीन को डर है कि अगर मलक्का में अमेरिका की नेवी फ्लीट आ जाएगी तो क्या होगा? वह तो ब्लॉक हो जाएगा. यही तो चीन का मलक्का डिलेमा है. वह किंकर्तव्यविमूढ़ है कि क्या करे, क्या ना करे. 

मुनी कहते हैं कि यही वजह है कि चीन सबमरीन बना रहा है कि हम लड़ाई करेंगे. अपने सारे वेपंस दिखाता है. अभी नेशनल परेड में तो सारे दिखाए भी हैं. थाईलैंड को वह दोस्त बनाता है. मलेशिया को दोस्त बनाता है. इंडोनेशिया को दोस्त बनाता है. अब तो भारत को भी साथ लेने की कोशिश कर रहा है. उसके दिमाग में ये है कि भारत अगर हमारे साथ रहेगा तो हमें ये सब परेशानियां नहीं होगी.

क्या भारत चीन ब्लॉक कर सकता है?

मलक्का में भारत का सीधा हस्तक्षेप नहीं है. उसकी सीमा अंडमान सागर तक है लेकिन एसडी मुनि बताते हैं कि इसके लिए हमें दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों से दोस्ती बनाकर रहना है. मान लीजिए कभी झगड़ा हो जाए और आपको चीन को ब्लॉक करना हो तो चार-पांच मुल्क हमारे साथ खड़े हों. वह कहते हैं कि स्ट्रेट के नियंत्रक देशों इंडोनेशिया, मलेशिया या थाईलैंड से हमारा कोई मनमुटाव नहीं है. हमने उनके साथ अपनी समुद्री सीमा सेटल कर रखी है. उनसे कोई प्रॉब्लम नहीं है.

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