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ये लिस्ट बताती है, क्यों एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फडणवीस के शीतयुद्ध को 'हल्के में नहीं लेना' है?

एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री पद ना मिलने से नाराज़ थे ही, ऊपर से देवेंद्र फडणवीस ने कुर्सी संभालने के बाद उन पर नकेल कसना शुरू कर दिया. फडणवीस और शिंदे के बीच विवादों की लिस्ट लंबी होती जा रही है, और शिंदे की नाराज़गी बढ़ती जा रही है.

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Maharashtra Politics
महाराष्ट्र में चुनाव देवेंद्र फडणवीस और एकनाथ शिंदे की भूमिका बदल गई है. पहले शिंदे सीएम और फडणवीस डिप्टी सीएम. अब रोल बदल गए हैं. (इंडिया टुडे)
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अभिजीत करंडे
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21 फ़रवरी 2025 (Updated: 21 फ़रवरी 2025, 09:40 PM IST) कॉमेंट्स
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"मुझे हल्के में मत लेना. मैं एक साधारण पार्टी कार्यकर्ता हूं, लेकिन मैं बाला साहेब का कार्यकर्ता हूं. जब 2022 में लोगों ने मुझे हल्के में लिया, तो मैंने तख्तापलट कर दिया. सरकार बदल दी. इसलिए मुझे हल्के में मत लेना. ये इशारा जिसको समझना है, समझ लें."

महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे का ये बयान यह बताने के लिए काफी है कि राज्य की महायुति सरकार और गठबंधन में सबकुछ ठीक नहीं है. राज्य में नई सरकार के गठन के बाद से ही ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे के बीच सियासी शीतयुद्ध चल रहा है. दिल्ली में मुख्यमंत्री के शपथग्रहण के दौरान जब प्रधानमंत्री मोदी शिंदे से मिले, तो उनके पास ठिठुक से गए. मुलाकात कुछ ही सेकेंड्स की थी, मगर ऐसा प्रतीत हुआ कि मोदी उन्हें ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं. लेकिन शिंदे प्रतीकात्मक तवज्जो से खुश होते नज़र नहीं आ रहे हैं. मुख्यमंत्री पद ना मिलने से वे नाराज़ ही थे, उस पर फडणवीस ने पदभार संभालने के बाद उन पर नकेल कसना शुरू कर दिया.

ताज़ा मामला शिंदे के कार्यकाल में लिए गए एक फैसले से जुड़ा है. मुख्यमंत्री कार्यालय ने शिंदे सरकार के दौरान पास हुए जालना जिले के खारपुडी के 900 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट की जांच के आदेश दिए हैं. ये एकनाथ शिंदे के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. शिवसेना-बीजेपी के रिश्ते भी नाजुक मोड़ पर नजर आ रहे हैं. लेकिन ये पहली बार नहीं है जब मुख्यमंत्री बनने के बाद फडणवीस ने शिंदे को घेरने की कोशिश की हो. अब दोनों ही अपनी-अपनी ताकत दिखाने के मौके तलाश रहे हैं. एक-एक करके देखते हैं कि कैसे फडणनवीस और शिंदे एक दूसरे पर वार करने की कोशिश कर रहे हैं.

पहला झटका: एसटी बस कॉन्ट्रैक्ट रद्द किया
सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री फडणवीस ने पहला वार एसटी महामंडल के बस कॉन्ट्रैक्ट पर किया. एसटी महामंडल यानी महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन. 1310 बसों के कॉन्ट्रैक्ट को यह कहकर रद्द कर दिया गया कि इसमें गड़बड़ी हुई थी. आरोप था कि कुछ खास कॉन्ट्रैक्टर्स को फायदा पहुंचाने के लिए टेंडर की प्रक्रिया में बदलाव किया गया था. इस फैसले से एसटी महामंडल को करीब 2000 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान था. जब शिंदे मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने अपने करीबी महाड के विधायक भरत गोगावले को एसटी महामंडल का अध्यक्ष बनाया था. इसके बाद गोगावले ने 1310 बसों को कॉन्ट्रैक्ट पर लेने का फैसला किया. लेकिन फडणवीस ने इस पूरे मामले में गड़बड़ियों का आरोप लगाते हुए तुरंत इस प्रक्रिया को रद्द कर दिया. उन्होंने कहा कि यह टेंडर पारदर्शी तरीके से नहीं हुआ था और नए सिरे से पूरी प्रक्रिया शुरू करने का आदेश दिया.

गार्डियन मिनिस्टर्स की नियुक्ति पर शिंदे की नाराजगी
फडणवीस ने हर जिले के लिए गार्डियन मिनिस्टर नियुक्त करने का फैसला किया. लेकिन इसमें शिंदे के करीबी नेताओं का नाम नहीं था. एकनाथ शिंदे की पार्टी से कैबिनेट मिनिस्टर भरत गोगावले, नासिक के मालेगाव से मंत्री बने दादा भुसे को इस लिस्ट में शामिल नहीं किया गया, रायगढ़ में राष्ट्रवादी कांग्रेस नेता सुनील तटकरे की बेटी और मंत्री आदिति तटकरे को जिम्मेदारी दी गई. जबकि नासिक का कार्यभार गिरीश महाजन को सौंप दिया गया. इससे नाराज होकर शिंदे अपने पैतृक गांव चले गए. नाराजगी इतनी बढ़ी कि मामला दावोस तक पहुंच गया, जिसके बाद फडणवीस को गार्डियन मिनिस्टर्स के नाम फिलहाल रोकने पड़े.

उद्योग मंत्री उदय सामंत की नाराजगी
कुछ दिन पहले खबर चली थी कि शिवसेना नेता उदय सामंत को बीजेपी शिंदे के रिप्लेसमेंट के तौर पर आगे बढ़ा रही है. फडणवीस के साथ सामंत दावोस भी गए थे. लेकिन अब खबर आई है कि उदय सामंत की भी शिकायतें बढ़ने लगी हैं. कहा जा रहा है कि उनके विभाग में अधिकारी ‘ऊपर से आने वाले’ आदेशों के मुताबिक काम कर रहे थे, जिससे सामंत की अनदेखी हो रही थी. नाराज सामंत ने प्रधान सचिव और CEO को चिट्ठी लिखकर चेतावनी दी कि बिना उनकी सहमति के कोई भी फैसला नहीं लिया जाना चाहिए.

सरकारी योजनाओं पर कैंची चलाने की तैयारी
फडणवीस सरकार ने उद्धव ठाकरे के कार्यकाल की ‘शिवभोजन थाली’ और शिंदे की ‘आनंदाचा शिधा’ योजना की समीक्षा के आदेश दे दिए. सरकार का तर्क था कि ‘लाडली बहना योजना’ के चलते महाराष्ट्र की तिजोरी पर हर साल 46 हजार करोड़ रुपये का बोझ पड़ रहा है. अगर ये योजनाएं बंद होती हैं, तो सरकार को करीब 500 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है.

OSD और PA की नियुक्ति पर रोक
मंत्रियों के OSD और PA की नियुक्तियों पर भी CM कार्यालय ने अड़ंगा लगा दिया. फडणवीस ने यह साफ कर दिया कि जब तक नियुक्ति की पूरी जांच नहीं होगी, तब तक किसी को पीए बनने की इजाजत नहीं मिलेगी. इससे शिंदे गुट के कई मंत्री और उनके करीबी नाराज हो गए. हालांकि, खुलकर विरोध करने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई.

वॉर रूम बनाम कोऑर्डिनेशन कमेटी
फडणवीस ने सरकारी प्रोजेक्ट्स पर नजर रखने के लिए ‘वॉर रूम’ तैयार बनाया, लेकिन शिंदे उसमें शामिल नहीं हुए. जवाब में शिंदे ने भी एक ‘कोऑर्डिनेशन कमेटी’ बना ली और सरकारी योजनाओं की समीक्षा खुद ही शुरू कर दी.

वैद्यकीय कक्ष पर भी तकरार
जब शिंदे सीएम थे, तो उन्होंने मंगेश चिवटे को सीएम वैद्यकीय कक्ष का प्रमुख बनाया था. सीएम वैद्यकीय कक्ष को सरल भाषा में समझे तो मुख्यमंत्री का मेडिकल हेल्प डेस्क. किसी गरीब को कोई गंभीर बीमारी हो जाए, उस परिस्थिति में वैद्यकीय कक्ष से फंड दिया जाता है. बताया जाता है कि इससे गरीबों को काफी फायदा हुआ था. लेकिन जब फडणवीस मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने चिवटे को हटाकर रामेश्वर नाईक की नियुक्ति कर दी. जवाब में शिंदे ने भी मंत्रालय में अपना अलग ‘डीसीएम वैद्यकीय कक्ष’ बना लिया और चिवटे को फिर से नियुक्त कर दिया.

अब हालात ऐसे हैं कि फडणवीस और शिंदे एक ही मंच पर आने से भी बचते हैं. सूत्र बताते हैं कि शिंदे कई कैबिनेट मीटिंग में नहीं जाते हैं. और जिनमें जाते हैं उनमें दोनों नेताओं के बीच की तल्खी साफ नजर आती है. यह 'शीतयुद्ध' आने वाले दिनों में और तेज हो सकता है.

वीडियो: महाराष्ट्र: क्या CM देवेंद्र फड़नवीस और Deputy CM एकनाथ शिंदे के बीच 'कोल्ड वॉर' चल रहा है?

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