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बनना था क्रिकेटर, बन गए मंत्री और रेल सफर को सुहाना बना दिया

मधु दंडवते न होते तो कोंकण रेलवे शायद नहीं होता!

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प्रोफेसर मधु दंडवते का आज 97वां जन्मदिन है.
21 जनवरी 2021 (Updated: 22 जनवरी 2021, 09:46 IST)
Updated: 22 जनवरी 2021 09:46 IST
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आज से चार दशक पहले ज्यादातर रेल यात्री लकड़ी की बेंच पर सफर करते थे. सिर्फ एसी वालों को गद्देदार सीटें नसीब होती थीं. फिजिक्स के एक प्रोफेसर को ये बात खटकी. और फिर स्लीपर कोच में भी गद्दे लग गए. प्रोफेसर ऐसा कर पाए क्योंकि उस बरस वो मंत्री बने थे. रेल महकमे के. जबकि बनना उनको क्रिकेटर था. वैसे बनने बनाने का एक दौर ऐसा भी आया जब पीएम पद के लिए उनका जिक्र हुआ. मगर उस बरस वो चुनाव हार गए थे. एक सीए से, जो आगे चलकर मोदी सरकार में रेल मंत्री बना.

पॉलिटिकल किस्सों में आज बात प्रोफेसर मधु दंडवते की.
प्रोफेसर मधु दंडवते गैर-कांग्रेसी सरकारों में रेल मंत्री और वित्त मंत्री रहे.
प्रोफेसर मधु दंडवते गैर-कांग्रेसी सरकारों में रेल मंत्री और वित्त मंत्री रहे.
प्रोफेसर साहब सांसद हो गए

मधु दंडवते महाराष्ट्र के अहमदनगर के रहने वाले थे. पिता इंजीनियर थे. तो साइंस पर खूब जोर था. मधु ने मुंबई के Royal Institute of Science, Mumbai से Physics में एमएससी किया और फिर एक कॉलेज में लेक्चरर हो गए. ये आजादी के आंदोलन का दौर था. मधु दंडवते भी इसमें सक्रिय रहे. समाजवादी धारा के साथ जुड़कर. राम मनोहर लोहिया ने जब 1955 में गोवा पर पुर्तगालियों के कब्जे के खिलाफ आंदोलन शुरू किया तो मधु और उनकी पत्नी प्रमिला ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. धीमे धीमे सभी राजनीतिक खेमों में उनके प्रति सम्मान बढ़ने लगा.

मधु की विधायी पारी शुरू हुई 1970 में. पश्चिमी महाराष्ट्र से विधान परिषद का चुनाव जीतकर वह विधायक बन गए. लेकिन ये एक बरस ही कायम रही. वजह थी एक मौत. इसी बरस दिग्गज समाजवादी नेता और सांसद नाथ पाई का देहांत हो गया. कुछ ही महीनों में चुनाव थे. ऐसे में पाई की कोंकण इलाके में पड़ने वाली राजापुर सीट पर प्रोफेसर मधु दंडवते को लड़ाया गया. ये चुनाव इंदिरा के 'गरीबी हटाओ' के नारे के हिट होने वाला चुनाव था. मगर दंडवते जीतने में कामयाब रहे. और ये सिलसिला लगातार पांच चुनाव में चला. 1971 से 1989 तक. इस दौर में दो दफा कैबिनेट मंत्री का ओहदा भी नाम के आगे जुड़ा. मगर लाल बत्ती से पहले जेल थी.


मधु दंडवते 5 बार महाराष्ट्र के राजापुर से सांसद रहे.
मधु दंडवते 5 बार महाराष्ट्र के राजापुर से सांसद रहे.
कपड़े धोने से रोका गया, शपथ के वास्ते

1975 की इमरजेंसी में बाकी विपक्षी नेताओं की तरह दंडवते को भी जेल में डाल दिया गया. उनकी बैरक में साथ थे जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी. ये बंगलुरु की बात थी. मधु की पत्नी प्रमिला भी राजनीतिक कार्यकर्ता थीं. उन्हें पुणे की यरवदा जेल में रखा गया था.

जेल में मधु ने जनसंघ के अटल-आडवाणी से खूब संवाद किया. इकतरफा संवाद इंदिरा गांधी से भी किया. उन पर तानाशाही का इल्जाम लगाते हुए दंडवते ने लगभग 200 चिट्ठियां लिखीं. जेल से छूटने पर दंडवते अपने पुराने इलाके राजापुर पहुंचे. जीते और दिल्ली पहुंचे. ये दिल्ली नए रंग में ढली थी. जनता पार्टी की सरकार बन रही थी. हर कोई मंत्री पद की लॉबीइंग में लगा था. और मधु दंडवते कपड़े धोने में लगे थे.
ये वाकया हमें सुनाया सामाजिक कार्यकर्ता मंजू मोहन ने.
दंडवते तब वीपी हाउस के 403 नंबर फ्लैट में रहते थे. एक दिन उनके घर कुछ आईएएस अफसर और नेता पहुंचे. एक खबर लेकर. दरवाजा खोलने वाले कार्यकर्ता से प्रोफेसर के बारे में पूछा गया. उसने बाथरूम की तरफ इशारा किया. दरवाजा खुला था और दंडवते अपने कुर्ते पछीटने में लगे थे. खबर लगी तो आधे गीले बाहर आए. सफाई सी देते हुए. चुनाव में लगभग सब कपड़े गंदे हो गए थे. आज बहुत दिनों बाद मौका लगा तो धोने लगा.

आगंतुकों ने बताया, आपको ये सफाई अभियान रोकना होगा. कुछ देर में सरकार का शपथ ग्रहण है और आपको मंत्री पद की शपथ लेनी है. मधु दंडवते मोरारजी सरकार में रेल मंत्री थे.

इस पद पर रहते हुए उन्होंने लकड़ी की बेंचों पर दो इंच मोटे फोम लगवाए. 1974 की जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व वाली चर्चित रेल हड़ताल में बर्खास्त लोगों को बहाल किया. माननीयों के लिए जारी विशेष कोटा खत्म किया. और अपने हस्तखत के साथ रेलवे के सभी जोन में एक चिट्ठी भेजी. इसमें लिखा था.


अगर कोई अपने को मेरा मित्र या रिश्तेदार बताकर विशेष सुविधा चाहे तो उसे प्राथमिकता के आधार पर ठुकरा दिया जाए.
कोंकण रेलवे को मधु दंडवते की देन माना जाता है.
कोंकण रेलवे को मधु दंडवते की देन माना जाता है.
पहाड़ में सुराख, कोंकण के वास्ते बतौर रेल मंत्री दंडवते का सबसे महात्वाकांक्षी फैसला था, अपने लोकसभा सीट वाले कोंकण इलाके में रेल रूट का अप्रूवल. उनके पूर्ववर्ती नाथ पाई विपक्ष में रहते हुए अक्सर इसकी मांग करते थे. मगर ट्रेजरी बेंच से टिप्पणी आती थी, it’s a wild goose chase. इस अंग्रेजी मुहावरे का अर्थ था, असंभव काम के लिए मूर्खतापूर्ण प्रयास.
लेकिन दंडवते ने चेज का फैसला किया. इसके लिए प्रोजेक्ट का जिम्मा सौंपा गया ई श्रीधरन को. वही जिन्हें हम आज के दौर में मेट्रो मैन के नाम से जानते हैं. कोंकण रेलवे प्रोजेक्ट जब पूरा हुआ तब दंडवते मंत्री थे. मगर ये मोरारजी की नहीं, वीपी सिंह की सरकार थी. इस बीच इंदिरा और राजीव सरकार बीत चुकी थीं. वीपी सरकार में दंडवते वित्त मंत्री थे. उन्होंने कोंकण रेलवे की अब सभी अड़चनें दूर कर दीं. स्पेशल पर्पज व्हीकल बनाया, सब अनुमति दिलवाई और पैसों के लिए कोंकण रेलवे बॉन्ड जारी करवाए. वेस्टर्न घाट के पहाड़ी इलाकों में सुराख करने के लिए स्वीडन से टनल बोरिंग मशीन मंगवाई गईं. पुराने साथी जॉर्ज रेल मंत्री थे, उन्होंने भी खूब उत्साह दिखाया.
रामविलास पासवान के साथ मधु दंडवते और उनकी पत्नी प्रमिला दंडवते.
रामविलास पासवान के साथ मधु दंडवते और उनकी पत्नी प्रमिला दंडवते.
वित्त मंत्री का वित्त बिगाड़ा ऑटो वाले ने

दंडवते पर वीपी सिंह बहुत भरोसा करते थे. इसकी कई वजहें थीं. पहली तो उनका स्मूद कोरोनेशन. मधु दंडवते जनता दल के संसदीय दल के नेता और चुनाव के लिए चुनाव अधिकारी थे. इसी चुनाव में वो तमाशा हुआ था, जिसमें चंद्रशेखर को धोखे में रखा गया. चंद्रशेखर ने देवीलाल के नाम पर हामी भर दी. देवीलाल ने नेता चुने जाने के बाद कह दिया कि मैं तो ताऊ ही ठीक हूं, पीएम तो वीपी बने. बतौर चुनाव अधिकारी दंडवते ने ये सब होने दिया. जबकि चंद्रशेखर उनके पुराने यार थे.

वीपी ने कैबिनेट बनाई तो दंडवते को वित्त मंत्री का पद दिया. इसकी दो वजहें थीं. एक, दंडवते की ईमानदारी, किसी भी कॉरपोरेट घराने की तरफ झुकाव न होना. वीपी सिंह एंटी करप्शन लहर पर सवार होकर सत्ता में आए थे. उन्हें वित्त महकमे में ऐसे ही व्यक्ति की जरूरत थी.

दूसरी वजह बना दंडवते का अनुभव. विपक्ष का सांसद रहते हुए वित्तीय मसलों पर वह सरकार को घेरे रहते थे. कभी सीधी बात कर, तो कभी व्यंग्य विनोद के जरिए. मसलन, इंदिरा सरकार में जब वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी एक सरकारी स्कीम पेश करते हुए बार बार आत्म निर्भरता पर जोर दे रहे थे तो एक शब्द इस्तेमाल कर रहे थे. सेल्फ रिलायंस. दंडवते ने उन्हें स्पीच के बीच में टोकते हुए कहा, सेल्फ जोड़ने की जरूरत क्या है. सिर्फ रिलायंस कहने से भी काम चल जाएगा मंत्री जी.

इस तंज़ के गहरे निहितार्थ थे. प्रणव मुखर्जी को राजनीतिक सर्कल में धीरू भाई अंबानी का करीबी माना जाता था.
चंद्रशेखर, देवीलाल, वीपी सिंह और बीजू पटनायक के साथ मधु दंडवते.
चंद्रशेखर, देवीलाल, वीपी सिंह और बीजू पटनायक के साथ मधु दंडवते.

बहरहाल, जब दंडवते प्रणव मुखर्जी वाली कुर्सी पर आए तो अंबानी समेत पूरा बाजार चौकन्ना हो गया. सबको लगा कि समाजवादी लोग हैं, बंदिशें लागू करेंगे और कॉरपोरेट के लिए माहौल खराब होगा. मगर एक आदमी था, जिसने उलट उम्मीद लगा रखी थी. उसका नाम था, राकेश झुनझुनवाला.

उम्मीद उनकी पत्नी रेखा ने भी लगा रखी थी. बड़े दिनों से पति से कह रही थीं कि मेरे कमरे में एसी लगवा दो. मगर बजट के वक्त राकेश को समय नहीं था. उनके पास तीन करोड़ रुपये थे. उन्होंने मधु दंडवते के बजट पेश करने से पहले सब के सब बाजार में लगा दिए. झुनझुनवाला लंबे समय से वीपी सिंह की इकनॉमिक पॉलिसी फॉलो कर रहे थे. उनका अंदाजा सही साबित हुआ. सरकार ने प्रो इंडस्ट्री रुख बनाए रखा. बजट के दिन मार्केट खूब चढ़ा. और शाम तक झुनझुनवाला के  3 करोड़ के शेयर 20 करोड़ के हो चुके थे. 17 करोड़ का मुनाफा. ट्रेडिंग निपटाकर वो देर रात घर पहुंचे और पत्नी से बोले,


"अपना AC आ गया."

तो बाजार बम बम था. लेकिन खुद मधु दंडवते का वित्त बिगड़ने वाला था. ज्यादा कुछ नहीं. बस 400 रुपये. उस दिन दंडवते मुंबई में थे. देर रात वापसी की फ्लाइट ली. उड़ाने से पहले निजी सचिव रामकृष्णन को फोन कर कहा, 'मैं खुद ही आ जाऊंगा इसलिए ड्राइवर को परेशान मत करना.'
दंडवते ने पालम हवाई अड्डे से एक ऑटो लिया और कृष्णमेनन मार्ग चलने को कहा. यहां 8 नंबर बंगले में उनका घर था. बाद में इस बंगले का नंबर 6 A हो गया. पीएम पद से हटने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी यहीं रहते थे. और आजकल गृह मंत्री अमित शाह का ये ठिकाना है.
इसी ठिकाने पर ऑटो वाले को पहुंचना था. मगर उसे मार्ग मिल ही नहीं रहा था. वो देर तक इंडिया गेट के सर्कल पर ऑटो घुमाता रहा. कुछ देर बाद नकली गुस्सा दिखाते हुए दंडवते से बोला, मिल ही नहीं रहा आपका पता. इतना ईंधन लग गया. अब मैं 400 रुपये लूंगा.
दंडवते ने कहा,
"हां भाई, 400 रुपये दे दूंगा. घबराओ मत. बस मुझे घर तक छोड़ दो." 

इसके बाद ऑटो वाले ने उन्हें घर पहुंचाया. दंडवते ने कहा, इंतजार करो पैसे भेजता हूं. फिर अंदर से उनका पीए रुपये लेकर आया. जब ऑटो वाले को पता चला, उसकी सवारी देश के वित्त मंत्री थे तो वो पीए के पीछे पड़ गया, अपनी सवारी से फिर मिलने के लिए. दंडवते को बाहर आना पड़ा. ऑटो वाला पैरों पर गिर गया और पैसे लौटाने लगा. मगर दंडवते भी अड़ गए कि अब तो 400 रुपये ही लेकर जाओ.


हो सकते थे प्रधानमंत्री

1991 के चुनाव से दंडवते की हार का सिलसिला शुरू हो गया. इस बरस जनता दल भी बुरी तरह हारी थी. मगर 1996 में तो बिल्ली के भाग से छींका फूटा. न बीजेपी को बहुमत न कांग्रेस को. बाकी बचे दलों ने बनाया संयुक्त मोर्चा. इसमें सबसे बड़ी पार्टी थी लेफ्ट. इसने पीएम पद लेने से इनकार कर दिया. यही जवाब वीपी सिंह का भी था. तब जनता दल के दूसरे नेताओं पर नजर दौड़ाई जाने लगी. इनमें से सबसे कद्दावर थे मधु दंडवते. लेकिन दंडवते 1996 का लोकसभा चुनाव भी हार गए थे. उन्हें शिवसेना के सुरेश प्रभु ने पटखनी दी थी. नतीजे वाले दिन राजापुर कलेक्ट्रेट ने बड़प्पन का भी एक नजारा देखा. मतगणना स्थल पर जब रुझान साफ हो गए तो सुरेश प्रभु ने सबके सामने पांव छूकर दंडवते से आशीर्वाद लिया.

दंडवते ने अपनी पीएम दावेदारी को ज्यादा भाव नहीं दिया. उन्हें लगा कि जब सांसद ही नहीं तो सांसदों का नेता बनने का दावा कैसे. हारे हुए दंडवते ने दिल्ली में आशीर्वाद दिया कर्नाटक के मुख्यमंत्री और जनता दल संसदीय दल के नए नेता एचडी देवेगौड़ा को. फिर प्रधानमंत्री ने उन्हें योजना आयोग का उपाध्यक्ष बनाया.
मधु दंडवते संयुक्त मोर्चा सरकार में योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे.
मधु दंडवते संयुक्त मोर्चा सरकार में योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहे.

देवेगौड़ा और गुजराल सरकार का चचा केसरी ने क्या हश्र किया, सब जानते हैं. मगर दंडवते की कहानी इसके बाद सुर्खियों से दूर हो गई. मगर प्रेरक ये तब भी रही. खासतौर पर मौत को लेकर उनका स्वैग.
90 के दशक के आखिर में सोशलिस्ट नेता प्रेम भसीन ने एक किताब लिखी. डेमोक्रेटिक सोशलिज्म के नाम से. इसमें दिवंगत समाजवादी नेताओं पर लेख थे. भसीन चाहते थे कि दंडवते इसकी प्रस्तावना लिखें. दंडवते ने प्रस्ताव सुना और कहा, अरे मैं तो खुद 75 का हो चुका हूं. कुछ दिन रुक जाते तो मेरे नाम पर भी एक चैप्टर हो जाता.
इतनी गंभीर बात कह प्रोफेसर ने ठहाका लगाया और कहना न होगा, भूमिका भी लिखी.
दंडवते का ये रवैया दूसरों के लिखे में ही नहीं झलकता था. अपने में भी था. अखबारों में लेख लिखते थे दंडवते. फिर उसका संग्रह छपा, टाइटिल था, dialogue with a life. इसमें वह लिखते हैं, अगर दिल्ली में मरूं तो ट्रेन की एक सीट पर अच्छे से गद्दा वगैरा लगाकर बंबई ले जाया जाए. सफर आखिरी ही सही, आरामदायक होना चाहिए.
आखिरी वक्त आया. मुंबई में ही. 12 नवंबर 2005 को. और मृत्यु के बाद उनका शव जेजे मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट्स को दे दिया गया. रिसर्च वर्क में देह काम आए, इससे भला और क्या हो सकता है.
और इसीलिए, अपनी जिंदगी और मौत में भी, मधु दंडवते एक बड़े नेता थे.
एक और नेता, एक और किस्से के साथ फिर हाजिर होंगे.

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