जब दुनिया के सबसे महंगे आर्टिस्ट ने एयर इंडिया से एशट्रे के बदले हाथी का बच्चा मांग लिया
एयर इंडिया की कहानी: भाग 2
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एयर इंडिया का मेस्कॉट महराजा, ऑस्ट्रेलिया की सैर पर. (तस्वीर: imgur.com)
हमने लगभग 180 डिग्री की यात्रा कर ली थी, अब आइए पूरा चक्कर घूमा जाए. छठें, सातवें और आठवें दशक को एयर इंडिया का स्वर्ण काल कहा जा सकता है. सबसे पहले इस टाइमलाइन को कुछ क़िस्सों से समझते हैं.
# स्वर्णिम दौर के मज़ेदार किस्से और ट्रिविया
# 1955 में, जब चीन के प्रधानमंत्री झोउ एनलाई ‘गुटनिरपेक्ष आंदोलन’ के पहले सम्मेलन के लिए इंडोनेशिया की यात्रा करने वाले थे तो चीन के पास लंबी दूरी तय करने वाले विमान नहीं थे. तब चीनी प्रधानमंत्री और उनकी टीम को हांगकांग से बांडुंग ले जाने के लिए ‘इंडियन एयरलाइंस’ की एक फ़्लाइट को चार्टर्ड किया गया था.
# 21 फरवरी 1960 को, एयर इंडिया इंटरनेशनल ने अपनी फ़्लीट में पहला बोइंग 707-420 शामिल किया. इस तरह वो जेट युग में प्रवेश करने वाली पहली एशियाई एयरलाइन बनी. 11 जून, 1962 को एयर इंडिया दुनिया की पहली ‘ऑल-जेट एयरलाइन’ बन गई. मतलब उस दिन तक सिर्फ़ एयर इंडिया ही ऐसी एयरलाइंस थी, जिसकी फ़्लीट में सिर्फ़ जेट- एयरक्राफ़्ट थे.
जेट युग में प्रवेश करना और दुनिया की पहली ‘ऑल-जेट एयरलाइन’ बनना क्यों महत्वपूर्ण था? इसलिए क्यूंकि जेट इंजन को तब सबसे आधुनिक इंजन माना जाता था. यूं ये उपलब्धि ऐसी ही थी गोया, उस गांव में कोई आईफोन लहराता फिर रहा हो, जिस गांव में अब भी ज़्यादातर लोग बटन वाले फोन और सिर्फ़ कुछेक लोग स्मार्टफोन यूज़ कर रहे हों. वो भी सस्ते, एंट्री लेवल वाले.

# 1967 में एयर इंडिया ने सर्वकालीन महान आर्टिस्ट, साल्वाडोर डाली से स्पेशली कुछ एश-ट्रे बनवाए. अपने प्रथम श्रेणी के यात्रियों को उपहार में देने के लिए. इसके एवज़ में डाली ने मेहनताने के रूप में हाथी के एक बच्चे की मांग की. इस हाथी के बच्चे को एयर इंडिया की एक स्पेशल फ़्लाइट में बेंगलुरु से जिनेवा ले जाया गया. कहानी यहां देखिए.

# 1970 के दशक की शुरुआत में सिंगापुर के प्रधानमंत्री ली कुआन यू ने निवेशकों को आकर्षित करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय एयरलाइन शुरू करने के बारे में सोचा. आइडिया तो शानदार था. लेकिन सिंगापुर की इस नई एयरलाइन को ऑपरेट करने के लिए किसी पहले से मौजूद एयरलाइन के सहयोग की आवश्यकता थी. जहां से वो आवश्यक जानकारी और सेवा मानकों का अधिग्रहण कर सके. अब सवाल ये था कि कौन सी एयरलाइन चुनी जाए? अधिकारियों ने दुनिया की सर्वश्रेष्ठ एयरलाइन्स शॉर्टलिस्ट की और उसमें से अंततः एयर इंडिया को फ़ाइनल किया गया.
यूं सिंगापुर एयरलाइंस, जो आज दुनिया की बेहतरीन एयरलाइंस में से एक है, उसने एयर इंडिया को अपना रोल मॉडल माना था. जब सिंगापुर एयरलाइंस को लॉन्च किया गया था, तो उसने इन फ़्लाइट सर्विस (फ़्लाइट के अंदर सर्व होने वाले खाने, ड्रिंक्स, फ़्लाइट अटेंडेंट और बाकी अनुभव) से लेकर कई अन्य फ़्लाइट संबंधित कॉन्सेप्ट्स एयर इंडिया से ही सीखे.

# मोरारजी का हस्तक्षेप
अगर फ्लाइंग स्टाफ़ और ग्राउंड क्रू के प्रशिक्षण और अनुशासन के उच्च मानकों पर सबसे ज़्यादा ध्यान नहीं दिया जाएगा तो उसके परिणामस्वरूप आने वाली गिरावट भारतीय नागरिक उड्डयन के अच्छे नाम को नष्ट कर सकती है.एयर इंडिया की पहली वार्षिक आम बैठक में ये बोलते हुए जेआरडी टाटा जैसे कोई बुरी भविष्यवाणी कर रहे थे.
साल 1978, शायद जेआरडी टाटा और एयर इंडिया के जीवन का सबसे बुरा साल था. इस साल के पहले ही दिन एयर इंडिया का पहला बोइंग 747 मुंबई के समुद्र तट पर गिर गया. सभी 213 यात्रियों और चालक दल के सदस्यों की मौत हो गई.
एक महीना बीतते-बीतते प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने जेआरडी को एयर इंडिया की अध्यक्षता और इंडियन एयरलाइंस के निदेशक पद से हटा दिया.

कारण कोई नहीं जानता, लेकिन क़यास बहुत सारे थे. कुछ कहते थे कि मोरारजी नहीं चाहते थे कि इन फ़्लाइट सर्विसेज़ में शराब भी शामिल हो. इंडिया टुडे के सितंबर, 1977 के संस्करण में एक लंबा चौड़ा लेख छपा.
मोरारजी के इस शराबबंदी के प्रति निष्ठा की पुष्टि करता हुआ. इसके अनुसार -
प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का हालिया बयान- ‘चार साल के भीतर पूरे देश में पूर्ण शराबबंदी लागू होगी’, कई लोगों के लिए शॉकिंग है. हालांकि देसाई का शराबबंदी को लेकर जुनून जगज़ाहिर है. इसके बावज़ूद लोग हतप्रभ हैं. जहां एक ओर मोरारजी शराबबंदी लागू करने की अपनी समय सीमा के बारे में अत्यधिक आशावादी हैं, वहीं दूसरी ओर उन्होंने शराबबंदी से पैदा होने वाले दुष्परिणामों को भी सख्ती से अनदेखा करना चुना है.शायद इन्हीं दुष्परिणामों में से एक था, एयर इंडिया से जेआरडी टाटा की विदाई. क्यूंकि क़यास लगाए जाते हैं कि जेआरडी इस बात के सख़्त ख़िलाफ़ थे कि इंटरनेशनल फ़्लाइट में शराबबंदी की जाए. और शायद उनके रहते एयर इंडिया में शराबबंदी संभव भी नहीं थी. इसलिए उनको रास्ते से हटाना ही देसाई सरकार के पास एकमात्र विकल्प था.
हालांकि क़यास ये भी थे कि जेआरडी की विदाई का कारण एक महीने पहले हुआ विमान हादसा भी था, या फिर कांग्रेस और मोरारजी सरकार के बीच की तनातनी. वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी बताते हैं-
मोरारजी एक अजीब, कलह पसंद करने वाले व्यक्ति थे. इसलिए कोई भी यह समझाने में सक्षम नहीं था कि उन्होंने ऐसा क्यों किया. एक थ्योरी ये थी कि उन्हें लगता था जेआरडी, इंदिरा गांधी के करीबी हैं.

बहरहाल, JRD, को इस बात का पता 3 फरवरी, 1978 को चला. वो उस समय जमशेदपुर में थे. उन्हें सूचना दी एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइंस के नए अध्यक्ष, एयर चीफ मार्शल (सेवानिवृत्त) प्रताप चंद्र लाल ने. अगले दिन के अख़बारों में ये ख़बर फ़्रंट पेज पर थी. जब 9 फ़रवरी को जेआरडी मुंबई पहुंचे तब उन्हें 6 फ़रवरी को दिल्ली से चला एक पत्र प्राप्त हुआ. 4 फ़रवरी को लिखे इस लेटर का मज़मून वही था, जिसकी 11 फ़रवरी की प्रेस रिपोर्ट्स ने पुष्टि की: उन्हें पूर्व प्रभाव के साथ 1 फरवरी, 1978 से ही साथ इस पद से हटा दिया गया था.
जब वो जमशेदपुर में थे, जब उनसे किसी ने पूछने की हिम्मत की-
सर अभी रेडियो में समाचार सुना. आप कैसा महसूस कर रहे हैं?जेआरडी का जवाब था-
मुझे अभी वैसा ही महसूस हो रहा है, जैसा आपको तब महसूस होता, जब आपसे आपका सबसे प्यारा बच्चा छीन लिया जाता.बाद में, उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा-
मुझे उम्मीद थी कि जब सरकार मेरी सेवाओं को रद्द करेगी और इंडियन सिविल एविएशन के साथ मेरे 45 साल के रिश्ते को समाप्त करने का फैसला लेगी, तो मुझे उन निर्णयों के बारे में सीधे सूचित किया जाएगा. और यदि संभव होगा तो सबको इसकी ख़बर लगने से पहले मुझे बताया जाएगा. मुझे आशा है कि आप मुझे मेरी इस उम्मीद के आधार पर धृष्ट नहीं समझ लेंगे.

शशांक शाह, अपनी किताब में लिखते हैं-
27 फरवरी, 1978 को लंदन के डेली टेलीग्राफ ने ‘अनपेड एयर इंडिया चीफ़ इज़ सैक्ड बाय देसाई’ (बिना वेतन के काम कर रहे एयर इंडिया के प्रमुख को देसाई ने बर्खास्त कर दिया) शीर्षक से एक आर्टिकल लिखा. ये मोरारजी के कार्यकाल के दौरान के कुछ ऐसे प्रकरणों में से एक था, जिसके चलते उनकी काफ़ी किरकिरी हुई थी.# एयर इंडिया से जेआरडी के जुड़ाव का अंतिम अध्याय
हालांकि मोरारजी देसाई का शासन ज़्यादा नहीं चला, और न जेआरडी का अज्ञातवास. लेकिन मोरारजी का फैसला एयर इंडिया के लिए बुरा सपना बनकर सामने आ रहा था. चीज़ें बद से बदतर होना शुरू हो गईं. इस निर्णय का एयर इंडिया के कर्मचारियों के मनोबल पर गहरा प्रभाव पड़ा. एमडी ने इस्तीफा दे दिया. केबिन क्रू और अधिकारियों की यूनियनों ने विरोध किया. एयर इंडिया ही नहीं, पूरा देश इस अचानक हुए बदलाव से नाराज़ था.
होने को इंदिरा गांधी ने फिर से प्रधानमंत्री बनने के बाद जेआरडी को एयर इंडिया के बोर्ड सदस्य के रूप में वापस बुला लिया. लेकिन तब तक एवलांज बनना और बढ़ना शुरू हो गया था. साथ ही बोर्ड के सदस्य के रूप में उनके पास इतनी शक्तियां भी न थीं जितनी अतीत में एक अध्यक्ष के रूप में हुआ करती थी. यूं जेआरडी की वापसी कुछ-कुछ माधुरी दीक्षित की ‘आजा नचले’ साबित हुई. सरकारी कुप्रबंधन और निगरानी की कमी ने एयरलाइन को अपने घुटनों पर ला दिया था.

वीर सांघवी लिखते हैं-
एयर इंडिया अब सिर्फ ‘एक और’ सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी बनकर रह गई थी. 1980 में जब श्रीमती गांधी सत्ता में लौटीं, तो उन्हें सबकुछ सुधारने का मौक़ा मिला. लेकिन जेआरडी के बजाय, उनके निजी सचिव आरके धवन ने रघु राज को (अध्यक्ष) नियुक्त कर दिया. रघु राज एक पूर्व बैंकर थे, जिनके पास एयर इंडिया चलाने के लिए कोई नागरिक उड्डयन अनुभव नहीं था. इसके चलते नियंत्रण नागरिक उड्डयन मंत्रालय के राजनेताओं और बाबुओं के पास चला गया.इस दौरान 15 अक्टूबर, 1982 को एयर इंडिया की 50वीं सालगिरह मनाई गई. इस अवसर पर 78 वर्षीय जेआरडी टाटा ने एक सोलो फ़्लाइट उसी रूट पर चलाई, जिस रूट पर 1932 में पहली बार चलाई गई थी. मतलब कराची से मुंबई.
पुस्तक, ’दी टाटा ग्रुप: फ़्रॉम टॉर्च बियरर टू ट्रेलब्रेजर्स’ के अनुसार-
जब जेआरडी टाटा ने मुंबई के जुहू हवाई पट्टी पर लैंड किया तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री और कई गणमान्य व्यक्ति उनका अभिवादन करने के लिए वहां उपस्थित थे. जेआरडी ने दोनों देशों (भारत-पाकिस्तान) के बीच सद्भावना दूत के रूप में काम किया था. वो फ़्लाइट में अपने साथ चिट्ठियों का झोला भी लाए, जिसमें पाकिस्तान के राष्ट्रपति की भी चिट्ठी थी, भारत के राष्ट्रपति के नाम. कराची के मेयर की चिट्ठी थी, मुंबई के मेयर के नाम.जेआरडी 1986 तक बोर्ड के सदस्य रहे. 1986 में ही राजीव गांधी ने रतन टाटा को एयर इंडिया का चेयरमैन बना दिया था.
तब बीबीसी के संवाददाता मार्क टली ने उनसे पूछा, ‘क्या उन्हें भारतीय नागरिक उड्डयन के शताब्दी वर्ष पूरा होने पर उपस्थित रहने की उम्मीद है?’ जेआरडी का जवाब था, ’बेशक, मैं आसपास ही होऊंगा. मैं पुनर्जन्म में विश्वास करता हूं.’

# सर्किल पूरे हुए-
फ़ाइनली हम उन दोनों सर्किल की बात करते हैं जो आज की डेट में पूरे हो गए या पूरे होते लगते हैं.
इंट्रेस्टिंग बात ये भी है कि विस्तारा और एयर इंडिया. भारत की कुल दो ही 'फुल सर्विस' एयरलाइंस हैं. बाक़ी एयरलाइंस 'लो कॉस्ट' करियर कहलाती हैं. जेट एयरवेज़ भी 'फुल सर्विस' थी. (तस्वीर: विस्तारा एयरलाइंस)
# पहला छोटा सर्किल- जिस सिंगापुर एयरलाइंस ने एक बार टाटा परिवार की एयर इंडिया से शिक्षा ली थी, उसने ही बाद में टाटा के साथ मिलकर भारत की प्रीमियम डॉमेस्टिक एयरलाईन ‘विस्तारा’ की नींव रखी. बात 9 जनवरी, 2015 की है.

# दूसरा बड़ा सर्किल- 88 साल पहले ‘टाटा संस’ ने जिस एयर इंडिया की नींव डाली थी, बहुत संभावना है कि वो एयर इंडिया फिर से टाटा की झोली में आ गिरे. कैसे, ये बताएंगे फ़ाइनल एपिसोड, ‘नोज़डाइव’ में....क्रमशः