The Lallantop
Advertisement

इजरायली कंपनी भारत में क्या करने जा रही है?

माइक्रोचिप को लेकर भारत और इज़रायली कंपनी के बीच कौन सी डील हो गई?

Advertisement
माइक्रोचिप को लेकर भारत और इज़रायली कंपनी के बीच कौन सी डील हो गई?
माइक्रोचिप को लेकर भारत और इज़रायली कंपनी के बीच कौन सी डील हो गई?
pic
साजिद खान
12 फ़रवरी 2024 (Published: 07:38 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

तेज़ी से डिजिटल होती हमारी दुनिया में एक बेहद छोटी चीज़ है जिसपर हमारा ध्यान बहुत कम जाता है. चाहें हम चंद घंटों में हजारों किलोमीटर प्लेन से यात्रा कर रहे हों, या ATM से पैसे निकाल रहे हों, हर जगह उसका इस्तेमाल होता है. यहां तक कि दो देशों के बीच छिड़ी जंग में इस्तेमाल होने वाली मिसाइल भी इससे अछूती है. क्या आप उस छोटी सी चीज़ का नाम बता सकते हैं?  

उस छोटी सी चीज़ का नाम है सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप. माइक्रोचिप की अहमियत का अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि कई विद्वान इसकी तुलना तेल से करते हैं. लेकिन सही मायनों में इसकी उपयोगिता आज के दौर में तेल से भी आगे निकल चुकी है. जियोपॉलिटिक्स में इसका अहम रोल है. पर आज इसकी चर्चा हम क्यों कर रहे हैं. क्योंकि इज़रायल की एक कंपनी ने भारत में माइक्रोचिप प्लांट लगाने का प्रस्ताव दिया है. कंपनी का नाम है, टावर सेमीकंडक्टर. अगर ये डील आगे बढ़ी तो भारत में पहली बार 40 और 65 नैनोमीटर की चिप बनेंगी. 

तो आइए जानते हैं,  

इज़रायली कंपनी, भारत के साथ क्या डील करना चाहती है? 

सेमीकंडक्टर सेक्टर में भारत अभी कहां खड़ा है? 

और जियो पॉलिटिक्स में सेमीकंडक्टर कैसे मायने रखता है? 

सेमीकंडक्टर को चिप भी कहते हैं, इसलिए आगे हम चिप शब्द का ही इस्तेमाल करेंगे. सबसे पहले तो ये जानते हैं कि ये चिप आखिर होती क्या है? आसान भाषा में कहें तो सेमीकंडक्टर चिप एक तरह से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का दिल होता है. सेमीकंडक्टर किसी प्योर एलीमेंट मसलन सिलिकॉन, जरमेनियम या किसी कंपाउंड जैसे गैलियम आर्सेनाइड या कैडमियम सेलेनाइड से बनाया जाता है. 

कैसे बनाई जाती है ये चिप? 

चिप को बनाने की एक ख़ास विधि होती है जिसे डोपिंग कहते हैं. इसमें प्योर सेमीकंडक्टर में कुछ मेटल डाले जाते हैं और मैटेरियल की कंडक्टिविटी में बदलाव किया जाता है. 

कहां-कहां इस्तेमाल होता है इसका? 

आपके आस-पास जितने भी इलेक्ट्रोनिक डिवाइज़ दिख रहे हैं, उन सबमें इसका इस्तेमाल होता है. जिस डिवाइज़ में आप ये पढ़ रहे हैं, इसमें भी चिप का इस्तेमाल किया गया है. समुद्र में चलने वाले भारी-भरकम जहाज़ हों, हवा में उड़ने वाले प्लेन, या युद्ध में इस्तेमाल किए जाने वाली मिसाइल. हर जगह इसका इस्तेमाल होता है. 

जियोपॉलिटिक्स में इसकी क्या उपयोगिता है? 

पूरी दुनिया में इसकी ज़रूरत है, लेकिन मुट्ठी भर देश इसका प्रोडक्शन करते हैं. अमेरिका, चीन, साउथ कोरिया, जापान और ताइवान इसमें आगे हैं.  दुनिया की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर बनाने वाली कंपनी ताइवान में है. कंपनी का नाम है, ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चर कंपनी (TSM). ये कंपनी दुनिया के लगभग 90 प्रतिशत प्रोसेसर चिप बनाती है. जिनका इस्तेमाल स्मार्टफोन और कंप्यूटर्स में होता है. ताइवान के एक प्रोसेसर चिप प्रोडक्शन में एकतरफ़ा राज से चीन परेशान रहता है. चीन, ताइवान को अपना हिस्सा बताता है, लेकिन ताइवान अपने आप को एक आज़ाद मुल्क बताता है. हालांकि दुनिया के अधिकांश देश उसे देश नहीं मानते. अमेरिका भी ताइवान को देश नहीं मानता. लेकिन उसके साथ व्यापार ज़रूर करता है. इससे चीन नाराज़ रहता है.  सेमीकंडक्टर चिप ने जियोपॉलिटिक्स पर भी अपनी छाप छोड़ी है. इसपर कई किताबें लिखी जा चुकी हैं. क्रिस मिलर की चिप वॉर ने भी इसपर कई खुलासे किए हैं. क्रिस मिलर ने अपनी इस किताब में लिखते हैं, कि  

‘चीन हर साल चिप्स खरीदने पर अपना ख़र्च बढ़ा रहा है, इसी तरह चीन जितना पैसा तेल आयात करने में खर्च करता है उससे अधिक सेमीकंडक्टर चिप आयात करने पर लगाता है.’ 

चीन और अमेरिका के बीच भी चिप को लेकर तना-तनी चलती रहती है. इससे जुड़ी 2 बड़ी घटनाएं आपको सुनाते हैं. 

पहली घटना है हुवावे कंपनी से जुड़ी हुई. 

अगस्त 2023 के आखिर में, चीनी स्मार्टफोन और टेलीकॉम कंपनी हुवावे ने अपना स्मार्टफोन मेट-60 प्रो लॉन्च किया तो इसपर अमेरिका ने भारी चिंता जताई थी. चिंता क्यों? क्योंकि अमेरिका इस बात पर हैरान था कि चीन इस फोन को चलाने के वाली 7 नैनो मीटर चिप कैसे बना पाया. अमेरिका सोच रहा था कि 7 नैनो मीटर वाली चिप में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों पर उसने चीन के ख़िलाफ़ पाबंदी लगा रखी है, इसलिए चीन में इसका प्रोडक्शन नामुमकिन है. लेकिन चीन इसे बनाने में कामियाब रहा था. इसके अलावा, साल 2019 में अमेरिका ने हुवावे को राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए, अपने यहां से हाई-एंड चिप बनाने वाले टूल की बिक्री पर भी रोक दी थी, लेकिन चीन पर इसका कोई असर नहीं हुआ. 

चिप पर अमेरिका और चीन के भिड़ने की दूसरी बड़ी घटना भी अगस्त 2023 की ही है. 

पिछले साल चीन ने गैलियम और जर्मेनियम के निर्यात के लिए स्पेशल लाइसेंस की शर्त लगा दी थी. इन रासायनिक तत्वों का इस्तेमाल चिप और सैन्य साज़ो-सामान में होता है. एक रिपोर्ट मुताबिक़, चीन दुनिया में सबसे ज़्यादा, तक़रीबन 80 फ़ीसदी गैलियम और 60 फ़ीसदी जर्मेनियम का उत्पादन करता है. ये रासायनिक तत्व ‘माइनर मेटल्स’ यानी बेहद छोटी धातुएं कहलाते हैं. ये धातुएं प्रकृति में आमतौर पर नहीं पाई जाती हैं बल्कि एक प्रक्रिया के तहत दूसरी धातुओं से इन्हें निकाला जाता है. चीन ने इनके निर्यात पर लाइसेंस वाली शर्त इसलिए लगा दी थीं ताकि दूसरे देशों ख़ास तौर पर अमेरिका तक इसकी पहुंच कम हो सके. 

ये तो रही जियो पॉलिटिक्स में चिप की अहमियत. अब बात करते हैं भारत, चिप के उत्पादन में कहां खड़ा हुआ है? 

अप्रैल 2022 में पीएम मोदी ने देश में चिप बनाने और इसका उत्पादन बढ़ाने का संकल्प लिया था. 29 अप्रैल को पीएम मोदी ने कहा था कि 2026 तक भारत में लगभग साढ़े 6 लाख करोड़ रुपए के सेमीकंडक्टर की खपत होने लगेगी और 2030 तक ये आंकड़ा 9 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच जाएगा.  

सितंबर 2022 में पहली बार भारत में बड़े रूप में चिप बनाने की उम्मीद जागी. ताइवान की फॉक्सकॉन कंपनी ऑयर वेदांता समूह के बीच डील हुई. डील के मुताबिक गुजरात में सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने का समझौता तय हुआ. ये डील लगभग 1.6 लाख करोड़ की थी. इस डील की बहुत चर्चा हुई. लेकिन जुलाई 2023 आते-आते ये डील फेल हो गई.  तबसे लेकर अब तक भारत में सेमीकंडक्टर चिप का कोई बड़ा प्लांट खुल नहीं पाया है. हम ज़्यादातर चिप की खपत दूसरे देशों से पूरा करते हैं.  लेकिन अब इज़रायली कंपनी टावर सेमीकंडक्टर ने एक नई डील की पेशकश की है. इसकी बात पिछले साल अक्टूबर से ही चल रही थी. अब देखना होगा कि ये डील कब तक ज़मीन पर उतरती है. डील में इज़रायली कंपनी ने क्या पेशकश की है? पॉइंट्स में जान लेते हैं. 

- कंपनी ने कहा है कि हम भारत में चिप बनाने का प्लांट लगाना चाहते हैं. इसके लिए भारत सरकार को पिच भेजी गई है. सरकार फिलहाल पिच पढ़ रही है. 

- ये डील लगभग 66 हज़ार करोड़ रुपयों की है. 

- प्रस्ताव के मुताबिक, टावर भारत में 65 नैनोमीटर और 40 नैनोमीटर चिप बनाएगी.  

इज़रायली कंपनी टॉवर सेमीकंडक्टर का क्या काम है? 

टॉवर सेमीकंडक्टर हाई वैल्यू एनालॉग सेमीकंडक्टर सोलूशंस उपलब्ध कराती है. ये ऑटोमोटिव, मेडिकल, इंडस्ट्रियल, कंज्यूमर, एयरोस्पेस और डिफेंस जैसे सेक्टर में चिप सप्लाई करती है. कंपनी दुनिया भर के 300 से ज्यादा कस्टमर्स को एनालॉग इंटीग्रेटेड सर्किट बनाकर देती है. कंपनी का सालाना रेवेन्यू 8 हज़ार करोड़ रुपयों से ज़्यादा है.  

ऐसा नहीं है कि इज़रायली कंपनी से डील एक नई बात है. जून 2023 में अमेरिकी कंपनी  माइक्रोन टेक्नोलॉजी ने भी भारत में चिप प्लांट शुरू करने का प्लान तैयार किया था. मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि 2024 में ये प्लांट तैयार हो जाएगा और भारत पहली बार मेड इन इंडिया चिप तैयार कर पाएगा.  जो भी हो ये डील भारत के लिए तो फायदेमंद होगी ही. साथ ही इसका जियोपॉलिटिक्स में भी असर पड़ेगा. वो इसलिए क्योंकि भारत अब तक जिन देशों से चिप ख़रीद रहा है उन देशों से व्यापार कम होगा. बता दें कि भारत सबसे ज़्यादा चिप चीन, अमेरिका और जापान से ख़रीदता है.  

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement