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वो संस्था कब और कैसे बनी, जिसका भौकाल आज पूरी दुनिया में है

इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी नाम है, खेल कराना काम है.

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Pierre De Coubertin ने की थी IOC की स्थापना (तस्वीर IOC से साभार) दूसरी फोटो में दिख रहे हैं ओलंपिक के प्रतीक छल्ले
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सूरज पांडेय
23 जून 2021 (Updated: 23 जून 2021, 10:45 AM IST) कॉमेंट्स
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स्पोर्ट्स यानी खेलकूद की जब भी बात होती है, ओलंपिक का ज़िक्र जरूर आता है. आए भी क्यों न, यही तो वह आयोजन है, जिसमें हर योग्य व्यक्ति को खुद को साबित करने का मौका मिलता है. दुनिया के सबसे बड़े खेल आयोजन ओलंपिक का इतिहास बेहद लंबा और समृद्ध है. प्राचीन काल की बात अलग रखकर भी देखें, तो पहले मॉडर्न ओलंपिक का आयोजन 1896 में हुआ था. इसके बाद से हर चार साल में एक बार ओलंपिक गेम्स होते हैं. कई मौके ऐसे भी आए, जब इन गेम्स का आयोजन नहीं हो पाया. इनमें लेटेस्ट तो 2020 के ओलंपिक ही हैं. टोक्यो में होने वाले 2020 ओलंपिक गेम्स को एक साल आगे खिसका दिया गया है. कोरोना वायरस से फैली महामारी के चलते इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी (IOC) ने होस्ट देश के साथ मिलकर यह फैसला किया. इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी, यानी वह संस्था, जो ओलंपिक गेम्स से जुड़े सारे फैसले करती है.

# किसने की शुरुआत

खेलों की दुनिया की इस सबसे ताकतवर संस्था की स्थापना 126 साल पहले आज ही के दिन हुई थी. 18वीं सदी में एक फ्रेंच हिस्टोरियन हुए थे. नाम था चार्ल्स पिएरे डे फ्रेडी बारोन डे कुबर्तिन. लेकिन फेमस हुए पिएरे डे कुबर्तिन के नाम से. कुबर्तिन फ्रांस के एक बड़े परिवार से संबंध रखते थे. खूब पढ़ने-लिखने के बाद भी उनका दिल खेलों में लगा था. वह अक्सर पुराने दौर के ओलंपिक गेम्स की बातें किया करते थे. कुबर्तिन पर एक रग्बी स्कूल के हेडमास्टर थॉमस अर्नॉल्ड का काफी प्रभाव पड़ा था. लेकिन एथलेटिक्स कंपिटीशन के बारे में उनकी सोच और विस्तृत की डॉक्टर विलियम पेनी ब्रूक्स ने. ट्रेंड फिजिशियन और सर्जन ब्रूक्स मानते थे कि बीमारी से बचने का सबसे सही तरीका शारीरिक व्यायाम है. उन्होंने 1850 में लोकल तौर पर एक एथलेटिक्स कम्पिटीशन भी आयोजित कराया था. उन्होंने इसे 'मीटिंग्स ऑफ ओलंपियन क्लास' का नाम दिया. ब्रूक्स ने एक नेशनल ओलंपिक असोसिएशन भी बनाया. इसके जरिए वह ब्रिटेन के तमाम शहरों में ऐसे कम्पिटीशन कराना चाहते थे. शुरुआत में ब्रिटेन में स्पोर्ट्स का काम देखने वाली संस्थाओं ने उन्हें भाव नहीं दिया. लेकिन ब्रूक्स लगे रहे. उन्होंने ग्रीस (यूनान) की सरकार और वहां खेलों की वकालत करने वालों से बातचीत जारी रखी. वह लगातार ओलंपिक को नए दौर में आयोजित कराने की संभावनाएं तलाश रहे थे. यहां ब्रूक्स की मुलाकात हुई इवान्गेलोस और कोस्तान्तिनोस ज़प्पास से. यह दोनों भाई ग्रीस के बड़े अमीरों में से एक थे. इन्होंने ऐतिहासिक पैनाथिनाको स्टेडियम का पुनर्निर्माण कराया. बाद में इस स्टेडियम को 1896 में हुए पहले ओलंपिक में इस्तेमाल किया गया. ब्रूक्स की बातों पर अब भी बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा था. लेकिन वह पीछे हटने को तैयार नहीं थे. उन्होंने 1866 में लंदन शहर में एक नेशनल ओलंपिक गेम्स का आयोजन कर ही डाला. इन गेम्स को आज भी ग्रीस के बाहर हुआ पहला ओलंपिक माना जाता है. अब तब तमाम देशों ने अपने-अपने यहां ओलंपिक कॉन्टेस्ट कराना शुरू कर दिया था, लेकिन इंटरनेशनल लेवल पर अभी तक ऐसा कुछ नहीं था.

# कुबर्तिन की मेहनत

साल 1888-89 में कुबर्तिन ने ओलंपिक गेम्स को एक इंटरनेशनल कंपिटीशन के रूप में दोबारा शुरू करने पर गंभीरता से विचार करना शुरू किया. कुबर्तिन शुरुआत में अकेले थे. बाद में साल 1890 में ब्रूक्स ने कुबर्तिन को लेटर लिखा. इन दोनों का पत्राचार लंबे वक्त तक चला, शिक्षा और खेलों पर इनकी खूब बातें हुई. इधर कुबर्तिन ने साल 1894 में ओलंपिक कांग्रेस बुलाई. साल 1892 की एक सर्द शाम को कुबर्तिन ने घोषणा की कि वह ओलंपिक गेम्स को दोबारा से शुरू करने जा रहे हैं. उनकी तारीफ हुई, लेकिन उस वक्त किसी ने सोचा भी नहीं था कि इतने बड़े लेवल पर यह काम किया जा सकता है. ब्रूक्स इस कांग्रेस में आने की हालत में नहीं थे. उनकी उम्र काफी हो चुकी थी, लेकिन उन्होंने कुबर्तिन को अपना सपोर्ट जारी रखा. खासतौर से उन्होंने ग्रीक सरकार में मौजूद अपने कनेक्शंस के जरिए कुबर्तिन की काफी मदद की. ये अलग बात है कि कुबर्तिन ने अपनी चिट्ठियों में ब्रूक्स की मदद को काफी नजरअंदाज किया. उन्होंने ज़प्पास ब्रदर्स की भूमिका का ज़िक्र तो किया, लेकिन इस बात का पूरा ध्यान रखा कि उनके अपने रोल को बड़ा माना जाए. शुरुआत में ओलंपिक्स में अमेचर एथलीट्स को रखने की बात हुई थी. अमेचर मतलब जिनके लिए एथलेटिक्स करियर न हो. कुबर्तिन का मानना था कि एथलीट्स को पैसे नहीं मिलने चाहिए. हालांकि वह इस बात पर सहमत थे कि गेम्स के दौरान अमेचर एथलीट्स को होने वाले नुकसान की भरपाई होनी चाहिए.

# पहली कांग्रेस

इन तमाम चीजों के बीच 16 जून 1894 को कुबर्तिन की बहुप्रतीक्षित कांग्रेस के आयोजन की शुरुआत हुई. इसमें फ्रांस की 24 खेल संस्थाओं और क्लबों के प्रतिनिधि के रूप में कुल 58 फ्रेंच लोगों का जत्था पहुंचा. जबकि 20 प्रतिनिधि बेल्जियम, ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड, ग्रीस, इटली, स्पेन और स्वीडन जैसे देशों से पहुंचे. इनके अलावा अमेरिका ने 13 विदेशी फेडरेशंस का प्रतिनिधित्व किया. आखिरकार 23 जून 1894 को कांग्रेस की फाइनल मीटिंग में कुबर्तिन का ओलंपिक ड्रीम सच हो गया. कांग्रेस ने सर्वसम्मति से ओलंपिक गेम्स को दोबारा से जिंदा करने का प्रस्ताव पारित कर दिया. यहीं बनी इंटरनेशनल ओलंपिक कमिटी. कुबर्तिन को इसका जनरल सेक्रेटरी, जबकि एक ग्रीक बिजनेसमैन देमेत्रिओस विकेलास को प्रेसिडेंट चुना गया. विकेलास पेरिस में रहने वाले एक बिजनेसमैन और मशहूर लेखक थे. कहा जाता है कि उस वक्त के उनके भौकाल और पेरिस में रिहाइश के चलते ही उन्हें ग्रीस का प्रतिनिधि बनने को कहा गया था. उन्हीं की अध्यक्षता में साल 1896 में ग्रीस के शहर एथेंस में पहले मॉडर्न ओलंपिक आयोजित हुए. इन गेम्स के बाद उन्होंने IOC के प्रेसिडेंट की पोस्ट से इस्तीफा दे दिया और साल 1908 में अपनी मृत्यु तक एथेंस में ही रहे.

#ट्रिविया

# IOC इस वक्त दुनिया की सबसे ताकतवर खेल संस्था है.

# इस वक्त IOC के सदस्य देशों की संख्या 205 है.

# पूरी दुनिया में सिर्फ पांच देश ऐसे हैं, जिन्होंने हर ओलंपिक में भाग लिया है- ग्रीस, ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, स्विटजरलैंड और ऑस्ट्रेलिया.

# साल 1948 से हर साल 23 जून को इंटरनेशनल ओलंपिक डे मनाया जाता है.

# ओलंपिक के इतिहास में अमेरिका ने सबसे ज्यादा मेडल जीते हैं. अमेरिका के नाम 1022 गोल्ड मेडल हैं. दूसरे नंबर पर सोवियत यूनियन है, जिसने 440 गोल्ड मेडल जीते हैं.


एक ऐसा ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट, जिन्हें हॉकी खेलने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया था!

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