25 साल पहले आजादी के दिन रिलीज हुई ये फिल्म कश्मीर पर बनी बेस्ट फिल्म है
सिनेमा की ताकत बताने वाली इस फिल्म ने मणिरत्नम और रहमान का करियर संवार दिया था.

सिनेमा-प्रेमी हैं, तो मणिरत्नम को जानते होंगे. अरे वही, 'रोजा' वाले डायरेक्टर, जिन्होंने बाद में 'दिल से...', 'बॉम्बे', 'गुरु' और 'रावण' जैसी फ़िल्में बनाई. लेकिन याद उन्हें उनकी फिल्म 'रोजा' के लिए ही किया जाता है. वही 'रोजा', जो आज से 25 साल पहले यानी 1992 में आज़ादी के दिन ही रिलीज हुई थी. अरविंद स्वामी और मधु अभिनीत ये फिल्म कश्मीर में आतंकवाद के मुद्दे पर बुनी गई है.

फ़िल्म 'रोजा' का पोस्टर
फिल्म में अरविंद ने क्रिप्टोलॉजिस्ट यानी कोडेड मेसेज पढ़ने वाले ऋषि कुमार का रोल किया था और मधु उनकी पत्नी और फिल्म की लीड किरदार 'रोजा' बनी थीं. सेना की मदद करने कश्मीर गए ऋषि को आतंकवादी किडनैप कर लेते हैं. आतंकी ऋषि को छोड़ने के बदले अपने एक साथी की रिहाई की मांग करते हैं. ऐसे में रोजा अपने पति को बचाने के लिए क्या-क्या जतन करती है और किस तरह उसे बचाती है, यही इस फिल्म की थीम है. ये फिल्म दर्शकों में एक अलग ही तरह की देशभक्ति पैदा करती है. लोगों को अहसास दिलाती है कि सच्ची देशभक्ति क्या होती है.

रोजा के दृश्यों में अरविंद और मधु
शायद यही वजह है कि इस फिल्म को तीन नेशनल अवॉर्ड मिले, जिसमें 'राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म' का अवॉर्ड भी शामिल है. बेहद सीमित बजट में बनी इस फिल्म को दर्शकों और समीक्षकों, दोनों ने ही खासा पसंद किया. आज भी इसे कल्ट में गिना जाता है. भारत की आजादी के दिन रिलीज़ हुई इस फिल्म के बारे में कुछ ख़ास बातें हम आपको बताते हैं:-
# मणिरत्नम को रियल लाइफ से आया था फिल्म का आईडिया
90 के दशक में कश्मीर का माहौल बड़ा तनावपूर्ण था. आतंकी गतिविधियां चरम पर थीं. उसी दौर में एक इंजीनियर को कश्मीर भेजा गया, जिसे आतंकवादियों ने किडनैप कर लिया और बदले में अपने एक साथी को छोड़ने की मांग करने लगे. इंजीनियर की पत्नी उनकी रिहाई के लिए लड़ती रहीं. उन्होंने आतंकवादियों को एक 'ओपन लेटर' भी लिखा, जिसमें उन्होंने अपने पति को छोड़ने की गुज़ारिश की. इस सीन को फिल्म में जस का तस लिया गया है. ये वही सीन है, जब रोजा आतंकी वसीम खान से मिलने जेल जाती है.

फ़िल्म के एक सीन में वसीम खान से जेल में बात करती रोजा
# फ़िल्म का नाम 'रोजा' क्यों पड़ा?
मणिरत्नम दिग्गज फिल्ममेकर के. बालाचंदर को अपना आइडल मानते थे. बालाचंदर ही उनकी फिल्मों में आने की प्रेरणा थे. बालाचंदर एक फिल्म बनाना चाह रहे थे. इसी सिलसिले में उन्होंने मणिरत्नम से बात की. मणिरत्नम के दिमाग में वो आइडिया पहले से घूम रहा था. उन्होंने बाला को अपना आइडिया सुनाया. बाला उनके आइडिया से इंप्रेस हो गए. फिल्म बननी तय हो गई. अब मणिरत्नम ने इसे एक बड़े मौके और जिम्मेदारी के तौर पर लिया और अपने बेस्ट से भी बेहतर देने का फैसला किया.

के. बालाचंदर के साथ मणिरत्नम
फिल्म बन गई और टाइटल दिया गया 'रोजा'. इस टाइटल से बाला नाखुश थे. उन्हें ये कुछ अजीब लग रहा था. इस तरह की फ़िल्म और नाम 'रोजा'! फिर मणिरत्नम ने उन्हें बताया कि फ़िल्म का नाम 'रोजा' क्यों रखा गया. 'रोजा' शब्द गुलाब के अंग्रेजी से लिया गया है और गुलाब यहां कांटो के बीच खूबसूरती का परिचायक है. फ़िल्म टाइटल में कश्मीर को गुलाब और आतंकवाद को कांटे के रूप में दर्शाया गया है. और फ़िल्म की लीड किरदार का भी नाम तो रोजा ही है.
# मणिरत्नम ने स्क्रिप्ट पर बहुत मेहनत की थी
मणिरत्नम के लिए 'रोजा' एक बड़े मौके की तरह थी, क्योंकि वो ये फ़िल्म अपने गुरु के साथ बना रहे थे. इसलिए वो इसके लिए स्क्रिप्ट से लेकर शूटिंग लोकेशन तक, सब कुछ परफेक्ट चाहते थे. फ़िल्म का बैकड्रॉप कश्मीर था, लेकिन आतंकवादियों के कारण वहां फिल्म की शूटिंग की इजाज़त नहीं मिली. इसलिए फिल्म को कई अलग-अलग जगहों पर शूट करना पड़ा. मणिरत्नम ने ये फ़िल्म कुनूर, ऊटी और मनाली में शूट की.

फ़िल्म 'रोजा' के सिनेमैटोग्राफर संतोष सीवान.
फिल्म के सिनेमैटोग्राफर संतोष सीवान ने बताया कि मणि ने ये स्क्रिप्ट बहुत ही डिटेल में लिखी थी. फ़िल्म से जुड़ी तक़रीबन हर चीज़ स्क्रिप्ट में थी. कब कौन सी तस्वीर दिखानी है, स्क्रीन पर ये भी उन्होंने स्क्रिप्ट में लिखा था. लेकिन जो सबसे कमाल चीज़ थी, वो ये कि उन्होंने दर्शकों को कौन सी सीन में स्क्रीन पर क्या दिखेगा, वो भी स्क्रिप्ट में लिखा था.
जैसे फ़िल्म में एक सीन है, जहां रोजा पहली बार कश्मीर देखती है. उस सीन के लिए उन्होंने स्क्रिप्ट में पहले से लिख रखा था कि वहां सिर्फ और सिर्फ बर्फ नज़र आनी चाहिए, क्योंकि कश्मीर के बारे में लोगों की यही धारणा है. शूटिंग लोकेशन बदलने की वजह से कुछ मुश्किलें आईं, लेकिन उन्होंने इस फ़िल्म में सब कुछ परफेक्ट रखा.

कश्मीर की वादियों को देखकर रोजा अचंभित हो जाती हैं, वहां चारो और बर्फ ही बर्फ थी
# इस फ़िल्म से ही शुरु हुआ एआर रहमान का फ़िल्मी करियर
मणिरत्नम इस फ़िल्म के लिए अलग म्यूज़िक चाहते थे, लेकिन उस वक्त की लाट का कोई भी म्यूज़िक डायरेक्टर उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा था. ऐसे में उन्होंने नए लोगों को फ़िल्म से जोड़ा. इन नए लोगों में से एआर रहमान भी एक थे. इस फ़िल्म से पहले रहमान डॉक्युमेंट्री और टीवी ऐड फिल्मों के लिए संगीत और जिंगल बनाते थे. मणिरत्नम ने इस फिल्म के लिए रहमान को साइन किया. ये रहमान और फ़िल्मों का पहला कोलैबरेशन था, जिन्होंने बाद में 'स्लमडॉग मिलेनियर' के लिए ऑस्कर जीता. वो अलग बात है कि रहमान इन अवॉर्ड्स से परे के कलाकार हैं.

एआर रहमान
फ़िल्म रिलीज़ होने के बाद 'रोजा' के म्यूज़िक को 'मास्टरपीस' कहा गया. इस फ़िल्म के संगीत के लिए रहमान को ढेरों अवॉर्ड मिले, जिनमें बेस्ट म्यूज़िक डायरेक्टर का नेशनल अवॉर्ड, फ़िल्मफेयर अवॉर्ड, तमिल फिल्मों और तमिलनाडु स्टेट फ़िल्म अवॉर्ड शामिल हैं. प्रतिष्ठित मैगज़ीन 'टाइम' के 2005 के एडिशन में 'रोजा' फ़िल्म के साउंडट्रैक को सर्वकालिक 10 सर्वश्रेष्ठ अल्बमों की लिस्ट में जगह दी गई. इसके बाद एआर रहमान का करियर कहां पहुंचा, ये बताने की जरूरत नहीं है.
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