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अटल बिहारी वाजपेयी के OSD ने लिखी IC 814 हाईजैक की 'असली कहानी', यहां पढ़ लीजिए

IC 814 Hijack: हाईजैक के बीच जसवंत सिंह ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री को फोन मिलाया. उन्होंने उनसे विमान को फिर से उड़ान भरने से रोकने की विनती की. लेकिन पाकिस्तानियों को ये बिल्कुल पसंद नहीं आया. वो खुद को अपहरण से दूर रखना चाहते थे, ताकि बाद में वो ये दावा कर सकें कि इसमें पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं है.

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IC 814 hijack kanchan gupta senior advisor pmo incident details
कंचन लिखते हैं कि एक राष्ट्र के रूप में हमारे पास आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं है. (फोटो- PTI)
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प्रशांत सिंह
3 सितंबर 2024 (Published: 14:01 IST)
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IC 814. इंडियन एयरलाइंस का जहाज. 24 दिसंबर 1999 को नेपाल की राजधानी काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से विमान ने दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के लिए उड़ान भरी. जैसे ही IC 814 ने शाम साढ़े 5 बजे भारतीय एयरस्पेस में एंट्री ली, 4 आतंकियों ने एलान किया कि प्लेन हाइजैक हो चुका है. प्लेन को दिल्ली में लैंड कराने से रोक दिया गया. पहले उसे अमृतसर ले जाया गया. इसके बाद लाहौर और फिर दुबई. वहां से विमान अफ़ग़ानिस्तान के कंधार पहुंचा था.

नेटफ्लिक्स पर हाल में रिलीज हुई सीरीज के बाद से IC 814 हाईजैक खूब चर्चा में है. इस घटना को लेकर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में वरिष्ठ सलाहकार कंचन गुप्ता का एक पुराना लेख सामने आया है. इसमें उन्होंने IC 814 हाईजैक के बारे में 'अंदर की बातें' बताई हैं.

कंचन ने X पर एक पोस्ट में बताया कि उस समय वो प्रधानमंत्री कार्यालय में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ओएसडी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSA ब्रजेश मिश्रा के साथ मिलकर काम कर रहे थे) में सदस्य थे. इसी पोस्ट में कंचन ने साल 2008 में लिखे उनके लेख का लिंक डाला. उन्होंने बताया,

“दिलचस्प बात ये है कि IC 814 के अपहरण की शुरुआती सूचना प्रधानमंत्री वाजपेयी की फ्लाइट के पायलट को नहीं बताई गई. माना जाता है कि भारतीय वायुसेना को इसके बारे में जानकारी थी. पीएम वाजपेयी और उनके सहयोगी जब तक दिल्ली पहुंचे थे तब तक उनको इस बारे में कोई भी जानकारी नहीं थी. इसको लेकर बाद में विवाद भी हुआ था.”

कंचन गुप्ता ने अपने ब्लॉग में लिखा,

"शाम 5 बजकर 20 मिनट पर काठमांडू-दिल्ली फ्लाइट को 5 हाईजैकर कमांड कर रहे थे. इनकी पहचान बहावलपुर निवासी इब्राहिम अतहर, शाहिद अख्तर सईद, कराची निवासी गुलशन इकबाल, कराची के डिफेंस एरिया निवासी सनी अहमद काजी, कराची के अख्तर कॉलोनी निवासी मिस्त्री जहूर इब्राहिम और सुक्कुर सिटी निवासी शाकिर के रूप में हुई. फ्लाइट में 189 पैसेंजर और क्रू मेंबर मौजूद थे और वो लाहौर की तरफ जा रही थी."

मसूद अज़हर को छुड़ाने के बाद एयरपोर्ट पर पहले से खड़ी तालिबानी आतंकियों की गाड़ियां रवाना हो गईं बाद की कई आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए
शाम 5 बजकर 20 मिनट पर काठमांडू-दिल्ली फ्लाइट को 5 हाईजैकर कमांड कर रहे थे.
वरिष्ठ मंत्रियों और सचिवों की इमरजेंसी बैठक 

कंचन की मानें तो प्रधानमंत्री आवास पर वरिष्ठ मंत्रियों और सचिवों को पहले ही इमरजेंसी बैठक के लिए बुलाया जा चुका था. NSA ब्रजेश मिश्रा राजीव भवन में बने क्राइसिस कंट्रोल रूम के लिए रवाना हो चुके थे. लगातार चल रही बैठकों के बीच वाजपेयी ने अपने निजी कर्मचारियों को 25 दिसंबर को उनके जन्मदिन पर आयोजित सभी समारोहों को रद्द करने का निर्देश दिया. इसके बाद रात तक कैबिनेट कमेटी की बैठक चली.

कंचन बताते हैं कि इस घटनाक्रम के बीच जानकारी मिली की IC 814 के पायलट को लाहौर में लैंड करने की अनुमति नहीं मिली. क्योंकि विमान में फ्यूल कम था, तो वो अमृतसर की तरफ मुड़ा. राजा सांसी एयरपोर्ट के अधिकारियों को तुरंत इस बारे में सतर्क किया गया और विमान के वहां उतरने के बाद उसे उड़ान भरने से रोकने के लिए कहा गया. कंचन के मुताबिक विमान अमृतसर में लैंड किया, और 45 मिनट तक टर्मिनल पर ही खड़ा रहा. हाईजैकर्स ने विमान को रिफ्यूल करने की डिमांड की. कंचन बताते हैं कि एयरपोर्ट के अधिकारी इधर-उधर भागते रहे, उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि संकट की इस स्थिति में क्या किया जाए!

राजा सांसी एयरपोर्ट के अधिकारियों को किसी तरह ईंधन भरने से रोकने और विमान को उड़ान भरने से रोकने के लिए कई कॉल किए गए. लेकिन अधिकारी कोई भी जवाब न दे सके. कंचन गुप्ता बताते हैं कि एक वक्त हताश जसवंत सिंह ने फोन उठाया और एक अधिकारी से विनती करते हुए बोले,

"कोई भारी वाहन, ईंधन का ट्रक या रोड रोलर या जो भी आपके पास है, उसे रनवे पर ले जाएं और वहां पार्क कर दें.”

कंचन बताते हैं कि IC 814 के हाईजैक होने की सूचना मिलते ही NSG को अलर्ट कर दिया गया था. NSG स्टैंडबाय पर थी. लाहौर लैंड करने की परमीशन न मिलने पर जब विमान अमृतसर की ओर आ रहा था तभी गृह मंत्रालय को दोबारा अलर्ट किया गया था. कंचन बताते हैं कि 45 मिनट बीतने के बाद भी NSG कमांडो एयरक्राफ्ट तक नहीं पहुंच सके थे. इसके वो दो वर्जन लिखते हैं. पहला ये कि NSG कमांडो दिल्ली से अमृतसर जाने के लिए विमान का इंतजार कर रहे थे. दूसरा ये बताया गया कि कमांडो मानेसर और दिल्ली एयरपोर्ट के बीच ट्रैफिक में फंस गए थे. पर इसके बारे में असल कहानी आज तक सामने नहीं आई!

गंभीर दिखने के लिए पैसेंजर को चाकू मारा

कमांडो एक्शन की आशंका की वजह से हाईजैकर्स ने रूपिन कटियाल नाम के एक पैसेंजर को चाकू मारा. वो ये दिखाना चाहते थे कि वो गंभीर हैं. इसके बाद हाईजैकर्स ने पायलट को अमृतसर से उड़ान भरने के लिए मजबूर किया. विमान का फ्यूल टैंक लगभग खाली था, लेकिन पायलट को अमृतसर से लाहौर के लिए टेक-ऑफ करना पड़ा. हालांकि, पायलट को इस बार भी टेक-ऑफ की परमीशन नहीं मिली थी. इस बीच रनवे पर मौजूद सभी लाइट्स बंद कर दी गईं. लेकिन पायलट विमान को लेकर उड़ गया और लाहौर जाकर लैंड किया.

इस बीच जसवंत सिंह ने पाकिस्तानी विदेश मंत्री को फोन मिलाया. उन्होंने उनसे विमान को फिर से उड़ान भरने से रोकने की विनती की. लेकिन पाकिस्तानियों को ये बिल्कुल पसंद नहीं आया. वो खुद को अपहरण से दूर रखना चाहते थे, ताकि बाद में वो ये दावा कर सकें कि इसमें पाकिस्तान का कोई हाथ नहीं है. कंचन लिखते हैं कि पाकिस्तान चाहता था कि IC 814 जल्द से जल्द उनकी धरती और उनके एयरस्पेस से बाहर हो जाए. इसलिए, विमान में ईंधन भरा गया जिसके बाद हाईजैकर्स ने पायलट को दुबई जाने के लिए मजबूर किया.

तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और विदेश मंत्री जसवंत सिंह (फोटो साभार- gettyimages)
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और विदेश मंत्री जसवंत सिंह (फोटो साभार- gettyimages)

दुबई सरकार भी विमान को लैंड करने की अनुमति नहीं दे रही थी. कंचन बताते हैं कि यहीं पर जसवंत सिंह और तत्कालीन UAE राजदूत केसी सिंह ने बेहतरीन काम किया. उन्होंने विमान की लैंडिंग के लिए परमिशन ली. UAE के अधिकारियों के माध्यम से अपहरणकर्ताओं के साथ कुछ बातचीत हुई. उन्होंने 13 महिलाओं और 11 बच्चों को विमान से उतरने की अनुमति दी. इस वक्त तक रूपिन कत्याल की अत्यधिक ब्लीडिंग के कारण मौत हो चुकी थी. उनके शव को उतार गया. लेकिन उनकी विधवा पत्नी अंत तक बंधक बनी रहीं.

कंधार पहुंचा विमान

25 दिसंबर की तारीख. विमान दुबई से अफगानिस्तान के कंधार हवाई अड्डे पर उतरा. एयरपोर्ट पर बिजली और पानी तक की सुविधा नहीं थी. 25 दिसंबर की दोपहर तक विमान के हाईजैक होने की खबर हर जगह पहुंच चुकी थी. कंचन बताते हैं कि प्रधानमंत्री आवास के बाहर सुनियोजित विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे. जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया, भीड़ बढ़ती गई. 30 दिसंबर तक ये सब चला.

इसी बीच प्रधानमंत्री वाजपेयी ने एक शाम अपने स्टाफ से कहा कि परिवारों को अंदर आने दिया जाए, ताकि उन्हें बंधकों की रिहाई के लिए सरकार के प्रयासों के बारे में बताया जा सके. उस वक्त तक हाईजैकर्स से बातचीत शुरू हो चुकी थी और मुल्ला उमर अपने विदेश मंत्री मुत्तवकिल के जरिए इस काम में जुट गया था. अपहरणकर्ता चाहते थे कि अलग-अलग भारतीय जेलों में बंद 36 आतंकवादियों को रिहा किया जाए, नहीं तो वे बंधकों के साथ विमान को उड़ा देंगे.

वाजपेयी के इस सुझाव के बावजूद कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) में मौजूद कोई भी सीनियर मंत्री बंधकों के परिवारों से मिलने को तैयार नहीं था. जिसके बाद जसवंत सिंह ने स्वेच्छा से ऐसा करने की पेशकश की. कंचन बताते हैं कि जसवंत ने उनसे उस जगह तक साथ चलने को कहा जिसके नीचे परिवार इकट्ठा हुए थे. बकौल कंचन वहां पहुंचने पर उन पर भीड़ ने हमला कर दिया. उन्होंने स्थिति के बारे में उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें चुप करा दिया गया. कंचन ने लिखा,

“विमान हाईजैक होने की घटना के बीच ही जसवंत सिंह को मीडिया को जानकारी देने के लिए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करने के लिए कहा गया. शास्त्री भवन में प्रेस सूचना ब्यूरो हॉल में जब ब्रीफिंग चल रही थी, तभी बंधकों के कुछ परिवार के लोग अंदर घुस आए और नारे लगाने लगे. उनका नेतृत्व संजीव छिब्बर नाम का व्यक्ति कर रहा था. जिसके बारे में मुझे बाद में बताया गया कि वो एक 'बड़ा सर्जन' है. उसने दावा किया कि बंधकों में उसके छह रिश्तेदार भी शामिल थे.”

कंचन बताते हैं कि डॉक्टर छिब्बर चाहते थे कि अपहरणकर्ताओं द्वारा नामित सभी 36 आतंकवादियों को तुरंत रिहा किया जाए. उन्होंने हॉल में मौजूद सभी लोगों को याद दिलाया कि अतीत में मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद की रिहाई के लिए आतंकवादियों को जेल से रिहा किया गया था. छिब्बर ने मांग की,

"जब हमारे रिश्तेदार बंधक बनाए जा रहे हैं, तो आप आतंकवादियों को अब क्यों नहीं रिहा कर सकते?"

कंचन लिखते हैं कि इसके बाद वहां मौजूद लोगों ने कहा, "कश्मीर दे दो, उन्हें जो चाहिए दे दो, हमें कोई परवाह नहीं है."

कांग्रेस का क्या पक्ष था?

कांग्रेस के पक्ष के बारे बताते हुए कंचन ने लिखा,

“कांग्रेस लगातार इस बात पर जोर देती रही कि वो सरकार के साथ हैं. संकट के समाधान और बंधकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार जो भी करेगी, कांग्रेस उसका समर्थन करेंगी. लेकिन कांग्रेस ने ये भी कहा कि सरकार को अपनी विफलता के बारे में बताना चाहिए."

बकौल कंचन हरकिशन सिंह सुरजीत और अन्य विपक्षी नेताओं ने भी कुछ इसी तरह के अस्पष्ट बयान दिए.

28 दिसंबर तक सरकार ने अपहरणकर्ताओं के साथ एक समझौता कर लिया था. तीन आतंकवादियों- मौलाना मसूद अजहर, मुश्ताक अहमद जरगर और अहमद उमर शेख - के बदले में बंधकों को रिहा करने की डील हुई. गृह मंत्रालय ने जरूरी कागजी कार्रवाई पूरी की. आतंकवादियों को कंधार ले जाने और बंधकों को लाने के लिए इंडियन एयरलाइंस के दो विमानों को स्टैंडबाय पर रखा गया. 31 दिसंबर की सुबह दोनों विमान दिल्ली एयरपोर्ट से रवाना हुए. उनमें से एक विमान पर जसवंत सिंह भी सवार थे. कंचन यहां पर एक सवाल करते हैं कि क्या जसवंत के मंत्रिमंडल सहयोगियों को पता था कि वो कंधार जाएंगे? इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि क्या प्रधानमंत्री को इसकी जानकारी थी? कंचन कहते हैं कि इसका जवाब हां और नहीं दोनों है.

कंचन लिखते हैं कि जसवंत सिंह ने बंधकों की रिहाई की व्यक्तिगत निगरानी करने और अंतिम समय में कोई समस्या न हो, ये सुनिश्चित करने के लिए कंधार जाने का निर्णय लिया था. वो बताते हैं,

“ऐसा माना जाता है कि उन्होंने ऐसा करने के लिए सम्मान की बात का उल्लेख किया था. क्योंकि उन्होंने बंधकों के रिश्तेदारों से वादा किया था कि उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा. ये संभव है कि किसी ने नहीं सोचा होगा कि जसवंत अपने प्लान के बारे में गंभीर हैं. ये भी उतना ही संभव है कि ‘जब लोकप्रिय भावना और कांग्रेस’ सरकार के खिलाफ हो गई, तो लोगों ने जसवंत से उम्मीद लगाई थी.”

31 दिसंबर की रात बंधकों को वापस दिल्ली लाया गया. नए साल के दिन अपहरणकर्ताओं की मांग के आगे झुकने के कारण सरकार आलोचनाओं के घेरे में थी. कंचन लिखते हैं कि तब से इस 'आत्मसमर्पण' को एनडीए के खिलाफ माना गया और जसवंत सिंह को इस पूरी घटना में खलनायक के रूप में चित्रित किया गया है.

तालिबान का विदेश मंत्री मुत्त्वकिल दाएं (फोटो सोर्स - आज तक)
तालिबान का तत्कालीन विदेश मंत्री मुत्त्वकिल दाएं (फोटो सोर्स - आज तक)

कंचन लिखते हैं कि एक राष्ट्र के रूप में हमारे पास आतंकवाद के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं है. हम युद्ध जीतने या हारने से पहले ही अपने मरने वालों की गिनती शुरू कर देते हैं. हम युद्ध के मैदान में मरने वालों को सम्मानित करने और इतिहास के बहादुर दिलों को गौरवान्वित करने का दिखावा करते हैं, लेकिन हम ये नहीं चाहते कि हमारे बच्चे उनके नक्शेकदम पर चलें. कंचन कहते हैं कि हम देश के तौर पर नेकदिल राजनेता को दोषी ठहराने में खुश होते हैं, जो शायद अपने रेजिमेंटल आदर्श वाक्य 'इज्जत और इकबाल' को बहुत गंभीरता से लेता है.

वीडियो: नेटफ्लिक्स पर आई IC 814 को लेकर विवाद, आतंकवादियों के नाम बदलने का आरोप

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