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क्या आप ED के साथ नेहरू और मोदी के इस कनेक्शन के बारे में जानते हैं?

नेहरू के कार्यकाल में बनी थी ईडी.

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ED
(फोटो: इंडिया टुडे)
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27 जुलाई 2022 (Updated: 27 जुलाई 2022, 24:02 IST)
Updated: 27 जुलाई 2022 24:02 IST
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वो ज़माना गया जब सीबीआई का भौकाल हुआ करता था. कोई फसाद होता, सड़क से लेकर संसद तक CBI जांच की मांग होने लगती. कहीं से CBI के छापे की खबर लगती, तो स्थानीय प्रशासन तक के हाथ-पांव फूल जाते. लेकिन वो साल दूसरा था, ये साल दूसरा है. अब माहौल है ED का. प्रवर्तन निदेशालय. एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट. वक्त वित्तीय अनिमितताओं और आर्थिक अपराधों की जांच करने वाली एक केंद्रीय एजेंसी, जो आखबार के 13 वें पन्ने से पहले पन्ने पर पहुंच चुकी है. आज बड़े से बड़ा नेता ED के ही छापे से डरता है.

भारत की सबसे बड़ी अदालत में ED के अधिकारों की समीक्षा के लिए कुछ याचिकाएं लगी थीं, जिनपर फैसला आ गया है. आज हम इस फैसले के बहाने ED के इतिहास और वर्तमान पर बात करेंगे.

1956 का साल था. देश में पंडित नेहरू की सरकार. ज़रूरत थी विदेशों में चल रहे एक्सचेंज में जो लोग लेनदेन कर रहे थे, उनकी जांच की जाए. सवाल थे कि क्या जो लेन देन हो रह हैं सही दिशा में हैं? क्या कुछ गड़बड़ियां की जा रही थीं? इस जांच के लिए जो ज़रूरी क़ानून था, वो देश की आज़ादी के समय से ही मौजूद था. क़ानून का नाम  FERA. यानी फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट, 1947. ऐसे में आर्थिक मामलों के विभाग ने एक यूनिट के प्रस्ताव पर काम करना शुरू किया. इस प्रस्ताव का नाम था Enforcement Unit. एक साल बीता. 1957. इस यूनिट की शुरुआत हो गई. ऑफ़िस दिल्ली में. कर्ता धर्ता बस एक लीगल सर्विस अफ़सर, जो इस यूनिट का डायरेक्टर था. फिर लाया गया RBI से एक अधिकारी, जो उस डायरेक्टर का असिस्टेंट बन. फिर आए 3 इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अफ़सर. और फिर उन तीन शहरों में भी ब्रांच खुले, जहां मार्केट का कारोबार होता था. मतलब बॉम्बे, मद्रास और कलकत्ता. तीनों जगह स्टॉक एक्सचेंज हुआ करते थे. नाम बदला गया. यूनिट की जगह लिखा गया डायरेक्टोरेट. यानी Enforcement  Directorate शार्ट में कहें तो ED. गाड़ी यहीं से चल निकली. कई कालखंडों से गुजरती हुए आज देश की सबसे ताकतवर संस्थाओं में से एक हो चुकी है.

तो पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में तैयार हुई एक संस्था, आज उन्हीं के परिवार के लिए जी का जंजाल बन गई है. आज नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस की. अध्यक्ष सोनिया गांधी से तीसरी बार ED ने पूछताछ की. पूछताछ तीन घंटे चली. सोनिया गांधी से पहले दो बार, आठ घंटों से अधिक समय तक पूछताछ की जा चुकी है.

ईडी की अडिशनल डायरेक्टर मोनिका शर्मा की अगुआई में अधिकारियों की टीम ने सोनिया गांधी से पूछताछ की थी. जिसमें उनसे 65 से 70 सवाल पूछे गए. ऐसा माना जा रहा है कि एजेंसी ने बुधवार को उनसे 30-40 और सवाल पूछे. यानी कुल मिलाकर 11 घंटे पूछताछ हुई. सोनिया गांधी के लिए राहत की बात ये रही कि उन्हें अगला कोई समन पूछताछ के लिए नहीं दिया गया. इसी मामले में राहुल गांधी से भी घंटों पूछताछ चल चुकी है. सोनिया गांधी से हेराल्ड अखबार के कामकाज, संचालन, विभिन्न पदाधिकारियों की भूमिका और हेराल्ड व यंग इंडियन में उनके और राहुल गांधी की भूमिकाओं के बारे में सवाल किए गए. अब ये नेशनल हेराल्ड का पूरा मामला क्या है, इस पर एक लल्लनटॉप शो हमने बीते दिनों किया था. उसका लिंक आपको डिस्क्रिप्शन में मिल जाएगा. मोटा मोटी ये जान लीजिए कि कांग्रेस की तरफ से चलाने वाले अखबार नेशनल हेराल्ड को दी जाने वाली वित्तिय मदद से जुड़ा मामला है.

राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप से इतर ED को लेकर एक बहस सुप्रीम कोर्ट में भी चल रही थी. ED की शक्तियों को लेकर लंबे समय से एक बहस चल रही है. उसमें सबसे ज्यादा विवाद प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट यानी PMLA को लेकर था. जो ED को संपत्ति जब्त करने, गिरफ्तार करने, छापा मारने, कुर्की करने जैसे ताकतवर अधिकार देता है. अब जरा इस कानून के इतिहास और अस्तित्व को भी समझ लीजिए. फिर कोर्ट की प्रोसिडिंग और फैसले पर आते हैं.

1960 का साल था. ED का प्रशासनिक नियंत्रण तब तक वित्त मंत्रालय के पास था. इसे बदल कर नियंत्रण राजस्व मंत्रालय यानी रेवेन्यू डिपार्टमेंट को दे दिया गया. जिसकी मौजूदा मंत्री निर्मला सीतारमण हैं. समय के साथ ED में परिवर्तन हुए, अब तक ED फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट यानी FERA 1947 के तहत काम
करता था. इसके जगह FERA 1973 ने ले ली.  साल 1973 से साल 1977 तक ED पर डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनेल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स का प्रशासनिक का भी नियंत्रण रहा. सबकुछ ऐसे ही धीरे-धीरे कुछ सालों तक चला और आया साल 1999. FERA 1973 की जगह नया क़ानून आया. जिसे  फॉरेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट यानी FEMA के नाम से जाना गया. 1 जून सन 2000 से ये प्रभाव में आया, जो कि एक सिविल लॉ था जिसने ED को और ताकत दी.

फिर आता है साल 2002. केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार. PMLA अधिनियम संसद में पेश किया गया. 2004 में सरकार बदल गई और UPA का पहला शासन काल आया. तब वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम. साल 2005 में UPA सरकार ने अटल सरकार के समय बने क़ानून को 1 जुलाई से लागू कर दिया. इसके बाद जब विदेशों में शरण लेने वाले आर्थिक मामलों के अपराधियों की संख्या बढ़ी तो साल 2018 में सरकार ने ‘भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम’ (FEOA) पास कर दिया. और ये ज़िम्मेदारी भी ED के पास आ गई. ईडी के पास अब तक काफी ताकत आ चुकी थी.

ED आज की तारीख में ख़ास तौर पर FEMA और PMLA कानूनों के तहत काम करता है. FEMA एक सिविल लॉ है. इस क़ानून को Quasi Judicial Powers यानी अर्धन्यायिक शक्तियां होती हैं. जो इस क़ानून को एक्सचेंज कंट्रोल कानूनों के उल्लंघन के मामलों की जांच करने और दोषियों पर पेनाल्टी लगाने में सक्षम बनाती हैं. जबकि PMLA एक क्रिमिनल लॉ है. जिसके तहत अधिकारियों को मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपियों की संपत्तियों की जांच करने, उनसे पूछताछ करने, दोषी पाए जाने पर संपत्ति जब्त करने और अपराधियों को गिरफ्तार करने के अधिकार मिले हुए हैं.  PMLA के सेक्शन 4 के तहत दंडनीय अपराधों के मामले स्पेशल कोर्ट्स में सुने जाते हैं. केंद्र सरकार ने एक से ज्यादा ऐसी कोर्ट बनाई हुई हैं. जिसे PMLA कोर्ट कहा जाता है. खासबात ये है कि PMLA कोर्ट के किसी ऑर्डर के खिलाफ़ उस न्यायिक क्षेत्र के हाईकोर्ट में ही अपील की जा सकती है.

हमारे शिवेंद्र गौरव ने ईडी पर लिखे लेख में बताया कि साल 2009 और साल 2013 में PMLA क़ानून में कुछ संशोधन हुए जिनसे PMLAका दायरा बढ़ा, साथ ही इसने ED को CBI से भी ज्यादा शक्तियां दे दीं. TADA और POTA जैसे क़ानूनों के ख़त्म होने के बाद PMLA भारत का अकेला ऐसा क़ानून है जिसमें जांच करने वाले ऑफिसर को दिया गया बयान कोर्ट में बतौर सबूत मान्य है. इसके अलावा साल 2017 PMLA में ये प्रोवीज़न भी था कि किसी आरोपी को सिर्फ तब जमानत दी जा सकती है जब कोर्ट इस बात से संतुष्ट हो कि आरोपी वास्तव में दोषी नहीं है. इस लिहाज से भी PMLA एक बेहद सख्त क़ानून है. क्योंकि ज्यादातर आरोपियों को लंबे वक़्त तक जमानत ही नहीं मिल पाती है.  एक बार नप गए तो लंबे टाइम के लिए गए.

यहां से साफ है कि PMLA कानून इतना ताकतवर है ये ED को भ्रष्टाचार के आरोपी, पैसों का हेर-फेर करने वाले लोगों को गिरफ्तार कर सकती है. घर छापा मारने और उनकी प्रॉपर्टी को जब्त करने का भी अधिकार है. यहां तक कि करप्शन के आरोपी को तलब करने या उन पर मुकदमा चलाने के लिए सरकार की अनुमति की जरूरत नहीं होती है. दोषी पाए जाने पर आरोपी को 3 साल से 7 साल की सजा का प्रावधान है. साथ ही अगर इसमें नारकोटिक ड्रग्स और साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस एक्ट, 1985 से जुड़े अपराध भी शामिल हो जाते हैं, तो जुर्माने के साथ 10 साल तक की सजा का प्रावधान है.

हमने कानून का इतिहास बताया अब आते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर
इसी PMLA एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में 242 लोगों ने चुनौती दी थी, सारी याचिकाओं को क्लब कर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की, आज फैसले का दिन था. याचिकाओं के समर्थन में
सीनियर वकील कपिल सिब्बल, सिद्धार्थ लूथरा, अभिषेक मनु सिंघवी, मुकुल रोहतगी, महेश जेठमलानी, सरीखे बड़ी वकील पेश हुए, जबकि सरकार की तरफ से सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता, एडिशनल सॉलीसिटर जनरल एसवी राजू, पैनल काउंसिल कनु अग्रवाल पेश हुईं.

याचिकाकर्ताओं ने तलाशी, जब्ती और कुर्की के लिए ईडी को दी गई व्यापक शक्तियों सहित कानून के अलग-अलग पहलुओं पर सवाल उठाया था, याचिकाओं में कहा गया था कि केंद्रीय जांच एजेंसी को इस कानून के तहत छापेमारी, जब्ती और गिरफ्तारी के लिए मनमाना ताकत दी गई है, जिसके कारण एक निर्दोष को अपनी बेगुनाही साबित कर पाना मुश्किल हो जाता है. इस पर केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि धारा 3 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग एक अपराध है. चाहे वह किसी भी समय पर विधेय अपराध को अनुसूची में शामिल किया गया हो.

इस केस को विजय मंडल चौधरी वर्सेज यूनियन ऑफ इंडिया के नाम से जाना गया. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविल्कर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की पीठ ने फैसला सुनाया. फैसला उनते ही पेजों में आया जितने देश में लोकसभा के सांसद होते हैं. यानी 545 पेज. अब पूरे पेज पढ़ना तो संभव नहीं है. मगर फैसले के मुख्य बात जरूर बताई जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग (PMLA) एक्ट की संवैधानिक वैधता को जायज करार दिया. इसके साथ ही ED द्वारा छापेमारी, पूछताछ और गिरफ्तारी के अधिकार को वैध करार दिया गया. कोर्ट ने कहा कि मनी-लॉन्ड्रिंग कानून के तहत जमानत को लेकर जो कठोर शर्तें रखी गईं हैं, वे कानून हैं और इसमें कुछ भी मनमाना नहीं है.

कोर्ट ने PMLA कानून की धारा 3 (मनी-लॉन्ड्रिंग की परिभाषा), धारा 5 (संपत्ति को जब्त करना), धारा 8(4) (कुर्क की गई संपत्ति पर कब्जा), धारा 17 (छापा और जब्ती कार्रवाई), धारा 18 (व्यक्ति की जांच), धारा 19 (गिरफ्तार करने का अधिकार), धारा 44 (विशेष कोर्ट में ट्रायल चलना), धारा 45 (संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध) समेत सभी धाराओं को वैध ठहराया. साथ ही ये भी कहा कि PMLA के तहत ED को अपनी केस इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट देना जरूरी नहीं है क्योंकि ये एक आंतरिक दस्तावेज होता है और इसे FIR जैसा नहीं करार दिया जा सकता है.

कोर्ट ने साफ किया कि आरोपी को ECIR यानी केस रिपोर्ट देना जरूरी नहीं है, गिरफ्तारी के समय सिर्फ कारण बताना पर्याप्त होगा. ED मैनुअल भी प्रकाशित करने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह आंतरिक दस्तावेज होता है.
PMLA कानून में कुछ संशोधन मोदी सरकार के दौरान साल 2018 में भी हुए थे. उस पर कोर्ट ने कोई फैसला नहीं सुनाया बल्कि 2018 किए गए संशोधन पर विचार करने के लिए 7 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया. कुलमिलाकर कहें तो कोर्ट से भी विपक्ष के नेताओं की उम्मीदों को झटका लग गया. स

सरकार ने कोर्ट के फैसले का समर्थन किया. सरकार के नाते वो करेगी भी. मगर एक सबसे बड़ा पहलू राजनीतिक इस्तेमाल का भी है. जिसे लेकर विपक्ष सबसे ज्यादा मुखर रहता है. वजह ये कि  चाहे कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष अध्यक्ष सोनिया गांधी या पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी हो या फिर कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम, भूपिंदर सिंह हुड्डा,NCP नेता अनिल देशमुख, नवाब मलिक, शिवसेना के संजय राउत, नेशनल कांफ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी सरीखे नेताओं की कतार बड़ी लंबी. जो फिलवक्त ED के रडार पर हैं. आरोप लगते हैं कि चुनाव के वक्त ईडी विशेष रुप से सक्रिय नजर आती है

अब सवाल कैसे ? ED कोई केस कैसे अपने हाथ में लेती है. जवाब ये है कि जब किसी पुलिस थाने में 1 करोड़ या उससे ज्यादा की कमाई गलत तरीके से कमाने का मामला दर्ज होता है तो ये सूचना पुलिस ED को फॉरवर्ड करती है.  दूसरा तरीका ये है कि अगर ऐसा कोई मामला ED के संज्ञान में आए तो वो खुद थाने से FIR या चार्जशीट की कॉपी मांग सकता है. इसके बाद ED देखता है कि ये मनी लॉन्ड्रिंग का मामला तो नहीं है. आलम ये है कि 90 के दशक तक जिस ईडी का खौफ सिर्फ उद्योगपतियों तक सीमित था, मगर अब असल खौफ नेताओं तक पसर चुका है.

खासकर उन नेताओं में जो विपक्ष में रहते हैं. ये अक्सर कहा जाता है कि ED समेत अधिकांश सरकारी एजेंसियों का सरकारें अपने हिसाब से इस्तेमाल करती हैं. हालिया उदाहरण बता दिए. यूपीए की सरकार के दौरान मधु कोड़ा केस, जगन मोहन रेड्डी का मामला हो या बाबा रामदेव पर केस. उदाहरण कई मिल जाएंगे.मगर आरोप साबित करने के मामले में ED का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा नहीं है.

लोकसभा में JDU सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने पिछले 10 सालों में प्रवर्तन निदेशालय के अधीन दर्ज मामलों का ब्यौरा मांगा था.26 जुलाई यानी कल ही. लोकसभा में वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने सोमवार को लोकसभा में एक लिखित उत्तर में साझा किया. राज्यसभा में भी इस सवाल का जवाब दिया गया. जवाब में बताया गया है कि, ED ने 2021-22 वित्तीय वर्ष में सबसे अधिक मनी लॉन्ड्रिंग के 1,180 और विदेशी मुद्रा उल्लंघन 5,313 मामले दर्ज किए. समूचे 10 साल की बात करें तो 2012-13 से 2021-22 के वित्तीय वर्षों के बीच, ED ने मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम यानी PMLA के तहत कुल 3,985 और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम यानी FEMA के तहत 24,893 आपराधिक शिकायतें दर्ज की.
संसद के माध्यम से जानकारी मिली कि कानून बनने के बाद से PMLA के तहत कुल 5,422 मामले दर्ज किए, जिनमें से 65.66% मामले पिछले आठ वर्षों में यानी मोदी सरकार के दौरान दर्ज हुए.

अगर पूर्ववर्ती कांग्रेस और मौजूदा बीजेपी सरकार की PMLA पर तुलना करें तो. आंकड़े दिलचस्प हैं. एक काल खंड 2004 से 2014 के 10 साल और एक 2014 से 2022 के 8 साल.
- कांग्रेस सरकार में PMLA के तहत 112 रेड हुई, जबकि मोदी सरकार में 3010 रेड ईडी ने कंडक्ट की. मतलब कि 2688% ज्यादा
- कांग्रेस सरकार में 5 हजार 346 करोड़ की कुर्की हुई, जबकि मोदी सरकार में 99,356 करोड़ की कुर्की की गई. मतलब कि 1859% ज्यादा
- कांग्रेस सरकार में ईडी ने इस कानून तहत किसी की भी संपत्ति जब्त नहीं की, जबकि बीजेपी सरकार में 869 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की गई.
- कांग्रेस सरकार में कोई भी आरोपी दोषी साबित नहीं हुआ, जबकि बीजेपी सरकार में 23 आरोपी दोषी साबित हुए.
- मगर यहां गौर करने वाली बात ये है कि मुकदमों की संख्या और दोषियों की संख्या में बड़ा अंतर है. कन्विक्शन रेट 1 फीसदी भी नहीं है.

इन सब पर इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए ED के एक ऑफिसर कहते हैं, 'सिर्फ विपक्ष के नेताओं के वो बयान सुनिए जब वो सरकार पर एजेंसीज़ के दुरुपयोग का आरोप लगाते हैं. पहले सरकार CBI, IT और ED को अपने विपक्षियों के खिलाफ़ इस्तेमाल करती थी. लेकिन अब ये क्रम बदल कर ED, CBI और IT हो गया है.”
इस बयान की मानें तो  पिछली सरकारों में ED का इस्तेमाल सबसे बाद में होता था, अब सबसे पहले ED का हथियार इस्तेमाल में लाया जाता है. सारे तथ्य आपके सामने हैं. राय आप खुद बना सकते हैं. 

वीडियो: नेहरू और मोदी का ED के साथ ये कनेक्शन आप नहीं जानते होंगे!

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