The Lallantop
Advertisement

पुतिन के वफादार मुस्लिम नेता की असली कहानी!

Vladimir Putin ने Chechnya के Ramzan Kadyrov को काबू कैसे किया?

Advertisement
Img The Lallantop
Vladimir Putin ने Chechnya के Ramzan Kadyrov को काबू कैसे किया? (AFP)
pic
अभिषेक
15 मार्च 2022 (Updated: 15 मार्च 2022, 05:22 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
एक राष्ट्रपति. एक वफ़ादार. बर्बर तानाशाह. नया पुतिन. या, इंस्टाग्राम इंफ़्लुएंसर. एक शख़्स अपने ऊपर कितने किरदार ओढ़ सकता है! इसकी बानगी देखनी हो तो आपको रमज़ान कादिरोव से परिचित होना चाहिए. रमज़ान रूस के चेचन्या प्रांत के राष्ट्रपति हैं. चेचन्या एक मुस्लिम-बहुल इलाका है. जोसेफ़ स्टालिन के शासन के दौरान यहां के लाखों लोगों को निर्वासन में भेजा गया था. सोवियत संघ के विघटन के बाद चेचन्या ने आज़ाद होने की कोशिश की. इसके चलते दो युद्ध भी हुए. चेचेन विद्रोहियों ने रूस में कई ख़तरनाक हमले भी किए. हालांकि, जबसे रूस की सत्ता पर व्लादिमीर पुतिन की पकड़ मज़बूत हुई है, तब से यहां के हालात सुधरे हैं. इतना तो ज़रूर हुआ है कि रूस के अंदर चेचेन विद्रोहियों का खौफ़ कम हो गया है. ये माहौल तैयार करने में जिस शख़्स का सबसे बड़ा हाथ है, वो रमज़ान कादिरोव हैं. रमज़ान 2007 से चेचन्या के सर्वेसर्वा बने हुए हैं. वो और उनकी सेना पुतिन के प्रति वफ़ादारी की शपथ खाती है. यही वजह है कि जब से रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ है, रमज़ान लगातार यूक्रेन को धमका रहे हैं. उन्होंने अपने लड़ाकों को यूक्रेन भेजा हुआ है. अब ख़बर आ रही है कि रमज़ान ख़ुद मोर्चे पर पहुंच गए हैं. 13 मार्च को उन्होंने एक वीडियो पोस्ट किया. दावा आया कि ये वीडियो किएव के पास होस्तोमाल एयरफ़ील्ड पर शूट किया गया. रमज़ान ने अपने टेलीग्राम अकाउंट पर लिखा,
‘हम दिखाएंगे कि रूस के लोग किसी विदेशी थ्योरी या सैन्य सलाहकारों के सुझावों से कहीं बेहतर लड़ने की कला जानते हैं.’
रमज़ान ने यूक्रेनी सेना के लिए एक चेतावनी भी जारी की है. बोले कि सरेंडर कर दो वर्ना मारे जाओगे. आज हम तीन सवालों के जवाब तलाशेंगे. पहला, रमज़ान कादिरोव और चेचन्या की पूरी कहानी क्या है? दूसरा, पुतिन ने कादिरोव को काबू कैसे कर रखा है? और तीसरा, रमज़ान के यूक्रेन में होने का मतलब क्या है? साथ में बताएंगे, रूस-यूक्रेन युद्ध में नया क्या हुआ? और जानकारी चाहिए तो डिस्क्रिप्शन में दिए लिंक पर पहुंचिए. हम चलते हैं रमज़ान कादिरोव की तरफ़. पहले बैकग्राउंड समझ लेते हैं. चेचन्या रूस के दक्षिण-पश्चिम में है. ये रूस का एक प्रांत है. इसको कई तरह की ऑटोनॉमी मिली हुई है. चेचन्या की की दक्षिणी सीमा जॉर्जिया से लगती है. अभी वाली सीमाओं का निर्धारण सोवियत संघ के विघटन के बाद हुआ है. इतिहास में जाएं तो, एक समय तक चेचन्या आज़ाद हुआ करता था. 1830 के दशक की बात है. रूसी साम्राज्य बार-बार क़ब्ज़े के इरादे से पहुंचा, मगर उसे मुंह की खानी पड़ती थी. चेचेन मुस्लिमों का संघर्ष 1858 तक चला. वे अपने सेनापति शमील के नेतृत्व में लड़ रहे थे. इसी दौर में मशहूर रूसी लेखक लियो टॉल्सटॉय चेचन्या पहुंचे. वो वहां तीन साल तक रहे. टॉल्सटॉय को वॉर एंड पीस, अन्ना कैरेनिना और हाजी मुराद जैसे उपन्यासों के लिए जाना जाता है. उनका एक और परिचय है. महात्मा गांधी उनसे बेहद प्रभावित थे. उन्होंने साउथ अफ़्रीका में अपने पहले आश्रम का नाम टॉल्सटॉय फ़ार्म रखा था. टॉल्सटॉय का उपन्यास हाजी मुराद रूस और चेचेन्या के संघर्ष पर रचा गया है. इस किताब में उन्होंने रूसियों की बर्बरता का बखूबी ज़िक्र किया है. उन्होंने एक जगह लिखा, वो सिर्फ़ नफ़रत नहीं थी, जिसकी वजह से वे रूसी कुत्तों को इंसान नहीं समझते थे. उनके भीतर  ये भावना घृणा, असंतोष और विरक्ति की वजह से उपजी थी. रूसी सैनिक ऐसी बर्बरता दिखा रहे थे कि उन्हें चूहों, जहरीली मकड़ियों या भेड़ियों की तरह मारने की मंशा बढ़ गई थी. ये भावना लोगों के भीतर स्वत: पैदा हुई थी. ख़ुद का अस्तित्व बचाने के इरादे से. रूस का अभियान कामयाब रहा. 1858 में शमील को गिरफ़्तार कर लिया गया. उनके करीबी लोग भागकर आर्मीनिया चले गए. चेचन्या पर रूस ने क़ब्ज़ा कर लिया. अक्टूबर 1917 में रूस में बोल्शेविक क्रांति हुई. ज़ार निकोलस द्वितीय को गद्दी से उतार दिया गया. बोल्शेविक क्रांति के अगुआ व्लादिमीर लेनिन ने सोवियत संघ की नींव रखने वाले थे. 1922 के साल में स्वायत्त चेचेन प्रांत की स्थापना हुई. 12 बरस बाद इसे चेचेन-इंगुश ऑटोनॉमस सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक बना दिया गया. फिर साल आया 1939 का. सोवियत संघ की सत्ता पर जोसेफ़ स्टालिन का शासन था. और, जर्मनी पर एडोल्फ़ हिटलर का. सितंबर महीने में हिटलर ने पोलैंड पर हमले का आदेश दिया. इससे दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत हुई. युद्ध से पहले हिटलर और स्टालिन ने हाथ मिलाया था. मकसद ये कि दोनों एक-दूसरे के आंतरिक मामले में दखल नहीं देंगे. लेकिन हिटलर की मंशा कुछ और थी. जर्मनी को सोवियत संघ से गेहूं और खाने-पीने का बाकी सामान मिल रहा था. 21 जून 1941 की रात गेहूं से लदी गाड़ी जैसे ही जर्मनी की सीमा में घुसी, हिटलर ने रूस पर हमले का आदेश दिया. जर्मन सेना आई और शुरुआती बढ़त बनाने के बाद स्टालिनग्राद के मोर्चे पर हारकर वापस लौटी. इस हार ने हिटलर का भविष्य तय कर दिया था. जब जर्मनों को पीछे धकेल दिया गया, तब स्टालिन अपने लोगों की तरफ़ मुड़ा. उसका मानना था कि सोवियत संघ के भीतर के लोगों ने नाज़ियों की मदद की. ये आरोप चेचन्या और इंगुश के मुस्लिमों पर भी लगा. फ़रवरी 1944 में ऑपरेशन लेन्टिल चलाया गया. लोगों को गाड़ियों में भरकर साइबेरिया और मध्य एशिया के निर्जन इलाकों में भेज दिया गया. लगभग पांच लाख लोग कुछ समय के अंतर में अपनी ही ज़मीन से बेदखल कर दिए गए थे. इनमें से एक-तिहाई लोग कभी लौट नहीं पाए. हज़ारों रास्ते में ही मर गए. जिन चेचेन मुस्लिमों पर गद्दारी का आरोप लगाया गया था, उनमें से 50 हज़ार लोग स्टालिन की रेड आर्मी के लिए लड़ रहे थे. पांच को हीरो ऑफ़ द सोवियत यूनियन भी मिला. पांचवां मेडल 03 जून 1944 को अबूहाज़ी इदरिसोव को दिया गया था. जब वो युद्ध के मैदान से वापस लौटे, उनके घरवालों का कोई अता-पता नहीं था. वे लोग किसी सुदूर कैंप में मज़दूरी कर रहे थे. अबूहाज़ी को भी उन्हीं के पास भेज दिया गया. स्टालिन की मौत के बाद निकिता ख्रुश्चेव सोवियत संघ की सत्ता पर आसीन हुए. उन्होंने पुरानी ग़लती सुधारी. 1957 में ये ऐलान हुआ कि निर्वासन में भेजे गए लोग वापस लौट सकते हैं. तब जाकर बहुत से चेचेन मुस्लिम वापस अपने घर आए. उन्हें नए सिरे से शुरुआत करनी थी. वापस बुलाए जाने के बाद भी चेचेन मुस्लिमों को शक की नज़र से देखा जा रहा था. 1989 तक उनके प्रांत का मुखिया रूसी मूल का व्यक्ति ही रहा. साल 1991. सोवियत संघ के विघटन के साथ ही भगदड़ मची. अलग-अलग प्रांतों ने आज़ादी का ऐलान करना शुरू कर दिया. चेचेन्या भी इससे अछूता नहीं रहा. कम्युनिस्ट नेता का तख़्तापलट हुआ. चेचन्या ने अपना संविधान और संसद बनाया. मतलब ये कि फ़ुल-टाइम सरकार काम कर रही थी. चेचन्या अलग देश बनने की राह पर था. लेकिन रूस को ये हज़म नहीं हुआ. दिसंबर 1994 में रूस ने अपनी सेना उतार दी. तत्कालीन राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन को लगा कि कुछ दिनों में सब रूस के क़ब्जे़ में होगा. मगर ऐसा था नहीं. रूसी सेना दलदल में फंसती गई. अगले दो साल तक हिंसा चली. पांच हज़ार से अधिक रूसी सैनिक मारे जा चुके थे. 50 हज़ार से अधिक चेचेन नागरिकों की भी जान गई. मई 1997 में मॉस्को में शांति समझौता हुआ. इससे संघर्षविराम तो लागू हो गया. लेकिन चेचन्या के स्टेटहुड को लेकर फ़ाइनल बात नहीं हो सकी. चेचन्या के अलगाववादियों ने रूस के भीतर आतंक फैलाना जारी रखा. एक तरह की हिंसा, दूसरे तरह की हिंसा को जन्म देती है. अगस्त 1999 में मॉस्को में चार हफ़्तों के अंतराल में चार बम धमाके हुए. इसमें तीन सौ से अधिक लोग मारे गए. इसका दोष चेचेन विद्रोहियों पर डाल दिया गया. व्लादिमीर पुतिन उस समय रूस के प्रधानमंत्री बन चुके थे. उन्होंने चेचेन विद्रोहियों को आतंकवादी कहा. मॉस्को बॉम्बिंग का बहाना बनाकर दूसरा चेचेन वॉर शुरू किया गया. हालांकि, ये कभी पता नहीं चल सका इन हमलों के पीछे कौन था. दूसरे चेचेन वॉर को पुतिन लीड कर रहे थे. ये लड़ाई पहले की तुलना में ज़्यादा भयावह थी. अधिक बर्बर भी. फिर आया साल 2003. पुतिन ने अख़मद कादिरोव को चेचन्या की सत्ता सौंप दी. ज़िम्मेदारी दी गई कि विद्रोह को कम करें और आतंकी हमलों पर लगाम लगाएं. अख़मद ने बहुत कोशिश की. लेकिन रूस के भीतर हिंसा नहीं रुकी. एक तरफ़ वो पुतिन के भरोसे पर खरा नहीं उतर रहे थे, दूसरी तरफ़ चेचन्या के अंदर कट्टर धड़ा उन्हें गद्दार बता रहा था. 09 मई 2004 की बात है. चेचन्या की राजधानी ग्रोज़नी के एक फ़ुटबॉल स्टेडियम में एक परेड चल रही थी. सोवियत विक्ट्री डे के मौके पर. इसमें अख़मद भी थे. परेड के बीच में ही बम धमाका हुआ. इसमें अख़मद कादिरोव समेत 30 लोग मारे गए. इस घटना के कुछ घंटों के भीतर क्रेमलिन में हलचल मची थी. पुतिन ने एक ख़ास मेहमान को मिलने के लिए बुलाया था. ये मेहमान थे, 27 साल के रमज़ान कादिरोव. अख़मद कादिरोव के छोटे बेटे. रमज़ान कादिरोव के ऊपर हत्या, किडनैपिंग, टॉर्चर समेत कई संगीन आरोप लगे थे. इसके बावजूद पुतिन ने उनसे हाथ मिलाया था. मार्च 2007 में रमज़ान को चेचन्या का राष्ट्रपति बना दिया गया. चेचन्या के बजट का 80 फीसदी हिस्सा रूस देता है. इस पैसे को यूज करने की छूट रमज़ान को दी गई. उन्होंने इस पैसे का इस्तेमाल आलीशान लाइफ़स्टाइल और निजी सुख-सुविधा के लिए किया. जब तक उनका इंस्टा अकाउंट ब्लॉक नहीं हुआ था, तब तक रमज़ान के लगभग तीस लाख फ़ॉलोअर्स थे. उनके अकाउंट पर सुपरकार्स, जंगली जानवरों, कुश्ती के अखाड़ों आदि की तस्वीरें दिखती थी. ये कुछ-कुछ पुतिन के बरक्स खड़े होने की कोशिश थी. हालांकि, रमज़ान ने कभी ऐसा दिखाया नहीं. रमज़ान के राज में और क्या-क्या होता है? उनके शासन में समलैंगिकों को टॉर्चर किया जाता है. रमज़ान ने एक बार कहा था कि चेचन्या में एक भी समलैंगिक नहीं है. अगर कोई है तो वो कनाडा चला जाए. जब मानवाधिकार संगठनों ने समलैंगिकों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार रिपोर्ट्स छापीं, तब पूरी दुनिया में इसकी चर्चा हुई. 2018 में एक चलती प्रेस कॉन्फ़्रेंस में जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने पुतिन को टोक दिया था. मर्केल ने पुतिन से कहा था कि, वो आपकी बात मानता है, आप ही उसे समझा सकते हैं. रमज़ान की आर्मी खादिरोस्की भी कुख्यात रही है. कहा जाता है कि रमज़ान के शूटर्स ने पुतिन के कई विरोधियों को निपटाया है. रमज़ान के लड़ाके सीरिया में भी लड़ने जा चुके हैं. अमेरिकी अधिकारियों ने दावा किया था कि रूस ने यूक्रेन की लीडरशिप को मारने के लिए हत्यारे भेजे थे. ये हत्यारे रमज़ान के मातहत काम कर रहे थे. वे सफ़ल नहीं हो पाए. वरना, रूस-यूक्रेन युद्ध का चरित्र कुछ और ही होता. जब यूक्रेन पर हमला शुरू हुआ था, उस समय भी रमज़ान ने एक वीडियो पोस्ट किया था. इसमें वो अपने लड़ाकों को संबोधित करते दिख रहे थे. उन्होंने कहा था कि उनके लड़ाके यूक्रेनी नाज़ियों को खत्म करने के लिए तैयार हैं. अब उनके यूक्रेन में होने की ख़बर आई है. ये चिंताजनक इसलिए है क्योंकि यूक्रेन, रूस के ऊपर मानवाधिकार उल्लंघन का आरोप लगाता रहा है. रूस इससे इनकार करता है. उसका कहना है कि उसके सैनिक सिर्फ़ यूक्रेन के मिलिटरी इंफ़्रास्ट्रक्चर को निशाना बना रहे हैं. जानकारों की मानें तो रूस अपने वॉर क्राइम्स को रमज़ान के परदे के पीछे छिपा सकता है. खादिरोस्की किसी देश की आधिकारिक सेना नहीं है. अगर उसने युद्ध अपराध किए तो उसका आरोप तय करना बेहद मुश्किल होगा. जहां तक रमज़ान की बात है, उन्होंने कई दफ़ा क्रेमलिन और पुतिन को खफ़ा भी किया है. इसके बावजूद पुतिन ने उनसे हाथ नहीं खींचा है. इसकी वाजिब वजह भी है. दूसरा चेचन्या वॉर 2009 में खत्म हो गया. इसके बाद से चेचेन विद्रोहियों के हमलों में भारी कमी आई है. चेचन्या में पहले की तुलना में शांति है. इस्लामिक चरमपंथियों को दबाकर रखा गया है. ये सब रमज़ान की वजह से हुआ है. जब तक यथास्थिति बनी रहेगी, तब तक रमज़ान कादिरोव का स्टेटस बरकरार रहने वाला है. रमज़ान कादिरोव की कहानी को यहीं पर रोकते हैं. अब रूस-यूक्रेन युद्ध के बाकी अपडेट्स जान लेते हैं. आज तारीख़ है, 15 मार्च 2022. रूस-यूक्रेन युद्ध का 20वां दिन. दोनों पक्षों के बीच चार राउंड की बातचीत हो चुकी है. एक बार रूस और यूक्रेन के विदेश मंत्री भी आमने-सामने बैठ चुके हैं. तुर्की में. लेकिन अभी तक बात नहीं बनी है. मामला दो और तीन के बीच में झूल रहा है. यूक्रेन की दो मांगें हैं. रूस की तीन. यूक्रेन कहता है, - सीज़ द फ़ायर. यानी, संघर्ष विराम हो. - और, रूसी सैनिकों की घर वापसी हो. वे यूक्रेन की सीमा से बाहर निकल जाएं. रूस की तीन शर्तें हैं. - यूक्रेन, क्रीमिया और सेवस्तोपूल पर रूस की संप्रभुता को स्वीकार करे. - यूक्रेन को डिमिलिटराइज़ किया जाए. - और, वो नेटो या यूरोपियन यूनियन में शामिल होने की ज़िद छोड़ दे. तारीख़ पर तारीख़ दी जा रही है. बैठकों का दौर जारी है. मगर कुछ निकल कर नहीं आ रहा. क्यों नहीं आ रहा. ये समझने के लिए एक छोटा सा क़िस्सा सुन लीजिए. दिसंबर 2019 की बात है. कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों के पत्रकार यूक्रेन की राजधानी किएव पहुंचे. उन्हें यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की का इंटरव्यू लेना था. ज़ेलेन्स्की छह महीने पहले ही राष्ट्रपति बने थे. उससे पहले तक वो कॉमेडी शोज़ किया करते थे. कुछ दिनों के बाद उनकी पुतिन के साथ मुलाक़ात होने वाली थी. इंटरव्यू के दौरान टाइम मैगज़ीन के सिमोन शुसर ने पूछा, आपको क्या लगता है, इस मीटिंग से क्या निकलेगा? ज़ेलेन्स्की ने कहा था,
मेरा अनुभव कहता है कि ये मीटिंग्स घंटों तक चलती रहतीं है. बस समय का ग्राफ़ बदलता है. अक्सर ये मीटिंग्स गोल-गोल घूमती हैं. लोग एक ही बात को बार-बार दोहराते हैं. मुझे इतना समझ में आ चुका है कि लोग इन मीटिंग्स में कुछ ‘नहीं करने’ के इरादे से पहुंचते हैं.
उनका कहा आज के समय में सच साबित हो रहा है. बातें बस गोल-गोल घूम रहीं है. कोई कहीं पहुंच नहीं रहा. रूस-यूक्रेन की लड़ाई में और क्या हुआ? - 09 मार्च को मेरियोपूल में एक अस्पताल पर हवाई हमला हुआ था. यूक्रेन ने आरोप लगाया था कि रूस मैटरनिटी वार्ड और बच्चों के अस्पतालों को निशाना बना रहा है. मेरियोपूल में हुए अटैक में 17 लोग घायल हुए थे. इस घटना के बाद एक चौंकाने वाली तस्वीर बाहर आई. इसमें एक महिला को स्ट्रेचर पर ले जाते देखा जा सकता था. महिला बच्चे को जन्म देने अस्पताल आई थी. वो बुरी तरह घायल हो गई. उसे दूसरे अस्पताल में शिफ़्ट किया गया. डॉक्टरों ने बचाने की पूरी कोशिश की. लेकिन बचा नहीं सके. महिला और बच्चे, दोनों की मौत हो चुकी है. मेरियोपूल शहर में अभी भी चार लाख लोग फंसे हुए हैं. वे बिजली, पानी और इंटरनेट कनेक्टिविटी से कटे हुए हैं. - 15 मार्च को पोलैंड, चेक रिपब्लिक और स्लोवेनिया के प्रधानमंत्री यूक्रेन पहुंचेंगे. वे यूक्रेनी राष्ट्रपति ज़ेलेन्स्की से किएव में मुलाक़ात करेंगे. इसका मकसद ये बताना है कि यूरोपियन यूनियन ने यूक्रेन को अकेला नहीं छोड़ा है. रूसी सेना फिलहाल किएव के बाहर घेरा डालकर बैठी है. ऐसे में यूरोपीय नेताओं का ये दौरा काफ़ी अहम माना जा रहा है. - फ़ाइनेंशियल टाइम्स ने रूस और चीन के गठजोड़ को लेकर एक रिपोर्ट छापी है. अख़बार ने अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से दावा किया कि रूस ने चीन से पांच तरह के सैन्य साजो-सामान मांगे हैं. क्रेमलिन ने इस रिपोर्ट को झूठा बताया है. चीन ऐसी किसी मांग से पहले ही मना कर चुका है. उसने अमेरिका पर फ़र्ज़ी ख़बरें फैलाने का आरोप भी लगाया है. - 15 मार्च को चौथे राउंड की बैठक शुरू हुई. शांति के प्रयास के लिए. इस बार की बातचीत वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए हो रही है. 16 मार्च को ये बातचीत नए सिरे से शुरू होगी. - यूक्रेन सरकार ने देश में मार्शल लॉ एक महीने के लिए बढ़ाने का फ़ैसला किया है. अब ये 24 अप्रैल तक लागू रहेगा. मार्शल लॉ के दौरान 18 से 60 साल तक के पुरुषों को देश छोड़ने की इजाज़त नहीं होगी. विशेष परिस्थितियों को छोड़कर इस नियम में कोई छूट नहीं दी जाती है. इसके अलावा भी बहुत सारे प्रतिबंध होते हैं.

Subscribe

to our Newsletter

NOTE: By entering your email ID, you authorise thelallantop.com to send newsletters to your email.

Advertisement